महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी को राहत देने के सरकारी एक भी कोशिश असरकारी नही हो रही है।और अब तो सरकार के बयान ज़ख्मो पर मरहम की बजाय नमक मिर्ची की तरह लग रहे हैं।महंगाई से त्रस्त हो चुकी जनता को अब सरकार ने ये सलाह दे डाली है कि सस्ता खाकर महंगाई से निपटा जा सकता है।अब इस सस्ता की परिभाषा क्या है?ये तो शायद सरकार ही जान सकती है?सरकार में बैठे मंत्रियों को तो इसका पता होगा ही नही।सस्ता खायें,अरे जनाब ये तो बताईये सस्ता है क्या?सस्ते से सस्ती खाद्य सामग्री महंगे से भी महंगी हो गई है।
सरकार के एस बयान से तो यही लगता है कि उसने देश की आम जनता,(खास लोगों को नही)पर सस्ता खाने की सलाह देकर एहसान ही किया है।गनिमत है उसने सस्ता खाने के लिये कहा,घास-फ़ूस खाने के लिये नही कहा।वरना वो भी शाकाहार मे आता है और उसे खाने या चरने वाले मवेशी,बैल,बकरी घोड़े इत्यादी-इत्यादी मज़बूत और तगड़े भी रहते है और उनमें काम करने की ताक़त भी भरपूर रहती है।अभी तक़ सरकार में बैठे माननीय,सम्माननीय प्रात:समरणीय लोगों का ध्यान इस ओर नही गया है वर्ना हो सकता है कि उनमे से एकाध ये सलाह भी दे बैठे।आखिर देश की गरीब जनता उन लोगों के लिये भेड़-बकरियों से ज्यादा है भी तो नही।जिसकी पांच साल मे एक बार उपयोग होता है बस।
पता नही सरकार में बैठे लोग ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें कैसे कर लेते हैं।सस्ता खाने से मंहगाई कम होगी,अरे कभी बाज़ार गये भी हो?कभी सब्ज़ियां खरीदी भी है?दाल-आटे का भाव पता भी है?दूध-घी की नदियां किताबों मे बहा करती थी हक़ीक़त मे तो नदियों मे पानी भी नही है?पीने का पानी भी अब लोग खरीद के पीते हैं?अब पानी पीलाना इस देश मे पुण्य का काम नही रहा,व्यापार हो गया है?कभी कुछ खरीदते भी हैं ये नेता लोग जो इन्हे महंगाई और सस्ताई का पता चले?अपना वेतन-भत्ता बढाने के लिये कैसे ताक़त लगाते हैं सब एकसाथ मिलकर।वैसे ही कभी एकाध बार गरीब जनता के हितों के लिये…………? छोड़ो हितों के लिये उसके ज़िंदा रहने के लिये ज़रुरी खाने-पीने की चीज़ों के दाम घटाने के लिये तो कुछ करने की सोचो?मैं सिर्फ़ सोचने के लिये कह रहा हूं,करने के लिये नही।अगर नर्म सिंहासनों पर बैठे लोग सोचने ही लग जायेंगे तो शायद इस दिशा मे ईमानदारी से काम की शुरूआत हो सकेगा,ऐसा मुझे लगता है,आपको क्या लगता है?बताईयेगा ज़रूर्।
13 comments:
गरीब आदमी प्याज से रोटी खाता था अब इससे सस्ता और क्या होगा? शायद इनका कहना हो कि सर्किट हाउस और संसद में जो सस्ती दरों पर खाना मिलता है वो गरीब आदमी खाए?
बढ़िया प्रस्तुति..मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
सस्ता लेकिन क्या ?
गम, गर्मी में धूप, सर्दी में हवा
वाह!
प्रणाम
sarakar me teen bitt mantri wale hai.. manmohan,pranaw aur chidambaram.teen ticket maha bikat... mahangai maar gayi....bahut sundar prastuti. garib karenge kya, panch bars tak bachenge tab n.
प्याज न खायी जाये, जो भी सस्ता मिले प्रति किलो, खा लें।
गरीब की जान सस्ती है और कुछ नहीं, पानी भी पन्द्रह रुपये का एक लीटर मिलता है और गुजारे के लिये बीस रुपये प्रतिदिन.
कुछ नी हो सक्ता.
भैया वो तो दारु और गोष्ट के बगैर डकार लेते ही नहीं है.. उन्हें सस्ती-महंगी का पता होता तो आज हम ऐसी स्थिति में न होते..
सरकार को गिराने का टाइम आ गया है..
पानी सर से ही नहीं..घर से भी ऊपर चला गया है..
मैं चाहता हूँ की हर शिक्षित युवा इस बार वोट करने ज़रूर जाए और अपनी शिक्षा का बेहतरीन इस्तेमाल कर के सही सरकार खड़ी करे..
आभार
सोचेगें तो तब न जब स्विस बैंकों के खातों में बढ़ते आकड़ों से नजर हटेगी। उन के लिए तो भैंस अक्ल से बड़ी है जब लाठी से काम चलता है तो कलम क्युं घिसें वो सिर्फ़ आप और हम जैसों के लिए हैं
.आपने सही कहा लेकिन गलती तो उन ही लोगों की है जिन्होंने राजनीति ऐसे लोगों के लिए खुली छोड़ दी है.क्यों नहीं अच्छे लोग राजनीति में उतारते?
ये चाहते हैं सब गरीबी रेखा के नीचे आ जाएँ और सस्ता चावल और मदिरा का सेवन कर झूमते रहें और इनपर नजर न पड़े.
सरकार नमक और भात खाने को दे रही है, इससे सस्ता और क्या खाया जाए और क्या खाने को देगी छतीसगढ़ सरकार.....
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