राजद्रोह के दोषी डॉ. विनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने देश की राजधानी में न्यायालय के फैसले के खिलाफ जमकर प्रलाप किया। उन्होंने अपने और अपने बेटियों के लिए देश में रहना खतरे से खाली नहीं बताया। यहां तक तो ठीक था उन्होंने यहां तक कह डाला कि उन्हें किसी उदार लोकतांत्रिक देश में शरण लेना पड़ेगा। इस बयान के क्या मायने हो सकते हैं।
इसे सीधे-सीधे डॉ. विनायक सेन की विचारधारा का समर्थन ही माना जा सकता है। ये तो नहीं कहा जा सकता कि इलिना सेन का बयान भी राजद्रोह की श्रेणी में आता है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस बयान से अपने देश से प्रेम नहीं बल्कि दूसरे किसी उदार लोकतांत्रिक देश से प्यार है। भारत जिसे सारी दुनिया लोकतंत्र का बेहतरीन उदाहरण मानती है उसे छोड़ किसी और देश को उदार लोकतंत्र कहना साबित करता है कि ऐसा कहने वाले को इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है या उसे वो पसंद नहीं है। भारत से ज्यादा उदार लोकतंत्र और कौन सा हो सकता है ये तो शायद इलिना सेन ही बता पाएं लेकिन उन्हें ये जरूर सोच लेना चाहिए कि जिस देश में वो रह रहीं हैं सिर्फ वहीं उन्हें अदालत के फैसले के खिलाफ तक टिप्पणी करने की आजादी हासिल है। किसी भी दूसरे देश में जो उनके अनुसार उदार लोकतंत्र हो वहां न्यायालयीन फैसले के खिलाफ टिप्पणी करना सीधे-सीधे जेल का रास्ता दिखा सकता है। ये तो भारत का बड़ा दिल है जो तमाम उन लोगों को भी उतने ही प्यार से पाल रहा है जिन्हें उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास नहीं। उनमें से एक उनके पति डॉ. विनायक सेन भी थे जो बैलेट की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बुलेट से बदलने का दावा करने वालों के साथी हैं।
आखिर भारत में रहकर किसी दूसरे देश को उदार कहकर इलिना सेन साबित क्या करना चाहती है? क्या वे ऐसा कहकर दुनिया भर के कथित मानवाधिकारवादियों को भारत के खिलाफ प्रचार का एक और हथियार देना चाह रही हैं? क्या वे ऐसा कहकर भारत का भला नहीं चाहने वाले उन तमाम देशों में अपना नया ठिकाना तलाश रही हैं? क्या विदेशी पैसों से चलने वाले एनजीओ के रास्ते वे विदेश जाना चाह रही हैं? आखिर उन्हें और उनकी दो बेटियों की जान को खतरा है ही किससे? खतरा तो उनके पति के दोस्तों से बस्तर और समूचे छत्तीसगढ़ के शांत और लोकतंत्र में भरोसा करने वाले निरीह नागरिकों को था। जब तक वे बाहर थे और निर्दोष आदिवासियों और अपनी ड्यूटी निभाने वाले ईमानदार पुलिस वालों को असमय मौत के घाट उतारने वाले नक्सलियों की मदद कर रहे थे तब तक शायद भारत एक उदार लोकतंत्र था। मगर जैसे ही उनके पति के खिलाफ अदालत ने राजद्रोह का मामला प्रमाणित पाया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई तब से शायद इलिना सेन को भारत का लोकतंत्र उदार नहीं नजर आ रहा है। लोकतंत्र के उदार होने के मायने क्या उनके पति को खूनी संघर्ष करने वाले नक्सलियों की मदद करने की अनुमति देना ही है?
एक बार फिर से सोचना चाहिए देश के तमाम उन बुद्धिजीवियों को जो बिना वस्तुस्थिति जाने विदेशी पुरस्कारों की लालसा में जाने-अनजाने नक्सलवाद की पैरवी करने वाले कथित मानवाधिकारवादियों के सुर में सुर मिला रहे हैं। इलिना सेन का ये कहना कि उन्हें किसी उदार लोकतांत्रिक देश में शरण लेनी पड़ेगी घोर आपत्तिजनक है और यह साबित करने के लिए भी काफी है कि उन्हें अपने देश से प्यार नहीं है। या फिर ये कहा जा सकता है कि वे देश छोड़कर भागने का बहाना ढूंढ रही हैं।
19 comments:
वाकई ठीक कहा..
कुछ तो सच कहा है इलिना सेन ने , इस देश में कौन सुरक्षित है ? उन उदारवादी देशो के नाम भी वे बतलाने का कष्ट करें । शायद यह अब तक किसी ने उनसे पूछा नहीं ।
जब तक धर्मांतरण करने नहीं दिया जाता देश उदार कैसे माना जाएगा?
जी नहीं भारत पूर्णतया उदार लोकतंत्र है।
सिर्फ कुछ बुद्दिहीन लोग ही भारत के लोकतंत्र को अनुदार कह सकते हैं।
द्वितीयोनास्ति,भारत जैसा देश ब्रह्माण्ड में कहीं नहीं है।
गंभीर चिंतनीय.
