Saturday, December 4, 2010

गर्भवती होने का डर तो सताता है मगर बलात्कार हो ही ना ऐसी कोशिश तक़ नही!वाह रे मेरा भारत महान!

बहुत दिनो के बाद ब्लाग जगत मे वापसी कर रहा हूं।दोपहर आवारा बंजारा यानी संजीत त्रिपाठी से अचानाक़ मुलाकात हो गई।तमाम शिकवे-शिकायत के बाद इस बात पर उसने माफ़ किया कि आज कुछ न कुछ लिखूंगा,सो लिख रहा हूं।कहने को बहुत कुछ है मगर आज सिर्फ़ छोटी सी पोस्ट,पोस्ट क्या छोटा सा ………नही नही छोटा सा नही बहुत बड़ा सवाल।दिल्ली की सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बात के निर्देश दियें है कि बलात्कार कि शिकार को मार्निंग आफ़्टर पिल्स ज़रूर दें  ताकि उसके गर्भवती होने का खतरा ना रहे।ठीक है बहुत अच्छी बात है कि स्वास्थ्य मंत्रालय को इस बात कि फ़िक्र तो हुई रोज़-रोज़ हो रहे बलात्कारों की शिकार कुआंरी मां बनने का बोझ ना उठाये।स्वास्थ्य मंत्रालय कि चिंता तो समझी जा सकती है मगर एक महिला मुख्यमंत्री की सरकार के गृह मंत्रालय पर उतना ही तरस भी आता है और शर्म भी आती है।अगर स्वास्थ्य मंत्रालय को मार्निंग आफ़्टर पिल्स देने की हिदायत देने पर मज़बूर होना पड़ रहा है तो आखिर उसका ज़िम्मेदार कौन है।अगर युवतियों को कुंआरी मां या गर्भवती होने से बचाने की इतनी  ही चिंता है तो उसे बलात्कार का शिकार होने से बचाने की चिंता करनी चाहिये ना कि उसे गर्भवती होने से बचाने की। ऐसा मैं समझता हूं,आप क्या समझतें हैं?मुझे बताईयेगा ज़रूर्।

18 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

भैया.... क्या बताएं.... सब मानसिक रूप से दिवालिये हो चुके हैं.... न्यायपालिका भी और कार्यपालिका भी....


भैया मैं भी आज बहुत दिनों के बाद आया हूँ.... और आपको बहुत दिनों के बाद पढना बहुत अच्छा लगा...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कहां चले जाते हैं आप... सरकार की तो हालत वही है कि चोर से कहती है चोरी कर और साहूकार से कहती है कि जागते रहो... सत्य वचन...

Smart Indian said...

बडे भाई, कई बार हम समाज में हो रही बहुत सी चीज़ों को देख नहीं पाते हैं। मगर सही दिशा में जितना भी काम हो रहा हो वह सराहनीय है। सर्वोत्तम की आशा में उत्तम का विरोध नहीं होना चाहिये।

आपकी बात तो सही है यह
थोडा करने से सब नहीं होता
फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
कुछ न करने से कुछ नहीं होता।

योगेन्द्र मौदगिल said...

swagat hai......

vicharniya mudda......par vichar karega kaun...
poora desh maun..maun..maun......

Rahul Singh said...

पूर्व सावधानी और निदान परस्‍पर विरोधी पक्ष नहीं होते, समस्‍या/स्थिति के दो पहलू होते हैं, जिन्‍हें एक-दूसरे के सामने खड़ा नहीं किया जा सकता. लंबे समय से इंतजार था यहां आपका.

प्रवीण पाण्डेय said...

जय हो, पूरी की पूरी धुरी मोड़ देने में सक्षमता पायी है, इन नरबांकुरों ने।

Anonymous said...

हास्यास्पद भी, क्षोभजनक भी!

यह तो आप भी जानते ही हैं कि ऐसे कई मामलों में गर्भपात तक करवा लेने की सलाह देते हैं जाँच अधिकारी! पिल्स तो एक मानवीय तरीका है :-)

कानून के कथित रखवालों को कानून बनाने/ तोड़ने वालों की रक्षा करने से मुक्ति मिले तो बेचारे कुछ कर पाने की सोचें

वैसे पिल्स जैसी युक्ति भी किसी झल्लाए अधिकारी के दिमाग की ईजाद रही होगी

Taarkeshwar Giri said...

apne apne vichar hain logo ke

उम्मतें said...

आपकी वापसी पर संजीत के लिए हार्दिक धन्यवाद :)
मैंने कई बार सोचा कि आपको मेल करूं ,कहाँ हैं ?
बात फिर आई गई हो गयी !

पोस्ट पर राहुल सिंह साहब का नज़रिया ठीक लग रहा है !

अजय कुमार झा said...

अनिल भाई ,
यही सब वो बातें हैं जो बता और जता देती हैं पूरी दुनिया को कि अभी भारत की सोच और औकात असल में है क्या ?? ये हाल देश की राजधानी का तब है जब उसकी मुखिया स्वंय एक महिला हैं ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सोचने को बाध्य करती हुई पोस्ट!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इन लोगो के परिवार मे अगर ऎसा हादसा हो जाये तो वह इसे अज़्माये . तरस आता है .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

निमक़म्मों की बावड़ी है अब ये सरकार, इसमें पानी नहीं कीचड़ ही कीचड़ सना है चारों ओर

Sanjeet Tripathi said...

satik mudde par satik bat,
aap lauute blogjagat par yeh ek acchi baat, agar aap fir lagatar likhte rahein to aur acchi baat, promise todne ka nai boss

कडुवासच said...

... aap se sahmat ... precaution is better than cure !!!

Pratik Maheshwari said...

ये तो वही बात हो गयी कि चोट लगने के बाद मरहम-पट्टी की जाए.. ये नहीं कि चोट न लगने की कोशिश की जाए..
दुर्भाग्य इस देश का कि ऐसी सीमित सोच वाले लोग इस देश को चला रहे हैं..

vijai Rajbali Mathur said...

वह मुख्या मंत्री खुद आई.ए.एस . रही हैं और स्वतंत्रता सेनानी की पुत्र वधु भी रही हैं लेकिन आजकल व्यवस्था चंदा देने वालों के हित में चलती है. मानवीयता पर नहीं.
सदाचार धुंए की तरह नीचे से ऊपर चलता है.यदि जनता जागरूक और सदाचारी हो तो इन अनैतिक शासकों की लगाम कसी जा सकती है

शरद कोकास said...

चचा गालिब याद आ गये .. हमको उनसे वफा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफा क्या है ..