मित्र मण्डली के साथी जंगल विभाग के एक आला अफ़सर राकेश का एक छोटा सा सवाल सचमुच हैरान करने वाला था।उसने पूछा कि सारे देश में सबसे सस्ता खाना कंहा मिलता है।बस जवाब देने के लिये तो होड़ मच गई।आधे से ज्यादा तो अपने प्रदेश छत्तीसगढ के गुणगान में ही भीड़ गये।दो रूपये किलो चावल और कंहा मिलेगा,अब तो एक रूपये किलो भी हो गया है।और जाने क्या-क्या?राकेश के गलत जवाब कहते ही नये जवाब आये।किसी ने झुनका-भाखर कहा तो किसी ने छत्तीसगढ के दाल-भात सेंटर का नाम लिया।कुछ ने कहा कि नही रेल्वे स्टेशन के आस-पास फ़ुटपाथ की गुमटियों का तो किसी ने बस अड्डे के पास बने रैन बसेरा का नाम लिया।मगर सब हैरान कि आखिर राकेश को हो क्या गया है।सबके जवाब सिरे से खारिज़ कर दे रहा था।सबने पूछा की अब वो ही बता दे कि सारे देश में सबसे सस्ता खाना कंहा मिलता है?
उसने जो जवाब दिया सब हैरान रह गये और जवाब हैरान कर देने वाला था भी।उसने बताया कि संसद की कैंटीन मे सबसे सस्ता खाना मिलता है।चाय मात्र एक रूपये कप।दाल ड़ेढ रुपये,मील्स दो रूपये।रोटी एक रूपये,दोसा चार रूपये,वेज बिरयानी आठ रूपये,मछली तेरह रूपये,चिकन साढे चौबीस रूपये,सूप साढे पांच रूपये।देखी ऐसी प्राईज़ लिस्ट कंही।जी हां ये देश का भाग्य तय करने वाले सांसदो के लिये तयशुदा रेट लिस्ट है।
अब इतना सस्ता खाना खाना खाने वालों का कंहा से पता चलेगा खाने-पीने की चीज़ों के दाम आसमान छू रहें हैं।अव्वल तो खरीद के खाते ही नही होंगे और कभी-कभार संसद की कैंटीन मे खरीद भी लिया तो पता ही नही चलता होगा कि महंगाई नाम की चिड़िया देश की आम जनता का जीना हराम कर रही है।और फ़िर जिनकी तनख्वाह लाख अस्सी हज़ार रूपये महीना लगभग होती है उन्हे इतना सस्ता खाना देना सरकार ज़रूरी समझती है तो फ़िर जनता के लिये सस्ता खाना उपल्बध कराने की कब सोचेगी?
16 comments:
ये बेचारे गुरबत के मारे..
श्री अंकुर गुप्ता के ब्लॉग पर यह जानकारी इस तरह है-
चाय = 1 रूपया प्रति चाय
सूप = 5.50 रुपये
दाल = 1.50 रूपया
शाकाहारी थाली (जिसमे दाल, सब्जी 4 चपाती चावल/पुलाव, दही, सलाद ) = 12.50 रुपये
मांसाहारी थाली = 22 रुपये
दही चावल = 11 रुपये
शाकाहारी पुलाव = 8 रुपये
चिकेन बिरयानी = 34 रुपये
फिश कर्री और चावल = 13 रुपये
राजमा चावल = 7 रुपये
टमाटर चावल = 7 रुपये
फिश करी = 17 रुपये
चिकन करी = 20 .50 रुपये
चिकन मसाला = 24 .50 रुपये
बटर चिकन = 27 रुपये
चपाती = 1 रूपया प्रति चपाती
एक पलते चावल = 2 रुपये
डोसा = 4 रुपये
खीर = 5.50 रुपये प्रति कटोरी
फ्रूट केक = 9 .50 रुपये
फ्रूट सलाद = 7 रुपये
http://www.premras.com पर भी दिखा यह.
भाई गरीब जनता जनार्दन के नुमायिन्दा इससे अधिक कैसे अफार्ड कर सकते हैं :)
बिल्कुल सही बात है, सांसद ही सबसे ज्यादा गरीब लगते हैं, इनको तो पांच सितारा वाले भाव में भोजन दिया जाना चाहिये।
यह भी १५ साल पहले से रेट चले आ रहे है . उस समय यह रेट जब बढे थे तो मेरे पिताजी उस कमेटी में थे .उन्होने ही विरोध कर यह रेट उस समय बढ्वाये थे . यह कैन्टीन भारतीय रेल चलाती है .
वहाँ मँहगाई डायन पहुँच ही नहीं सकती है।
शायद इसीलिये हमारे सांसदों को समझ में नहीं आता की जनता क्या झेल रही है. आपका संपर्क सूत्र तो काफी ऊंचा है. किसी सांसद से ही प्रश्न उठाने के लिए कहें.
संसद में सब्सिडी क्या, खाना मुफ्त में भी मिले तो समस्या क्या है? मुझे समझ में नहीं आता। पूरे देश में तो उसी दर पर खाना नहीं मुहैया कराया जा सकता ना। अगर कोई ऐसी बात करता है कि सबको मुफ्त भोजन (खासकर गरीबों को) मिले तो ऐसा नक्सलवादी ही कह सकते हैं!
आपके मित्र का सवाल अधूरा सा लगा !
उन्होंने सबसे सस्ता तो बता दिया पर सबसे महंगे वालों के बारे में पूछा ही नहीं :)
सब से सस्ता खाना उस बिन-बुलाए मेहमान को मिलता है जो शादी के पंडाल में घुस आता है :)
वाकई जनता के नुमाइंदों को जनता के ही दर पर खाने को मिले तब पता चले की दाल आंटे का भाव क्या है....
jai hind !
हर बात के लिये नेता दोषी। सर जी, नेता संसद की कैंटीन में कम से कम पैसा देकर तो खाते हैं। उन अफसरों की तरह तो नहीं जो जहां जाते हैं मुफ्त में खाते हैं।
डायन भी एक घर छोड़ कर चलती है. महंगाई डायन ने उस घर को छोड़ दिया है. काश !हम भी उसी घर के निवासी होते !
उन गरीबों को अपनी भूख मिटाने के लिए इतना महंगा खाना खरीदना पड़ता है ? ये तो बहुत नाइंसाफी है !
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