Tuesday, October 7, 2008

बताओ मोहन चंद शर्मा की तरह शहीद होकर बेईज्‍जत होना अच्‍छा है या सेटिंग कर पोस्टिंग करवाना-1

बहुत दिनों बाद कॉलेज में जूनियर रहे एक इंस्‍पेक्‍टर को शहर में देखा तो उसे रोककर पूछा, कहां हो आजकल। तुम्‍हारा तो बस्‍तर ट्रांसफर हो गया था। उसका जवाब था बस्‍तर कौन जाएगा मरने फिर आजकल चैन से मर भी तो नहीं सकते। मरने के बाद कोई कहता है शहीद हो गया तो कोई पूछता है वहां क्‍यों गया था मरने के लिए। बात सौ टके सही थी। मैंने फिर सवाल किया ट्रांसफर रूका कैसे। उसका जवाब था कि जो चाहो वो होता है बस थोड़ी सेटिंग होनी चाहिए। मैंने फिर सवाल किया कि आखिर बस्‍तर कौन जाएगा। उसने कहा जिसे अपने परिवार को बेसहारा छोड़ना हो और मरने के बाद भी बेईज्‍जती कराना हो वो जाएगा। मैंने कहा तो बस्‍तर का क्‍या होगा। उसका जवाब था, तुम लोग हो न। और तुम्‍हारे भाई-बंधू नेता भी तो जनसेवक हैं। वो नहीं कर सकते क्‍या लोगों की रक्षा।

मैंने कहा काहे उखड़ी-उखड़ी बात कर रहे हो। अब तो वो पूरा ही उखड़ गया। उसका गुस्‍सा जैसे इसी बात का इंतज़ार कर रहा था फट पड़ने के लिए। वो बोला टीवी देखते हो न। समाचार देखते हो न। देख रहे हो न फजीहत मोहन चंद शर्मा की। अब वो आतंकवादियों की गोली से मरा है या पुलिस की ये भी सवाल उठाए जाएंगे। क्‍या कोई पुलिस वाला पुलिस वाले को गोलीमारकर ईनाम पा सकता है। फर्जी मुठभेड़ होती कोई गुण्‍डा-मवाली मरता, तो पुलिस पर उसे जबरन मारने का इल्‍जाम लगाते तो समझ में आता था। मैंने उसे टोका और कहा ऐसी बात नहीं है। उसने मेरी बात पूरी भी नहीं होने दी और कहा क्‍या ऐसी बात नहीं है। क्‍या मोहन चंद की शहादत पर सवाल नहीं उठ रहे हैं।

अब तक मैं थोड़ा संभल गया था। मैंने कहा अरे वो तो अमरसिंह ने सवाल उठाए हैं। उसको तो जानते ही हो कैसा नेता है वो। फिर भड़क गया वो। कहा नहीं जानते थे, मैं क्‍या देश के अधिकांश लोग उसे नहीं जानते थे। वो क्‍या महात्‍मागांधी है जो उसे जानें। उसकी पहचान किसने बनाई। तुम लोगों ने लोगों को बताया कि अमरसिंह नाम का बड़ा नेता है। मैंने उसका गुस्‍सा शांत करने के लिहाज से कहा अरे काहे का नेता, वो तो दलाल है। फिर भड़क गया वो, कहा कि वो दलाल है तो आप लोग क्‍या हो। मैंने कहा हम लोग, क्‍या मतलब है तुम्‍हारा। उसने कहा मेरा मतलब साफ है अगर अमरसिंह दलाल है तो आप लोग क्‍या हो। मैंने कहा मैं समझा नहीं तुम कहना क्‍या चाहते हो। उसने पूछा अमरसिंह दलाल है, ये किसने बताया। मैंने कहा खुद अमरसिंह ने स्‍वीकार किया है। वो बोला जब अमरसिंह ने खुद को दलाल बता दिया है तो फिर क्‍या ज़रूरत है ऐसे दलालों से बयान लेने और उसका दिखाकर दुनिया में बखेड़ा खड़ा करने की।

