छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह आयुर्वेदिक डॉक्टर है। रमन सिंह ने जिस कॉलेज में पढ़ाई की उसके स्वर्ण जयंती समारोह में उन्होंने प्रदेश में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की थी। विश्वविद्यालय का तो अभी तक अता-पता नहीं है उल्टे कॉलेज की मान्यता भी खतरें में पड़ी हुई है।
राजधानी रायपुर के आयुर्वेदिक कॉलेज में प्रवेश पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रोक लगा दी है। मामला यहीं तक नहीं रूका, अब कॉलेज को मिल रहे अनुदान को रोकने की तैयारी हो गई है। इस सिलसिले में एक चेतावनी पत्र कॉलेज प्रबंधन को लिखा जा चुका है।
मामला निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप इकलौते आयुर्वेदिक कॉलेज और अस्पताल में सुविधाओं का है। यहाँ सुविधाएँ नहीं होने पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश पर रोक लगा दी है। प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया गया है जब बी.ए.एम.एस. प्रवेश परीक्षा के नतीजे घोषित किए गए हैं। इस कॉलेज में वर्तमान में मात्र 120 बिस्तर है जबकि यहाँ डेढ़ सौ होने चाहिए और मॉडल कॉलेज के लिए 2 सौ बिस्तर ज़रूरी है।
इसी कॉलेज को मॉडल कॉलेज बनाने के लिए 1 करोड़ 63 लाख रूपए मंजूर किए जा चुके हैं लेकिन राज्य सरकार की बेरूखी से मामला खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है। इसी कॉलेज के समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश में आयुर्वेदिक चिकित्सा के विकास के लिए आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की थी। अब चुनाव आ गया है विश्वविद्यालय खोलने के मामले में पहल तक नहीं हुई है। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय तो अब दूर का सपना हो गया है। और तो और मॉडल कॉलेज भी बनना खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है और प्रदेश के एकमात्र आयुर्वेदिक कॉलेज की मान्यता भी खतरे में पड़ी हुई है। जिस प्रदेश का मुखिया आयुर्वेदिक डॉक्टर हो, वहाँ आयुर्वेद के पनपने की संभावना बढ़ती नज़र आई थी और अब जो स्थिति है वो सबके सामने है।
7 comments:
wade hain wado ka kya.
ये राजनेता केवल बातें करते हैं काम नहीं।
वादे, और वादे ... और वादे!
अनिल जी राज नेताओं की माया समझ से परे है !
शायद कथनी और करणी वाली कहावत किसी
समझदार ने इनसे प्रभावित होकर ही बनाई
होगी !
इसमें प्योर अकुशलता है या कोई राजनैतिक धोबीपाट; क्लियर नीं हो रहा।
कॉलेज प्रबन्धन में कोई कांग्रेसी तो नहीं है न?!
सब कुछ आवंटन होने के बाद भी कुछ नहीं कर पा रहा प्रशासन, अनिल जी पता लगवाईए कि फिर मिले हुए पैसे कहां गए। दाल में काला जरूर है। कुछ तो।
अगर नेता वादा करने के बाद पूरा भी कर दे, तो क्या उसे नेता कहा जाएगा?
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