Friday, June 21, 2013

.मिट्टी से मटमैला पानी आज मुझे खून सा लाल नज़र आया.पता नही क्यों मुझे आज बारिश अच्छी नही लगी,बिल्कुल भी नही.

आज फिर बादल गरजे.बिजुरिया भी जमकर चमकी.बरखा भी छमाछम बरसी.पर पता नही आज क्यों मन मयूर उदास है.आज बादलों के गीत कानों मे पिघले सीसे से लगे.बिजली का रह रह कर ठहाके मारना किसी हारर फिल्म के संगीत सा लगा.बरखा रानी का मदमस्त नृ्त्य उत्तराखण्ड के प्रलंयकारी तांडव की याद दिला गया.मैं घर से बाहर निकला कार में बैठा और फिर पता नही क्या हुआ,ना इग्निशन आन कर पाया,ना गियर लगा पाया और ना ही एक्सलरेटर दबा पाया.चाह कर भी मैं दिमाग से ये निकाल नही पाया कि वंहा क्या हो रहा होगा उत्तराखण्ड में.बस बेबस होकर उतरकर वापस घर घुस गया और मज़ेदार मौसम का मज़ा लेने का सालो का सिलसिला तोडकर यंहा एफबी पर आ गया.पता नही क्यों मुझे आज बारिश बिल्कुल भी अच्छी नही लगी.मिट्टी से सोंधी सोंधी सुगंध की बजाये सडांध का अनुभव पहली बार हुआ मुझे.मिट्टी से मटमैला पानी आज मुझे खून सा लाल नज़र आया.पता नही क्यों मुझे आज बारिश अच्छी नही लगी,बिल्कुल भी नही.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, अब बारिश मन नम कर जाती है।