मुझे लगा उसकी बात में दम है। मैंने कहा तुम ठीक कह रहे हो। शांत होने के बजाय फिर भड़क गया वो। जानते हो हम लोग ठीक कह रहे हैं तो फिर देश में क्‍या एक अमरसिंह ही बचता है बयान देने के लिए। अमरसिंह अगर दलाल है तो तुम लोग उस दलाल के दलाल हो। तुम लोग अगर नहीं चाहो तो क्‍या अमरसिंह खुद का चैनल खोलकर खुद को बकवास करते दिखाएगा। नहीं न। इसलिए पूछ रहा था, कि तुम लोग क्‍या हो। अब आई बात समझ में। मैंने कहा ऐसी बात नहीं है। फिर भड़का वो और बोला कि भैय्या अब मेरा मुंह मत खुलवाओ। लिहाज कर रहा हूं। उसका ख्‍याल रखो। मैंने उससे कहा तुम गलत समझ रहे हो। उसने कहा तो आप ही बता दो सही क्‍या है। क्‍या एक पुलिस वाले की शहादत पर अमरसिंह से ही पूछना ज़रूरी है। क्‍या किसी रिटायर्ड पुलिस वाले या किसी और शहीद के परिवारवालों से नहीं पूछा जा सकता। अमरसिंह से पूछना ही क्‍यों ज़रूरी है। इसलिए क‍ि वो ऑय-बॉय बकता है। इसलिए कि उसके घटिया बयानों से बवाल मचता है। इसलिए कि बवालों से आप लोगों की टीआरपी बढ़ती है। इसलिए कि अमरसिंह महंगे-महंगे गिफ्ट देता है। इसलिए कि अमरसिंह शानदार पार्टियां देता है। मैंने उसे टोका और कहा कि ऐसी बात नहीं। फिर फट पड़ा वो और बोला बिल्‍कुल ऐसी ही बात है। कोई अगर सीधी-साधी साफ-सुथरी बाईट देता है तो आप लोगों को मज़ा नहीं आता है। वो बाईट आपको बाईट करती है। बिना बवाल या कांट्रोवर्सी के आपकी ख़बर नहीं बिकती। बिना ख़बर बिके आपका टीआरपी नहीं बढ़ता। बिना टीआरपी बढ़े आपको विज्ञापन नहीं मिलते। मैंने कहा बस, बहुत हो चुका।

वो बोला नहीं भैय्या बस नहीं हुआ। आज तो आपको सुनना ही पड़ेगा। आज तक आप बोलते आए और हम लोग सुनते आए हैं। वैसे ही जैसे हाथ में माइक पकड़े आपके भाई-बंधू टीवी पर चीखते-चिल्‍लाते हैं। सब मजबूर होकर सुनते हैं और आपको भी आज वैसे ही मजबूर होकर सुनना पड़ेगा और मैं आपके भाई-बंधुओं की तरह आपके मुंह में माइक घुसेड़कर सवाल पुछूंगा। उसने कहा आपको बुरा लग रहा है तो पब्लिक की तरह आप भी चैनल बदल सकते हैं यानि यहां से मुझे दफा कर सकते हैं। मैंने उसे एक बार फिर शांत कराने की कोशिश की। लेकिन उसका गुस्‍सा तो जैसे सातवें आसमान पर था।

