Sunday, October 2, 2011

बापू, कमीनों ने होर्डिंग की तरह चौक-चौराहों पर लटका दिया है आपको


बापू आज आपका हैप्‍पी बड्डे है। इसलिए आज आपको नहला-धुलाकर कल के लिए तैयार किया जा रहा है। आप सोचते होंगे कि आपको देश के लोग कितना प्‍यार करते हैं, कितना सम्‍मान करते हैं, जो चौक-चौराहों पर आपको बिठाकर रखा है। बापू आपको गलत फहमी है। इन कमीनों ने आपको अपनी विचारधारा बेचने के लिए और नेतागिरी की दुकान चलाने के लिए होर्डिंग की तरह इस्‍तेमाल किया है। आप नेताओं के लिए मॉडल से ज्‍यादा कुछ नहीं हैं। सॉरी बापू आपको ये खरी-खरी खराब लग रही होगी, लेकिन क्‍या करूँ मजबूरी में आपको बता रहा हूं।

पिछले साल भी आपके बड्डे पर आपको नहलाने-धुलाने की ड्यूटी मुझे मिली थी। इस बार भी मुझे ही जबरन ये ड्यूटी थमाई गई है। मेरी पिछले साल भी इच्‍छा नहीं थी और इस बार भी वही हालत है। नवरात्र का उपवास मेरी हालत खराब कर रहा है और मुझे आपको ऊमस भरी दोपहरी में नहलाना पड़ रहा है। मजबूरी है नौकरी का सवाल है। वैसे बापू मैं आपकी दिल से इज्‍जत करता हूं, इसलिए मजबूरी में ही सही मैं आपकी साफ-सफाई पूरी ईमानदारी से करता हूं। याद है आपको पिछले साल जब मैं आपको नहलाने आया था, तो आपका चश्‍मा गायब था। मैंने जब चश्‍मा चोरी होने की बात साहब लोगों को बताई तो उन्‍होंने मुझे कितना डांटा था। बड़ी मुश्किल से आपकी पसंद का मॉडल ढूंढ-ढांढकर लाया गया था और जितनी परेशानी चश्‍मा ढूंढने में साहब लोगों को हुई थी, उतनी ही ज्‍यादा गालियां मुझे खानी पड़ी थी और साथ में चेतावनी भी मिली थी। वो तो अच्‍छा हुआ सारे अख़बार वाले और न्‍यूज चैनल वाले हमेशा की तरह सो रहे थे और उन्‍हें इस बात का पता नहीं चला, वरना मेरा सस्‍पेंशन पक्‍का था।

खैर छोड़ों पुरानी बातें बापू कोई मतलब नहीं इनका। आपको तो पता भी नहीं कि जो चश्‍मा आपको पहनाया गया उसके शीशों पर दुनिया भर के स्‍क्रैच लगे हुए थे। कबाड़ खाने में पड़ा हुआ था वो। और आपको पता चलता भी तो क्‍या फायदा होता। क्‍या आप अच्‍छे और साफ-सुथरे शीशों वाले चश्‍मे से वो सब देख पाते जो आज देश में हो रहा है। देश के अधिकांश शहरों में सड़कों पर खून बिखरा हुआ है। क्‍या आप वो देख पाते।

अच्‍छा, तो ये बात है। मुझे अब समझ में आ रहा है कि आप खराब शीशों की शिकायत क्‍यों नहीं करते। समझा, दरअसल आप वो सब देखना ही नहीं चाहते, जो देश में हो रहा है। इसकी तो आपने सपने में भी कल्‍पना नहीं की होगी। जभी मैं सोचूं कि साला इत्‍ते सालों से आप खामोश कैसे बैठे हैं। इतने लफड़े-दफड़े, दंगे-फसाद देखकर भी आप उपवास करने क्‍यों नहीं गए। खैर, जाते भी तो भी आपको कोई जूस पिलाने तक नहीं आता और वैसे भी चौक-चौराहों पर बैठे-बैठे आप उपवास ही तो कर रहे हैं। अरे, ये तो मैंने सोचा ही नहीं। बापू मुझे माफ करना। आप तो अपनी पुरानी स्‍टाईल से ही काम कर रहे हैं। कमीनों की हरकतें देखकर आप लगता है इस दुनिया को छोड़ने के साथ ही उपवास करने के लिए आइडिया लगाकर चौक-चौराहों पर उपवास पर बैठ गए थे।

