Wednesday, March 16, 2011

आखिर विकास की परिभाषा क्या है?गाड़ियां जलाना,सड़के खोदना,रेल लाईने उड़ाना?स्कूल,अस्पताल उड़ाना?चाहते क्या हैं,नक्सली?

बस्तर में नक्सलियों का उत्पात जारी है।उन्होने रावघाट-दल्ली राजहरा रेल लाईन के निर्माण के लिये समतलीकरण के काम में लगी 17 मशीनों को जला कर खाक कर दिया।करोड़ो रूपये का नुकसान करके नक्सलियों ने उस रेल लाईन के निर्माण कार्य मे बाधा डाल दी है।ये वही नक्सली है जो कहते हैं कि वे अन्याय और शोषण के खिलाफ़ लड़ रहे हैं!उनका दावा है कि बस्तर में विकास नही हुआ है।अब अगर वंहा विकास नही हुआ था तो उसकी ज़िम्मेदार उस समय की सरकारें हो सकती है,लेकिन अभी जो विकास हो रहा है उसे रोकने वालों को क्या कहा जाये,ये भी उन नक्सलियों को बताना चाहिये!                                                                                         बस्तर पर सालों-साल इस बहस के बाद कि उनके मूल स्वरूप को बनाये रखना चाहिये या नही?विकास से उसके मूल स्वरूप  पर विपरित प्रभाव पड़ेगा या नही?या उनकी परंपराओं को बनाये रखने का उन्हे अधिकार है?तमाम तरह की बहस (जिसमे शायद आदिवासी को छोड़ सभी शामिल थे),के बाद जब उन्हे समाज की मुख्य धारा से धारा से जोड़ने और विकास की रफ़्तार तेज हुई तो अब नक्सलियों को वंहा विकास पसंद नही आ रहा है।पहले समाज शास्त्री,मानव विज्ञानी और दुसरे ठेकेदारों के कारण वंहा विकास नही हो पाया अब नक्सली रोड़े अटका रहे हैं।                                                                                                                                          दोनो ही स्थिती में नुकसान आदिवासी का हो रहा है और इस नुकसान पर पहले कोई और चिल्ला रहा था और अब कोई और्।जो पहले चिल्ला रहा था,वो अब खुद नुकसान पहुंचा रहा है,और जो अब चिल्ला रहे हैं,उन्होने पहले कभी इस ओर ध्यान ही नही दिया था।कुल मिलाकर देखा जाये तो वंहा बस्तर का  आदिवासी ही पिस रहा है,मर रहा है!                                                                                                                                            चलो इस बात को मान लिया जाये कि वंहा विकास नही हुआ,या बहुत धीमी गति से हुआ?ये उनके साथ अन्याय है और ये उनके मौलिक अधिकारों का हनन और उनका शोषण भी है।मगर अब आज़ादी के बाद जब उन्हे स्कूल,अस्पताल और सामूदायिक भवन जैसी सुविधायें मिलना शुरू हुई है तो उसे तोड़ कर क्या साबित किया जा रहा है? सड़के बनती है  नही तो खोद देते हैं? बीआरओ जैसी संस्था को वंहा सड़क बनाने मे सालों लग गये।     सड़क से ,स्कूल से,अस्पताल से,रेल लाईन से आखिर नक्सलियों को परहेज़ क्यों है?चाहे राज्य सरकार बनाये या केन्द्र सरकार बनाये,विकास तो बस्तर का हो ही रहा है ना?और फ़िर नक्सलियों की लड़ाई भी तो इसी बात की है कि वंहा विकास नही हुआ है।एक और कहते हैं विकास नही हुआ और दूसरी ओर विकास के तमाम रास्तों पर बारूदी सुरंग बिछा रहे हैं,आखिर उनके विकास की परिभाषा है क्या?ये तो समझ में आये,मुझे तो समझ में नही आया इस तरह मशीनों को जलाना और स्कूल,अस्पतालों को उड़ाना?आपको क्या लगता है?बताईयेगा ज़रूर्।

12 comments:

आक्रोश और आग्रह said...

