हे प्रभु, नववर्ष, हिन्दू नहीं अंग्रेजी नववर्ष पर आपसे यह प्रार्थना है कि छत्तीसगढ के बारे में कुछ भी नहीं जानने वाले, विदेशों में रहने वाले अज्ञानियों को सद्बुद्धि देना। हो सके तो उन्हें क्षमा भी कर देना क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। वे तो बस यहां के कुछ अंग्रेजी परस्त कथित बुध्दिजीवियों, मानवाधिकारवादियों के बताए झूठ को ही सच मान रहे हैं। इसमें उनकी गलती भी नहीं है इसलिए उन्हें क्षमा जरूर करना और सद्बुद्धि भी जरूर देना ताकि उन्हें सिर्फ तीन आदमियों को सजा देना ही अन्याय न लगे। उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि बस्तर में सैकडों गांव 21वीं सदी में अंधेरे में डूबे हुए हैं। डूबे नहीं बल्कि अंधेरे में डूबो दिए गए हैं। उन लोगों ने, जिनके शहरी संपर्क सूत्रों को सजा देने के बाद विदेशों में हो-हल्ला मचाया जा रहा है।
छत्तीसगढ में आज पहली बार विरोध के नाम पर खानापूर्ति की शुरूआत की गई है वो भी राजधानी में। इससे पहले कथित मानवाधिकारवादी डॉ. विनायक सेन और उनके साथियों को सजा सुनाए जाने के बाद छत्तीसगढ में किसी ने विरोध तक नहीं किया था। जहां का मामला वहां विरोध न होकर विरोध शुरू हुआ अमेरिका से। और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर एक बार छत्तीसगढ में पनप रहे लाल आतंकवाद के पोषक तत्व सक्रिय हो गए हैं। ठीक वैसे ही जब डॉ. विनायक सेन को जनसुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। तब भी दुनिया भर के देशों के साथ-साथ दिल्ली में उनकी गिरफ्तारी पर जमकर हाय-तौबा मची थी। तब उनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाए गए थे। और अब उन्हें सजा देने पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सवाल तो यह भी उठता है कि क्या ये न्यायपालिका को प्रभावित करने का षडयंत्र नहीं है? क्या ये न्यायपालिका की अवमानना नहीं है? क्या ये न्यायपालिका पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश नहीं है? सवाल और भी बहुत से हैं। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जो कभी अखंड मध्यप्रदेश जिसमें छत्तीसगढ भी शामिल था के मुख्यमंत्री रहे हैं, डॉ. विनायक सेन को भला आदमी ठहराने पर तुले हुए हैं। उस डॉ. विनायक सेन को जिन्हें अदालत ने नक्सलियों की मदद करने का आरोपी प्रमाणित पाया है। उन नक्सलियों का जिन्होंने कभी उनके मंत्रिमंडल के साथी मंत्री लिखीराम कावरे के घर में घुसकर हत्या कर दी थी। ऐसे में दिग्विजय सिंह का नक्सली समर्थकों के समर्थन में बयानबाजी करना उनके कार्यकाल में नक्सलियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं होने पर सवाल खडे करता है।
सवाल और भी हैं। जिस तरह अंग्रेजी परस्त लोग अंग्रेजी नए साल को हिन्दू नववर्ष की बजाय नया साल साबित करने पर तुले हुए हैं ठीक उसी तरह कुछ अज्ञानी लोग अदालत में राजद्रोह का मामला प्रमाणित होने पर दोषी करार दिए जाने वाले डॉ. विनायक सेन और उनके साथियों को निर्दोष और भला साबित करने पर तुले हुए हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि वे कर क्या रहे हैं। जिस दिन डॉ. सेन और उनके साथियों को सजा सुनाई गई तब से बस्तर में नक्सलियों का उत्पात जारी है। वहां सडकें खोद दी गई हैं। वहां बिजली के खंभे गिरा दिए गए हैं। आवागमन ठप पडा है। चाहे सडक मार्ग का हो या रेल। बिजली जो गई है आज तक लौटी नहीं है।
