Saturday, August 23, 2008

सेना से मदद माँगने का मतलब हेलिकॉप्टर ढूँढना पुलिस के बस का नहीं


छत्तीसगढ़ पुलिस अब बस्तर के जंगलों में गुम हेलिकॉप्टर की तलाश के लिए सेना से मदद का इंतज़ार कर रही है। 20 दिन हो गए हैं हेलिकॉप्टर को गुम हुए। पुलिस लगता है तलाशते-तलाशते हताश हो चुकी है अब उसके पास सेना की मदद के अलावा और कोई सहारा नहीं है।

नक्सल प्रभावित दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा ज़िले के एसपी ने ये बात मानी है कि हेलिकॉप्टर की तलाश के लिए सेना से मदद माँगी गई है। उन्होंने इस मामले को पुलिस के बस का नहीं होने की बात को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि पुलिस अपने साधनों से जितना संभव हो पा रहा है सर्च कर रही है। अब उनकी बात पर भरोसा करें भी तो भी 20 दिनों में अभी तक कोई ठोस ख़बर जंगलों से निकलकर नहीं आई। गुम हेलिकॉप्टर के कर्मचारियों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है और वे मजबूरी में नक्सलियों तक से अपने परिजनों की रक्षा के लिए गुहार लगा चुके हैं।

ऐसी हालत में 20 दिनों तक हेलिकॉप्टर के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाना इस बात का भी संकेत है कि स्थानीय लोगों का पुलिस से संपर्क नहीं के बराबर है या फिर उन्हें पुलिस पर भरोसा ही नहीं है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो पुलिस का जंगल में सूचनातंत्र है ही नहीं। वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि हेलिकॉप्टर को गिरते किसी ने न देखा हो। या फिर ये भी कहा जा सकता है कि जंगल में नक्सलियों का आतंक इतना ज्यादा पसरा है कि उनके खौफ से कोई मुँह ही खोलना चाहता।

इन सब बातों से पुलिस भले ही इनकार करें, लेकिन सच तो ये है कि पुलिस जंगलों में अपनी पोस्ट के आसपास और देखेभाले इलाकों के अलावा अनजान इलाकों में जाने से थोड़ा घबराती या डरती न भी कहा जाए तो भी कह सकते हैं कि हिचकती ज़रूर है। अब नक्सलवाद पर दुनिया भर के लोग तरह-तरह के विचार व्यक्त कर सकते हैं और इस पर गरमा-गरम बहस भी हो सकती है, लेकिन यहाँ सवाल नक्सलवाद का नहीं है सवाल है चार लोगों का जो हेलिकॉप्टर के साथ जंगल में गुम हुए हैं। उनके परिवार वालों के ऑंसू सूख चुके हैं। आशा और निराशा के भंवर में गोते खाते-खाते थक चुके हैं। अब वे मुख्यमंत्री समेत सारे पुलिस अफसरों से मिलकर गुहार लगा चुके हैं। वे नक्सलियों तक से गुहार लगा रहे हैं। आखिर कुछ तो बात होगी बस्तर के जंगलों में जो एक हेलिकॉप्टर को खोज नहीं पा रहे हैं।
इससे पहले भी छत्तीसगढ़ सरकार का हेलिकॉप्टर 'मैना' नक्सल प्रभावित बालाघाट और राजनांदगांव ज़िले की सीमा पर पहाड़ियों और जंगलों में खो गया था। तब पुलिस ने उसे 5 दिनों में ही ढूंढ निकाला था। आखिर अब क्या हुआ ? कारण ये भी हो सकता है कि वहाँ के जंगलों से बस्तर के जंगल घने हैं ? ये भी हो सकता है कि उस इलाके में बस्तियां बस्तर की तुलना में ज्यादा है। या फिर ये भी तो हो सकता है कि वहाँ नक्सलियों का आतंक बस्तर के नक्सलियों से कम हो और नहीं तो फिर ये ज़रूर हो सकता है कि वहाँ की पुलिस से बस्तर की पुलिस जंगलों में जाने से ज्यादा डरती हो। ऐसा नहीं होता तो पुलिस को सेना से मदद मांगने की ज़रूरत ही नहीं होती।

13 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

यह तो बड़ी अजब बात है।
बस्तर है या बरमूडा ट्राइएंगल!?

