कल स्टार न्यूज़ के कार्यक्रम मे रायपुर मे जमकर हंगामा हुआ।कार्यक्रम बीच मे बंद करना पडा।नाराज दीपक चौरसिया ने चीख-चीख कर कहा छत्तीसगढ की जनता की देश मे छवि अच्छी नही जायेगी।मगर उन्होने एक बार ये नही कहा कांग्रेस-भाजपा के गुंडो हंगामा बंद करो।दीपक वहां जो हंगामा कर रहे थे वे राजनैतिक कार्यकर्ता थे न की छत्तीसगढ की जनता। हंगामा करने वाले मुख्यमंत्री रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ आये कार्यकर्ता थे। छत्तीसगढ की सीधी-सादी जनता की छवि को तो आपने देश को खराब बताने की भरपूर कोशिश की लेकिन अगर आपमे दम होता तो कहते जोगी-रमन के चमचो कुर्सियां फ़ेंकना बंद करो।
और फ़िर स्टार न्यूज़ को छत्तीसगढ की चिंता कब से होने लगी। दीपक आपको तो याद दिलाना पडेग़ा।आप उस समय आज-तक का राग आलापते थे। छत्तीसगढ राज्य बनते ही स्टार न्यूज़ ने यंहा ब्यूरो बना दिया था।छत्तीसगढ के लिये एक ओबी वेन भी दे दी थी।तब छत्तीसगढ की जनता और मीडिया को लगा था कि छत्तीसगढ का सबसे बडा हितैषी स्टार है।मगर धीरे-धीरे सब को समझ मे आने लगा की सारा ताम-झाम जोगी वंदना के लिये किया गया था।कुछ लोगों को इस बात पर ऐतराज़ था मगर तीन साल पुरानी जोगी सरकार का बोरिया-बिस्तर बंधते ही स्टार ने भी अपना तंबू उखाड लिया और रमन सिंह की सरकार मे छत्तीसगढ की ओर पलट कर नही देखा, तब लोगों को स्टार की हक़ीक़त पता चली।ब्यूरो और ओबी वेन तो बहुत दूर की बात अपना एक स्टाफ़ रिपोर्टेर तक़ नही रखा। अगर छत्तीसगढ की चिंता होती तो तंबू उखाड कर क्यो पतली गली से निकले होते?दरसल स्टार छत्तीसगढ मे आया था जोगी का गाना गाने और कल भी रायपुर आने का कारण वही था।इसिलिये जमकर हंगामा मचाने वाले समर्थकों के खिलाफ़ आप चाह कर भी कुछ कह नही पाये।
बुरा मत मानियेगा जैसा आप को मह्सूस हो रहा है ना ठीक वैसा ही मुझे और मुझ जैसे लोगो को हुआ था ,जब आप बार-बार ये कह रहे थे कि छत्तीसगढ की छवि अच्छी नही जायेगी।देखा भी आपने छत्तीसगढ की जनता को? कैसी है वो आप जानते भी हैं?नही। आप जानते है अजीत जोगी को।नही जानते, याद दिलाऊं।याद आया, नही ना? कहां से याद आयेगा। चलो, मै ही याद दिला देता हूं।जोगी सरकार के कार्यकाल मे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रायपुर मे हुई थी।तब अब स्टार के नही आज-तक के स्टार थे।उस दौरान भाजपा के आदिवासी नेता नंद कुमार साय की पुत्री के लापता होने की खबर सामने आयी थी।उसे खोजने मे सारी भाजपा,पुलिस और देश भर से यहां आकर जमा हुआ मीडिया लगा रहा।मगर उसे खोज निकाला था आपने।कैसे? सब को पता है।तब जोगी ने ही आपको उनका पता दिया था और आप भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान भाजपा नेता की पुत्री के कांग्रेस प्रवेश की प्रायोजित खबर ब्रेक कर हीरो बने थे। माफ़ करना आप छत्तीसग़ढ के नेताओ को तो अच्छे से जानते हैं,और इस बात पर किसी को शक भी नही है।लेकिन जनता को जानना तो दूर पहचानते भी नही हैं।
अगर आपको छत्तीसगढ की जनता को देखना है,तो दिल्ली या यूपी के रेल्वे स्टेशनो पर उतरते मैले-कुचले मज़दूरो के रेले मे से किसी से भी पूछ लेना वो छत्तीसगढ का ही होगा,मुम्बई की ऊंची ईमारतों को बनाने पसीना बहाता मज़दूर छत्तीसगढ का ही होगा।हरियाणा पंजाब से लेकर जम्मू और कश्मीर तक़ मे छत्तीसगढ का मज़दूर पसीना बहाते हुए मिल जायेगा।वैसे आपको छत्तीसगढ के बारे मे ज्यादा बताने की ज़रुरत नही है,सुना है कुछ साल आपने भी यहां गुज़ारे है।सिर्फ़ सुना है, हक़ीक़त क्या है राम जाने?
