Wednesday, August 13, 2008

अगर नेता सवार होते तो गुम हेलिकॉप्टर ढूंढ लेते




इसे गुम हुए हेलिकॉप्टर पर सवार कर्मचारियों का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि उनके साथ कोई वीआईपी नहीं बैठा था। अगर कोई वीआईपी उनके साथ लापता होता तो पुलिस को उन्हें और हेलिकॉप्टर को ढूंढने में 10 दिन नहीं लगते।

10 दिन हो चुके हैं छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश की सीमा के जंगलों में एक हेलिकॉप्टर को गुम हुए। तब से आज तक उसकी खोज का काम जारी है, मगर अफसोस 10 दिनों के बाद भी उसका पता नहीं चल पाया। दरअसल उसमें कोई नेता सवार नहीं था, सिर्फ पायलेट और स्टॉफ था। लापता लोगों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है, और पता नहीं सरकार किसे खोज रही है ? और कैसे खोज रही है ? जो उसे आज तक कुछ नहीं पता चल सका है।

3 अगस्त को रैन एयरलाइंस का एक हेलिकॉप्टर ने आंध्रप्रदेश से रायपुर के लिए उड़ान भरी थी। हेलिकॉप्टर में 2 पायलेट और 2 तकनीकी कर्मचारी सवार थे। हेलिकॉप्टर आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर पहले पहाड़ियों और जंगलों में कहीं लापता हो गया। हेलिकॉप्टर राजधानी रायपुर से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामविचार नेताम के सरगुजा दौरे के लिए किराए पर लिया गया था। इससे पहले राजनाथ सिंह और रामविचार उस पर सवार होते, हेलिकॉप्टर लापता हो गया।

इन 10 दिनों में पुलिस ने हवाई सर्वे से लेकर जंगल में सर्च के नाम पर लगातार अभियान चलाया है। डीजीपी विश्वरंजन का कहना है कि 25 थानों की पुलिस टीम सर्च में लगी हुई है। इसके बावजूद आज तक उनके पास कोई ठोस सूचना नहीं है। दरअसल हेलिकॉप्टर जिस इलाके में गुम हुआ है, वो पहाड़ी इलाका बेहद घने जंगलों से ढका है। वहाँ पहुँच पाना वाकई कठिन है। फिर बरसात और नक्सलियों के छिपे होने की आशंका दोनों ही राहत और खोज कार्य को प्रभावित करती है।

फिर भी एक सवाल तो सामने आता ही है। क्या अगर उस हेलिकॉप्टर पर कोई वीआईपी सवार होता तो क्या खोज की रफ्तार यही होती ? इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार का हेलिकॉप्टर ''मैना'' भी नक्सली क्षेत्र लॉजी की पहाड़ियों में गुम हो गया था। पायलेट स्टॉफ छत्तीसगढ़ सरकार के कर्मचारी थे। तब भी बरसात का ही मौसम था और बालाघाट-लॉजी इलाका भी घने जंगलों वाला है। तब सरकारी हेलिकॉप्टर और सरकारी कर्मचारी की खोज का नतीजा 5 वें दिन निकल आया था। 5 वें दिन हेलिकॉप्टर के मलबे तक पुलिस पहुँच गई थी।

इस बार भी मौसम वैसा ही है और इलाका भी वैसा। नक्सली समस्या भी दोनों जगह है मगर खोजने की रफ्तार पिछली बार जितनी नहीं है। इसका एक कारण यह भी माना जा सकता है कि हेलिकॉप्टर सरकार का नहीं है निजी कंपनी का है, कर्मचारी भी सरकारी नहीं निजी कंपनी के हैं। इसके अलावा ये भी माना जा सकता है कि उस पर कोई वीआईपी सवार नहीं था। भगवान न करे ऐसी दुर्घटना का कोई वीआईपी, या कोई भी आदमी शिकार हो। मगर ऐसा लगता है कि रैन एयरलाइंस के कर्मचारियों की खोज में हो रही देरी शायद नहीं होती अगर उनके साथ कोई वीआईपी सवार होता। हो सकता है सरकार के बड़े-बड़े सूरमा खुद बस्तर में कैंप करके खोज अभियान का जायजा लेते। मगर ऐसा हो नहीं रहा है।

