छत्तीसगढ़ के बड़े सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आया था जांजगीर जिले के गांव कुर्रा का एक युवक। इलाज के दौरान पता चला कि वो एचआईवी पॉजिटिव है और उसके बाद उसके दुर्दिन शुरू हो गये। इलाज तो हुआ नहीं अब ये हालत है कि वो अस्पताल के बगीचे की साफ-सफाई कर वहीं गुजर बसर कर रहा है।
श्याम परिवर्तित नाम को पता नहीं था कि वो एचआईवी पॉजिटिव है। उसने जांजगीर जिले में इलाज करवाया और वहां फायदा नहीं होने पर उसे रायपुर रिफर कर दिया गया। यहां भी 700 बिस्तर वाले डॉ आम्बेडकर अस्पताल में उसका इलाज शुरू हुआ और कई दिनों बाद जांच में पता चला कि वो एचआईवी पॉजिटिव है। उसके बाद अस्पताल प्रबंधन का नजरिया एकदम-से बदल गया।
श्याम को भी पता नहीं चला कि क्या हुआ। तब तक उसकी हालत बिगड़ने लगी थी। उसका शरीर फटने लगा था और खून भी रिसने लगा था। श्याम असहनीय दर्द से परेशान था। उसमें डॉक्टरों से मिन्नतें की मगर उसे अस्पताल से चलता कर दिया गया। परेशान श्याम वापस घर भी जा नहीं सकता था। सो उसने वहीं भीख मांगना शुरू कर दिया। इस बीच डाक्टरों ने उसे घर वापस जाने की सलाह भी दी मगर श्याम ने रायपुर के सरकारी अस्पताल को ही अपना अंतिम बसेरा बना लिया।
इसी बीच उसने अस्पताल के बगीचे को अपना घर बना लिया और उसकी साफ-सफाई कर उसे व्यवस्थित करने लगा। वैसे भी अस्पताल में साफ-सफाई के नाम पर औपचारिकता ही होती थी, सो किसी ने श्याम के काम पर आपत्ति भी नहीं की।
इलाज न होने से परेशान श्याम ने मुख्यमंत्री से लेकर राजस्व मंत्री और अपने क्षेत्र के विधायक तक से गुहार लगाई मगर आश्वासन के सिवाय उसे कुछ हासिल नहीं हुआ। हाँ एक बार जरूर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उसे 5000 रूपये की आर्थिक सहायता दी थी। अब हालत ये है कि उसका इलाज आजतक शुरू नहीं हो पाया है। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि यहां एड्स के निदान के तमाम उपाय किये जाते है और यहां कोई भी आकर इलाज करा सकता है। एक ओर डाक्टरों का ये दावा है तो दूसरी ओर उसी अस्पताल के बगीचे में घिसट-घिसटकर जिंदगी को ढो रहा श्याम है।
श्याम अब जिंदगी से तंग आ चुका है और उसका कहना है कि या तो उसका इलाज शुरू हो जाये या वो आत्महत्या कर ले। इसके अलावा उसके पास कोई और चारा भी नहीं है। ये हाल है राज्य की राजधानी के अस्पताल का। बाकी जिलों और तहसील मुख्यालयों के अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक होगा।
श्याम परिवर्तित नाम को पता नहीं था कि वो एचआईवी पॉजिटिव है। उसने जांजगीर जिले में इलाज करवाया और वहां फायदा नहीं होने पर उसे रायपुर रिफर कर दिया गया। यहां भी 700 बिस्तर वाले डॉ आम्बेडकर अस्पताल में उसका इलाज शुरू हुआ और कई दिनों बाद जांच में पता चला कि वो एचआईवी पॉजिटिव है। उसके बाद अस्पताल प्रबंधन का नजरिया एकदम-से बदल गया।
श्याम को भी पता नहीं चला कि क्या हुआ। तब तक उसकी हालत बिगड़ने लगी थी। उसका शरीर फटने लगा था और खून भी रिसने लगा था। श्याम असहनीय दर्द से परेशान था। उसमें डॉक्टरों से मिन्नतें की मगर उसे अस्पताल से चलता कर दिया गया। परेशान श्याम वापस घर भी जा नहीं सकता था। सो उसने वहीं भीख मांगना शुरू कर दिया। इस बीच डाक्टरों ने उसे घर वापस जाने की सलाह भी दी मगर श्याम ने रायपुर के सरकारी अस्पताल को ही अपना अंतिम बसेरा बना लिया।
