क्षेत्रफल और जनसंख्या के मामले में काफी पीछे छत्तीसगढ़ ने शराब बिक्री के मामले में सारे देश में तीसरा स्थान हासिल कर लिया है। अब कुछ लोगों को ये खराब भी लग सकता है और कुछ लोगों को अच्छा भी। हम तो बस वही बता रहें हैं जो छत्तीसगढ़ ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष ने बताया। उनका कहना है कि हर साल 25 से 30 प्रतिशत शराबी बढ़ रहे हैं, इस राज्य में।
मात्र 2 करोड़ की आबादी वाले छोटे-से छत्तीसगढ़ ने सिर्फ आठ साल की उम्र में ये कारनामा कर दिखाया है। अब इसे शराब बेचने वाले अपनी उपलब्धि मान सकते हैं और शराब से नफरत करने वाले इसका विरोध कर सकते हैं। जिसके जो जी में आए वो कर सकता है। वैसे भी इस देश में कुछ भी करने की आज़ादी है। जभी तो ब्रेवरेज कार्पोरेशन छत्तीसगढ़ मे शराब भी बेचता है और नशा मुक्ति आंदोलन के तहत होर्डिंग्स और पोस्टर भी लगवाता है। है ना! कमाल का संतुलन। पीने वाले भी खुश और नहीं पीने वाले भी खुश। मानना पड़ेगा कार्पोरेशन के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने को।
कारण चाहे जो भी हो लेकिन ये तो तय है कि बड़े-बड़े राज्यों के बीच छत्तीसगढ़ ने इस मामले में धाक तो जमा ही दी है। खासकर इसलिए कि उसकी बहुत बड़ी आबादी तो आदिवासी है, जो खुद की बनाई शराब पीकर मस्त रहते हैं। कायदे से देखा जाए तो शहरी क्षेत्रों में मुश्किल से 1 करोड़ लोग रहते हैं और इससे ज्यादा लोग तो शायद हमारे देश के एक-एक महानगर में रहते हैं। इसके बावजूद बड़े-बड़े शहरों वाले बड़े-बड़े राज्यों को शराब बिक्री के मामले में पछाड़ देना कोई मामूली बात नहीं है। वो तो गनिमत है हमारे प्रदेश के गाँव और जंगलों में रहने वाले ग्रामवासी और वनवासी भाईयों का जो कार्पोरेशन की बेची शराब नहीं पीते, वरना छत्तीसगढ़ देश तो क्या सारी दुनिया से कॉम्पिटिशन कर सकता है। भई! ऐसा मैं नहीं कहता! कॉर्पोरेशन वाले कहते हैं।
अब उपासने जी की सुनिए! वो बताते हैं कि उत्पादक इकाईयों द्वारा बेची गई मदिरा के विरूध्द मिलने वाली राशि हर साल बढ़ती ही गई है। 2004-05 में 97.27 करोड़, 05-06 में 128.45 करोड़, 06-07 में 185.55 करोड़, 07-08 में 245.83 करोड़ और इस साल मात्र 5 महीनों में 108.86 करोड़ राशि मिली है। प्रतिशत वार देखने में ये आकड़े इस प्रकार हैं, +25.9, +44 प्रतिशत हैं। जाने दीजिए आकड़ों की बाज़ीगरी नेता करते रहे जिनका ये काम है।
हम तो आपको उपासने जी के नशाबंदी कार्यक्रम के तहत उठाए गए कदमाें की जानकारी दे रहे हैं। हम उनके प्रवक्ता नहीं हैं मगर उन्होंने जो बताया वो आपको बताना ज़रूरी है। नशा विरोधी अभियान के तहत लोगों में जागरूकता लाने के लिए छत्तीसगढ़ संवाद के माध्यम से पर्चे छपवाकर ज़िला पंचायतों में बंटवाए गए। दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के सहयोग से नशे से होने वाले दुष्प्रभाव से आम जनता को अवगत कराने के लिए टेलीफिल्म ''जस करनी तस करम गति'' का निर्माण कराया है। फिल्म का प्रसारण अभी तक नहीं हुआ है लेकिन भविप्य में दूरदर्शन पर होगा। राज्य के ज़िला मुख्यालयों में नशाबंदी के होर्डिंग्स लगाए गए हैं। 2006-07 की तुलना में 07-08 में विदेशी मदिरा की खपत में 23.11 प्रतिशत की वृध्दि.........अरे! लगता है दूसरा पन्ना हाथ में आ गया। खैर वृध्दि 07-08 में भी जारी रही, उस साल 26.29 प्रतिषत की वृध्दि हुई। हाँ 2003 से लेकर 08 तक 4 करोड़ 65 लाख रूपए मुख्यमंत्री सहायता कोप में दिए गए। इसको मान लेते हैं कि सच में एक तो अच्छा काम किया ही है कार्पोरेशन ने। अब कार्पोरेशन के नशामुक्ति या नशाबंदी अभियान के बावजूद प्रदेश में हर साल 25 से 30 प्रतिशत शराबी बढ़ रहें है तो इसमें उनका क्या दोष है।
