पितर मे नया खरीदने पर आपत्ती क्यों?क्या तरक्की देख कर पितर खुश नही होंगे?
कल अचानक एक मित्र ने कहा की नई कार लेना है,और दूसरे ही क्षण सलाह आ गई अब नवरात्र मे लेना।मैने पूछा क्यों कल खरीदाने मे क्या प्राब्लम है।सवाल के जवाब मे उसका सवाल था पितर पक्ष मे कोई नई चीज़ खरीदते है क्या?मैने भी उसके सवाल के जवाब मे सवाल ही किया पितर मे नया खरीदने पर आपत्ती क्यों?क्या तरक्की देख कर पितर खुश नही होंगे?
सवाल के बदले मे सवाल होते देख वो थोडा नाराज हो गया और बोला तो तू ही विद्वान है क्या?हम लोग मूर्ख हैं?सब लोग पागल हैं?सालो से यही परंपरा चली आ रही है,तो क्या मानने वाले को अक़ल नही है?मैने उससे कहा इसमे नाराज़ होने की क्या बात है?वो बोला ये तुम जैसे कथित प्रगतिशील लोगों के कारण ही सारे लफ़्ड़े होते हैं।बेवज़ह की बहस करोगे,बिना किसी कारण सिर्फ़ अपने को विद्वान साबित करने के चक्कर मे किसी भी बात का विरोध करोगे।मैने उसे टोका,भाई इसमे इतना नाराज़ होने की ज़रूरत नही है।ये तो अपन आपस मे बात कर रहे हैं,मेरे भी घर मे यही सब माना जाता है और मै भी किसी परंपरा को जबरन तोड कर बड़ा बनने की कोशिश नही कर रहा हूं।बस ये सवाल सालों से दिमाग मे उमड़ते है सो मैने पूछ लिये,सोचा शायद जवाब मिल जायेगा।
वो और चीढ गया।तो सिर्फ़ तू ही सवाल पूछेगा क्या?हम नही पूछ सकते क्या?तू ही सब कुछ जानता है क्या?मैं बोला फ़ाल्तू बातो मे बहस को डाईवर्ट मत कर क्यों नही खरीदनी चाहिये पितर मे कार ये बता?उसने कहा ले तू ही बता दे क्यों खरीदनी चाहिये पितर मे कार?
गेंद उसने मेरे पाले मे डाल दी थी।मैने कहा ये बता पितर मे अपन पितरो को खाना-खिलाते हैं,तर्पण करते हैं,उन्हे जो अच्छा लगता है वो पकाते हैं,उन्हे तृप्त करते हैं?वो बोला हां, पितर मृत्यू लोक मे आते है हमारा भोजन ग्रहण करते है तृप्त होकर जाते है और ये सिलसिला हर साल चला रहता है।वो बोला नई क्या बात बता रहा है?सवाल का जवाब दे बाकि हम सबको पता है।वही बता रहा हूं बे,अब तक़ मैं भी चीढ गया था।
मै बोला जब पितर हमारे घर आते है और वो अगर नई कार घर मे खड़ी देखेंगे तो खुश होंगे या नाराज़,पहले ये बता दे?कुतर्क़ मत कर,वो गुस्से मे बोला।मैने कहा इसमे कुतर्क़ की क्या बात है।पितर की क्या बात है जो भी हमसे प्यार करता है,हमारे लिये अच्छी भावना रखता है वो तो हमारी तरक्की से खुश ही होगा।अब ये कंहा लिखा है कि पितृपक्ष मे दाढी मत बनाओ,नाखुन मत काटो,बाल मत कटवाओ,नये कपडे मत खरीदो-सिलवाओ-पहनो,नये जेवर मत पहनो। फ़टेहाल रहेंगे तो हमारे पितर हमे देख कर खुश होंगे या उदास?और अगर हम नये कपड़े पहनते हैं,नये जेवर खरीदते हैं,नई कार खरीदते हैं तो पितर खुश होंगे या नही?