राज भाटिय़ा said...

हमारी पुलिस निकम्मी हे,ओर डरपोक भी,तभी तो इस इलाके मे जाने से डरती हे, ओर शरीफ़ लोगो को पकड कर तंग करती होगी, इसी लिये कोई भरोसा भी नही करता इस पुलिस पर ओर साथ भी नही देना चाहता,
धन्यवाद

NIRBHAY said...

helicopter search karna state govt ke boote ki baat nahi hai is ka matlab saaf hai.

i) govt ne tribal area me development ko ignore kiya.
ii) tribal area me Roads ka penetration nahi hai.
iii) jab police jo ki law and order ko enforce karti hai unki pahunch nahi matlab SHASAN ki pahunch nahi hai.
iv) govt. in ko BHARTIYA SANVIDHAN dwara sansthit rights dene me fail ho chuki hai.
v) yeh matra Media me zhotha PRACHAR karti hai, Angrezon ke zamane me banaye gaye roads ke aas paas hi govt. ki chalti hai. koi development karne ki ichha shakti na congress, right dikha saki hai.
vi) bastar ke haalat ke liye bahoot hadd tak congress govt. rahi hai, jinhone Bastar ke Maha Raja Pravir Singh Bhanjdeo ki hatyaa karaie. Isi ke baad se Bastar ke halat badtar hote chale hain.
vii) naxalism, communism ke Baqwas thinking jo ki totally human tendency ke against chalte hain uska Jahar Bastar ko nigal raha hai.

police ki bas ki baat nahi hai and sena se madad mangana matlab SHAHID hone ka right hamara nahi sena ka hai.
police deptt. ek prakar se ruling Party ki Security Guard ban gayi hai. politicians hawi hai police ke upar.

aisa lagta hai ki agar adiwasi janata jagrook ho gayi to inko election me dikkat aayegi.

Bada hi sharmnak vakya hai yeh democracy ka, kisi bhi party ki theme SATTA me aane ke baad ek si ho jati hai.
jaise LEFT central me rah kar apne poore SIDHHANTH bhoola kar right ho gayi aur Punjiwad ko badhane me congress ko moun swikriti di.
usi prakar Chhattisgarh me Right satta me aa kar Left ho gayi, himmat nahi hai NAXALISM ke jahar ko utarne ki.dum nahi hai naxali se panga lene ka.

राज भाटिय़ा said...

आज मे बाहर गया था , अभी रात को वापिस आये, आप सब को जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई।

Smart Indian said...

बात तो अजीब ही है. क्या झारखंड पुलिस के पास अपने एकाध हेलीकॉप्टर हैं? अगर सारा इलाका जंगल और विद्रोहियों से भरा है तो एक छोटी सी हेलीकॉप्टर टुकडी बनाने का विचार बुरा नहीं है जो कि नदी और सड़क के सहारे जानी वाले सहकर्मियों को कवर कर सके. शुरूआत में वायु सेना के अनुभव का प्रयोग किया जा सकता है.

पुलिस के निकम्मेपन और डरपोक होने की बात सच है मगर इसका एक और पहलू यह भी है कि पुलिस की उतनी तय्यारी और प्रशिक्षण भी नहीं है. बहुत लोग न सही लेकिन कुछेक जुझारू दस्ते तो होने ही चाहिए जो ऐसे मौके और ऐसे स्थलों पर जान पर खेल सकें.

