Sunday, August 23, 2015
यही हाल रहा महंगाई का तो घर की मुर्गी दाल बराबर नही,दाल से सस्ती कहलायेगी.
दाल के भाव जिस स्पीड से उपर उठ रहे है उससे लगता है कि"घर की मुर्गी दाल बराबर"इस मुहावरे में भी करेक्शन करना पड सकता है.हो सकता है किसी दिन दाल के भाव मुर्गी से ज्यादा हो जाये तब दाल बराबर तो नही रह जायेगी ना मुर्गी.तब कहना पडेगा कि घर कि मुर्गी दाल से सस्ती.बहुत कठीन दौर से गुज़र रही है बेचारी मुर्गी.पहले कब तक़ बचेगी मुर्गी कह कह कर लोग दुबला किये दे रहे थे और अब तो दाल से सस्ती कह कर इज़्ज़त का भी बंटाधार कर देंगे.मुर्गी खाने वाले भी बडी शान से कहा करते थे कि मुर्गी खा कर आ रहा हूं.अब अगर वि कंही खडा होकर टूथपिक से दांत कुरेदेगा तो हो सकता है बगल में खडा दालेरियन,वेजिटेरियन से दो ग्रेड उपर वाला ज़ोर से डकार ले और कहे कि अबे हम रोज़ दाल खाते है,समझा बे मुर्गी छाप.सच मुर्गी तो मुर्गी मुर्गी खाऊ चिकनेरियन भी अभूतपूर्व संकट के और से गुज़र रहे है़ं.इश्वर सरकार में बैठे लोगो को सद्बुद्धी दे कि वे मुर्गी की इज़्ज़त की खातीर,घर की मुर्गी दाल बराबर,इस मुहावरे पर छाये संकट को टालने के लिये ही सही दाल के दाम घटवा दे.जय हो मुर्गीटेरियन्ज़ की.
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