पेश है एक माईक्रो पोस्ट आदरणीय ज्ञान गुरजी को समर्पित।इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जब नज़र डालो चड्डी बनियान के ही विज्ञापन नज़र आ जाते हैं।कभी लक्स कोज़ी,तो कभी अमूल माचो।कभी माईक्रोमैन,तो कभी स्वागत अण्डर वीयर बनियान्।यानी विज्ञापनो का मामला हो तो चड्डी बनियान गिरोह सबसे अव्वल नज़र आता है।कभी कभी तो ऐसा लगता है कि घोर मंदी के इस दौर मे चड्डी बनियान वाले न होते तो इलेक्ट्रानिक मीडिया नंगा ही हो जाता।लिखने को तो बहुत कुछ है इस विषय पर,पर अपनी ही चड्डी बनियान खींचना ठीक नही है।बाकी आप सब समझदार हैं।
30 comments:
किसी टीवी चैनल में नौकरी ना मिल पाने का
इतना मलाल।
चलो चड़्डी बनियान तो हैं इन के पास। ये न होते तो।
बाप रे !भाई सुना है लोग बाग अब खास दिनो मे चड्डी भी भेजते है एक दुसरे को , तो यह टीवी बाले कुछ दिन पहले ही चड्डियो की याद दिल देते है, काली चड्डी लाल चड्डी , गुलाबी चड्डी.....
चलिये देखिये खुब चड्डियां
आप तो अंदर की बात को बाहर ले आये ।
हम तो समझे चड्डी बनियान गिरोह की बात करने वाले हो :)
चड्डी बनियान और उसका विज्ञापन दोनों पूरक धंधे हैं.
अरे क्या बात करते हैं अनिल भाई...बीच बीच में मैंने तो वो बहत्तर घंटे वाला ..ज्ञानवर्धक...शिक्शावर्धक..और पता नहीं क्या क्या वर्धक ...विज्ञापन भी देखा है....
भाई हमारे इधर जब पुलिस को कोई बात चोरी डकैती का इल्जाम लगाना होता है तो उसको चड्डी बनियानधारी गिरोह के नाम मढ दिया जाता है.
रामराम.
पर ये तो अन्दर की बात है............. आपने सब के सामने खुल दी..........तो चलो अब तुम भी आगे आओ
thik bole hain aap..
main bhi hamesha yahi sochta hun ki news valon ko hi itna ad in sabka kyon milta hai?
सही कहा आपने,
मीडिया ही नही बहुत सारे लोग हैं इस धरती पर जो के कहने को तो इंसान है पर देखो तो बस नग्नता दिखा रहे है..
धन्यवाद,
मैं जो कहना चाह रही थी आशा जी ने पहले ही कह दी....
....अन्दर की बात बाहर ले आये....
कभी कभी तो ऐसा लगता है कि घोर मंदी के इस दौर मे चड्डी बनियान वाले न होते तो इलेक्ट्रानिक मीडिया नंगा ही हो जाता।
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अभी तो चड्डी-बनियान के समक्ष नंगा हुआ है!
भाई मंदी में जो मिल जाए वही सही। चाहे वह चड्ढी बनियान हो या सांडहा आयल
ये अन्दर की बात है!!!:)
bhut khub mitr kya baat hai
bhut khub mitr kya baat hai
इनका बस चले तो इसे भी उतार फेंके
सबके अपने अपने गिरोह है भई!
ये अन्दर की बात है .... अपना लक पहन के चलो :-)
जैसे चैनल....वैसी खबरें .... और वैसे ही विज्ञापन.
आप लोग अनजाने में गलती कर रहे हैं। इनसे अच्छे हैं 'कच्छा बनियान' गिरोह वाले। अगर रात में मिल जाएं तो शर्माना तो नहीं पड़ेगा। इनमें शर्म शेष है इसलिए बाहर खुले में चड्ढी की जगह कच्छा पहनकर निकलते हैं। टीवी वाले तो हमारे ड्राइंग रूम में चड्रढी पहनकर न जाने कौन-कौन सी हरकतें करते हैं। सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय न जाने कहां है?
गौरतलब है कि 'चड्ढी-बनियान गिरोह' की जगह आमतौर पर 'कच्छा-बनियान गिरोह' उल्लिखित किया जाता है।
ये अंदर की बात है जनाब....... :-)
साभार
हमसफ़र यादों का.......
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
अरे वाह, आप तो काफी समझदार आदमी हैं।
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत चुटीले और संक्षिप्त बात लेकिन बहुत गहरी बधाई
बच्चे (इलेक्टानिक मीडिया) की जान ही लोगे क्या?
ये चड्डी-चड्डी क्या है? ये चड्डी-चड्डी क्या है?
स्वतन्त्रता पर हमला है आपकी पोस्ट.....बचो हमला संस्कृति पर है....जी हाँ चड्डी संस्कृति पर....
वाह!!!!
ऐसा ही रहा तो जल्द ही चड्डी बनियान बेचने के दिन आ जायेंगे
क्या कमल के हार का राज़ भी ये चड्डी-बनियन वाले ही थे:)
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
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