बापू, आपकी सहनशीलता तो मानना ही पड़ेगा। देश को आज़ाद करा दिया, मगर साले देशवासियों ने आपको चौक-चौराहों पर जंजीरों के घेरों से कैद कर दिया है। आपको शो-पीस बना दिया। आपको देखने-दिखाने की चीज बना दिया। आपको विचारधारा बेचने का विज्ञापन बना दिया। आपको नेतागिरी की मार्केटिंग का मॉडल बना दिया। आपको जुलूस और धरना देखने वाला दर्शक बना दिया। आपको होर्डिंग की तरह लटका दिया है इन कमीनों ने। और आप हैं बापू खामोशी से सब सह रहे हैं। हमारे शहर में विपक्ष के जितने धांसू नेता हैं सबके-सब एसी कार में चलते हैं। पैदल चलने का तो उनको मौका ही नहीं मिलता। कभी-कभार रैली, जुलूस में एकाध घंटा पैदल चल लेते हैं तो दूसरे दिन ही बयान जारी कर देते हैं कि शहर को धूल और धुएं से बचाना होगा। प्रदूषण से जीना दूभर हो गया है शहर वासियों का। बताओ कितने एहसान फरामोश हैं ये लोग। साले कार में घूमते हैं और धूल-धुएं की बात करते हैं। जो वोट देते हैं उस जनता की चिंता करते हैं और जिसने वोट देने का अधिकार दिलाने के लिए आज़ादी दिलाई, उसकी रत्‍ती भर फिकर नहीं। धूल फांकते बैठे हो आप चौक-चौराहों पर। साल में एक बार साफ कराते हैं साले। आप भी बापू धन्‍य हैं। सालों से धूल-धुआं खा रहे हो और खामोश बैठे हो। आपकी जगह कोई और होता तो दमा-अस्‍थमा का शिकार होकर खांस-खांसकर मर जाता साला। लेकिन आपका अपने बच्‍चों के प्रति प्‍यार मानने लायक है। भगवान शंकर के बाद एक आप ही नज़र आते हो, जो विष पीकर भी कल्‍याण की सोच रहे हो।

इसके बाद भी बापू, कमीनों को ज़रा भी शर्म नहीं आती। अब आपको क्‍या बताऊं। मेन चौक-चौराहों पर तो आपकी हालत ठीक है लेकिन सुनसान इलाकों और बगीचों में आपकी पोजिशन बहुत ज्‍यादा खराब है। आपको साफ करते समय पक्षियों की बीट की दुर्गंध से ऐसा लगता है कि उल्‍टी हो जाएगी। पता नहीं आप क्‍यों सबको माफ किए जा रहे हो। कमीने अपने लिए नया-नया दफ्तर बनवा लेते हैं, लेकिन आपके सर पर एक छोटा सा शेड नहीं बनवाते। उसमें कुछ बचेगा नहीं न। क्‍यों बनवाएंगे फिर। मोटी कमाई का प्‍लान बने तो आपको कहीं पर भी बिठाकर करोड़ों रूपया जीम जाएंगे, लेकिन पुरानी जगह जहां आप सालों से बैठे हो वहां साले फूटी कौड़ी खर्चा नहीं करते।

जाने दो बापू, और अंदर की बात बताऊंगा तो आप शायद नाराज़ होकर कल हार पहनाने आने वालों को अपनी ही लाठी से पीट दोगे। मज़ाक नहीं कर रहा हूं। सच बोल रहा हूं। आप बोलोगे कि मैंने अहिंसा के दम पर अंग्रेजों को ठीक कर दिया, लेकिन किसी पर हाथ नहीं उठाया। तो बापू वो सफेद अंग्रेज थे उनमें थोड़ा-बहुत ईमान था, ये तो साले काले अंग्रेज हैं इनमें कोई ईमान-धीमान नहीं है। दूसरे, ये लातों के भूत हैं, बातों से तो मानते ही नहीं। अब देखों न, हर साल आपके जन्‍मदिन पर र्इश्‍वर अल्‍लाह तेरो नाम भजते हैं और साल भर साले दंगा-फसाद करते हैं। ये अहिंसा-फहिंसा आपके साथ ही दुनिया से निकल ली बापू। उसको पता था जब देश में आपकी कदर नहीं होने वाली, तो उसकी क्‍या कदर होगी। अहिंसा की जगह उसकी कजिन हिंसा छाई हुई है। दरअसल आपका और आपकी अहिंसा का मीडिया मैनेजमेंट बड़ा पूअर रहा। भला बकरी की दूध की चाय पीकर कोई आपको या आपकी अहिंसा को कितना हाईलाइट करता। वैसे भी आजकल कॉकटेल का ज़माना है और हिंसा की मार्केटिंग सिमी, बजरंगदल, ठाकरे ब्रदर्स, अर्जुन सिंह और यादव ब्रदर्स जैसी जानी-मानी मल्‍टीस्‍टेट कंपनियां कर रही है। ऐसे में हिंसा के सामने अहिंसा कहां टिकती। इसीलिए कह रहा हूं कि आप भी सालों को अपनी ही लाठी से पीटने पर मजबूर हो जाते।