सारा जहां विज्ञान के इस दौर में जगमग लट्टुओं से रात के अंधेरे को चीरकर आराम की जिंदगी जी रहा है वहीं बस्तर के बीजापुर के लोग फिर एक बार आदिमकाल में पहुंचा दिए गए हैं। क्या उनके हिस्से की बिजली चुरा लेना मानवाधिकार का हनन नहीं है? आज भी सरपंच, उपसरपंच और ग्रामीणों की मुखबिरी के नाम पर नक्सली हत्या कर रहे हैं, क्या ये मानवाधिकार का हनन नहीं है? मानवाधिकार के मायने क्या सिर्फ मानवाधिकार संगठन से जुडे लोगों के लिए ही है? मानवाधिकार क्या सिर्फ डॉ. विनायक सेन और उनके साथियों का ही है? क्या बस्तर में बारूदी सुरंगों का शिकार हुए पुलिसकर्मियों के परिवार का कोई मानवाधिकार नहीं होता? रास्ता खोद देना, लोगों को आने-जाने से रोकना क्या इस बारे में कभी कोई मानवाधिकारवादी संगठन कुछ बोलेगा? बस्तर के दुरूह जंगली इलाकों में बिजली के खंभे गिरा देना कहां का न्याय है। क्या विदेशों में गला फाड-फाडकर रो रहे रूदालियों को कभी इस बात पर भी रोना आएगा? क्या उन्हें कभी ये पता भी चल पाएगा कि बस्तर में लाल आतंकवाद की असलियत क्या है? क्या अकारण मारे जा रहे निर्दोष ग्रामीण और पुलिस वालों के घरवालों की चीखें उनके कानों पर पडा लाल पर्दा फाड सकेंगी? हे प्रभु बीते साल जो कुछ हुआ सो हुआ नए साल में ऐसा कुछ भी न हो और हो सके तो उन अज्ञानियों को सद्बुद्धि देना।
22 comments:
यह सिक्के का एकदम दूसरा पहलू है -यही सच होगा -
चलिए आपको तो नए वर्ष की शुभकामनाएं दे दें !
जब हमने इस कलेन्डर को स्वीकार कर ही लिया है तो नया साल भी इसी को मानते है . वर्ष प्रतिपदा को भी पूजा पाठ कर ही लेते है .
नमस्कार
प्रभु आपकी प्रार्थना जरुर सुनेंगे ...और मेरी प्रार्थना भी शामिल है ...
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ...अमन और चैन की कामना भी ...बहुत- बहुत शुक्रिया
प्रभु केवल बुद्धि देकर छोड़ देते हैं। इंसान ही उसका सद या दुर उपयोग करता है
कुछ लोगों के ये भी विचार हैं !!
http://vipakshkasvar.blogspot.com/2010/12/blog-post_8205.html
सबसे पहले २०११ की शुभकामनायें. फिर शिकायत कि इतनी लम्बी छुट्टी पर चले जाते हैं.
आपकी बात से सहमत... नक्सलियों के ही अधिकार नजर आते हैं, बाकियों के नहीं. ये इसी काबिल हैं.
परमेश्वर आप की प्राथना सुने इस प्राथना में हम भी आप के साथ है ,,,,,,,भैय्या शहीद भगत सिंग,चन्द्र शेखर आजाद की तुलना अपने खुनी क्रांति से करने वाले माओवादी भूल गए है की चन्द्र शेखर आज़ाद को जब आग्रेजो ने घेर लिया तो उन्होंने हिन्दुस्तानी सिपाहियों को अग्रेजो और अपनी लड़ाई से अलग होने कहा लेकिन जब हिन्दुस्तानी सिपाही नहीं माने तो वह सिर्फ अग्रेजो को अपना निशाना बनते रहे और अंत में स्वयं की कनपटी में गोली मारकर वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन हिन्दुस्तानी सिपाहियों को गोली नहीं मारा ,,जबकि नक्सली आदिवासियों के शुभ चिन्तक होने का दावा करते हुए भी रोज आदिवासियों की जान ले रहे है ,,,आदिवासी युवतियों का दैहिक शोषण कर रहे है ,,,ये आदिवासियों के कैसे शुभ चिन्तक ,,ये कैसे मानवाधिकारवादी ,,,,,,,
सबको सम्मति दे भगवान।
नववर्ष की शुभकामनायें
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सपने जो अधूरे रहे,
पूरे हों वो नववर्ष में.