इसी बीच उसने अस्पताल के बगीचे को अपना घर बना लिया और उसकी साफ-सफाई कर उसे व्यवस्थित करने लगा। वैसे भी अस्पताल में साफ-सफाई के नाम पर औपचारिकता ही होती थी, सो किसी ने श्याम के काम पर आपत्ति भी नहीं की।
इलाज न होने से परेशान श्याम ने मुख्यमंत्री से लेकर राजस्व मंत्री और अपने क्षेत्र के विधायक तक से गुहार लगाई मगर आश्वासन के सिवाय उसे कुछ हासिल नहीं हुआ। हाँ एक बार जरूर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उसे 5000 रूपये की आर्थिक सहायता दी थी। अब हालत ये है कि उसका इलाज आजतक शुरू नहीं हो पाया है। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि यहां एड्स के निदान के तमाम उपाय किये जाते है और यहां कोई भी आकर इलाज करा सकता है। एक ओर डाक्टरों का ये दावा है तो दूसरी ओर उसी अस्पताल के बगीचे में घिसट-घिसटकर जिंदगी को ढो रहा श्याम है।
श्याम अब जिंदगी से तंग आ चुका है और उसका कहना है कि या तो उसका इलाज शुरू हो जाये या वो आत्महत्या कर ले। इसके अलावा उसके पास कोई और चारा भी नहीं है। ये हाल है राज्य की राजधानी के अस्पताल का। बाकी जिलों और तहसील मुख्यालयों के अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक होगा।
16 comments:
दुखद हाल है !
पोल खोलते हे ऎसे केस हमारे इन ड्रा० की ओर प्रशासन की, एक बात नुझे समझ मे नही आती कि ड्रा० इतना पढ लिख कर बनता हे फ़िर भी वह इन एड्स के मरीजो से अनपढॊ की तरह से डरता हे, ऎसी बिमारी किसी को भी हो सकती हे.... वेसे हमारे देश मे अच्छे भले का ईलाज यह ड्रा० नही करते तो इस बेचारे को कोन पुछेगा ???
धन्यवाद
आप के ब्लॉग को नए कलेवर में दाख कर अच्छा लगा बहुत दिनों ने नेट पर नहीं आ सका ...और आप को नियमित पढ़ भी नहीं सका ...इसका अफ़सोस है ...अब नियमित होने की कोशिश करूँगा ..
क्या आप चाहते हो की मैं अपने ब्लॉग को हटा दूँ ?
एड्स के बारे में बहुत नारे हैं पर उनके नीचे बहुत उदासीनता भी है इस देश में।
बहुत अफसोसजनक और दुखद!
विकट मामला है। ये अनवार साहब क्या पूछते हैं जी?
बहुत ख़राब हाल हैं ! दुखद !
Dayneey halat hai. lagta hai vaise hi jindgi poori ho jayegi.Prashasan se madad nikal lena utna hi kathin hai jitna kisi ser ke munha men haath dal kar haddi ka tukda nikal lena.
प्रिय अनिल,
लेख पढ कर बहुत अफसोस हुआ. इस तरह जनचेतना को जगाते रहें!!
आपने लिखा है "राजनैतिक प्रभाव और आर्थिक दबाव में कलम को दम तोड़ते देख पत्रकारिता छोड़ ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा है।"
साधुवाद. आप जैसे यदि सौ चिट्ठाकार हिन्दीचिट्ठाजगत में आ जाये तो क्रांति आने में देर नहीं लगेगी.
लिखते रहें!
मैं आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया हूँ, एवं एक क्षण में ही चिट्ठे ने मेरा मन मोह लिया. बुकमार्क कर लिया है जिससे कि आपके लेख आईंदा मिस न हो जाये!!!!
सस्नेह
-- शास्त्री
-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
" very sad epesode, kyun koee smejne ko rajee nahee, very painful to read"
Regards
दुखद है भाई
कितना दुखद और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार!!
AB JAAKE SUKUN MILA HAI ...
kya karen ek deemak ne poore desh ko barbaad kar diya
ये सिस्टम का दोष है।
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