Tuesday, July 29, 2008

15 रूपए में 2 वक्त खाना, नाश्ता और दूध कैसे दे पाता है ठेकेदार ?

जी हाँ ये करिश्मा दिखा रहा है छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का ठेकेदार। मरीजों को 15 रूपए में उसे 2 वक्त का भोजन सुबह का पौष्टिक नाश्ता और गर्भवती महिलाओं को दूध देना है। अब सोचने वाली बात है कि 15 रूपए में वो क्या खिलाता होगा और कैसे खिलाता होगा।

सरकार का काम था गरीब मरीजों के लिए खाने के लिए भोजन की व्यवस्था करना सो उसने टेण्डर बुलवाकर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। बस सरकार का शायद इतना ही फर्ज होता है, उसके बाद क्या होता है लगता है इससे सरकार को कोई लेना-देना नहीं है। सरकार और सरकारी अफसरों को कम से कम एक बार तो सोचकर देखना चाहिए कि क्या 15 रू. में मरीजों को पौष्टिक न सही कम से कम ठीक-ठाक भोजन दिया जा सकता है।

ठेकेदार को मरीजों को खाने में सुबह का नाश्ता, पौष्टिक अंकुरित दाल फलियां और फल देना है, लेकिन वह रोज पोहा जैसा नाश्ता देकर अपना काम निपटा रहा है। फलों के नाम पर कभी-कभार केला देकर ठेकेदार मानों गरीब मरीजों पर अहसान कर देता है। खाने में भी उसे दाल, चावल, रोटियों के अलावा एक पौष्टिक आहार देना होता है, लेकिन कभी वह दाल-चावल से ही मामला निपटा लेता है तो कभी-कभार एकाध पनियल सब्जी देकर मरीजों को उसमें से सब्जी के टुकड़े ढूंढने का काम सौंप देता है।

गरीब मरीजों को खाना देने के नाम पर करोड़ों रूपया सरकार खर्च कर रही है। अब ये रूपया कहां जा रहा है ? किसके पास जा रहा है ? ये तो शायद जेम्स बॉड और शर्लांक होम्स भी नहीं पता कर सकते। सब नियोजित तरीके से हो रहा है। टेण्डर बुलवाने से लेकर टेण्डर डालने और खोलने की प्रक्रिया तयशुदा होती ह,ै तभी तो मरीजों को क्या खाना दिया जा रहा है ? और कैसा खाना दिया जा रहा है ? इस बात की जाँच होती ही नहीं है।

फिर फुरसत ही कहाँ मिलती है डॉक्टरों, अफसरों और मंत्रियों को। सबके पास अपने-अपने काम है। डॉक्टर को सरकारी अस्पताल के बाद अपनी निजी प्रेक्टिस भी देखना पड़ता है। अफसरों को राजधानी में बने रहने के लिए नेताओं को खुश रखने के इंतजाम में लगे रहना पड़ता है। और नेता वो तो बस नेता है उनके पास काम होता है तो और नहीं होता है तो भी वो गरीब मरीजों का खाना चेक करने तो जाएँगे नहीं। अब ऐसे में गरीब मरीजों का भगवान और खाना देने वाला ठेकेदार ही मालिक होता

बंदरबॉट और लूटखसोट का गढ़ बन गया है छत्तीसगढ़। बिजली, खनिज, और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस प्रदेश को देश का सबसे विकसित राज्य होना चाहिए मगर पता नहीं किसकी बुरी नज़र इसको लग गई है जो ये बहारों के मौसम में मुरझा रहा है।

8 comments:

बालकिशन said...

सरजी भ्रष्ट राजनेता और अफसरशाह की नज़र लग गई है.
दो बातें याद आ रही है.
"अंजामे गुलिस्तान क्या होगा हर शाख पे उल्लू बैठा है"
"अंधेर नगरी चौपट राजा टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा."
और क्या कहें?

डॉ .अनुराग said...

क्या कहे कुछ कहने की स्थ्ति नही है सब जगह यही हाल है....

परमजीत सिहँ बाली said...

"जब सैया भए कौतवाल तो भैया डर काहे का।" जब पूरा सिस्टम ही ऐसा हो गया है तो कौन पूछने वाला है इन से।

कामोद Kaamod said...

भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक सभी जगह है .
एक हिस्सा वो भी क्हा रहा है. बाकी तमाशा देख रहे हैं.

राज भाटिय़ा said...

एक हिटलर चाहिये भारत मे भी:

Ashok Pandey said...

खरी-खरी बात लिखी है आपने। धन्‍यवाद। शायद पूरे देश में कमोबेश ऐसी ही स्थितियां हैं।

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक स्थितियाँ....सब जगह यही हाल है.

अजय साहू said...

सही लिखा है अनिल जी आपने हमारा धान का कटोरा प्रदेश आज भ्रष्‍टाचार का कटोरा नहीं बल्कि परात बन चुका है, मैं काम के सिलसिले में गुजरात और मेघालय जैसे राज्‍यों में रहा हूं और रह रहा हूं, आज भी इन राज्‍यों की तुलना में हमारा प्रदेश भ्रष्‍टाचार के मामले में बहुत आगे है,छत्‍तीसगढ के सरकारी संस्‍थान तो इसमें आकंठ डूबे हुए हैं,मैं गुजरात के सरकारी अस्‍पतालों में गया वहां ईमानदारी से इलाज होते हुए देखा, वहां की सरकारी बसों में यात्‍रा की , लोगों से मिला , अच्‍छा अनुभव रहा, यहां शिलांग मेघालय में मैने अपने दुपहिया वाहन के कागजात बनवाये यहां न आर टी ओ एजेंट का वजूद है न किसी प्रकार के रिश्‍वत की दरकार,इन्‍हीं कामों के लिए में हुए अपने अनुभवों को याद करता हूं तो मेरे रोंगटे खडे हो जाते हैं, कोर्ट कचहरी, और पुलिस विभाग में जाना तो किसी नरकिस्‍तान की यात्‍रा की तरह है छत्‍तीसगढ में,बिहार को भ्रष्‍ट राज्‍य कहा जाता है मुझे नहीं लगता कि छत्‍तीसगढ कुछ कम है, शिक्षा के नाम पर हो रहे गोरख धंधों को तो आपने करीब से महसूस किया होगा, स्‍कूल और कॉलेजों में नियमित अध्‍यापकों प्राध्‍यपकों की नियुक्ति हुए अरसा गुजर गया है,हालात तो सचमुच डराने वाले हैं ,आपको क्‍या कोई आशा की किरण नजर आती है ?