दूसरे दिन तक़ तो दूर, मै घर भी नही पहूंचा था कि खबर सबको लग गई।शाम को सब होस्टल मे इकट्ठा हुए और आगे का प्रोग्राम बनाया जाने लगा वो भी बिना मेरी मर्ज़ी के।चिढ के मैने छोटू को गालियां दी तो फ़ौरन कमेण्ट्स आ गया इश्क और मुश्क छिपाये नही छिपते हैं।मै बोला न ये इश्क का मामला है और न मुश्क का,चलो घर चले।लेकिन वे लोग कहां मानने वाले थे,बता न गुरू,क्या बोली वो?तू क्या बोला?अबे क्यो मरा जा रहा पूछने के लिए,साले एक लड़की भी तो पलट कर नही देखती?अबे मेरा मेरा मुंह मत खुलवाओ,साले सब को नंगा कर दूंगा?और तू बे भूल गया बेटा तेरी कालोनी की नई छमिया ने क्या कहा था?बताऊं?देखो यार पर्सनल मामले मे कोई नही बोलेगा?मै बोला ये भी तो पर्सनल मामला है?सब एक साथ चिल्लाए नही ये पर्सनल नही ग्रुप का मामला है।पहली बार ग्रुप मे कोई ढंग से सक्सेस होने जा रहा।इस मामले पर तो पूरे एफ़ एल ए का भविष्य टिका हुआ है।
मै बोला मुझे क्यो एफ़ एल ए मे घसीट रहे हो बे।वो तुम लोगो का …………देखो गुरुदेव,मेरी बात खतम होने के पहले ही चुन्नू बोला,अपन सब दोस्त हैं या नही?सब बोले हैं।वो बोला अपन सब भाई है या नही?सब बोले हां है।वो बोला बस फ़िर सब एफ़ एल ए के मेम्बर हैं।मै बोला ,ये गलत बात है,मै क्यो?वो फ़िर बोला ,सही बोल रहे गुरु एक लड़की चाय पीने तैयार क्या हुई, ग्रुप से अलग हो रहे हो। अरे वैसे भी हमारे एफ़ एल ए का नियम है जिससे लड़की पटी।उसकी मेम्बरशीप खतम्।(मै ज़रा समझा दूं एफ़ एल ए है क्या।ये हमारे कालेज के लवेरिया ग्रस्त लड़को का ग्रुप था।इसका फ़ुल फ़ार्म था फ़ेल्वर लवर एसोसियेशन्।हमारे ग्रुप के कुछ क्रिटिकल लवेरियन्स ने इसे बनाया था)।
खैर बात मुझे ग्रुप से निकालने तक़ की आ गई थी।सारी शाम बहस होते रही दुसरे दिन सब कालेज पहूंचे।कुछ जुनियर जो अभी तक़ खुल नही पाए थे,वे भी मुझे देखकर मुस्कुराने लगे,कुछ ने हंसते हुए नमस्ते भैया कहना शुरू कर दिया था और कुछ और करीब आने के चक्कर मे बताने भी लगे थे भैया अभी यूनिवर्सिटी की तरफ़ गई है।परिवर्तन की इस बयार को मै अच्छी तरह समझ रहा था।उस दौर मे एक गर्ल-फ़्रेंड का होना चमचमाती कार रखने से ज्यादा स्टेटस दिलाता था।यार की गली के कुत्तों यानी कुत्ते टाईप लडको को बेमतलब चाय-सिगरेट पिलाकर वापस आ जाने वाले भी रोमांस मे राजेश खन्ना को मात देने वाली स्टोरी बताते नही थकते थे।
अचानक से एक्शन फ़िल्म के हिरो की बजाय अपनी इमेज भी राजेश खन्ना टाईप की हो गई थी।सब कुछ ठीक चल रहा था।बस मे आना-जाना,कमेण्ट्स करना,खुलकर मुस्कुराना,लड़कियो का आपस मे फ़ुस्फ़ुसाना,कमीनो को जलना और कुड्कुडाना।उसकी मुस्कुराहट धीरे-धीरे खिलखिलाहट मे बदल गई थी वो भी रिक्टर स्केल पर आठ के उपर(रिक्टर स्केल इसलिये कह रहा हूं कि मै जियोलोजी का स्टूडेंट रहा हूं और भूकंप नापने का कोई दुसरा पैमाना मुझे पता नही है)।ये बात अब कालेज की बाऊंड्री से उड़कर बाहर भी निकलने लगी थी।दूसरे कालेज के टपोरी भी हमारे कालेज आकर चुनावी माहौल के बहाने धीरे से मुस्कुरा कर पूछ लेते थे और गुरु कैसे चल रहा है?साला ये सवाल दिमाग खराब कर देता था।
