Thursday, May 26, 2011
टोना-टोटका के नाम पर लोग आंखे फ़ोड़ रहे है और हम है कि बेशर्मी से तरक़्क़ी के दावे किये जा रहे हैं!
एक छोटी सी पोस्ट बड़ा सा सवाल लिये हुये।यंहा छत्तीसगढ में राजधानी से महज़ सवा सौ किमी दूर एक दम्पत्ती की आंखे फ़ोड़ दी गई।आंख फ़ोड़ने वाले कोई और नही उनके अपने ही रिश्तेदार हैं।दोष उनका सिर्फ़ इतना है कि किसी ने उन्हे बता दिया कि वे टोना-टोटका करते हैं।बस फ़िर क्या था शामत आ गई बेचारों की।अब उनके लिये सारी दुनिया अंधेरी है,सच की अंधेर नगरी।क्या इस तरह की हैवानियत तरक्की के कथित दावों पर सवालिया निशान नही लगाती।साक्षरता के तमाम आंकड़े,तरक़्क़ी के दावे सब झूठे ही नज़र आते हैं।बेहद शर्मनाक घटना है ये और ऐसा अक्सर होता ही रहता है।टोनही के आरोप मे पिटाई ने कई जान भी ले ली है।किसी के घर में कोई लम्बे समय तक़ अगर बीमार है,किसी की शादी नही हो रही है,किसी का कोई काम नही हो रहा है,किसी को किसी की प्रापर्टी हड़पना हो तो बेहद आसानी से टोनही-टोनहा का आरोप मढ दिया जाता है और उसकी आड़ मे अपना उल्लू आज भी सीधा कर रहे हैं झाड़-फ़ूंक करने वाले।अब बताईये की सुपर कम्प्यूटर और हाईटेक ज़माने में अगर कोई इंसान अपनी बीमारी के लिये दूसरे इंसान की आंखे फ़ोड़ दे तो क्या इसे तरक़्क़ी और साक्षरता का दौर कहा जा सकता है?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
इतने सालो मे शिक्षा पर अरबो रूपये खर्च करने के बाद भी हम अंधविश्वास को दूर नही कर पाये स्कूलो मे अवश्य ही इस पर पाठ सिखाना चाहिये तभी यह समस्या जड़ से दूर होगी
टोनही प्रताडना पर रोक के लिए कानून बनने के बाद भी इस पर रोक नहीं लगना चिंता का विषय है।
पहले सुदूर गांवों में टोनही के नाम पर प्रताडित किया जाता था और अब शहरों में भी होने लगा है यह।
दुर्भाग्यपूर्ण .....
अरुणेश जी की टिपण्णी से सहमत
यह तो अनपढ़ों से भी गये गुजरे हैं।
इस बहाने पुरानी दुश्मनी निकाल ली जाती है या फिर किसी जमीन-जायदाद का फैसला हो जाता है॥
ऐसे वाकये आये दिन सुनने-देखने को मिलते हैं, जिसमें समाज का क्रूर चेहरा सामने आता है।
टोने-टोटकों का कोई क्या करे. सरकारें तक आंखे मूंदे बैठी हैं. रोज़ सुबह हर चैनल पर तरह-तरह के जोकर चले आते हैं ... कोई भविष्य के नाम पर डराने में जुटा होता है तो कोई भविष्य सुधार देने के धंधे में बजरबट्टू बेच रहा होता है.... रही सही क़सर बाबाओं ने पूरी कर दी जिनके आगे रंग-बिरंगे नेते दोहरे होते नहीं अघाते...
तरक़्क़ी और साक्षरता का दौर में भी अंधविश्वास बना रहता है.
तरक़्क़ी और साक्षरता का दौर
समाज का क्रूर चेहरा
जमीन-जायदाद का फैसला
टोनही के नाम पर प्रताडित
अंधविश्वास को दूर नही कर पाये स्कूलो मे अवश्य ही इस पर पाठ सिखाना चाहिये तभी यह समस्या जड़ से दूर होगी
Post a Comment