बेहद आसानी और बड़ी बेशर्मी से संवेदनशीलता सरकार से निजी कंपनी की ओर ट्रांसफर होती नज़र आ रही है। गुम हेलिकॉप्टर पर सवार कर्मचारियों के रिश्तेदार कुछ दिन जगदलपुर में जमे रहे और रोते-रोते शायद उनके ऑंसू खतम होते आ रहे हैं। रोते-रोते इंतज़ार करते उनकी ऑंखें थक सी गई है। उम्मीद की किरण कभी टिमटिमाती है, तो कभी ऐसा लगता है कि अब सिर्फ अंधेरा ही बचा है।

अब आप ही बताईए भला अगर उस हेलिकॉप्टर पर कोई बड़ा नेता सवार होता तो क्या पुलिस के अभियान की रफ्तार यही होती ? पुलिस का एक सूचना के बारे में ये भी कहना है कि हो सकता है कि वह नक्सलियों की चाल हो। ठीक है पुलिस को सब कुछ ठोक-बजाकर करना चाहिए। मगर उस बयान के चंद घंटों बाद बस्तर के ही वरिप्ठ भाजपा नेता सांसद बलीराम कश्यप के काफिले पर नारायणपुर इलाके में नक्सली हमला हो जाता है। टिफिन बम के विस्फोट से सड़क पर 5 फीट गहरा गङ्ढा हो गया। गाड़ियों को जिधर रास्ता मिला उधर चली गई। क्या पुलिस को इस हमले की आशंका नहीं हुई ?
खैर निजी एयरलाइंस के कर्मचारी उतने खुश किस्मत नहीं है कि उनकी तलाश वीआईपी के समान हो पाए। इसे उनका नहीं देश का दुर्भाग्य माना जाना चाहिए कि यहाँ एक काम करने के 100 तरीके होते हैं। एक काम करने के लिए कई स्तर होते हैं और उनकी प्राथमिकताएँ भी प्रभावित व्यक्तियों के अनुसार बदलती रहती है। बहरहाल 10 दिनों तक एक गुम हुए हेलिकॉप्टर का पता नहीं चलना इस बात का भी सबूत है कि बस्तर के जंगल बहुत घने हैं और जंगलों में वन्यजीवों या सरकार का नहीं नक्सलियों का राज है।

13 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

"एक काम करने के लिए कई स्तर होते हैं और उनकी प्राथमिकताएँ भी प्रभावित व्यक्तियों के
अनुसार बदलती रहती है।"


आपने हकीकत बयान करदी है ! और यह सौ
प्रतिशत सच है की बड़ा नेता इसमे होता तो
अब तक डुन्ढ लिया जाता ! बहुत धन्यवाद !
और गुमशुदा लोगो के और उनके परिजनों
से बहुत हमदर्दी है ! ईश्वर करे वो सही
सलामत आ जाए !

मृगेंद्र पांडेय said...

अनिल जी आप ने सही सवाल खड़ा किया है। अगर इस हेलिकाप्टर में कोई नेता या बड़ा अधिकारी होता तो प्रशासन घने जंगलों में कैंप डाल देता। लेकिन उन कर्मचारियों की बदकिस्मती है कि उनके साथ कोई बड़ा नहीं था। शायद प्रशासन संवेदनहीन हो गया है या फिर वह बड़े लोगों का होकर रह गया है।

Anwar Qureshi said...