वो फिर से फट पड़ा। बोला आपसे कहा था कि भैय्या मैं सात साल बस्‍तर में गुजार कर यहां आया हूं और 6 महीने बाद ही मेरा फिर से बस्‍तर ट्रांसफर कर दिया गया है। आप थोड़ा एप्रोच लगाकर ट्रांसफर रूकवा दो। क्‍या जवाब दिया था आपने, याद है आपको कि याद दिलाऊं। मैं खामोश ही रहा। उसने कहा आपने मुझसे कहा था कि बस्‍तर के लिए सरकार की पॉलिसी बनी है उसमें हेर-फेर नहीं हो सकता। याद है न यही कहा था आपने। मैंने कहा हां मुझे याद है। वो बोला फिर मेरा ट्रांसफर कैसे रूक गया। मुझसे पहले दर्जनों लोगों का ट्रांसफर क्‍यों रूका। बताऊं आपको कि आप सब जानते हो। मेरे पास खामोश रहने के सिवाय कोई और चारा नहीं था। वो बोला आपको सब पता है। आपको क्‍या सबको सब पता है। आप बिल्‍कुल ठीक कहते हैं कि सब ट्रांसफर रूकवा लेंगे तो बस्‍तर कौन जाएगा। मैं पूछता हूं कि क्‍या मरने के लिए जाएं बस्‍तर। हमको जो एंटी माइन्‍स व्हिकल दिया गया है उसे नक्‍सली अपनी सुरंग से उड़ाकर कई जवानों को शहीद कर चुके हैं। हमारे हथियारों से उनके हथियार ज्‍़यादा अच्‍छे हैं। हम पर जनता कम विश्‍वास करती है उन पर ज्‍़यादा। इसमें हमारी कोई गल्‍ती नहीं है सरकार की गल्‍ती है, अब सरकार की गल्‍ती का नतीजा हम लोग क्‍यों भुगतें।

आपको पता भी है बस्‍तर में जवान कैसे जी रहे हैं। परिवार को शहरों में छोड़ जंगलों में गश्‍त करते समय सिर्फ और सिर्फ भगवान याद आता है, परिवारवाले भी नहीं। पता है क्‍यों। मेरे पास कोई शब्‍द नहीं थे। मैं खामोश ही रहा। वो बोला मैं बताता हूं। गश्‍त करते समय हर पल दिमाग में यही घूमता रहता है कि कहीं अगले ही पल कहीं किसी पेड़ के पीछे से कोई फायर न हो जाए। हर कदम ज़मीन पर रखने से पहले सोचना पड़ता है कि इसके नीचे प्रेशर बम न छिपा हो। सड़कों पर गश्‍त करते समय यही मन में उमड़ते-घुमड़ते रहता है कि किसी तरह रात कट जाए और थाने पहुंच जाएं सकुशल। रास्‍ते में बिछी हुई कोई बारूदी सुरंग इसी रात को जिन्‍दगी की आख्रिरी रात न बना दे। सुबह होने पर सबसे पहले ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते हैं हम लोग कि एक दिन और कट गया बस्‍तर में। आप क्‍या सोचते हो। बस्‍तर में काम करने का ठेका सिर्फ उन्‍हीं लोगों के पास है जिनकी कोई पहुंच नहीं है या जिनके पास पोस्टिंग कराने के लिए मोटी रकम नहीं है। बताओ अपनी तरह नहीं तो कम से कम अमरसिंह की तरह ही बोल दो। मेरा चेहरा तमतमा गया। वो समझ गया, और बोला, क्‍यों क्‍या हुआ, बुरा लगा। मैंने खामोश रहना ही ठीक समझा।