एक दिन हमारा ग्रुप कालेज के स्टाप पर उतरा।उस दिन घर मे भी जमकर बत्ती पड़ी थी।कौन सा सब्जेक्ट ले रहे हो पूछने पर हमारा जवाब था अभी डिसाईड नहि किया है,और हमारा जवाब हमारा बाज़ा बज़वा गया।वैसे ही जले-भुने थे और दुसरे दो तीन दिनो से वो बस मे भी नही आ रही थी।दिमाग जंज़ीर के अमिताभ की तरह फ़ांय-फ़ांय कर रहा था। ऐसे मे नीचे उतरते ही दूसरे कालेज से आये हमारे एक पुराने कमीने टाईप के दोस्त मिल गए। आजकल कालेज मे पढा रहे हैं।वो मुझे किनारे ले गया और धीरे से बोला गुरु तुम तो खिसक लो।उसका भाई बहुत गुस्से मे है।कुछ दोस्तो के साथ आया है और तुम्ही को ढूंढ रहा है।
इतना सुनते ही गुस्से का ज्वालामुखी जो घर से एक्टिव हुआ था,फ़ट पड़ा।मुंह से अनाप-शनाप गालियां निकलने लगी,सब भाग कर मेरी तरफ़ आए,तब तक़ मै उसकी जितनी वाट लगा सकता तथा लगा चुका था।इससे पहले कोई कुछ समझ पाता उसने आखिरी हथियार का इस्तेमाल कर दिया।उसने कहा भलाई का ज़माना नही है हम बचा रहे और हमी गाली खा रहे है।इतना सुनना था कि मै कालेज के अंदर भागा और बोला अभी लाता हूं साले को पकड़ कर।तू रूक यंहा।
सब मेरे पिछे भागे।दुर्भाग्य देखिये उसका भाई तो मिला नही वो मिल गई।शायद लूना से कालेज आई थी,और आज उसकी लट्कन वो कण्डिल भी साथ मे नही थी।मै उसे देखते ही बोला कहां है वो।वो हंस कर बोली हम तो अकेले आए हैं।उस्का हसना मुझे गुस्से मे ज़रा भी अच्छा नही लगा और उल्टा गुस्से को भड़का गया।मै बोला तेरा भाई कहां है साला और उसके बाद तो जैसे मै पागल हो गया पता नही क्या अंट-शट बकने लगा।दोस्तो ने मुझे खींचकर अलग करना चाहा तो उनपर भी बरस पड़ा।ये सब उसके लिए अप्रत्याशित था।शायद वो उस दिन मुझसे मिलने के लिये ही अकेली आई थी।मेरी बक़वास सुनकर उसकी आंखो मे आंसू तैरने लगे थे।वो बोली आपने ऐसा क्या किया है जो हम अपने भाई को बुलाते?मैं बके जा रहा था।वो फ़िर बोली काश मेरा कोई भाई होता?अगर होता तो भी मै उसे कालेज नही बुलाती।ये सुनकर मेरे होश ऊड़ गए।मुझे जैसे लकवा मार गया।मै सन्न रह गया था।वो बोले चली जा रही थी हम आपको कभी माफ़ नही करेंगे।और वो चली गई मै वैसे ही खड़ा रहा?मेरा दिल कह रहा था उससे माफ़ी मांग लूं मगर मारे अकड़ के कुछ कह नही पाया।सारे दोस्त उस वाक्ये से सन्न रह गये थे।किसी ने किसी से कुछ नही कहा।सब बिना कुछ बोले रवाना हो गए।