गंभीर और चिंतनपरक विषय !
पति को आजन्म कारावास की सजा मिली है तो इस तरह पत्नी का बरगलाना समझ में आता है. इलिना जी पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी यह इस देश की उदारता ही तो है.
लोकतन्त्र की आस्था एक घटना से ही धूल धूसरित हो लगे तो उन घावों का क्या कहेंगे जो देश का रक्त पिछले कई दशकों से बहाती आयें हैं।
... gambheer maslaa ... charchaa-paricharchaa vishayak !!
हमारे देश में कानून व्यस्था कितनी कमजोर है, यह तो दिख ही रही है, अदालत के फैसले पर खुलेआम टिप्पणी कि जा रही है, और शासन मौन है. मैंने तो यह सुना था कि अदालत के फैसले पर विरोधाभासी बयानबाजी करनेवालों को जेल हो जाती है..लेकिन हमारा देश के लोकतान्त्रिक गणराज्य है. कोई कुछ भी कहे-कुछ भी करे, क्या फर्क पड़ता है. मेरे ख्याल से न्यायालय के फैसले के विरोध में अनाधिकृत व्यक्तियों द्वारा बयान देनेवालों पर कारवाई करना चाहिए, लेकिन फिर वही बात... कि हमारे देश में सब-कुछ चलता है.
यह सब भाजपा और कांग्रेस की नूरा कुश्ती है, जिसमें सेन फंस गए हैं। उनका समर्थन माओवादी भी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वो माओवादी नहीं हैं। रही बात न्यायपालिका की, तो जिसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश ने टिप्पणी की है कि जबसे इसका गठन हुआ है हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर सिर्फ १२९ परिवारों ने अब तक राज किया है, किसी और को कुछ कहने की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में होने वाली नियुक्ति की प्रक्रिया ही जब राजनीति के भरोसे है, उसमें कोई पारदर्शिता नहीं है तो निचले न्यायालय को क्या कहा जाए? सबसे मजे की बात तो यह रही कि वर्ष २०१० इतना क्रान्तिकारी वर्ष रहा कि लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ न्यायपालिका औऱ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता का पतन खुलेआम जनता ने देख लिया है। शायद कुछ कहने को बचा ही नहीं है अब।
आश्चर्य मुझे उन पत्नियों पर होता है जिन्हें ये मालूम होता है कि उनके पति गलत काम कर रहे हैं उस समय वे चुप्पी साध कर अप्रत्यक्ष रूप में उनके गलत कामों में सहयोग ही करती हैं.जब उसका परिणाम सामने आता है तब देश के क़ानून व्यवस्था को दोष देती हैं.कयों उन्होंने अपने पति की गतिविधियों का विरोध नही किया? एक पत्नी होने के नाते उनका फर्ज था कि जैसे भी हो अपने पति को 'इन सब' से दूर रखती.बकवास करती हैं अब.एक बार देश छोड़ कर देखें तब मालूम होगा कि इस देश ने उन्हें क्या दिया ठा और कैसे वो और उनके पति यहाँ एक शांत,सुरक्षित जिंदगी जी रहे थे .उसके बदले में इनके पति और ये..........????
@satyendra
माओवादियो ने एक हफ्ते का बंद रखा है बस्तर में बीनायक सेन के समर्थन में ।
सेन भावावेश में विवेक की बात कैसे करें -भारतीय पत्नी की भूमिका भी ऐसे ही है !
विदेशी फंड, विदेशी मदद, विदेशी आवास की आश से श्रीमती सेन को मुख मोड़ना चाहिए और डॉ.सेन की सजा के विरूद्ध अपीलीय अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए. जो तथाकथित बुद्धिजीवी डॉ.सेन के सजा को लोकतंत्र के लिए घातक जता-बता रहे हैं उन्हें धरना-प्रदर्शन के बदले डॉ.सेन के छत्तीसगढ़ में किए गए तथाकथित महान कार्यों को जनता के सामने लाना चाहिए.
Potential gold mines found in Kerala!!!!
भैया, अच्छा लगा पढ़कर. कोई तो है जिसने इस मुद्दे पर बहुप्रतीक्षित (मेरे दृष्टिकोण से, और बेशक माओ हिंसा में प्राण गंवाने वाले शहीदों के परिवारजन के दृष्टीकोन से) बेबाक टिप्पणी की, वरना अभी तक लिखे गए लेख गिलानी और अरुंधती राय के विचारों की छायाप्रति नज़र आते रहे हैं. रही उदारता की बात तो भारतीय लोकतंत्र को अपनी उदारता साबित करने के लिए किसी कट्टरपंथी समुदाय से प्रमाण पात्र लेने की आवश्यकता नहीं है.
[Apologize for not writing in Hindi]
Very true. These anti nationals spit spread venom against the nation only because they benefit from our more than liberal democracy. Ours is not just a liberal democracy by law but a highly tolerant society by traditions.
Mrs. Sen should better relocate to the land of Mao and enjoy the benefits of Freedom that her husband was supporting to be brought to India.
-Hitendra
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