Friday, April 22, 2011

ये तो चमत्कार हो गया प्रभू!

सारे देश में भ्रष्टाचार को लेकर हाहाकार मचा हुआ है।उसके खिलाफ़ आंदोलन भी तेज़ हो गये हैं और उन आंदोलनों को कम्ज़ोर करने के षड़यन्त्र भी सामने आ रहे हैं।भ्रष्टाचार पर हर शोर मचा हुआ है और सिर्फ़ और सिर्फ़ भ्रष्टाचार के बारे में ही बोला-सुना,पढा और लिखा जा रहा है तो भ्रष्टाचार पर मैंनें भी कुछ लिखा था,कुछ समय पहले सोचा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बने इस माहौल मे उसे फ़िर से पेश कर थोड़ी बहुत टीआरपी बटोर कर मैं भी भ्रष्टाचार के बह्ते नाले में हाथ धो ही लूं।

कल आधी रात को नींद मे ऐसा लगा की कोई आवाज़ दे रहा है।मन का भ्रम जानकर मैने करवट बदली तो आवाज कुछ तेज हो गई और कुछ पल बीते नही कि ऐसा लगा कोई मुझे हिला रहा है।थोड़ा सा ड़र भी लगा मगर मेरी हिम्म्त देखिये मै बिना आंखे खोले चुप-चाप पड़ा रहा।फ़िर ऐसा लगा कि किसी ने जोर की लात मारी हो,और मैं चौक गया शादीशुदा तो हूं नही कि सुबह ज़ल्दी उठना है बच्चों को स्कूल छोड़ना है और दुनिया भर के लफ़्ड़े। अकेला सोता हूं फ़िर ये सब क्या हो रहा है।कंही भूत-प्रेत का चक्कर तो नही?अब तो मुझे पसीना आने लगा।पतली गली से सटकने का मै आंखे मूंदे प्लान बना ही रहा था कि फ़िर एक लात पड़ी और गरज़दार आवाज भी सुनाई दी,अबे उठ सच मे अलाल है तू।मै चमककर उठा और देखता क्या हूं कमरा हज़ार वाट की लाईट से भी ज्यादा चमक रहा था,और साम्ने देखा तो रूह कांप उठी।



सामने बर्फ़ सी सफ़ेद दाढी वाले कोयले से भी काले महाराज खड़े थे।पीले सोने के जेवरो से साऊथ के किसी मोटे रईस की तरह टाप टू बाटम ब्लैक एण्ड येलो।मै सहम गया फ़िर अचानक़ मुझे ख्याल आया अरे साला ये यमराज तो नही?कंही अपना आरएसी का टिकट कन्फ़र्म तो नही हो गया?कंही कोई क्म्प्लेन पर फ़ाईनल हियरिंग तो नही हो गई?अभी तो लाईफ़ शुरू भी नही और दी एण्ड?घबरा कर सीधे करिया(छत्तीसगढीमे काले को करिया कहते हैं) बाबा की ओर भागा।बाबा फ़ट से गायब्।मैने चैन की सांस ली और सोचा शायद डरावना सपना देख रहा हूंगा।पर ये क्या पीछे से आवाज आई लोग सही कहते थे तू मरखने सांड़ से कम नही हैं।सुबह फ़ोन लगाओ त्प गाली बकता है नींद से उठाओ तो चिड़चिड़ाता है मगर तू तो उससे भी ज्यादा खतरनाक निकला सीधे वार करने पर उतर आया।मेरे तो पैर के नीचे की टाईल्स,कांक्रिट उसके नीचे के फ़्लोर की टाईल्स और जाने क्या-क्या सब किसक गये।