सुख, समृद्धि, सफलता मिले,
जीवन गुजरे उमंग, हर्ष में.
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जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
संजीव तिवारी जी की पोस्ट पर टिप्पणी लिखी है, दुहरा रहा हूं-
''नंदिता हक्सर द्वारा संपादित एक पुस्तक मैंने दो-तीन साल पहले पढ़ी थी- Indian Doctor In Jail : The Story Of Binayak Sen इस परिप्रेक्ष्य में इससे अधिक गंभीर तथ्य और जानकारियों वाली कोई सामग्री मेरे देखने में नहीं आई'' सहमत होना या न होना अलग मुद्दा हो सकता है.
सही कहा-ईश्वर अज्ञानियों को सदबुद्धि दे।
इस देश को वास्तविक डर बुद्धिजीवियों से ही है।
... gambheer maslaa ... saarthak charchaa !
नया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो
न हो तेरा, न हो मेरा, जो हो वो हम सबका हो !!
अज्ञानियों को सद्बुद्धि देना. सार्थक आलेख.
दरअसल विनायक सेन जिस तबके के उत्थान में लगे हैं, उसे आज भी गूंगा बहरा रखा गया है। उनमें साहस आया तो बदलाव भी आएगा और उन इलाकों में रोशनी भी पहुंच जाएगी।
जी हाँ विदेश में बैठे लोग छत्तीसगढ़ को गलत ही समझ रहे है क्यूंकि छत्तीसगढ़ में कुछ अलग ही हो रहा है
और ये देखिये वास्तव में छत्तीसगढ़ में हो क्या रहा है
- लोग गरीबी रेखा का चांवल बेचकर शराब पी रहे है शायद ही ऐसा कोई त्यौहार होगा जो शराब के बिना मनाया जाता हो . अवैध शराब तो हर गाँव में मिल जाएगी पिछले दस सालों में जितने अस्पताल नहीं खुले शायद उससे दस गुना शराबखाने खुले है क्यूंकि शायद सरकार को लगता है की छत्तीसगढ़वासियों को दवा से ज्यादा दारु की जरुरत है .
- राजधानी में एक अधिकारी 400 करोड़ की संपत्ति जमा करते है पूरे गाँव के नाम से फर्जी दस्तावेज बनाते है उन्हें निलंबित किया जाता है फिर वापस लिया जाता है राजस्व मंडल में मलाईदार पोस्ट देकर और किसी पत्रकार (!?) की हिम्मत नहीं इसके बारे में कुछ लिखे या कहे क्या हुआ उन 400 करोड़ रुपयों का जो निश्चित ही काली कमाई है किसी के पास कोई जवाब नहीं .
अब ये हाल राजधानी का है तो सुदूर बस्तर के आदिवासी कैसे भीषण भ्रष्टाचार से बचकर विकास की मुख्यधारा में आ पायेंगे ये तो भगवान् ही जाने .
- सबसे ज्यादा घटिया सड़कों का निर्माण छत्तीसगढ़ में हो रहा है इन सडको से चलकर अब गाँव के गरीब आदिवासी कैसे आगे बढ़ें ?
- नक्सलियों का साथ देने वालो (!?) पर तो कार्यवाही हो रही है पर नक्सली बनाने वाले सरकारी तंत्र का क्या?
- और एक मजेदार बात भिलाई के एक शहीद की मूर्ति चौक पर लगाने परिजन भटकते रहे पर कोई उनकी बात सुनने को भी तैयार नहीं अब हमारा ये रवैय्या है शहीदों का सम्मान करने का .
छत्तीसगढ़ वासी सबसे शांत और सहनशील होते है तो
सबसे बड़ी बात इस नक्सल समस्या में कि क्यों छत्तीसगढ़ का एक आम शांतिप्रिय आदिवासी बन्दूक उठाकर मरने मारने को उतारू है जब तक इस कारण को ढूंढकर इसका निदान नहीं किया जायेगा इस सडती व्यवस्था में सब कुछ ख़त्म हो जायेगा .