कुछ दिनो तक़ मै कालेज नही गया।सारा ग्रुप अब्सेंट रहा।एक दिन सुबह बल्लू घर आया बोला चल कालेज चल्ते हैं।बहुत दिन हो गए।मैने कुछ नही कहा चुप-चाप घर से बाहर निकला।उसका स्कूटर जब बस स्टाप की तरफ़ नही मुड़ा तो मैने पूछा कहा जा रहा है।वो बोला कालेज।मै बोला बस से चलते हैं।वो बोला नही और हम कालेज पहुंचे।उसने बाटनी मे एड्मिशन ले लिया था।मैने जियोलाजी मे एड्मिशन लिया।कुछ दिनो तक़ कोई बस से नही आया।फ़िर सब बस से आने-जाने लगे।मै उसपर अब कमेण्ट्स नही करता था,मगर वो मेरे कमेण्ट्स पर मुस्कुराती ज़रूर थी।दोस्तो ने कई बार कहा बात कर ले,लेकिन झूठे अहम के कारण मै उससे माफ़ी नही मांग सका।दो सालो तक़ हम साथ-साथ कालेज मे रहे।उसके बाद पता नही वो कंहा चली गई।कुछ साल बाद उसके क्लास की एक लड़की शकील को मिली।उसने शकील से कहा अनिल जैसा बेवकूफ़ लड़का मैने ज़िंदगी मे नही देखा।वो उसको पसंद करती थी मगर अनिल अपनी अकड़ मे मर गया।पता नही वो सच कह रही थी या गलत लेकिन अब सालो गुज़र जाने के बाद मुझे लगने लगा है कि कम से कम माफ़ी नही मांग कर मैने गल्ती की तो थी।कैसी लगी कालेज के दिनो की खट्टी-मीठी यादें बताईएगा ज़रूर्।
20 comments:
आपके साथ साथ यादो के समंदर में गोता लगा आए.. हर इंसान लाइफ में एक बार राजेश खन्ना तो हो ही जाता है..
"खट्टी-मीठी यादें का खजाना है बहुत अच्छा...मगर काश एक बार माफ़ी मांग ली होती तो शायद ये सिर्फ़ यादे नही रह जाती.....आपकी जिन्दगी की खुबसुरत हकीकत बन जाती.....शायद..."
Regards
देर आयद दुरुस्त आयद. मगर, "कमसिनी की गलतियों पर अब भला रोएँ भी क्या?" {अनुराग शर्मा}
वैसे यह किस्सा पढ़कर आपके कोलेज में पढी कई लड़कियों के पति शक में ज़रूर पड़ जायेंगे!
अरे सर जी आपकी मोहबत की दास्ताँ तो एकदम मस्त रही ...मजा आ गया .....सारा का सारा सीन सामने था
खोये-खोये पढ़ते रहे की ये लाइन आ गई: 'कैसी लगी कालेज के दिनो की खट्टी-मीठी यादें बताईएगा ज़रूर्। ' अब ये भी कोई पूछने की बात है? बोले तो अल्टीमेट.
देखिए जनाब हमें तो घरवाली के हाथ का बना भोजन खाना है लेकिन पढ़कर यादें बहुत आईं।
अनिल जी बस इतना कहूँगा ...
"मुहब्बत मर गई मुझको भी गम है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी "
समझ जाए .प्यार अपनी छतरी के नीचे सबको बैठा लेता है..
सूर्यभानु गुप्त की एक गजल का एक शेर सब कुछ कह रहा है -
यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले
सुखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआ
पूरी सहानुभूति है आपके साथ। और हम तो यह सब कर गुजरने लायक ही न बन पाये!:(
क्या कहूं ? कुछ कहते नही बनता. बाकी यादे तो यादें होती हैं. कैसी भी हों. मिठी हो तो भी टीस ऊठती हैं और कडवी तो और भी ज्यादा टीस देती हैं.
अब क्या कडवी और क्या मीठी? ये तय करने का सबका अपना अपना नजरिया होता है.
रामराम.
आप के किशोरावस्था की एक झलक दिखने के लिए आभार. वैसे आप ने सबो को अपने 'लद गए' दिनों की याद तो दिला ही दी.
