हमारी मंडली बैठी ही थी कि एक अंजान शख्स आ टपका पता पुछते-पुछ्ते।आते ही उसने अपनी समस्या बताई और कहा कि मै मदद की गुहार लगाते-लगाते थक गया हूं।किसी ने बताया कि आप गरीबो की जी जान से मदद करते है सो आपकी शरण मे चला आया हूं निराश मत करना साब।मैंने उसे दूसरे दिन मिलने को कहा और वापस कुर्सी पर पसर गया।मेरी हालत देख कर सारे दोस्त समझ गये थे कि मामला गंभीर है।इससे पहले मै उन्हे कुछ बताता एक मित्र ने कहा कि तू अब ये लफ़ड़े छोड़ और चैन से जी और हमको भी जीने दे।मैने कहा यार वो गरीब है और उसका कोई भी नही है।तो उधर से जवाब आया तूझे पता भी है बे गरीब इस देश मे गरीब ही क्यों रहता है?कोई उसका उद्धार क्यों नही करता? पता भी है कि गरीब की मदद क्यों नही करते हैं बड़े लोग?
मै हैरान रह गया।मैने पूछा पता तो नही है अब विद्वान लोग हो आप ही बता दो तो मेरा भी ज्ञान बढ जाये।इस पर सबने कहा ये तो बहुत ज़रूरी है कि तुझे पता चले।अब अपोज़िशन की कमान ग्रुप के एक सरकारी अफ़सर ने संभाल ली।वो बोला तुम्हारी सुन-सुन कर पक गये है आज हमारी भी सुनो।मैने कहा सुनाईये।उसने पूछा कि ये बता तू आये दिन परेशान रहता है नही?मैने कहा,हां रहता तो हूं।उसने फ़िर पूछा कि पता है क्यों?मैने कहा हो सकता है तक़दीर मे लिखा हो।उसने कहा तक़दीर मे लिखा नही है बे तू खूद अपने हाथ से लिख रहा है?इस बार मैने पूछा,वो कैसे?
जवाब जो सामने आया उसने ऊपर से नीचे तक़ हिला कर रख दिया।उसने कहा कि साले जब देखो तब गरीबो की मदद करता है ना?मैने कहा,हां करता हुं और इसमे बुराई भी क्या है?उसने कहा बुराई है।जभी तो तू हमेशा परेशान रहता है।अगर गरीबो की मदद करने से पुण्य मिलता तो सबसे बडा पुन्यात्मा तो तू ही होता।और तू उन पुण्यो के बदले जी भर कर सुख भोगता।मगर ऐसा हो नही रहा है?है ना?मैने कहा बात तो सही है।वो बोला इसिलिये कहता हूं बे गरीबो की मदद मत कर वरना खुद गरीब हो जायेगा समझे।
मैने गुस्से मे कहा,नही समझा और मुझे समझना भी नही है।उसने कहा समझना तो तुझे पड़ेगा ही।मैने कहा कि अब सम्झा ही दो।वो बोला ये बता गरीब को गरीब किसने बनाया?मैने चिढ कर पूछा कि मुझे क्या मालूम?हो सकता है उसके तक़दीर मे यही लिखा होओ सकता नही बे यही सच है।उसकी तक़दीर मे लिखी किसने?भगवान ने ना?मैने कहा,काहे दिमाग खा रहा हे जो कहना है साफ़-साफ़ कह दे।वो बोला अबे सारी दुनिया जानती है तक़दीर भगवान लिखता है और जिसको भगवान ने गरीब बना कर भेजा अपने कर्मो की सज़ा भुगतने के लिये,साले तू उसकी मदद करके क्या साबित करना चाहता है?क्या तू भगवान से बड़ा है जो उसकी मुसीबत कम करने की कोशिश कर रहा है?तू साले आये दिन जो गरीबो की मदद करता है ना,जानता भी ऐसा करके तू डायरेक्ट भगवान से पंगा ले रहा है?जिसे खुद भगवान ने गरीब बनाया तू उसे अमीर बनाने की कोशिश करके भगवान को चैलेंज करता है?इसिलिये तेरी पोज़िशन हमेशा खराब रह्ती है।ज्यादा मदद करेगा ना तो साले एकाध दिन भगावान तेरे को भी गरीब बना देगा।
तूने क्या ठेका लिया है क्या बे गरीबो की मदद का?एक से एक बड़े-बड़े नेताओ ने कोशिश की है गरीबो की मदद की?क्या हुआ ?हुये कुछ कम गरीब?नही ना?अबे गरीबी हटाने वाले।गरीबो की मदद करने वाले तमाम कथित गरीबो के मसीहा चले गये गरीबो को जस का तस छोड़ कर।समझा कुछ या और समझाऊं।मैने सिर झुका कर कहा समझ गया महाराज,सब समझ गया।
29 comments:
गरीब की मदद वाकई भगवान से पंगा है।
चलिए आपको सत्य का ज्ञान तो हुआ ........