खैर जानो दो।आप भी हमारी ही बिरादारी के हो।बिरादरी की बात बाहर जानी नही चाहिये लेकिन सारे देश का ठेका लेने वाली अपनी बिरादरी की मज़बूरी सारी जनता अच्छी तरह से जनती है,असली जनता ,आपकी कल वाली जनता नही। छत्तीसगढ की जनता कि असली चिंता होगी तो जब आदिवासियों या पुलिस पर नक्सलियों का कहर टुटेगा तब ऐसा ही कोई कार्यक्रम कर के दिखाना?यहां के मज़दूरों के पलायन पर नेताओं को बुला कर सवाल पूछ कर दिखाना?बिजली सप्लाई ठप होने पर अंधेरे मे जीते बस्तर को दिखा कर दिखाना ? तब मानेंगे आपको और आपके स्टार को छत्तीसगढ की जनता की असली चिंता है?
26 comments:
दीपक चौरसिया वही कर रहे हैं जो उन जैसे लोग करते हैं. भाई यह धंधा है उन का. और सही बात तो यही है जो वह कह रहे हैं. सारी गलती जनता की ही तो होती है. कभी अच्छा काम होता है तो वह नेता ने किया होता है, और मीडिया ने उस मुद्दे को उठा कर वह अच्छा काम करवाया होता है. छत्तीसगढ़ बदनाम है छत्तीसगढ़ की जनता के कारण. अगर कभी नाम होगा तो वह नेताओं और मीडिया के कारण.
आपका कहना बिल्कुल सही है। सामान्य जनता जी तोड मेहनत कर अपनी दो जून की रोटी के जुगाड में पसीने बहा रही है। ये राजनीति करनेवाले उनका दर्द क्या समझेंगे।
पत्रकारिता का एक रूप यहाँ देखा और इसी का एक और पहलू विष्णु वैरागी जी की पोस्ट पर देखा. समझ नहीं आता हम कहाँ जा रहे हैं.
दमदार, बेबाक और मूलतः छत्तीसगढ़ के सेवक का पोस्ट.
आपने सही प्रश्न उठाये
पर ये भी क्या करें बेचारे.. नौकरी के मारे...
यह तो माइक और कैमरे के सामने के संवाद हैं। उसके बगैर पूछें तो शायद मन की कहें ये सज्जन।
दमदारी की बात कि है आपने अनिल जी !! इन टटपुंजीया नेताओ के कारण हमारे छ्त्तीसगढ का नाम खराब नही होना चाहिये !!
ऐसा ही कुछ हमारे अंदर भी सुलगगया तो हमने भी ठेल दी अपनी पोस्ट बस यही तो कर सकते है और क्या !
एक जानदार पोस्ट के लिये बधाई
सर मीडिया के बारे में एक ई-मेल को मैंने अपने ब्लाग पर डाला है, जिसमें काफी हद तक खुलासा है कि कौन सा ग्रुप कहां जुडा है, जो प्रायोजित करते हैं, उनकी गाना इनकी जिम्मेदारी है या नहीं.बहरहाल आपने लिखा खरा है.
