Friday, July 5, 2013
अल्पसंख्यको को भी ऎसे पाखण्डियो से पूछ्ना चाहिये कि उनकी रिश्तेदारी में कितने अल्पसंख्यक है.
अल्पसंख्यको के लिये रोने वाले बहुसंख्यक नेताओं की कमी नही है.इस मामले में बडा ही टफ कम्पीटिशन है.इफ्तार पार्टी से लेकर उनका मुख्तियार होने के लिये पूरी रफ्तार से दौड पडते है नानअल्पसंख्यक नेतागण.इस केटेगरी के इतने ज्यादा रुदाली होने के बावज़ूद अल्पसंख्यको का भला उतना नही हो पाया है जितना होना चाहिये था.उनके घावो पर मरहम लगाने की बजाये उसे चाट चाट कर नासूर ही बनाते रहे है अल्पसंख्यको के बहुसंख्यक नेता.ताज़ा मामला इशरत का भी है,जो आज बेटी हो गई.इसके पहले क्या थी,शायद ही कोई जवाब दे पाये.उनके पास तो इस बात का भी जवाब नही होगा कि उनके खानदान में कितने दामाद और कितनी बहुयें अल्पसंख्यक समुदाय से है.अल्पसंख्यको के लिये सोचना,उनके उत्थान के लिये काम करना अच्छी बात है पर मेरा सवाल ये है कि क्या सिर्फ उनके घावो को ही कुरेदने से सब कुछ ठीक हो जायेगा क्या?पहले उन्हे अल्पसंख्यको से रोटी बेटी का रिश्ता बनाना चाहिये फिर चाहे जितना रोये.मेरे खयाल से वर्तमान में अल्पसंख्यको के बहुसंख्यक ठेकेदारो में एक के भी घर में दामाद या बहु अल्पसंख्यक नही होगी.इस तरह के पाखण्ड पर अब पाबंदी लगना चाहिये.बस बहुत हो चुका नाटक,अल्पसंख्यको को भी ऎसे पाखण्डियो से पूछ्ना चाहिये कि उनकी रिश्तेदारी में कितने अल्पसंख्यक है.
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