जुलाई शुरू हो गया है और उसीके साथ ही कलेज का सीज़न भी.कल हमारे कालेज के पूर्व अध्यक्ष अंजय शुक्ल का जन्म दिन थ और उनकी याद ने पुराने किस्सो की यादों का तूफान उठा दिया दिमाग में.किस्से हज़ारो है पर दोहरा रहा हूं आज एक किस्सा मेरे एक बेहद खास जूनियर का जिसका दर्ज़ा छोटे भाई से ज़रा भी कम नही था।पेश है किस्सा मधु का।
कालेज मे एक जुनियर था मधु।फ़्रेशर था,एक दिन सीनियरो के चंगुल मे फ़ंसा हुआ था। उधर से हमारा ग्रुप निकला तो मैने उसे छुड़वाया और अपने साथ ले गया।सबने उससे नाम पूछा तो उसने बताया,मधु।सब-के सब हंस पड़े।उसने पूछा,क्यों भैया नाम ठीक नही है क्या?ये मेरा घर का नाम है।वैसे मेरा नाम माधव राव है।हम सब एक साथ बोले मधु ही चलेगा।माधव राव थोड़ा लंबा है।फ़िर सभी तो उल्लू के ऊ ही हैं।चाहे,चुन्नू हो,बल्लू हो या पप्पू।और अब मधु भी चलेगा।
वो बहुत खुश हुआ।उसने पूछा भैया यहां रैग़िंग बहुत होती है और कुछ लोग बहुत तंग करते हैं।मैं उससे बोला आज से तुम्हारी रैगिंग नही होगी।जो तंग करे हम लोगो का नाम बता देना।बस फ़िर क्या था।मधु रोज़ कालेज मे मिलने लगा और उसने अपने कालेज आने का टाईम भी हम लोगो के साथ ही सैट कर लिया।धीरे-धीरे मधू हमारे ग्रुप का सबसे छोटा पार्ट टाईम मेम्बर हो गया। अब वो कुछ खुल गया था और बस मे हम लोगो के कमेण्ट पर खुलकर हंसने भी लगा था।
धीरे धीरे मधु हम सब के लिये छोटे भाई से बढ कर हो गया था,और उसकी हर बात को हर कोई तव्ज्जो देने लगा था।वो जुनियर लड़को का नेता भी बन गया था और आये दिन कुछ न कुछ समस्या लेकर आ जाता था। भले ही कुछ नाराज़गी ज़ाहिर करते थे हम सब मगर थोड़ी देर मे उसका काम कर देते थे।
मधु हम लोगो के खास जुनियर के रूप मे भी पहचाना जाने लगा था। अपने विनम्र स्वभाव से वो कुछ ही मिनटो मे किसी का भी दिल जीत लेता था।जैसे-जैसे मधु पापुलर होने लगा उसकी पहचान सिर्फ़ लड़को तक़ सीमित नही रही,वो लड़कियो मे भी लोकप्रिय हो गया था।उसके बाद उसका समाज-सेवा का काम बढता चला गया।आए दिन वो किसी न किसी लड़की की समस्या लेकर आने लगा।यहां तक़ तो ठिक था,मगर वो बस मे लड़कियो पर कमेण्ट्स करने पर भी टोका-टाकी करने लगा था।
रोज़ वो किसी न किसी को दीदी बना लेता था,और जैसे ही हम लोग बस मे सवार होते,वो पहले ही बता देता,भैया!वो पीली चुन्नी वाली है ना। हां तो।भैया प्लीज़ वो मेरी दीदी है।चला ठीक है मधु कह्ते ही वो खुश हो जाता और जाकर बाकायदा हम लोगो की ओर इशारे करके उन्हे कमेण्ट्स से बच्ने की गारंटी भी दे देता।ऐसा अब रोज़-रोज़ होने लगा था।मधु की दीदीयां बढती ही जा रही थी। हम लोगो का ग्रुप फ़ेमस था अपने हल्के-फ़ुल्के,चुटीले कमेण्ट्स करने के लिए,और ये हम लोगो का शौक भी था।
एक दिन जैसे ही हम लोग बस मे चढे,मधु तैयार बैठा था।वो फ़ौरन बोला भैया,भैया,भैया।मै कंझा के उससे बोला क्या है?उसकी सिफ़ारिश तैयार थी।वो बोला भैया वो नीली सलवार कुर्ते वाली है ना।मै बोला आगे बोल्।वो बोला।वो मेरी दीदी है।मैने उस लड़की तरफ़ देखा।वो काफ़ी नक़चढी लडकी थी और आए दिन हम लोगो के कमेण्ट्स का शिकार होती थी।पता नही उस दिन क्या हुआ मै मधु से बोला।देख बे मधु, सारी रिश्तेदारी गड़बड़ हो रही है,या तो तू हम लोगों को भैया बोल या उन लोगों को दीदी।इतना सुनते ही बस मे ज़ोरदार ठहाका लगा।इसके बाद भी मधु ने दीदी बनाना छोड़ा नही। हां हम लोगो पर तरस खाकर उसने थोड़ा कम ज़रूर किया।मधु आज भी मिलता है तो उसी आत्मीयता से।अब वो बड़ा आदमी भी हो गया है मगर हम लोगो के लिये वो माध्व राव नही मधु ही है बिल्कुल वैसा ही छोटे भाई जैसा।मै समझता हूं आप मे से बहुत से लोगो के कालेज के दिनो मे हमारे मधु जैसा कोई न कोई तो मधु होगा ज़रूर।
2 comments:
यथा नाम, तथा कर्म।
;-) अच्छा लगा पढ़ कर
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