लाजवाब उधेड़ा है आपने भाई, पत्रकारिता के नाम पर कलंक बन चुके ऐसे लोगों को सरेआम नंगा करना बहुत जरूरी है और यह काम आप जैसे निर्भीक और "अंदर की बात" जानने वाले लोग कर सकते हैं… बेहतरीन प्रस्तुति…
आपने बिल्कुल सटीक लिखा ! अब ये भी क्या करे ? इनके भी आका काका हैं ! बहुत धन्यवाद आपको !
कार्यक्रम तो मुख्यमंत्रियों के बाबत था। फिर यह समझ के बाहर है कि कार्यक्रम में उनके समर्थकों को क्यों बुलाया गया था?
जनता-नेता मीडीया, तीन और छः का खेल.
बने धर्म-निरपेक्ष सब, कैसे होगा मेल?
कैसे होगा मेल,धर्म जीवन की धारा,
छूटा धर्म,बिखर गये सारे-जीवन कारा.
कह साधक कवि, सुनले छतीसगढ की जनता.
काँग्रेस या भाजपा, सब एकसे नेता.
अनिलजी, यह बात मैने भी गौर की है कि ईंट भट्ठों पर या रेती-बोरा ढोने वाले अधिकतर लोग छत्तीसगढ या फिर झारखंड के क्षेत्र से होते हैं, जिज्ञासावश मैने कई जगह खुद यह पूछकर उनसे जाना है। यदि छत्तीसगढ की छवि की इतनी ही चिंता होती तो ये दृश्य देखने न पडते। यही हाल अधिकतर हिंदी पट्टी का है,चाहे बिहार हो,यूपी हो या कुछ और। मजदूरों को पलायन कर अपना राज्य छोड कर दूसरे राज्य में कमाने जाना पडता है लेकिन इन नेताओं की हरकतों की वजह से वह भी नहीं कर पा रहे।
दिल्ली में बैठकर चमकते चेहरों के इंटरव्यू को पत्रकारिता मानने वाले सयाने आम जनता को हमेशा ही मूर्ख मानते रहे हैं । छत्तीसगढ के भोले भाले लोगों को बाहर से आने वाले सेठ - साहूकार बरसों ठगते रहे । दोना भर नमक के बदले दोना भर चिरौंजी का सौदा करने वाले लोगों की बदौलत ही आज छत्तीसगढ में नक्सलवाद की समस्या है । फ़िर भी मेरे एक परिचित कहा करते थे ,वही कहना मौजुं है - छत्तीसगढिया सबसे बढिया ।
बिल्कुल सही कहा..आम जनता को इन सब पचड़ों में पड़ने की कहाँ फुरसत!!
अरे वह आप को पहली बार इतने गुस्से मे देखा , अच्छा लगा, काश सभी आप की तरह से हो जाये तो देखे यह नेता अपनी केसे चलाते है
धन्यवाद
maranaa thaa kyaa ?
दमदार, बेबाक आक्रोश
बेहतरीन पोस्ट
gandaa hai par dhadhaa hai ye.
anil ji,aapka concern galat nahin kaha ja sakta,ulte khushi hai is baat ki ki aapne aawaj buland ki,agar roji roti ki chinta se wakt mila to........ham bhi aapka sath dena chahenge.
ALOK SINGH "SAHIL"
bebak likhne ke liye badhayi.
मन को भी बेंच आते हैं जी ये ।
बडे भाई आपने मेरे मन की बात कह दी, संस्था के पाप में संस्था के कारिंदे भी बराबर के हकदार होते हैं ।
इतनी हिम्मत कहाँ चैनल मालिकों की कठपुतली सी ज़िंदगी हो चुकी है
छवि बनाने और बिगाड़ने का काम मीडिया हमेशा से करती रही है और इसपर किसी नेता या पार्टी का नियंत्रण भी रहता है, आपकी पोस्ट से यह विचार और भी गहरा हुआ।
chattisgarhi me ek kahawat hai-
chor-chor mousere bhai.
anil ji aapke bebak post ko salam.....
" very daring and appreciable expressions...."
Regards
बढिया पोस्ट है अनिल भाई...
साफ़गोई ज़रूरी है और बेबाकी भी...
आपने पत्रकार का धर्म निभा दिया...
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