जी हाँ विदेश में बैठे लोग छत्तीसगढ़ को गलत ही समझ रहे है क्यूंकि छत्तीसगढ़ में कुछ अलग ही हो रहा है
और ये देखिये वास्तव में छत्तीसगढ़ में हो क्या रहा है
- लोग गरीबी रेखा का चांवल बेचकर शराब पी रहे है शायद ही ऐसा कोई त्यौहार होगा जो शराब के बिना मनाया जाता हो . अवैध शराब तो हर गाँव में मिल जाएगी पिछले दस सालों में जितने अस्पताल नहीं खुले शायद उससे दस गुना शराबखाने खुले है क्यूंकि शायद सरकार को लगता है की छत्तीसगढ़वासियों को दवा से ज्यादा दारु की जरुरत है .
- राजधानी में एक अधिकारी 400 करोड़ की संपत्ति जमा करते है पूरे गाँव के नाम से फर्जी दस्तावेज बनाते है उन्हें निलंबित किया जाता है फिर वापस लिया जाता है राजस्व मंडल में मलाईदार पोस्ट देकर और किसी पत्रकार (!?) की हिम्मत नहीं इसके बारे में कुछ लिखे या कहे क्या हुआ उन 400 करोड़ रुपयों का जो निश्चित ही काली कमाई है किसी के पास कोई जवाब नहीं .
अब ये हाल राजधानी का है तो सुदूर बस्तर के आदिवासी कैसे भीषण भ्रष्टाचार से बचकर विकास की मुख्यधारा में आ पायेंगे ये तो भगवान् ही जाने .
- सबसे ज्यादा घटिया सड़कों का निर्माण छत्तीसगढ़ में हो रहा है इन सडको से चलकर अब गाँव के गरीब आदिवासी कैसे आगे बढ़ें ?
- नक्सलियों का साथ देने वालो (!?) पर तो कार्यवाही हो रही है पर नक्सली बनाने वाले सरकारी तंत्र का क्या?
- और एक मजेदार बात भिलाई के एक शहीद की मूर्ति चौक पर लगाने परिजन भटकते रहे पर कोई उनकी बात सुनने को भी तैयार नहीं अब हमारा ये रवैय्या है शहीदों का सम्मान करने का .
छत्तीसगढ़ वासी सबसे शांत और सहनशील होते है तो
सबसे बड़ी बात इस नक्सल समस्या में कि क्यों छत्तीसगढ़ का एक आम शांतिप्रिय आदिवासी बन्दूक उठाकर मरने मारने को उतारू है जब तक इस कारण को ढूंढकर इसका निदान नहीं किया जायेगा इस सडती व्यवस्था में सब कुछ ख़त्म हो जायेगा .
पूरे लेख में मुझे बस दिग्विजय सिंह पर ही प्रतिक्रिया दर्ज़ करानी है और वह ये कि दिग्विजय सिंह bite-hungry मीडिया के लिए आए दिन कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर चलाए रहते हैं ताकि circulation में बने रह सकें क्योंकि अपने इलाक़े में इनकी ज़मीन खिसक चुकी है, केंद्र सरकार है कि उसमें इन्हें कोई पूछता नहीं ... तो ऐसे में महज़ खंभानुचाई के अलावा कुछ और किया भी क्या जा सकता है.
इस देश में आज तक मीडिया की मूर्खता का जिन लोगों ने जमकर फ़ायदा उठाया है उनमें मुझे अभी तीन नाम याद आ रहे हैं...राजनारायण, लल्लू यादव (जिन्हें मीडिया आदर से लालू कहता घूमता है) और राखी सावंत. दिग्विजय सिंह इस फ़ेहरिस्त में बने रहने के लिए ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाए पड़े हैं.(यह बात दीगर है कि मीडिया इसे इनकी जोकरइ का फ़ायदा उठाना समझे बैठा है)
पुलिस मारती है तो फेक एन्कांउटर और पुलिस मरती है तो गरीबों की रक्षा... दोनों सूरतों में गरीब ही मरता है :(
नववर्ष बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
अंततः सत्य ही जीतेगा।
द्विवेदी जी से सहमत ! नववर्ष की शुभकामनाएं !
यदि देश को पुनः शांति की पटरी पर लाना है तो मानवाधिकारियों को बरखास्त करना होगा॥
@ नवीन
बंदूक उठाने वाले कुछ तो दूसरे प्रदेशों से आए है और कुछ भोले आदिवासी जो बरगलाए गए
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