कल प्रेस क्लब मे शहर मे आये शायरो का सम्मान किया गया।शायरो ने अपने कलाम पेश किये और अधिकांश समय मै झुके हुए सर को हिला कर शायरो को दाद देने की एक्टिंग करता रहा।कुछ दुष्ट टाईप के लोग इस बात को ताड़ गये और कार्यक्रम खतम होने के बाद इस बात को लेकर मेरी खटिया खड़ी करने लग गये।मै भी कंझा कर बोला ,बहुत झूठ बोल चुका,अब सिर्फ़ सच बोलूंगा,फ़िर मत कहना सब सच-सच क्यो बक़ दिये।
मुंह लगे साथियो मे मुझे सबसे प्रिय है शारदा दत्त त्रिपाठी जिसे मैं शिशुपाल कह कर पुकारता हूं।दुसरा है प्रभूदीन उर्फ़ राजेश गुप्ता जो मेरा दुर्योधन है।तिसरा है बबलू उर्फ़ संजय शुक्ला जिसे मै बुड्ढा गब्बर कहता हूं।इन तीनो दुष्टों ने कार्यक्रम खतम होते ही मुझे घेरा और सीधा सवाल ज़ड़ दिया कि मै मंच पर बैठ कर नीचे क्यो कर रहा था।मैने उन्हे टालने की भरपूर कोशिश की।मगर तीनो मुह लगे थे इसलिये टस से मस नही हुये। हार कर मुझे उनके समक्ष इस बात को स्वीकार करना पड़ा की मुझे उर्दू की समझ बहुत नही है कुछ शेर मेरे पल्ले नही पड़ रहे थे सो मै सर झुका कर हिला कर ये साबित करने की कोशिश करता था कि मै सब समझ रहा हूं।
इतना सुनना था कि शिशुपाल,दुर्योधन और बुड़ढा गब्बर मुझ पर चढ बैठे।सबने कहा कि दुनिया को उपदेश देते और खुद क्या करते हो?मैने तीनो को समझाने की कोशिश की मगर तीनो को ऐसा लगा पहली बार राक्षस फ़सा है। हिसाब-किताब पूरा कर लो।बहुत समझाने पर जब वे नही माने तो मैने उनसे कहा कि ये यही कहना चाहते हो ना कि आदमी को झूठ नही बोलना चाहिये,सच बोलना चाहिये।तीनो फ़ौरन बोले हां,और आपको भी उन शायरो को बता देना चाहिये था कि मुझे उर्दू न ही आती,थोड़ा सरल वाला शेर पढो।
तब-तक़ मेरा पारा चढ चुका था।मै उनसे बोला सच बोलना चाहिये ना?तीनो एक सुर मे बोले हां।मैने कहा कि फ़िर मै शोक-सभा मे भी सब-कछ सच-सच कहूंगा।मै भी तंग आ गया हूं झूठ कहते-कह्ते।साले तुम लोग निपटोगे तब बताऊंगा कि कहां-कहां घुसते थे तुम लोग। और हां सालो पुराना वो सड़ियल्ल रटा-रटाया डायलाग अगर कोई मारेगा तो मै चिल्ला-चिल्ला कर कहूंगा कोई अपूर्णीय क्षती नही हुई है समाज की। ये लोग…………इससे पहले की मै आगे कुछ बोल पाता,तीनो बोल पड़े अरे क्या गुरुदेव,इत्ती सी बात पे बुरा मान गये। अरे हम लोग तो मज़ाक कर रहे थे ।क्या फ़र्क पड़ता है अगर उर्दू नही आती तो? मै बोला वो सच-सच…………………एक बार फ़िर तीनो ने मेरी बात काटी और कहा शोक-सभा मे आपको झूठ बोल्ना पड़ता है ना,बस वैसे ही चलने दो।क्या फ़र्क़ पड़ता है सच बोलने से।मै बोला तुम लोग ही तो……………फ़िर मेरी बात काट कर तीनो बोले अरे गुरुदेव आप भी कहांकी बात लेकर बैठ गये। हम लोग तो मज़ाक कर रहे थे।मै भी उनसे बोला लेकिन मै मज़ाक नही कर रहा हूं,अब मै किसी भी शोक-सभा मे झूठ नही बोलूंगा चाहे मुझ पर पत्थर क्यो ना चल जाये।
13 comments:
सच बोलोगे तो सब से पहले आप के अपने आप के दुशमन बन जायेगे,
सही मे सच बर्दाश्त से बाहर है आज कल . आपने सच मे सच बोलना शुरू कर दिया तो आपके कई अपने पराये हो जायेंगे
अब मै किसी भी शोक-सभा मे झूठ नही बोलूंगा चाहे मुझ पर पत्थर क्यो ना चल जाये।
अब मै किसी भी शोक-सभा मे झूठ नही बोलूंगा चाहे मुझ पर पत्थर क्यो ना चल जाये......बहुत ही बिंदास पर आपको नीचे सर झुकाकर नही बैठना चाहिए था अपुन ठहरे जी ब्लॉगर अपनी मंडली के आगे तो बड़े बड़े पानी मांग जाते है तो छोटे मोटे शायरों से फ़िर....हा हा हा
एक शोकसभा यह भी :)
अनिल पुसदकर अच्छे आदमी नहीं थे( हैं) , जब तब नक्सलवादीयों पर लिखते रहे , बहुत दिनों से नक्सल समस्या पर कुछ नया मिल नहीं पा रहा था , कुछ लिख नहीं पा रहे थे। इसी गम में वो आत्महत्या करने चल पडे, रेल पटरी पर जाकर लेट गये लेकिन यह क्या रेल तो आ ही नहीं रही । थोडी देर में पता चला नक्सलवादियों ने आगे की रेल पटरी उडा दी है गाडी कैसे आये , तुरंत अनिल जी को नया मैटर मिल गया, जीने का सहारा मिल गया और वो लौट पडे नक्सलवादीयों पर लिखने के लिये। रास्ते में खडे एक नक्सलवादी के मुंह से निकला - जा तुझे जीवनदान दे दिया :) तू मर जायेगा तो हमारे बारे में लिखेगा कौन :)
आज अनिलजी हमारे बीच नहीं रहे - जिस पटरी को उडा दी गई है जानकर देखने गये थे पता चला वह कोई दूसरी थी और जहाँ खडे होकर लिख रहे थे वहीं ट्रेन आ गई और अनिलजी लिखते-लिखते लव हो जाये की तर्ज पर लिखते-लिखते चले गये :)
सच लिख रहा हूँ.....झूठ का तो अपने से दूर-दूर का वास्ता है :)
अनिलजी आज की पोस्ट पर मुद्दा हटकर उठाया है सो कुछ हटकर टिप्पणी दे रहा हूँ :)
अच्छी पोस्ट।
या झूंठ तेरा आसरा ! :)
रामराम !
सच बोलना कोई हँसी ठट्ठा नहीं है।
bahut achchi post !
कड़वा सच कहां किसी के हलक से नीचे उतरता है।
झूठ बोले कौवा काटे...
प्रियं ब्रुयात, सत्यम च (यदि सम्भवात!) :)
दाद, दाद! ;)
क्या बात कर रहे हैं, झूठ के खम्भों पर दुनिया का महल टिका है.
शिशुपाल, प्रभुदीन और बुढ्ढा शेर को नहीं मालूम कि वे क्या बोल रहे हैं....उन्हें माफ कर दो ...
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