लेकिन वो खामोश नहीं हुआ। ऐसा लगा कि उसके भीतर धधक रहा गुस्‍से का ज्‍वालामुखी फट पड़ा हो। उसने फिर बोलना शुरू किया। बोलो न अमरसिंह की तरह ही बोलो। क्‍यों घूमते हो जंगलों में। थाने में ही रहो। मरने के लिए किसने कहा था। फिर अगर जिला मुख्‍यालय जाने वाली सड़क पर मर गए तो कह सकते हो कि वो ट्रांसफर रूकवाने के लिए शहर जा रहा था। उसे उधर जाने की ज़रूरत ही क्‍या थी। वो नक्‍सलियों को तलाशने नहीं अपनी पोस्टिंग करवाने के लिए उधर जा रहा था। वो शहीद नहीं हुआ है वो अपनी मौत मरा है। मैंने कहा तुम्‍हारा गुस्‍सा जायज है। वो बोला हमको गुस्‍सा करने का अधिकार ही कहां है। गुस्‍से का सारा ठेका तो आप और आपके पत्रकार भाई-बंधुओं के पास है। सरकार पर गुस्‍सा उतारते हो, व्‍यवस्‍था पर गुस्‍सा उतारते हो, कभी अपने आप पर भी गुस्‍सा उतारा है। आप लोगों का नंबर तो सरकार और नेताओं से पहले आता है। आखिर आप लोग एसी दफ्तरों में बैठकर इतनी बकवास कर कैसे लेते हो। क्‍या सुबह नहाने के बाद आईना नहीं देखते। क्‍या आईना कभी आपको मुंह नहीं चिढ़ाता। क्‍या कभी आपको आईना देखकर शर्म नहीं आई है। क्‍या कभी आपने अपनी ख़बरों की खुद समीक्षा की है। क्‍या आप ये नहीं जानते कि अनाप-शनाप बकने वाले नेताओं के बयान दिखाकर आप जनता के गुस्‍से की आग में घी डालने का काम करते हो। राजठाकरे क्‍या लगता है आपका। क्‍यों उसकी बकवास आप दिखाते हो। ये तो आप पर निर्भर करता है कि कहीं कोई धुंआ उठ रहा है तो उस पर अच्‍छे लोगों की अच्‍छी प्रतिक्रिया दिखाकर उसके नीचे छिपी चिंगारियों को बुझा दे। लेकिन आप लोग। आप लोगों को तो कांट्रोवर्सी चाहिए, बवाल चाहिए। आप लोगों को अपनी ख़बर का रिएक्‍शन चाहिए। बिना रिएक्‍शन हुए आप लोगों को मज़ा नहीं आता। हिन्‍दू खतरे में है तो ठाकरे ब्रदर्स, तोगडि़या और बजरंगियों के बयान जरूरी हो जाते हैं। क्‍यों क्‍या ये लोग ठेकेदार हैं हिन्‍दुओं के। यही मामला अल्‍पसंख्‍यकों के साथ भी है। जितना खतरे में जनता नहीं होती उससे ज्‍यादा आप खतरा बता-बताकर खतरा पैदा कर देते हैं। कभी सोचा है आपने कि आप लोग देश के एक हिस्‍से का लफड़ा कुछ मिनटों में ही सारे देश में फैला देते हैं। अब तक मुझे लगने लगा था कि मेरे कानों में कोई पिघला हुआ लोहा उडेल रहा है।............उसकी बातें सुनकर मेरी आत्‍मा कांपने लगी थी और मेरी उंगलियां भी जवाब दे रही है। उसने और क्‍या-क्‍या कहा, अगली बार बताऊंगा।

23 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

baat to thik hai.

jitendra said...

बहूत बढिया लेख
अगली बार के इंतजार से कुछ लोगों का ट्रांसफर हो गया तो,,,,,,,,,

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sahi baat likhi hai, lekin media aisa hi karti rahegi, chhutbhaiyon ko media ne hi bada bana diya hai

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sar jee yah to apne apne jameer par nirbhar hai, kalyan ho

डॉ .अनुराग said...

आपका शीर्षक ही इस बात का जवाब है कल कुछ ऐसा ही मैंने नीतिश राज की बात पर कहा था

दीपक कुमार भानरे said...

Bahut acchha likha hai.

Anonymous said...

Agar India ki baat kar rahe ho to setting kar posting karwana, problem saheed hone me nahi hai, problem uske baad ki hai

Ashok Pandey said...

बात कड़वी भले हो, लेकिन सच्‍ची ही है.. अच्‍छा आलेख।

ताऊ रामपुरिया said...

उसकी बातें सुनकर मेरी आत्‍मा कांपने लगी थी और मेरी उंगलियां भी जवाब दे रही है।
बहुत सटीक व्यथा के रूप में आपने ये असलियत लिखी है ! नमन आपको !

दीपक said...

यही सत्य है !! यहा हर बात पर बतंगड है!!चारो तरफ़ सिर्फ़ स्वार्थ और स्वार्थ है परदेशी राम जी के शब्दो मे कहा जाये तो!!

