गरीब छोटे घर किंतु बडे दिल वाला होता है।इतने बड़े दिल वाला कि आप उसे एक नही कई थप्पड़ मारिये वो गाल हटायेगा ही नही।हटायेगा क्या हटाने लायक रहता ही नही, और फ़िर उसे मालूम है कि गाल हटायेगा तो उससे ज्यादा ज़ोर से कंही और लात पड़ेगी।इसिलिये उसने तय कर लिया है सरकार को जो करना है करे उसे तो सरकार को माफ़ करते जाना है बस।वो सुबह शाम चिल्लाता है क्षमा गरीबन को चाहिये,सरकार को उत्पात!
अब देखिये ना पेट्रोल चार रूपये महंगा हो गया वो कुछ बोला क्या?क्या कहा,गरीब को पेट्रोल से क्या लेना?बात तो सही है,लेकिन पेट्रोल के दाम बढने से महंगाई बढते हैं ऐसा उन्होने सुना था।अब कहोगे कि सुनी सुनाई बात पे क्या भरोसा करना। अगर चार रूपये किमत बढने से महंगाई बढती तो टीवी वाले भैया लोग बताते नही क्या?वो तो सारे देश मे हंगामा कर देते गरीब कैसे जीयेगा?इसी बहाने थाली का बैग़न भी टी वी पर आ जाता?गरीबो के खाने मे ऐसा लगता है दाल तो है ही नही।सत्तर रूपये किलो दाम हो गये मगर कोई कुछ कह रहा है क्या?और फ़िर जब मीडिया नही कह रहा है तो कैसे मान ले महंगाई बढेगी?
अरे भैया पेट्रोल के दाम बढने पर राज्यसभा मे तक़ हंगामा हो गया।ट्रांस्पोर्टर मीटिंग कर रहे है।उन्के दाम बढेंगे तो सभी चीज़ों के दाम भी बढेंगे,तो फ़िर महंगाई कैसे नही बढेंगे?रहोगे न गरीब के गरीब?अरे टी वी नही देखा?किसी ने बताया क्या महंगाई बढेगी?नही ना। फ़िर काहे बकवास कर रहे हो।भैया उन लोगो को तो कल से लेकर आज तक़ समलैंगिको से फ़ुरसत नही मिल रही है।उन लोगो को गरीबों के बारे मे सोचने का वक़्त ही नही मिला होगा न्।फ़िर कितने गरीब टीवी देखते है?वे तो सुबह से घर-बार छोड़ कर रोजी-रोटी कमाने निकल जाता है।उसके पास ड्राईंग रूम डिस्कशन के लिये टेम ही कंहा होता।
पेट्रोल और ड़ीज़ल के दाम बढने की खबर तो ऐसे मर गई जैसे गरीब के घर मे बूढा बिना दवा के या बच्चा कुपोषण से मर जाता है।अडोसी-पडोसी को तक़ खबर नही होती और प्रभावित अपने रिश्तेदार को जैसे तैसे फ़ूंक-फ़ाक कर दूसरे दिन से ही रोज़ी-रोटी के जुगाड़ मे लग जाता है।उसके लिये समाज और धर्म के दूसरे कोई नियम लागू नही होते सिवाय रोज़ी-रोटी कमाने के।और उसका गरीब समाज भी उसे सामाजिक मान्यतायें तोड़ने पर भी क्षमा कर देता है क्योंकि क्षमा तो अब सिर्फ़ गरीब का आभूषण रह गया है।और फ़िर वो क्षमा नही करेगा तो कर भी क्या सकता है?वो तो समलैंगिको जितना भी खुशकिस्मत नही है जिसके लिये सारे देश मे हंगामा हो शोर हो।
एक बात है गरीब ने ज़िंदा रहने के लिये प्रकृति के अनुरूप ढलने के नियम को मज़बूरी मे ही सही पूरी-पूरी तरह स्वीकार कर लिया है और उसमे एक नियम है क्षमा का।क्षमा! चाहे कोई भी गलती करे,क्षमा गरीब ही करेगा।सरकार के मामले मे तो ये स्कूल कालेज के इम्तिहानो मे पूछे जाने वाले कमीने पहले सवाल की तरह अनिवार्य हो गया है।कुपोषण से लड़ने का दावा करती है सरकार,इन्फ़ैन्ट मोर्टेलिटी रेट नीचे लाने की बात करती है सरकार।क्या कभी सरकार ने बाज़ार जाकर दाल-आटे का भाव देखा है।कभी सुना करते थे एक मुहावरा दाल-आटे का भाव पता चलना।तब लगता था क्या दाल आटे की बार करते है लोग।पर अब पता चल रहा है कि दाल सत्तर रुपये किलो हो गई है।क्या गरीब रोज़ दाल खा सकता है?सरकार को तो चाहिये गरीबों को अपनी रानी या राजकुमार के फ़ोटो सहित दालो के पोस्टर बांट दे,जिन्हे देख कर सुखी रोटी और भात खायें और दाल का स्वाद और पौष्टिकता का भरपूर आनंद लें। और नही भी लेंगे तो क्या कर लेंगे सरकार को भी पता चल गया है गरीबो ने सुबह शाम यही भजन गाना शुरू कर दिया है,क्षमा गरीबन को चाहिये,सरकार को……….………।
20 comments:
बहुत अच्छे!मुहावरे का सही स्थान पर करारा उपयोग किया है।
अच्छी खबर ली ! पर इनको खबर नहीं लगेगी !