मै बोला महाराज आप कन्फ़्यूस हो रहे है मै तो आपसे माफ़ी मांगने के लिये आ रहा था।करिया बाबा फ़िर गरजा,तू ढीठ है ये तो पता ही था मगर इतना ज्यादा होगा ये पता नही था। अब तक़ मै सम्भल चुका था स्कूल से भाग कर पकडाते समय गुरूजी लोगों के सामने चिरौरी करने मे कभी अपनी मास्टरी रही है।सो अपने अन्दर बचपन से सो रहे, ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार को जगाया और महाराज से अपनी आवाज मे बोतल भर कर रूह अफ़्ज़ा ऊंडेल कर कहा नही सर ऐसी कोई बात नही है आपको क्न्फ़्यूज़न हो गय……क्या कहा कन्फ़्यूज़न और मुझे?साले ब्रूस ली और जेट ली से ज्यादा खतनाक स्पीड़ से अटैक कर रहा था और मुझे बता रहा है क्न्फ़्यूज़न्।मैने हथियार डालने की बजाये दुनिया की सबसे सटीक वी टू वी यानी वाईस टू वाईस मिसाईल चापलुसी 1000 निकाली और कहा कि सर आपकी अंग्रेजी तो बहुत बढिया है और प्रोनंसियेशन तो मानना पडेगा।



करिया बाबा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आये।उन्होने तत्काल कलाई मे बंधे घड़ीनुमा यंत्र मे कुछ खिट-पिट की और कहा कि तुम्हारे रिकार्ड मे ये तो है ही नही।अब मुझे गारंटी हो चली थी कि करिया और कोई नही यमराज ही है।साला पूरा रिकार्ड कम्प्यूट्राईज़ड करके आया है।मैने सोचा गये बेटा अनिल सारी इच्छाये मन मे लिये निकलना पड़ेगा।तभी अंदर छीपा पत्रकारिता का कीड़ा कुलबुलाया और मन मे बहुत से सवाल अंगड़ाई लेने लगे।एक तो डर भी लग रहा था कि ले दे कर कन्फ़्यूज़ कर पाया हूं करिया बाबा को अगर सवालो से सेम आईटम होना कन्फ़र्म हो गया तो गये काम से।इसके बावज़ूद रिस्क लेने की आदत ने मेरी जीभ मे खुजाल मचा दी।मैने किसी डाक्टर,अफ़सर निरीह बाबू-पटवारी से सवाल पूछने की बीरू स्टाईल को ड्राप करते हुये किसी अडियल मंत्री-संत्री को फ़ेंकी जानी वाली अंडर आर्म स्लो बाल की तरह सवाल फ़ेंका महाराज आपने वो बही खाते वाला स्टाईल छोड कर कम्प्यूट्….……एक मिनट कहकर बाबा ने फ़ि कलाई मे बंधे यंत्र मे ऊंगली की।मैने सोचा गये बेटा काम से अब उधर से कन्फ़र्म होता ही अपना रिटर्न टिकट्।मै सोच ही रहा था कि करिया बाबा बोले,अबे ये तो तेरा स्टाईल नही है?



मारे डर के मेरा बुरा हाल था।मैने अपने को और थोडा साफ़्ट करने की कोशिश की ठीक वैसे ही जैसे कभी अपने मालिक के सामने खडूस संपादक को बनते देखता था।वो आईडिया ऐसे आड़े वक़्त मे काम आयेगा सोचा भी न था।मैने कहा सर ये तो आपका बडप्प्न है वर्ना हम जैसो का कंहा कोई स्टाईल?स्टाईल तो आप जै………… मेरी बात आधे मे काट कर ही उन्होने कहा बेटा जितना चाहे ट्राई मार,मै गलत हो ही नही सकता।कन्फ़र्म करके आया हूं।मैने सोचा अब जाना तो है ही क्यों न अपनी ओरिजिनल स्टाईल मे ट्राई किया जाये।मैने ढेर सारे असाईंमेण्ट लेकर निकले फ़ोटोग्राफ़र की तरह करेले से भी कड़ुई आवाज़ मे पूछा ठीक है ठीक है जाना किसमे है उसी करिया भैंसे पर या कोई नया प्लेन ले लिया है।



