Friday, June 24, 2011

हे वीआईपी!कृपा कर मेरे शहर मत आया करो!

वीआईपी यानी विशिष्ट नही अति विशिष्ट,और उसका आगमन यानी और अति विशिष्ट्।फ़िर जंहा नाम में ही अति हो वंहा अति ना हो तो फ़िर क्या मज़ा आयेगा।मेरे शहर में आज और कल वीआईपी,बल्की वीआईपीज़ कहिये छाये रहेंगे।कुछ लोगों को बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन सच कहूं मुझे बहुत बुरा लग रहा है।मैं तो कहूंगा हे वीआईपी कुछ भी हो,कंही भी जाओ मगर मेरे शहर मत आओ।                                                                           हो सकता है ये बात किसी को या बहुत से लोगों को बुरी लगे,मगर मैं जानता हूं कि ये बहुत ज्यादा लोगों को बहुत अच्छी लगेगी।दो दिन के लिये हमारे शहर में वीवीआईपी लोगों का महाकुम्भ लगा है।महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा ताई पाटिल भी यंहा रहेंगी और नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत चार राज्यों के राज्यपाल और भाजपा के तमाम छोटे बड़े पदाधिकारियों से लेकर अन्य राजनैतिक दिग्गज़ भी यंहा डेरा डालेंगे दो दिनो तक।अब ये किसी किसी ले सौभाग्य की बात तो हो सकती है लेकिन अधिकांश जनता हलाकान है और सड़क पर निकलना मुहाल हो गया है।                                                                                                                                                           दो दिनों से शहर छावनी जैसा नज़र आने लगा है और जिधर देखों उधर पुलिस के जवान संदिग्ध नज़रों से आपको घूरते नज़र आते  हैं।रात को तो देर से बाहर निकलना जैसे अपराध हो गया है।इतनी चेकिंग तो बड़ी से बड़ी आपराधिक वारदात के बाद की नाकाबंदी में भी नही होती।कार मे हो तो दरवाज़े खोलो,शीशे उतारो,फ़िर डिक्की भी खोलो और उसके बाद घूरती टटोलती निगाहों के एक्स-रे से गुज़रते  हुये ये सुनना कि रात को शरीफ़ लोग नही घूमा करते,ऐसा लगता है कि कंही सच में अपनी शराफ़त दांव  पर तो नही लग गई है।सालों से इसी शहर मे रहने का दंभ एक पल मे चूर-चूर हो रहा है।ऐसा लगने लगा है कि रात को घर नही लौट रहे हैं बल्की किसी दूसरे प्रदेश के किसी संवेदनशील इलाके से गुज़र रहे हैं।गनिमत है कि वे लोग मुंह नही सूंघ रहे हैं वर्ना कई लोगो को तो इससे भी ज्यादा बुरा लग सकता है।                                                                                      दिन में भी जिधर से निकलो सड़को पर बांस-बल्लियों के बैरिकेड्स रास्ता रोके खड़े हैं।ये रास्ता बंद,वो रास्ता बंद,बीच का शार्ट कट ढूंढ कर निकालो तो वहा रास्ता जाम।जबरन पीछे बैठे अच्छे खासे आदमी को बीमार भी बताओ तो भी सवाल सामने आता है वीआईपी सिक्यूरिटी का।यानी आम आदमी की जान-माल से ज्यादा अहम है वीआईपी की सिक्यूरिटी।बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना हो या दूध लेने,सब्ज़ी लेने जाने हो या दफ़्तर,पीछे खड़े चिल्लते रहो अरे ज़ल्दी करो यार देर हो रही है मगर ना तो बांस-बल्ली के बैरिकेड्स हटने वाले है और ना ही उसके बीच एक संकरे रास्ते से गुज़रेन वालों की भीड़ कम होनी है और फ़िर अगर दो सिरफ़िरे एक ही समय निकलने पर अड़ गये तो समझ लो पीछे हट कर दूसरा रास्ता देखने के सिवा कोई आर चारा ही नही।    ये तो हुआ खुद का और खुद जैसे जनरल क्लास की भेड-बकरियो का दर्द।और उससे भी नीचे वाले याने नीले-पीले और जाने कौन-कौन से रंगो के कार्ड से पहचाने जाने वाले लोगों का हाल तो और बुरा होता है।रोज़ कमाने-खाने वाले रिक्शा खिंचने वालो को सवारी ही नही मिलती और मिलती भी है तो चंद मिनटों का सफ़र जैसे कई मिलों का सफ़र हो जाता है खत्म ही नही होता।सड़क किनारे सब्ज़िया बेचने वाले,ठेला-खोमचा लगाने वालों पर तो जैसे आफ़त आ जाती है।साले गरीब,इस सड़क से वीआईपी गुज़रेंगे क्या सोचेंगे वे हमारे शहर के बारे में?ये सवाल मह्त्वपूर्ण हो जाता है इस  सावाल से कि अगर वो दो दिन ठेला नही लगायेगा तो खायेगा क्या?सिर्फ़ झुठी शान के चक्कर में सैकड़ों बच्चों को भूखा रखा जाता है और जैसे ही वीआईपी शहर से रवाना होते हैं ऐसे ही सैकड़ो-हज़ारों लोगों के मुंह से शायद यही निकलता होगा हे भगवान इस बार भेजा तो भेजा अगली बार मत भेज देना।मुझे भी ऐसा ही लगता है कि वीआईपी के रहते तक़ दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है और परेशानियां इतनी बढ जाती है कि मुंह से बस यही निकलता है कि,हे वीआईपी!कृपा करके मेरे शहर तो मत ही आना।आपको क्या लगता है बताईयेगा ज़रुर्।

