Wednesday, August 21, 2013

तरस आता है डालर के दाम बढने से हैरान परेशान लोगों की सोच पर

तरस आता है मुझे डालर के दाम बढने से हैरान परेशान लोगों की सोच पर.अरे भाई अपने देश का प्रधानमंत्री कोई ट्रक ड्राईवर नही है भाई,अर्थशास्त्री है,अर्थशास्त्री.कुछ सोच समझ के बढने दे रहे है डालर के रेट.ये अमेरिका अपने आप को समृद्ध समझता है.और वो ब्रिटेन,उासने तो हम पर सालो राज किया है.बदला भी तो लेना है सालों से.आखिर प्रधानमंतत्री बनने का मतलब सिर्फ महंगाई,भ्रष्टाचार पर रोक लगाना ही थोडे ही होता है,इंटरनल पालिटिक्स से ज्यादा इंपार्टेण्ट है इंटरनेशनल पालिटिक्स.समझे की नही.वही रोज़ रोज़ की खिच खिच सब्ज़ी महंगी,हो गई दाल महंगी हो गई,प्याज़ के दाम आसमान छू रहे है,सोना महंगा हो गया है.डालर महंगा हो गया.सब पता है भाई.कोई मामूली बाबू,बडे बाबू है क्या?जो हिसाब किताब रखेंगे.प्रधानमंत्री है प्रधानमंत्री हिसाब किताब रखते नही,चुकता करते हैं.और आज तक़ किसी ने भी ब्रिटेन और अमेरिका से हिसाब चुकता करने के बारे में सोचा तक नही.सब उनसे संबंध मधुर बनाने मेँ लगे थे.लेकिन हमारे ताज़ा प्रधानमंत्री,वाह वो तो अमेरिका से बदला लेने को बेकरार थे.वे तो पाकिस्तान की बात बात पर मदद करने वाले,और हमारे लोगों को अपने एअरपोर्ट पर नंगा कर बेईज़्ज़त करने वाले अमेरिका की बेईज़्ज़ती करने का मौका तलाश रहे थे.सोचो जब हम अकड कर पांच दस रूपया टीप का छोड देते है,तो मन ही मन गाली देते हुये सलामी ठोकने वाले वेटर के चेहरे पर और हमारे चेहरे पर कैसे भाव आते हैं.वो दीन हीन गरीबों वाली कातर मुस्कान और हम राजा महाराजा वाली गर्विली मुस्कुराहट लिये होते है.बस ठीक वैसी ही वेटरों वाली कातर मुस्कान अमेरिका के मुंह पर देखेंगे हमारे प्रधानमंत्री जब एक डालर के बदले सौ का नोट देकर शान से कहेंगे कीप द चेंज़.होने तो दीजिये नब्बे-पन्च्यान्बे रुपये का एक डालर फिर देखना ठसन अपने प्रधानमंत्री जी की.अरे सब को शार्ट कट की लगी हुई,लांग टर्म प्रोग्राम सुना है या नही.वैसे एक गाना याद आ रहा है,उसमे आज थोडे सुधार की जरुरत है,फिल्म रोटी कपडा और मकान के गाने के बीच की लाईने थी"पहले मुट्ठी भर पैसे लेकर थैले मे डालर लाते थे,अब थैले में रुपये जाते है और मुट्ठी में डालर आते हैं.दुहाई है दुहाई है दुहाई.

5 comments:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार, 23/08/2013 को
जनभाषा हिंदी बने.- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः4 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सेन्चुरी तो बना ही लेने दीजिये रुपये को.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



वेटरों वाली कातर मुस्कान
अमेरिका के मुंह पर देखेंगे हमारे प्रधानमंत्री
जब एक डालर के बदले सौ का नोट देकर शान से कहेंगे कीप द चेंज़.
होने तो दीजिये नब्बे-पन्च्यान्बे रुपये का एक डालर फिर देखना ठसन अपने प्रधानमंत्री जी की

:)

पैना-धारदार व्यंग्य लिखा आपने
आदरणीय अनिल पुसदकर जी
साधुवाद !

मंगलकामनाओं सहित...
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार

प्रवीण पाण्डेय said...

एक उपाय है यदि डॉलर को अपनी मुद्रा बना दें, संभवतः बड़े अर्थशास्त्री यही चाह रहे हैं।

Anonymous said...

great article !