Saturday, January 29, 2011

भारत अब कृषि प्रधान……………! नही-नही महिला प्रधान देश है

रात्रिकालीन सत्संग में नये सदस्य अरूण काकू ने बहुत कम दिनों में अपनी जगह बना ली है।अब वो हर बहस मे सक्रियता से हिस्सा लेता है और कई बार बेवजह आदत अनुसार टांग भी अड़ाता है।उसकी बात पर कभी आम सहमति नही बन पाती थी लेकिन कल उसने ऐसी बात कर दी कि सारे के सारे उसका समर्थन करते नज़र आये।अकेला मैं उसका विरोध करता रहा मगर उसे दरकिनार कर दिया गया।
करमापा के यंहा छापे पर जब बहस चल रही थी तभी अरूण का सेलफ़ोन बज़ा और उसने इशारे से सबको चुप राहने के लिये कहा और कुछ देर बाद दबी-कुचली-मरीयल सी आवाज़ मे आ रहा हूं कह कर फ़ोन बंद किया।मेरे छेड़ने पर कि बीबी के सामने तो साले बंगाली घिग्घी बंध जाती है,उसका जवाब था कि आप क्या जानो?जो जानते है उनसे पूछो?मैने पूछा कि क्या पूछो?तो उसने कहा कि 90 % लोगों की घिग्घी बंध जाती है,मेरे अकेले की नही।
मैने जब कहा कि तेरे कहने से कैसे मान लूं?और वो दस % लोग कौन है?तो उसने कहा कि उन दस मे से भी 9% झूठ बोलते हैं और बचे एक % वो आप जैसे लोग है जो जानते ही नही कि भारत अब कृषि प्रधान देश नही बल्कि महिला प्रधान देश हो गया है।हंसी-मज़ाक के दौर में कही गई बात को आप सीरियसली ना लें मगर एक बात तो साह है कि जिस तरह के हालात हैं उससे तो लगता है कि धीरे-धीरे खेती-किसानी कम होती चली जायेगी।मुझे तो ऐसा ही लगता है,आपको क्या लगता है,बताईयेगा ज़रूर।

9 comments:

डॉ महेश सिन्हा said...

सरकार हर जगह "माल" बनवाएगी तो खेती कहाँ होगी
छत्तीसगढ़ को नया रोग लगा है "माल रोग"
अब सरकार भी इसमें हाथ बटा रही है
एक अभी पूरा बना नहीं है दूसरे का मंसूबा बना रही है ।
वैसे क्यों न हो, सुना है "माल" बनवाने वालों का खुद का "माल" है

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ सत्य दबे स्वर में भी कहे जा सकते हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक नारी हजारों पर भारी... :)

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

नारी नारी क्या करे, नारी नर की खान।
नारी से नर होत है,घ्रूव प्रहलाद समान॥

Unknown said...

aap to galat ho hi nahi sakte

Atul Shrivastava said...

अनिल भैया, नमस्‍कार। आपने सही कहा। वैसे आपके दोस्‍त ने जो कहा वह सच है। एक किस्‍सा मैं बता रहा हूं जो हमारीमित्र मंडली में चर्चा का विषय रहता है। हमारे एक मित्र हैं जो रात में हम लोगों के साथ बैठते हैं और जैसे ही दस सवा दस बजते हैं वो उठ कर घर की ओर निकलपडते हैं। कितनी भी जरूरी बात हो रही हो कितना भी महत्‍व का काम हो रहा हो टाईम हुआ कि घर रवाना। एक दिन एक मित्र ने कहा, यार तू बीबी से इतना डरता क्‍यूं है, शेर की तरह रहा कर। घर में और बाहर में भी। उस मित्र ने जो जवाब दिया वह लाजवाब था, उसने कहा शेर ही बनकर घर जाता हूं लेकिन बीबी 'दुर्गा' बनकर सवार हो जाती है।
अच्‍छी पोस्‍ट ।
अनिल भैया कभी मेरे ब्‍लाग पर भी आईए।
अतुल श्रीवास्‍तव
राजनांदगांव
atulshrivastavaa.blogspot.com

विवेक रस्तोगी said...

पर हम अरुण काकू नहीं जो दबे स्वर में भी बोल दें, हम नहीं बोलेंगे :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हां जी, हमारे देस के राष्ट्रपति से लेकर एक्स्ट्रा कोन्स्टिट्य़ूशनल प्रधानमंत्री सभी तो महिलाएं हैं :)

Pratik Maheshwari said...

सुना तो अभी तक यही है.. :)
सत्य ही होगा.. :P