ये वह के गुंडे बदमाश ही है जो अपने आप को ना कहल्वाना पसंद करते हैं

विकास हो रहा है तो उनको लगता है की अब यहाँ के लीग हमें पूंछेंगे नहीं और हमारी रोटी नहीं सिकेंगी तो वो लोग ऐसी आग लगा कर उस आग पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं बस

ये नक्सली देशभक्त नहीं देशद्रोही है,
नक्सलवाद के बारे में मै ज्यादा तो नहीं जानता पर ये जानता हूँ इसका उद्खोश आम गरीब इंसान का पक्ष रखने के लिए हुआ था लेकिन आज ये लोग गरीब का पक्ष नहीं रख रहे हैं बल्कि आतंक फैला रहे हैं

इन्हें नक्सलवादी ना कह कर आतंकवादी कहना ज्यादा अच्छा होगा

अरुणेश दवे said...

विकास के साथ क्या विनाश नही पहुंचेगा अनिल भैया
इस नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाले आदिवासी नही है वे पूंजीपती है जो बस्तर की प्राक्रुतिक धरोहर को बरबाद करना चाहते हैं गोलिया खाते हमारे जवान और आदिवासी हैं और ये भाई लोग आराम से महानगरो मे बैठ के ऐश करते हैं ।

प्रवीण पाण्डेय said...

विकास की दुहाई देने वाले विकास में बाधा बने, यह अनुचित है।

Unknown said...

sahi kaha aapne.

Kamal Dubey said...

दरअसल नक्सलियों के ये कृत्य रिहर्सल मात्र हैं? न जाने जब इन पर सैन्य कार्यवाही की बात आती है तो सेना के अधिकारियों का ये बयान क्यों आता है कि ये अपने ही नागरिक हैं...? वगैरह-वगैरह, इस की भी जांच होनी चाहिए कि सेना के अन्दर तो ऐसा आदमी नहीं घुस गया है जो इन मामलों में वहाँ ब्रेन वाश कर रहा है? क्योंकि अगर सेना इनके कृत्यों का गूढ़ अध्ययन करेगी तो उसे समझ आएगा कि अगर भारत किसी बड़े युद्ध में फंसता है तो ये पुल पुलिया, रेल लाइन जगह-जगह से उड़ाकर सेना की सप्लाई लाइन काट देंगे और तब भारत का क्या होगा? "ये सिर्फ आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं, बाहरी आक्रमण के समय ये देश की कमर तोड़ देंगे". इस बात को सेना को समझाना होगा.

Pratik Maheshwari said...

मेरे ख्याल से विकास की परिभाषा अब सिर्फ एक "नक्सली" संगठन नहीं रह गया है परन्तु उस में से कुछ एक-दो लोग जो अपना उल्लू सीधा करने में लग चुके हैं..
वह अब यह तोड़-फोड़ करके सर्कार से पैसे एंठने के काम में लगे हुए हैं..
जिस लड़ाई के लिए नक्सल बुनियाद रखा गया था वह कब का खिसक चूका है और मेरे ख्याल से इनसे बड़े आतंकवादी पाकिस्तान में भी नहीं मिलेंगे..
देश का दुर्भाग्य है..
ऐसे लोगों को सर एक ही जवाब मिलना चाहिए.. "मौत" क्योंकि मौत से बेहतर उत्तर इनको समझ में नहीं आएगा..
एक गन्दी मछली पूरे तालाब को गन्दा बनाती है और वही यह कर रहे हैं.. आशा है कि जल्द ही ऐसे घटिया लोगों के खिलाफ कार्यवाही होगी..

आभार

चलती दुनिया पर आपके विचारों का इंतज़ार है..

विवेक रस्तोगी said...

सब अपनी अपनी ढ़पली बजा रहे हैं.. ऐसे ही हमारा देश चल रहा है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

उनके लिए तो विकास न होना ही विकास है क्योंकि जब तक वो लोग अंधेरे में रहें, तब तक उनको भटकाया जा सकता है॥

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पूरा देश को ही विघटन की तरफ तेजी से हांका जा रहा है.

Udan Tashtari said...

गलत बात!

Madhur said...

बड़ी कोफ़्त होती है यह सब पढ़कर | नक्सली समस्या का निदान यदि सरकार नहीं करेंगी तो क्या संयुक्त राष्ट्र परिषद जाना होगा

madhur chitlangia said...

बड़ी कोफ़्त होती है यह सब पढ़कर | नक्सली समस्या का निदान यदि सरकार नहीं करेंगी तो क्या संयुक्त राष्ट्र परिषद जाना होगा