Friday, June 10, 2011
सरकार और नक्सलियों के बीच पिसता पत्रकार!ना इधर जा सकता है और ना उधर!यानी मरना तय है!
छत्तीसगढ में अब पत्रकारों की स्थिति अब दो पाटन के बीच जैसी हो गई है,खासकर नक्सल क्षेत्र में रहने वालों की।एक नई मुसीबत आन खड़ी हुई है पत्रकारों के सामने।नक्सली कहते हैं हमारा वर्शन छापो और पुलिस कहती है उन्हे जगह मत दो।ऐसी स्थिति में पत्रकार बुरी तरह परेशान है।अगर वो नक्सलियों के फ़रमान छापता है तो पुलिस उसे नक्सलियों का हमदर्द मान कर तंग करती है और अगर नही छापता तो नक्सली उसे पुलिस का मुखबिर समझती है।दोनो ही स्थिति उसके लिये अच्छी नही है।सरकार से भी बहुत ज्यादा मदद मिलना संभव नही है क्योंकि पत्रकारों की संख्या भी काफ़ी है।दुविधा में फ़ंसे पत्रकारों मे से जिसने दोनो का पक्ष छाप कर बीच का रास्ता अपनाना चाहा तो उन्हे भी एक तरफ़ ही रहने की चेतावनी मिल गई है।ऐसी स्थिति में पत्रकारिता अब बहुत ही कठीन होती जा रही है। जान जोखिम में डाल कर खबर लिखने वाले पत्रकारों को अब दोनो तरफ़ से खतरा हो गया है।और उनके सामने कोई चारा भी नही है,जान है तो जहान है सोच कर पत्रकारिता छोड़ भी देते है तो रोज़ी-रोटी का संकट भी जान निकालने वाला ही है।कुल मिला कर देखा जाये तो मरना ही पत्रकारो कों चाहे इसके हाथों या फ़िर उसके।
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8 comments:
भैया आपने इसमे एक मुख्य विषय को छोड़ दिया है दोनो मे से एक का पक्ष छापना बात अलग है पर वास्तविकता छापने की बात कहां है भैया वहां हो क्या रहा है इस पर आप जैसा सुल्झा आदमी ही नता सकता है इस पर लिखे अनुरोध है
हालातों का मारा पत्रकार बेचारा :(
यह तो बड़ी अवसाद पूर्ण स्थति बन गयी है
बिल्कुल सही कहा..
स्थिति वाकई गंभीर है।
सच पर दबाव,
कलम चले समभाव।
जब प्यार किया तो डरना क्या? हाँ जिसने कभी प्यार भी नहीं किया और संत कबीर का ढाई आखर भी नहीं पढा वह कैसे समझे कि ...
सीस उतारे भुई धरे, तब बैठे घर माहिं ...
नक्सली क्षेत्र में क्यों पैदा हो गए भैया .?वैसे तो आज सरकार ज्यादा नक्सली है .बात अआपकी ठीक है कमसे कम नक्सली इन्फेस्तिद इलाकों में तो ऐसा ही है और इलाका भी बहुत बड़ा है .कश्मीर से कुमारी कन्या तक .
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