बस एक गीत याद आ गया 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम, तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम'
लेकिन जंज़ीर के अमिताभ की तरह फ़ांय-फ़ांय करने वाला इंसान, राजेश खन्ना टाईप हो जाये, इतनी ताकत किस चीज में है, यह आपने बता दिया।
मेरे ख्याल से, एक और कोई वाक्या ज़रूर होगा!?
अनिल जी , क्या कहे, मेने तो कुछ ओर सोचा था, लेकिन हुया कुछ ओर, लेकिन यह सब अच्छा नही लगा, मन उदास हो गया, बस.... ओर कुछ नही, लेकिन प्यार कभी मरता नही यह याद रखे, आप के दिल मे, ओर उस के दिल के किसी ना किसी कोने मै अब भी होगा, ओर प्यार जरुरी नही पाने को ही कहा जाये,
वेसे तो मे बहुत कम फ़िल्मे देखता हुं, लेकिन एक फ़िल्म देखी थी थी, जिस मे प्यार की परिभाषा, बहुत सही ढंग से समझई है, अगर भी मुढ हो तो उस फ़िल्म को जरुर देखे, नाम है** रैन कोट**
बाकी जिन्दगी के सफ़र मे गुजर जाते है जो मुकाम... वो फ़िर नही आते, वो फ़िर नही आते.....
धन्यवाद
आप का पुरा लेख बहुत ही अच्छा लगा, बस आज के लेख ने उदास कर दिया...
samhalte samhalte sir ji ne badi der kar di.
बहुत बार हम कहने में बड़ी देर कर देते हैं...वाकई अगर आपने माफ़ी मांग ली होती तो शायद कहानी कोई नया मोड़ ले लेती. ऐसा होता अक्सर है...हम एक काश! पर रह जाते हैं.
वाह जी, फ्लेशबैक दिखा दिया जिदंगी का.. बहुत खूब
अनिल जी, वह लड़की बहुत याद आती है ना? माफी तो आज आप उस से मांग लिए हो। हमारी तो शुभकामना यह है कि कम से कम वह इस माफी को पढ़ ले। यह भी मुहब्बत का एक रूप है। शायद "उस ने कहा था" जैसा ही।
khatti mithi yaaden ..pasand aayin...lekin aap se sahnubhuti hai.
yah malaal jo jindagi bhar aap ko salta rahega..us ka koi ilaaj bhi to nahin.
kahtey hain na...ek hi zindagi hai...aur thode se din...apne dil ki baat kisi se kahne mein sahrmaana nahin chaeeye..aap to gurur mein rahey!
bhavishy ke liye shubhkamanyen.
आप सभी का आभारी हूं मै,आपने मेरी भावनाओ को समझा।ये किस्सा कालेज के दिनो के दोस्तो के अलावा और किसी को नही मालुम था,इसे सालो बाद पहली बार मैंने किसी के साथ बांटा है,तो वो है आप लोग मेरे ब्लोग परिवार के रिश्तेदार। अच्छा लगा अपने परिवार मे आपबीती सुनाना।और हां पाब्ला जी किस्से तो बहुत है,हम तो बचपन से खुराफ़ाती हैं,आप लोगो ने जिस तरह मुझ पर प्यार का खज़ाना लुटाया है,उसे देखकर तो लगता है बहुत से किस्से सुनाने ही पड़ेंगे। आप मे से जो बड़े है उनसे आशीर्वाद और जो छोटे हैं उनसे प्यार,और जो साथ के है उनसे हमेशा ही ऐसे सहयोग की अपेक्षा है।
अनिल जी याद नही,पर आपके ब्लॉग पर पहली बार आई,,,मन उदास हो गया लेकिन अच्छा भी लगा...साफ गोई सच्चाई ही जिन्दगी की यादों को हरा रखतें है ..आपकी भाषा मैं सादगी और सरलता है ....प्यार बस ऐसे ही जिन्दगी मैं दस्तक देता है ...सच तो हमेशा ही कमाल होता है ...आपने कमाल किया है वरना तो ....रोज बहुत कुछ पढ़तें ही हैं ....गालिब गजल का एक मिसरा लिखने का लोभ नही रूक पा रहा है...आशिकी सब्र और तमना बेकार ,दिल का क्या रंग करुँ खूने जिगर होने तक ,आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक ,कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक badhai...
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