अभी तक ऐसा लग रहा था कि नक्सली वारदातों के नाम पर ही छत्तीसगढ़ देश में सुर्खियाँ बटोर रहा है लेकिन ब्रेवरेज कार्पोरेशन की ईमानदारी और शराबी भाईयों की मेहनत आखिर रंग लाई है। पता नहीं कितने सालों से किसी प्रदेश के शराबी अपना कलेजा जला-जलाकर उसे टॉप-3 में बनाए रखे होंगे। लेकिन मानना पड़ेगा मजबूत इरादों, नहीं-नहीं मजबूत लीवर और किडनी वाले शराबी भाईयों के छत्तीसगढ़ प्रेम को, जो उन्होंने खुद को गलाकर उसका नाम देश में रौशन करने का बीड़ा उठा लिया है। और नशाबंदी आंदोलन के क्षेत्र में जी-जान से जुटे हमारे ब्रेवरेज कार्पोरेशन के माननीय अध्यक्ष सच्चिदानंद जी का कहना माने तो लगता है आने वाले सालों में छत्तीसगढ़ इस मामले में तो देश का सरताज बनकर रहेगा।शराबी भाईयों से तो मुझे आड़ी-तिरछी प्रतिक्रिया का डर नहीं है लेकिन जो भाई पीते नहीं हैं और पीने-पिलाने वालों से चिढ़ते हैं, उनसे ज़रूर थोड़ा खतरा है। इसलिए मेरा निवेदन है कि मेरे शब्दों पर न जाकर मेरी भावनाओं को समझने की कोशिश करिएगा। सभी तरह के नशीली-कटीली-सजीली-चुटीली प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
11 comments:
"सभी तरह के नशीली-कटीली-सजीली-चुटीली प्रतिक्रियाओं का स्वागत है|"
सबसे पहले तो यही लाइन अच्छी लगी रहा सवाल शराबीयो का तो छ्त्तीसगढ मे शराब बंदी आवश्यक है ये जागरुकता अभियान तो मात्र बच्चे के हाथ मे झुंझुना वाली बात है ॥पर विधानसभा मे बैठने वाले नालायक तो ये होने नही देंगे क्योकि इसी के दम पर तो चुनाव जीते जा रहे है ।राजस्व का ठिकरा फ़ोड कर ये राज्य के नैतिक चरित्र के साथ समझौता कर लेंगे और क्या ??
एक तरह का विरोधाभास नही दीखता ? एक तरफ़ मदिरा
बेच कर राजस्व इक्क्ठ्ठा करना फ़िर नशामुक्ति का ढोंग
रचाना ! शर्मनाक है !
क्या लोगो के पास इतना पेसा हे जो ,इतनी शराब पीते हे, या फ़िर मुफ़्त मे मिलती हे,
ओर सरकार क्या कर रही हे एक ढोंग. क्या क्या नही होता हमारे देश मे, राम राम
जिस प्रदेश में प्रशासन, पुलिस, आबकारी विभाग और जनप्रतिनिधी संयुक्तरूप से मिलकर शराब बिक्री करवा रहे हों, शहर व गाँव दोनो जगहों पर 24 घंटे शराब उपलब्ध हो , रिकार्ड तो बनना तय है। ये सभी बधाई के पात्र हैं, सम्मानित करने लायक हैं।
पुसदकर जी बेहतरीन विषय उठाने के धन्यवाद।
यह छ.ग. ही है जहां शराब की दुकान शो रुम की तरह सजे होते है। पूरे देश के लठ्ठबाज यंहा आकर शराब माफ़ियाओ के घर पानाह लेकर अपराध को अजांम देते हुए दहशत कायम रखने के लिये गोली बारी करते हैं। इदिरा आवास पर कब्जा कर देशी दारू भी बेची जाती है।बिलासपुर जो आबकारी मत्रीं का शहर है वहां बेरोजगारो को आवंटित होने वाली गुमटी भी शराब माफ़ियाओ के कब्जे मे है।अगर इतनी मेहनत के बाद भी राज्य को कांस्य पदक मिलता है यह शर्म की बात है।
पुसदकर जी लगे हाथ सच्चिदानन्द उपासने जी से यह जान लेते की क्या उनकी पार्टी का भी कोई ब्यक्ति शराब ठेकेदार बनने की तैयारी कर रहा है ।कांग्रेस मे तो यह उपलब्धि हासिल हो चुकी है। और
यह छ.ग. ही है जहां शराब की दुकान शो रुम की तरह सजे होते है। पूरे देश के लठ्ठबाज यंहा आकर शराब माफ़ियाओ के घर पानाह लेकर अपराध को अजांम देते हुए दहशत कायम रखने के लिये गोली बारी करते हैं। इदिरा आवास पर कब्जा कर देशी दारू भी बेची जाती है।बिलासपुर जो आबकारी मत्रीं का शहर है वहां बेरोजगारो को आवंटित होने वाली गुमटी भी शराब माफ़ियाओ के कब्जे मे है।अगर इतनी मेहनत के बाद भी राज्य को कांस्य पदक मिलता है यह शर्म की बात है।
और उदय जी की टिप्पणी भी गौर करने लायक है की जब प्रदेश की पुलिस ,जनप्रतिनिध,सभी कर्णधार इस अभियान मे वैध अवैध तरीके से बिक्री बढाने मे लगे है तो उन्हे समानित भी करना चाहिए।
शेष फ़िर कभी......
क्या कहें!!!!
सही मुद्दा उठाया है आपने. न सिर्फ़ शराबखोरी अपने आप में एक समस्या है, यह सैकडों अन्य समस्याओं की जननी है.
वैसे भी इस देश में कुछ भी करने की आज़ादी है। यह बात बिल्कुल सही है - कभी यही आजाद लोग आज़ादी से इतने अघा जाते हैं की ट्रेन टाइम से चलें सिर्फ़ इसके लिए भी आज़ादी गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैं (आपातकाल याद है?)
" very critical issue discussed though this post, it is spreading like a desease now a days,needs proper attention of govt and indivduals"
Regard
ताऊ की बात से सहमत हूं ..
लेकिन दीपक जी शराबबंदी इसका हल नहीं है.
हरियाणा शराबबंदी का दंड भोग चुका है.
मानसिक चैतन्यता से ही इस पर काबू पाया जा सकता है.
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई
Post a Comment