Wednesday, June 13, 2012

काहे साड़ी, गड्डी और चेपटी को बदनाम करते हैं..

हर चुनाव में नतीजे चाहें जो आए बदनाम होते आ रही है, साड़ी, गड्डी और चेपटी। चेपटी यानी दारू की चपटी बोतल। बताइये भला चुनाव जीतने वाला जीतता है, हारने वाला हार जाता है और लोग गालियां बकते हैं गड्डी और चेपटी को। चेपटी में बिक गए, गड्डी में बिक गए। यानी मतदाता बिकाऊ और कीमत चेपटी। सालों से चुनाव के बाद की समीक्षाओं में गड्डी, चेपटी को राजनीति में आई गिरावट का अहम कारण माना जाता रहा है। 
साड़ी, गड्डी और चेपटी, हर चुनाव में चलती है, ये सभी जानते हैं, मगर खुलेआम नहीं, चोरी छिपे। शायद इसलिए वो बदनाम है और उसे अवैध नाम भी दिया जाता है क्योंकि चोरी छिपे जो भी काम होता है वो अवैध होता है। वैध तो वही काम होता है जो खुलेआम किया जाता है। वैध यानी खुलेआम दिया जाने वाला काम यानी पैकेज, प्रोजेक्ट। वैध यानी बड़े लोगों द्वारा बड़े लोगों के साथ, बड़े-बड़े लोगों के लिए किया जाने वाला कारोबार। हजारों करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट के बदले राष्ट्रपति चुनाव में दीदी से उनकी पार्टी के वोटों का थोक में सौदा चल रहा है। सारा देश देख रहा है। डील में हां-हां, ना-ना का तमाशा सब देख रहे हैं। वो बिना दांत और नाखूनों वाला बूढ़ा रिटायर शेर यानी चुनाव आयोग भी। 
मजाल है देश के प्रथम व्यक्ति के लिए होने जा रहे चुनाव में हो रही खुल्लम खुल्ला डील के खिलाफ कोई कुछ भी बोले। देश का सबसे बड़ा चुनाव और उसमें सौदेबाजी भी सबसे बड़ी। छोटे-मोटे ग्राम पंचायत के पंच-सरपंच के चुनाव में किसी के घर, खेत खलिहान से अगर चेपटी-चापटी मिल गई तो हो जाता है उसका काम तमाम। जेल तक की हवा खिला दी जाती है। और अभी हाल ही में हुए कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनावों के दौरान करोड़ों रूपये नगद जब्त किये गए। चुनाव सम्पन्न हो गए। सरकारें बन गई। मगर जांच पता नहीं कौन कर रहा है, आज तक उन रूपयों के मालिकों के बारे में पता नहीं चला। 
शराब का जखीरा पकड़ाये या नोटों का भंडार। सिवाय जब्ती के और कोई कार्रवाई आज तक नजर नहीं आई। फिर जब कुछ करना ही नहीं होता तो काहे को चोचले दिखाना। फिर ये साड़ी, गड्डी और चेपटी तो अब लोकल इश्यू रह गया है। अब तो नेशनल इश्यू सामने आ गया है। हजारों करोड़ रूपयों के प्रोजेक्ट, पैकेज की डील हो रही है खुलेआम राष्ट्रपति चुनाव में वोटों के लिए। है कोई माई का लाल जो कार्रवाई करे। अगर नहीं कर सकते तो हर चुनाव में गरीब वोटरों को त्यौहार  मनाने का मौका देने वाली साड़ी, गड्डी और चेपटी को बदनाम करना बंद कर दो।

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह...
बहुत खूब!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बात में दम है आपकी

प्रवीण पाण्डेय said...

बिना देय कुछ कहाँ मिला है..

Smart Indian said...

धांधली पर ही जीने वालों को तो कोई न कोई बहाना चाहिये!