जब तक सुरुजनारायण के घर मा घुघवा चौकीदार हे
तब चारों खुंट अंधियार हे ,तब चारो खुट अंधियार हे!!

कडुवासच said...

पुलिस का बाजा बजाते हो, अच्छा लगता है किंतु "फटे ढोल" को पीटने से आबाज नही आती,किसी अच्छे वाद्ययंत्र को बजाओ, कम-से-कम कानों को तो अच्छा लगे ... प्रभावशाली लेख है।

गुरतुर गोठ said...

जबरदस्‍त पोस्‍ट भईया, शीर्षक से लेकर अंत तक पूरी तन्‍मयता से एवं तरलता से पढता गया बढता गया । बहुत खूब । संस्‍मरण और कथोपकथन की यह शैली बिरले पत्रकारों में होती है ।


संजीव तिवारी

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत सशक्त लिखा आपने। टिप्पणी उससे मैच कर पाना कठिन है।
बहुत सही पोस्ट।

Unknown said...

धुआँधार लेख, काश अमरसिंह इसे एक बार पढ़ ले… तो उसे दस्त लग जायें…

Unknown said...

aap ke agale lekh ka intzar rahega.
Thanks.

PD said...

शांत गदाधारी भीम शांत.. कुछ ऐसा ही डायलोग था महाभारत में..
मगर मैं तो कहूँगा.. गदाधारी भीम को ऐसे ही गरजना चाहिए..
गरजो गदाधारी भीम.. गरजो.. और मौका मिले तो बरसना ना भूलना..
वाह.. बहुत बढ़िया.. बस मजा आ गया..

राज भाटिय़ा said...

लेख नही एक चांटा मारा है आप ने इन कमीनो के गाल पर लेकिन इन्हे कोई फ़र्क नही,
धन्यवाद

Nitish Raj said...

अंतिम लाइन पढ़ते ही मेरे मुंह से निकला कि मत बताना। आपकी अगली पोस्ट का इंतजार मुझे नहीं रहेगा। नहीं सहन कर सकता इतनी बड़ी सच्चाई। हम भी तो रोज ये ही करते हैं। कई लोग कहते हैं कि अरे चैनल पर तो कुछ दिखाया जा रहा है और ये ब्लागर लिखते कुछ और हैं। मैं चैनल हेड नहीं हूं जो खुद तय कर सकूं कि हां मुझे ये ही दिखाना है। साथ ही इसकी पूरी भड़ास यहां पर निकाल देता हूं। पर जानता हूं नहीं चाहते हुए भी आपके उस दोस्त की भड़ास पढूंगा जरूर।

Smart Indian said...

बहुत सही लिखा है आपने. सत्ता के दलालों को कवरेज की नहीं अदालत में देशद्रोह और मानहानि के मुकद्दमों की ज़रूरत है. एकाध टुच्चे नेता भी अगर जेल चले गए तो बाकियों की बकवास-क्षमता अपने आप कम हो जायेगी.

seema gupta said...

मैंने फिर सवाल किया कि आखिर बस्‍तर कौन जाएगा। उसने कहा जिसे अपने परिवार को बेसहारा छोड़ना हो और मरने के बाद भी बेईज्‍जती कराना हो वो जाएगा
'kya galat kha usne, shee to kha, jub jita jagta example samne ho to koee bhee is treh ka hee jvab daiga"

very well presented,
regards

समीर यादव said...

अनिल भाई..आत्म-साक्षात्कार वह भी पूरी साफगोई से बिना किस्सागोई के एक कठिन प्रक्रिया है, आपने निभाया ही नहीं अपितु एक और बार की प्रतीक्षा के लिए भी कहा है..!! निश्चित रूप से यह आपके कलमकार व्यक्तितत्व का श्वेत प्रतिबिम्ब है.

सचिन मिश्रा said...

katu satya se avgat karane ke liye aabhar.

Anonymous said...

I'm impressed with article it’s the reality.
Yesterday I saw news on Times Now, garbage truck ferries cops killed by Maoists and till than I'm very much upset. What is so called human right activists are doing now!!