Friday, March 18, 2011
राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध करना क्या राज्द्रोह नही है?
राष्ट्रभाषा हिंदी का नक्सली विरोध करने लगे हैं!उनका कहना है कि बस्तर के वनांचलों मे गोंडी बोली का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिये।ऐसा करके पता नही वे क्या साबित करना चाह रहे हैं?ठीक है गोंडी बोली के प्रचार-प्रसार पर दिया जाता है तो समझ में आता है मगर उसके साथ-साथ हिंदी का विरोध?ये समझ से परे है।मेरा सवाल ये है कि क्या राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध राष्ट्रद्रोह की श्रेंणी में नही आता? नक्सलियों ने बाकायदा पोस्टर और बैनर लगा कर हिंदी के विरोध में मोर्चा खोल दिया है।उनका गोंडी से कथित मोह का दिखावा तो समझ में आता है।ऐसा करके वे स्थानीय लोगों को अपने से जोड़े रखने की कोशिश तेज़ कर रहे हैं,जो धीरे-धीरे उनसे दूर खिसक रहे हैं।मगर हिंदी का विरोध,उसके खिलाफ़ वातावरण बना कर क्या करेंगे?क्या ये कोई नये अलगाववादी अभियान की साजिश है? सड़क का विरोध करना,स्कूलों और अस्पताल भवनों को उड़ाना,विकास नही होने के नाम पर विकास के रास्ते पर रोड़े खड़े करना,ये उनकी अब तक़ की रणनीति रही है।वे इस तरीके से उन्हे अलग-थलग रखने की कोशिश कर रहे थे और अब हिंदी का विरोध?ये तो एक खतरनाक साजिश का हिस्सा नज़र आता है।इस बारे में उन लोगों को भी सोचना चाहिये जो नक्सलियों के समर्थकों को जेल से छुड़ाने में लगे रहते हैं।ज़रा-ज़रा सी बात पर उन्हे कानून और मानवाधिकारों का हनन नज़र आता है।क्या उन्हे अब राष्ट्रभाषा हिंदी के विरोध में कोई बुराई नज़र आयेगी या भी उन्हे सही ही नज़र आयेगा?मुझे लगता है कि समय आ गया कि उन्हे अब अपनी आंखों पर से विदेशी धन से चल रहे एनजीओ के चढाये गये चश्मे उतार फ़ेंकना चाहिये।
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9 comments:
नक्सलियों का तो काम ही राजद्रोह है। उनसे और क्या ऐक्सपैक्ट किया जाये? लेकिन राज्य से तो यह उम्मीद की जा सकती है कि वे इन आतताइयों को नियंत्रित करके सज़ा दें।
वैसे अनिल भैया सरकार ने इतने सालो तक गोंडी और गोंड लोगो के इतिहास की अनदेखी भी की है हम काम भी ऐसा करते हैं कि देशद्रोहियो का काम आसान हो जाता है भाषा और संस्क्रुती के नाम पर लोगो को भड़काना भी आसान है कही ऐसा न्हो कि आदिवासी कुद को भारत से अलग भी मानने लगे
अनिल जी, हमारे नेताओं ने ही संविधान में भारत को देश नही माना है, उनके अनुसार भारत बहुत से राज्यों का समूह है. अब इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है की हम किस हाल में है. नेता चाहे वो किसी भी संगठन से जुड़ा हो, वो कभी-भी देशवासियों को संगठित नही होने देना चाहता है, क्योकि यदि हम एक हो गए, तो वह अपनी रोटी कैसे सकेंगे. शायद यही वजह है की राष्ट्र भाषा का अपमान करने वाले देशद्रोही नही मने जाते.
विरोध जब विरोध के लिये हो तब भी हम पंथ निहारे बैठे रहें उनके आने का, अब तो जागें हम।
पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा तो बनाया जाए।
aisa lagta hai yeh log .... apne uddeshya se bhatak gaye hain....होली की हार्दिक शुभकामनायें........
हिन्दी भाषी प्रदेशों में उर्दू को सरकारी संरक्षण दिया जा रहा है. बस वोटों की खेती मिले, हिन्दी का विरोध भी प्रारम्भ हो जायेगा.,,
हों कोई भी भाषा-भाषी,
सबसे पहले हम भारतवासी...
हिंदी को 1965 में ही राष्ट्रभाषा बन जाना था, लेकिन आंचलिक झगड़ों में उलझ कर बन पाई क्या...खैर छोड़िए अनिल भाई, आज तो बस...
तन रंग लो जी आज मन रंग लो,
तन रंग लो,
खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
प्यार के ले लो...
खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...
जय हिंद...
वाकई एक तीव्र इच्छा शक्ति की जरूरत वाला नेतृत्व चाहिये इनसे निपटने के लिये.
होली पर्व की घणी रामराम.
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