आपमें द्विवेदी वाले गुण हैं, दूसरों की अच्छी खबर लेते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सटीक.
रामराम.
"भैया उन लोगो को तो कल से लेकर आज तक़ समलैंगिको से फ़ुरसत नही मिल रही है।"
समलैंगिकों को भी टीवी वालों से फुरसत कहाँ मिल रही है?
अब सरकार भी कया करे अरे जरुरी दाल ही खानी है, पिज्जा खाऒ ओर देवी के गुण गायो
गरीब का क्या है..बेचारा नेता की गाय है.... बस्स.
दुह के देखो बिना सींग मरे वोट देता है.
अजी अब गरीबों को कौन देखता है?
aapne to baaton baaton mein bahut baat kah di
katkash khoob rahe aapke
सही कह रहे हैं। कोई मंहगाई-वंहगाई नहीं है। अरे मुद्रा स्फिति (भाई यह क्या बला है? पता नहीं) जब शुन्य हो गयी तो महगाई कैसे हो सकती है?
सब विदेशी ताकतें भोले-भाले भारतियों को भड़काने की कोशिश कर रही हैं।
सही चोट की!!
गरीब का जीना भी क्या जीना है! कुछ तो दुनिया ही जीने नंही देती और रही सही कसर ये सरकार पूरी कर देती है......
वैसे सुनने में आया है अभी ओर बढ़ेंगे .पहले पढ़ते हुए हमने सोचा आप उस बैंक मनेजर की बात तो नहीं कर रहे है जिसे आंध्र प्रदेश में एक संसद ने थप्पड़ मार दिया.
घणी खम्मा सरकार!
utpatiyo ka hi to jmaana hae
क्षमा बडन को चाहिए, छोटन को उत्पात
सही कहा आपने. गरीबी से TRP थोड़े ही प्रभावित होती है वह तो इन्ही दो मुद्दों से - एक प्रतिबन्ध लगना (वेबसाइट पर) और दूसरा प्रतिबन्ध हटना (अंग्रेजी कानून पर) से तय होती है. गरीबी का क्या है? गरीब हटाओ तो अपने आप ही हट जायेगी.
गरीब हमेशा मजबूरी के साथ जुड़वां पैदा होता है. उस मजबूरी का नाम आपकी डिक्शनरी में क्षमा लिखा है. लेकिन सरकार को दोष देना प्रतिक्रियावादी सोच है. आपको याद होगा हमारे राजकुंवर ने चुनावों के पहले गरीबों के झोपडों में ही रात गुजारी थी.पेट्रोल के दाम बढ़ने से गरीबों की मृत्यु दर कम होगी.क्योंकि वे आत्महत्या करने के लिए पेट्रोल नहीं खरीद पायेंगे.गरीबों के हित की बात सोचते हुए ही उनको समलैंगिकता का आनंद लेने की खुली छूट दी जा रही है.हमें इस बात से खुश ही होना चाहिए की जो लोग सत्ता में पहुँच गए हैं उनकी गरीबी तेजी से ख़त्म हो जाती है.
वाहवा बेहतरीन कहा है आपने भाई जी
सटीक सार्थक सत्य लिखा है............. आपका अंदाज़ जुदा है लिखने का..........
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