मालेगांव मे एडीएम को जलाने की घटना को अभी लोग भूल भी नही पाये हैं कि छत्तीसगढ में ग्राम पाली में चोरों ने दो पुलिस वालों की पीट-पीट कर मार डाला।तीन घायल हैं जिनका इलाज चल रहा है।एक एस आई और एक हवलदार ने इस वारदात मे अपनी जान गवाई है।पुलिस पार्टी हाई-टेंशन तारों की चोरी करने वाले गिरोह को पकड़ने के लिये गई थी।आर पी एफ़ की टीम के गांव पहुंचने की भनक लगते ही चोरों ने उन्हे रास्ते मे ही घेर कर हमला कर दिया और लाठियों से पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और उनकी गाड़ी मे फ़रार हो गये।हवलदार ने तो वंही दम तोड़ दिया और एस आई ने अस्पताल में।
इस घटना ने ये साबित कर दिया है कि अपराधियों में पुलिस का कोई डर नही रहा।चाहे वे मालेगांव के हो पाली के,महाराष्ट्र के हो या छत्तीसगढ के।सभी जगह अपराधियों के हौसले बुलंद है और इसके पीछे के कारणों को ढूंढना बहुत जरूरी हो गया है।आमतौर पर शांत समझे जाने वाले(नक्सल हिंसा को छोड़कर)छत्तीसगढ राज्य में पुलिस पार्टी पर जानलेवा हमला कभी नही हुआ।ये एक खतरनाक संकेत हैं जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये और अपराधियों के खिलाफ़ कठोर कदम उठाये जाने चाहिये ताकि उनके बढते हौसले पर लगाम लग सके।
अब कारण चाहे जो भी हो, राजनैतिक सरंक्षण हो या आर्थिक, सभी प्रकार के सरंक्षको को सचेत करने और उन्हे दूर करने का समय आ गया है वर्ना आम आदमी का जीना हराम हो जायेगा।
13 comments:
सैंया भए कोतवाल, डर काहे का।
हमारी दंड प्रणाली बेकार और निष्प्रभावी हो चुकी है। डर कहाँ से आएगा?
इसका कारण है कानून व्यवस्था की कमी, इन अपराधियों को किसी सजा का डर नहीं है जानते हैं की पकडे भी गए तो कुछ होगा नहीं लम्बी कानूनी प्रक्रिया में ये जमानत लेकर बड़े मजे से जिंदगी गुजरते रहेंगे .
जब तक कसूरवारों को जल्दी और कड़ी सजा और फरियादी को जल्द इन्साफ दिलाने वाली क़ानून प्रणाली नहीं आएगी ये परिदृश्य बदलने वाला नहीं है .
सदियों पुरानी क़ानून प्रणाली अब अव्यवहारिक हो गयी है पिछले 60 सालों में दुनिया ६ बार बदल चुकी है पर ये व्यवस्था नहीं बदली . एक भी बेगुनाह को सजा न हो ये बदलकर एक भी गुनाहगार बचने न पाए ऐसे नियमों की जरुरत है .
पूरा सिस्टम सड़ गया है अब जरुरत है बड़े ऑपरेशन की ताकि इस सड़े हिस्से को काटकर अलग किया जाए और वक्त रहते शरीर(देश ) को मरने से बचाया जा सके .
पत्रकारों पर हमले होने के बाद जब पत्रकारों ने सवाल उठाया कि इस प्रदेश में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं तो प्रदेश सरकार और पुलिस प्रशासन ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन अब लोगों की सुरक्षा करने वाली पुलिस ही सुरक्षित नहीं रही तो इसे क्या ? आपने सही कहा, इससे पहले पुलिस को सिर्फ नक्सल मोर्चों में चुनौती मिलती थी लेकिन अब जो घटना पाली में हुई है, उसके बारे में सत्ता और सरकार का रूख क्या होगा, देखना होगा।
कारण बहुत स्पष्ट है। पुलिस अमीरों, पैसे वालों के संरक्षक के रूप में काम करती है। यह बात जनता को भी समझ में आ गई है। अब अगर कोई ईमानदार अधिकारी किसी अमीर को कानून सिखाने की कोशिश करता है तो वह गलती करता है और उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है। दूसरी ओर आम जनता का भी पुलिस को समर्थन नहीं है, क्योंकि उसे पता है कि पुलिस उसके लिए नहीं बनी है। ऐसे में पुलिस की नौकरी करने वाला धोबी के कुत्ते की स्थिति में आ गया।
सब के मूल में है -पैसे वालों का मान-सम्मान.पहले इस प्रवृति को बदला जाये तभी अपराधों पर अंकुश लग सकता है.
PULIC WALO SE HAMADARDI KAUN JATAYE ? KYOKI SARE JAD YAHI SE SURU HOTE HAI. BADAMAS INKE SAAYE ME HI PALATE AUR BADHATE HAI,....SONCHANE WALI BAAT. JO JAISA BOWEGA ,WAISA KI KATEGA......PHIR DAR KAHE KAA ...
यह विषय विस्तार चाहता है पर संक्षेप में द्विवेदी जी की टिप्पणी बेहतर है !
हौसले बुलन्द हैं,
आज न्याय बन्द है।
अब कारण जो भी हो ... हुआ तो अच्छा नहीं ।
chhatisgarh ka grih vibhag panchar ho gaya hai
हर जगह अपने स्वार्थ हैं, इसलिये कुछ भी नहीं होता... स्वार्थ पर रोक लगाने के लिये व्यवस्था बनाई गयी, लेकिन उसमें भी कीड़े पड़ गये तो किया क्या जाये..
जब कानून अपाहिज हो गया हो तो हौसलों में कमी क्यों कर आएगी
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