तब तक़ वो आऊट आफ़ कंट्रोल हो गया था।तुम्हारे जैसे लोगो के कारण धर्म का कूडा हो रहा है,तुम लोग सुधार की बात करके परंपरायें तोड रहे हो और जाने क्या-कया बड़बड़ाने लगा था वो।सबने देखा मामला बिगड़ रहा है तो तत्काल वाय एस आर के चापर को चौबीस घंटे मे ढूंढने और रैन एअरवेज़ के चापर को चालीस दिन तक़ नही ढूंढ पाने का मामला मैने छेड दिया और पितर पर उठे सवाल अधूरे ही रह गये।इस मामले मे मै चाहूंगा की मेरा भी कुछ ज्ञान बढ जाये,इसलिये सभीसे प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।
13 comments:
हमारे यहाँ श्राद्ध पक्ष में ही कार आई थी १२ वर्ष पूर्व और उस दिन शनिवार था (कहते है कि शनिवार को लोहा नहीं लेना चाहिए) इन १२ वर्षो में कार का एक्सिडेंट भी हुआ और ख़राब भी हुई पर क्या ये और कारो के साथ नहीं होता है (वैसे बढ़िया चल रही है कार)
:)
अभी ही एक 'तकनीकी' विश्वविद्यालय का शैक्षणिक सत्र पितर पक्ष में पूर्व निर्धारित था. परंतु वही, शुभ कार्य नहीं होते वाला फंडा यहाँ भी लागू किया गया, और डेट को चार दिन एडवांस किया गया - गणेशोत्सव के दौरान!
ईश्वर ने सब दिन, हर पल, हर घड़ी एक समान बनाए हैं, यह उनके बंदों को नहीं पता. ईश्वर इन्हें माफ़ करें.
ही ही ही ..ऐसे ही सवाल हम भी यहाँ वहां उछाल चुके हैं और हर जगह से कुतर्की होने की उपाधि लेकर आये हैं.पर जबाब नहीं मिले.
ये सब पंडावाद का साइड इफेक्ट है|लोगों में इस तरह की मानसिकता बनाने के लिए सिर्फ और सिर्फ पंडावादी तत्व जिम्मेदार है|
भाऊ साहेब…
हम तो दशहरा-दीपावली की 80% खरीदारी पितृपक्ष में कर डालते हैं… इन दिनों बाजार में भीड़ भी कम रहती है, दुकानदार आराम से माल दिखाता है और अपन को भी कोई जल्दी नहीं रहती… माल बढ़िया मिल जाता है। दीपावली के समय तो फ़ैक्ट्रियों में पड़ा हुआ सड़ा माल भी बाजार में आपाधापी में खप जाता है डिस्काउण्ट के नाम पर… :) :)
मुझे लगता है कि इन दिनो बरसात होने के कारण आवागमन में कठिनाई होने के कारण लोग नया मकान बनाने से या खरीद फरोख्त से बचते होंगे. जिसे बाद में ऐसा जामा दे दिया गया.
क्या पितृ पक्ष और क्या नवरात्रि..... जब जेब गरम हो खरीदी की जा सकती है.....
वैसे आपके तर्क में दम है.... पितरों को तो खुशी होगी... जब घर में नए सामान देखेंगे वो।
@ क्या तरक्की देख कर पितर खुश नही होंगे?
पितरों की मर्जी. स्वर्ग में तो सदा-सर्वदा स्वतंत्र लोकतंत्र ही होता है.
सही बात है. बस सोचने का फ़ंडा भर है. मुझे तो पता ही नहीं होता कि ये अच्छे-बुरे दिन कब शुरू या ख़त्म हो गए :)
हम भारतीय हर काम मुहूर्त देखकर करते हैं. हर गाड़ी मुहूर्त में उठाते हैं और सबसे पहले मंदिर ले जाकर पूजा करवाते हैं. सबकी गाड़ियों में देवी-देवता विराजित होते हैं पर ठुकती-पिटती सभी गाड़ियाँ हैं, चाहे उन्हें कितने ही शुभ मुहूर्त में खरीदा जाए.
संभाल कर गाड़ी चलाना, बस एक यही काम हम नहीं करते.
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----क्या नई गाड़ी देख कर पितृ लोग नाराज़ नहीं होंगे कि इसे बड़ी खुशी का दिन लग रहा है कि आज हम मरे थे....बस हमें दिखाने के लिए तर्पण कर रहा है ...वास्तविकता में इसे दुःख/शोक कुछ नहीं है ....
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
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