इस हाल में कुशल नेतृत्व और प्लानिंग का अभाव एकदम साफ़ दिखता है. ईश्वर करे कि सभी कर्मचारी सुरक्षित हों. कन्हैया लाल की जय! जन्माष्टमी की बधाई!

Unknown said...

पुलिस का ज्यादा जोर निहत्थे और कमजोर नागरिकों पर चलता है. ताकतवरों की तो सेवा में रहते हैं यह पुलिस वाले. अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के तैमूर नगर में, बांग्लादेशियों ने जम कर दिल्ली पुलिस की पिटाई की.

ताऊ रामपुरिया said...

परिवार एवं मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !

और एक प्रार्थना आज नंदलाल से है की नक्सली
समस्या को दूर कराने हेतु कुछ सदबुद्धि नेताओं
और नक्सली दोनों को दे और हमारा समाज सुख
शान्ति पूर्वक रह सके !

समीर यादव said...

अनिल जी नमस्कार....!

बहुत आभार आपने मेरे ब्लॉग पोस्ट्स का अवलोकन किया और
अपने विचार भी दिये...आदरणीय बुधराम जी की ओर से आपको
धन्यवाद..!!!
आपका सहयोग सदैव अनुकरणीय होगा.

हाँ एक बात अवश्य कहना चाहूँगा .... पुलिस की आलोचना बहुत आसान है.
उतना ही जितना की मल त्याग के बाद मलद्वार को धोना... !!!!

पुलिस को संसाधन की उपलब्धता सुनिश्चित कराना किसकी जिम्मेदारी है ???
क्या पूरे तंत्र को पुलिस संचालित कर रही है..???
क्या पुलिस नक्सल समस्या के विरुद्ध किसी एक नीति को
अनुसरण कर पा रही है....???
और फिर नीति निर्धारण का काम किसका है....???
उसके निर्माण में पुलिस की कितनी भूमिका होती है. ???
उसके क्रियान्वयन के कितने अधिकार पुलिस को
दिये गए हैं.....????

क्या नक्सल समस्या पुलिस की देन है.???

helecopter गुम हुआ .....क्या हुआ नहीं हुआ...यह तो पता चल जायेगा.
जब मैना गुम हुआ था मैंने जबलपुर SDOP के रूप में तीन दिन और रात उसकी
तलाश अपने क्षेत्र में मीडिया बंधुओं और स्थानीय लोगों के साथ की थी,( सन्दर्भ
हेतु आप मेरे ब्लॉग के फूटर के चित्रों को देखें.)

उपलब्ध संसाधनों से व्यवहारिक रूप में helecopter को खोजा जाना
मुश्किल नहीं दुष्कर होता है.
मैना को भी हमने सेना की मदद से ढूंढा था.....भाई.

आप आज की परिस्थितियों से वाकिफ हैं .... उसके लिए भी अलख जगाएं .

यह कोई पुलिस का बचाव नहीं वास्तविकता से परिचय भर है...!

धन्यवाद्

समीर...

महेन्द्र मिश्र said...

अजब बात. आपको जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई.

seema gupta said...

'its really very strange situation, what to say, poice's status is always doubtful in such critical situations, vaise kehten hai bee hain na .ke poice tub aate hai jub sub kuch ho chuka hotta hai............"

Regards

Anwar Qureshi said...

ये पोस्ट पढ़ कर आप की पुलिस परिक्रमा याद आ गयी ...अब इनके निकम्मे पन की क्या कहें ..

PREETI BARTHWAL said...

पुलिस ने अपने निकम्मे होने अहसास कई बार कराया है एक गिनती और सही

Bharatsingh said...

पुलिस के निकम्मेपन और डरपोक होने की बात सच है मगर इसका एक और पहलू यह भी है कि पुलिस की उतनी तय्यारी और प्रशिक्षण भी नहीं है. बहुत लोग न सही लेकिन कुछेक जुझारू दस्ते तो होने ही चाहिए जो ऐसे मौके और ऐसे स्थलों पर जान पर खेल सकें.