प्लेन,भैंसा?ये क्या बडबडा रहा है बे।मैने कहा आपने कहा ना मैं कन्फ़र्म करके आया हूं।तो बाबा ने पूछा।तो क्या जब कन्फ़र्म हो ही गया है तो बिना ले जाये तो छोड़ोगे नही?हैरान-परेशान बाबा ने पूछा कंहा?मैने सवाल किया कंही ले जाना नही तो यंहा काहे को आया बे कालिया,आधी रात को नींद हराम करने।कालिया सुनते ही करिया बाबा के चेहरे धधकने लगा पर दूसरे ही क्ष्ण वे शांत हो गये।उन्होने फ़िर से यंत्र मे ऊंगली की और कहा कि तुम मुझे क्या समझ रहे हो।मैने चीढ कर कहा कि इतना खूबसुरत करिया इन्द्र तो हो नही सकता?उन्होने कहा कि बिल्कुल ठीक।मैने कहा क्या ठीक।उन्होने फ़िर कहा ठीक सम्झे मै इन्द्र नही हूं,तो,तुम बताओ।यमराज के सिवाय और कौन हो सकते हो?अबके करिया बाबा जोर से हंसे। ऐसा लगा कि मानसून पूर्व के अंधड़ो मे बिजली कड़क रही है।



करिया बाबा ने कहा कि जभी चिड्चिडा रहा है। अबे सुन बड़ा तीसमारखां समझता था अपने आप को।कैसे यूपीए की तरह हवा निकल गई।सुन मै यमराज नही भ्रष्ट्रराष्ट्र हूं।भ्रष्टराष्ट्र?ये कौन सा नये टाईप का देवता आ गया?मेरे मे मन मे उमड रहे शंका-कुशंकाओ के बादलो को कैसे करिया बाबा ने साफ़ किया और वे मेरे पास क्यों आये थे ये बताऊंगा अगली कड़ी मे।

8 comments:

विवेक रस्तोगी said...

मजा आ गया करिया बाबा और आपके हथकंडे पढ़कर अगली कड़ी का इंतजार है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘या शादीशुदा तो हूं नही कि....’

कन्फ़्यूज़न से बचने के लिए अब शादी कर ही डालो :)

Atul Shrivastava said...

बहुत अच्‍छा चित्रण।
अगली कडी का इंतजार रहेगा।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जल्दी से भेजिये अगली कड़ी..

प्रवीण पाण्डेय said...

सत्य का सटीक निरूपण।

jayesh kavadya said...

सुंदर विवेचना अनिल जी !भ्रष्टाचार पर हाहाकार के बाद अब कुछ लोग ईमानदारी पर भी हाहाकार मचा रहे है !

jayesh kavadya said...

सुंदर विवेचना अनिल जी !भ्रष्टाचार पर हाहाकार के बाद अब कुछ लोग ईमानदारी पर भी हाहाकार मचा रहे है !

KISHORE DIWASE said...

ठीक कह रहे हो अनिल भाई...भ्रष्ट राष्ट्र या ( भ्रष्टाचार) के मुखौटों को सरे आम गाँव , शहर और मंत्रालयों और सरकारी दफ्तरों के अलावे एन जी ओं में . भी हम सब ने देखा है ... मीडिया के भीतर भी नए किस्म के डिजाइनर मुखौटे घूम-फिर रहे हैं. इस फन में माहिर कई उस्ताद और जम्हूरे नींद में तो क्या जागती आँखों से भी झेल रहे हैं हममें से कई लोग . सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराने वाला कुनबा वैस तू वैस मिसाइल की दूकाने लगाने और बेचने में माहिर है. इसके शोपिंग माल और अनेक शहरों में आउटलेट भी खुल चुके हैं. खैर... अनिल भाई, मजा आ गया.