बहुत ही कमीने हैं बापू ये लोग। सड़कों पर चौक-चौराहों पर बिठा दिया है आपको और कमरों में दीवार पर लटका दिया है आपको। क्‍या बताऊं बापू इतना दिमाग खराब होता है जब सरकारी दफ्तरों में आपकी तस्‍वीर के नीचे बैठा साहब या नेता बिना शर्माए हरामखोरी करते हैं। आपने कहा था बापू की ज़रूरत से ज्‍यादा जमा करना चोरी है। यहां तो कई पीढ़ी के लिए इंतजाम कर रहे हैं लोग। चोरी नहीं डाका डाल रहे हैं फिर भी पेट नहीं भर रहा है उनका। और सब हो रहा है आपकी तस्‍वीर के नीचे। संसद में भी जो हुआ बापू। वो आपने देखा। आपने सोचा भी नहीं होगा कि सांसद संसद में नोटों की गड्डियां दिखाएंगे।

छोड़ो बापू आपके चक्‍कर में बेमतलब मैं इमोश्‍नल हो रहा हूं। रगड़-रगड़के आपको नहलाने का मुझे ईनाम नहीं मिलने वाला। पिछले इतवार को मैंने बड़े साहब की कार धोई थी तो साहब ने मुझे खुश होकर नीला वाला गांधी यानि सौ का नोट दिया। उसके पहले वाले इतवार को मेम साहब के प्‍यारे-दुलारे पप्‍पी को नहलाया था, तो मेम साहब ने भी खुश होकर मुझे नीला गांधी यानि सौ का नोट ईनाम में दिया था। काम भी उतना नहीं था यहां तो बस सेवा ही है मेवा तो कुछ मिलना नहीं है। एक तो टाईम खोटा करो, ऊपर से इमोश्‍नल अलग हो रहा हूं। ठीक है, बापू इसे मैं समाज सेवा के एकाउण्‍ट में डाल दे रहा हूं। फायदा कुछ होना नहीं है अब अगले साल आऊंगा बापू आपको नहलाने कोई अच्‍छी ख़बर होगी तो बताऊंगा ज़रूर। तब तक आप चौक-चौराहों पर उपवास करते रहिए। बुरा मत मानना भावना में बहकर कोई गलत बात कह गया होऊंगा तो।
आपका अपना

गरीबदास फकीरचंद गांधी                                                                                                       ये पोस्ट 2008 की है,आज भी बापू पर लिखना चाहा तो मुझे यही सब याद आ रहा था,सो मैने इसे ही दोबारा पोस्ट कर दिया।

7 comments:

मनोज कुमार said...

चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि दृग उसी ओर।

Dr Varsha Singh said...

यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

प्रवीण पाण्डेय said...

आज धोते हैं, फिर साल भर धोते हैं।

Atul Shrivastava said...

बढिया प्रस्‍तुतिकरण.....

Jagdish Rawat {J.D.} said...

Lagai to Ijjat karne or daine ke liye they par kuch Ka..no ne haramkhori ki badola aise hi latka chod diya jin mai se pehla no Mayawati Ku..ya ka hai. or baki sab K..o se to aap bhi bhali prakaar prachit honge kis kis ka naam ginao M..i ka no dusra or aaj kal jaise Atal Gram banai Ja rahai Uttrakhand mai to muzeh to abhi se hi Atal Ji pe taras aana shuru ho gaya hai.

Lagane wale kamine ya fir muk darshak ban kke daikhne wale Madarjaat ?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
इन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

हितेन्द्र said...

लेख की लम्बाई देखी तो लगा चलो! आप फिर से बड़ी पोस्टें लिखने लगे हैं| लेकिन आखिर में देखा की ये तो २००८ में लिखी थी!

पर बहुत ही अच्छा लगा यह लेख!