14 comments:

Atul Shrivastava said...

बहुत खूब।
इन वीआईपी के दो चार घंटो की यात्रा के लिए पूरे शहर को दो चार दिनों से परेशान कर दिया जाता है।
यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ये लोग यदि वीआईपी हैं तो जनता की कृपा से ही, लेकिन.....
सच ही है, ऐसे में जनता तो यही दुआ करेगी कि मेरे शहर मत आना वीआईपी
अनिल भैया तत्‍कालिक तौर पर पूरे रायपुर शहर की जनता की बात और पूरे प्रदेशकी जनता की बात कह दी आपने
शुभकामनाएं आपको

shubham news producer said...

Ekdam Sahi Kaha Bhaiya apne

sadak mein kafila ke samay angrejo ke gulam ki tarah aj bhi ghanto traffic mein khada rahna padta hai.

योगेन्द्र मौदगिल said...

theek....ekdum sateek........sadhuwad..

rashmi ravija said...

सही कह रहे हैं...जहाँ भी ये वी आई पी जाते हैं...उस शहर के लोगो को अपार कास्ट का सामना करना पड़ता है

दिनेशराय द्विवेदी said...

भाई!
जानता हूँ यह मुसीबत क्यों है। यदि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बारात ले कर कोटा चला आता तो आप को ये सारी मुसीबतें न झेलनी पड़तीं।
क्यों एक मुख्यमंत्री सादगी से अपने बेटे की शादी किसी आर्यसमाज मंदिर में जा कर नहीं कर सकता? ये सारे तामझाम दिखा कर समाज को क्या संदेश दिए जा रहे हैं?

दिनेशराय द्विवेदी said...

भाई!
जानता हूँ मुसीबत का कारण। छ्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री परिवार के बीस-पच्चीस लोगों की बारात ले कर हमारे शहर आता और बेटे को ब्याह कर ले जाता, या फिर किसी आर्यसमाज मंदिर में सादगी से विवाह करता तो आप इस मुसीबत से बच जाते।
पता नहीं इतना तामझाम फैला कर बच्चों का विवाह कर के ये राजनेता इस देश की जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?

Vicky's said...

EK DUM SAHI ANIL BHIAYA , HAMARE DESH ME MEHMAN BHAGWAN HOTA HAI , PAR AISE MEHMAN SHITAN SE KUM NAHI LAGTE ....
VIP TUM KAB JAOGE???

DUSK-DRIZZLE said...

IT is true. hum AMIR DHARTI KE GARIB LOG HAI..but What can we do? BHAiyA.....Our state has become the zoo of the poverty.Who will be healer?

Ratan Singh Shekhawat said...

आपका दर्द सही है |

प्रवीण पाण्डेय said...

शहर भी वीआईपी हो जाता है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सही!
ये वी.आई.पी जब भी आते हैं सबका अमन-चैन छीन लेते हैं!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कोई मुझे भी वीआईपी बना दे,
एक दिन के लिए ही सही ॥

ताकी अनिल भाई एक पोस्ट मेरे पर भी लिखें।:)

अजित वडनेरकर said...

आप बड़े भोले हैं। आपको ऐसी अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए:)

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वी आई पी बालमा....
ना आओ नी...
ना पधारो म्हारो देस रे...
ना पधारो म्हारो देस....