शर्म की बात ये है के पुरे लाव लश्कर से लेस इस सरकार के होने के बाद भी गुम हुए पायलेट के परिजनों को नक्सलियों का सहारा लेना पड़ रहा है , रहा सवाल वहां मौजूद पुलिस के मनोबल को भला आप से जियादा कौन जन सकता है ...

राज भाटिय़ा said...

मे तो हेरान हू १० दिन होगये ओर एक हेलीकांप्टर कॊ नही ढूंढ पाये, क्या यह एक माचिस की डिब्बिया हे?? शायद टारच ले कर ढूढ रहे होगे, आप सच कहते हे अगर उस मे यह खुद होते तो .... भगवान से प्राथना हे सब कुशलता पुर्वक हो

Ila's world, in and out said...

मुहे अच्छी तरह से याद है,१९९५ में पंजाब के गवर्नर सुरेन्द्रनाथ का विमान कुल्लू मनाली की पहाडियॊं में टकरा कर चकना चूर हो गया था.इस हादसे में उनके सहित उनके परिवार के कई सदस्य खत्म हो गये थे.किन्तु शासन की तत्परता देखिये,विमान के टुकडे,मृतकों के शरीर सभी कुछ पहाडों की वादियों और खाइयों से बरामद कर लिये गये थे.ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां बचाव कार्य भी ओहदा देख की किये जाते हैं.

डॉ .अनुराग said...

सही कहा आपने यहाँ प्राथमिकताये लोगो के हिसाब से तय की जाती है...

Nitish Raj said...

here u present the fact and this is really very sad....state government should react fast on this issue because its already 10 days long gap....if they dont then they should penalise for this. god help 4 of them...

Manish Kumar said...

aapki bhaavnaon se shmat hoon

राजीव रंजन प्रसाद said...

सही कह रहे हैं आप अनिल जी..

NIRBHAY said...

policewale apni tond sambhalenge ki helicopter ka pata lagaenge. secondly..

i) how many poicemen are postedin bastar area?
ii) over how many square kilometer of bastar is under subject for the search?
iii)do the helicoper is crashed or gunned down by naxalites or machinery failure?
iv) the delay to find out the truth directly implicates that matter is something different.
v) bastar is hilly area and in rainy season the rain water immediately dispersed/flow down, and till date the rains in the bastar is very low in this season then how the matter of bad climate is taken in account?
INFACT NO ONE IS DARING TO TAKE INITIATIVE DUE TO NAXALITE PROBLEM.

IF YOU HAVE TO FIND OUT THE DEBRIS THEN YOUR COMBING ARIAL SURVEY SHOULD HAVE TO BE ON LOW ALTITUDE, AND THIS IS VERY RISKY GAME DUE TO NAXAL SHOOT OUT.

IN FOREST POLICE DONT HAVE ANY PENETRATIONS IT IS EVIDENT,POLICE? EVEN MILITARY PERSONNEL OF HIGH LEVEL SKILLS WERE KILLED DUE TO THEIR SLIGHT MISTAKES BY NAXALITES .

NAXALY SAMASYA SOCIETY & MANVATA KE LIYE BAHOOT BADA ABHISHAP BANTE JA RAHI HAI.

Udan Tashtari said...

हद है भाई यह तो. हेलिकॉप्टर जैसी बड़ी चीज नहीं खोज पा रहे हैं.

seema gupta said...

"Really it is matter of regret that such a big thing could not be traced out" title of the subject is very accurate.

Regards

NIRBHAY said...

"AGAR NETA SAWAR HOTE TO GUM HELICOPTER DHOONDH LETE"

100% accurate naxalites logon ka democracy par prahar safal ho jata aur woh utne area ko khalikar bhag jate, unko populirity miti so alag, log unse aur darte , woh apne rashtara virodhi abhiyan me safal hote woh bhi uddeshya poora karten. Fir bhi Malba nahi milta to.....
government kuchh na kuchh gupt samjhouta karti,do char hard core naxalites ko media se bacha kar free karti aur malabe ke badle souda hota.