वीनस केसरी
राम राम है भगवान मेने भी अंजाने मै बहुत बार आप से पंगा ले लिया है आशा करता हुं क्षमा करेगे, आज ही यह ग्यान मुझे प्राप्त हुआ है
धन्यवाद अनिल जी
गरीब के पास जुबान ही कहाँ होती है मुझे यह किस्सा अतिरंजित लगता है या फिर वह गरीब नही है जो ऐसा बोल रहा है
चलो, समझ तो गये.
1. दुष्टों की बात में मत आना...अगर आस्तिक हैं तो भरोसा रखें, दीन-दुखियों की मदद कर आप भगवान का ही काम कर रहे हैं क्योंकि उसने बहुत से दुखियारों के मामले इसीलिए लम्बित रखे हैं ताकि इन्सान में भगवान जाग सके। सच्चा ईश्वर हर क्षण यही चाहता है कि उसके कर्तव्य, मनुष्य खुद निभाए। मूर्खों के लोकप्रिय तर्क वही हैं, जो आपके मित्रों ने दिये हैं। उन्हें मेरा जवाब पढ़ा दें।
2. अगर नास्तिक हैं तो अपने इन्सान होने का परिचय दीजिए और गरीबों के मददगार बनिये, क्योंकि आप जानते हैं कि आप उनकी मदद नहीं करेंगे तो ईश्वर तो करने से रहा, क्योंकि उसका अस्तित्व ही नहीं है। मददगार की गुहार ही आपके भीतर के क्षमतावान व्यक्तित्व की आत्मा को जगाती है, सो मदद मांगने वाला खुद का भला चाहने के स्थान पर दरअसल आपका मददगार बन कर ही सामने खड़ा होता है जिसकी विभिन्न चेष्टाएं आपके भीतर हलचल मचाती हैं...और अंततः एक इन्सान ही उभर कर सामने आता है जिस पर संसार में व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व है। ऐसे में अपने इर्द-गिर्द कम से कम खुद होकर मदद मांगने आने वालों की मदद ज़रूर करें। बेशक उनकी हकीक़त का परीक्षण करें। इतना अनुभव तो वक्त ने आपको दे ही दिया है। अपनी ऐसी कोई आदत न बदलें जिसका वज़न नैतिकता के तराजू पर भारी पड़ता हो।
जै जै
bhai yah bhi khoob rahi
____________khoob kahi.....ha ha ha ha
आखिर ज्ञानचक्षु खुल ही गए न !
बात कुछ जमी नहीं। गरीबों की मदद करके कोई उन पर अहसान नहीं कर रहा। लोकंत्र में यह उनका हक है कि उन्हें बराबर के अवसर मिले।
यदि नहीं मिल पा रहा है तो इसका कारम यह है कि यहां लोकतंत्र एक मखौल भर है। यहां का तंत्र अमरों और निहित स्वार्थों के हित में चलाया जा रहा है।
इसे समझना जरूरी है और हर भारतीय को गंभीरता से इस पर सोचना भी होगा कि हमारे यहां सच्चा लोकतंत्र कैसे स्थापित हो सकता है।
आप समझ गये तो हम भी समझ गये
शरद भाई वैसे मै कभी भी कमेण्ट पर रियेक्ट नही करता हूं मगर मुझे ऐसा लग रहा है कि आप की बात पूरी तरह गलत है इसलिये जवाब देना ज़रूरी है।आप थोड़ा ध्यान से पढ लेते तो समझ मे आ जाता कि मैने कहीं भी गरीब के कहे शब्दों का उल्लेख नही किया है।जो सारी बातचीत है वो मेरे और मेरे मित्र के बीच है और मित्र तो स्वतंत्र होता है कुछ भी बोलने के लिये। और वो गरीब भी नही है।आप मेरे मित्र के कहे को गरीब का कहा समझ गये शायद इस्लिये लिख दिया कि गरीब की जुबां कंहा होती है और ये किस्सा सिर्फ़ आपको अतिरंजित दिखाई दिया बाकी किसी को नही।विश्वास है आप इसे अन्यथा नही लेंगे।
आज गरीबो कौन सुनता है जब वह बोलते है तो उनकी आवज बन्द कर दी जाती है
सत्य क्या है, कभी पता नहीं चला. गरीब (?!!) की हो सके उतनी मदद करनी चाहिए. वैसे हम भी किसी न किसी के आगे गरीब ही हैं.
अपना सिद्धांत है मजदूर से मोलभाव नहीं करना.
उसी की मदद करना जो सचमुच में अपना उत्थान चाहता है.
उसकी मदद बिलकुल नहीं करना जो गरीब ही बना रहना चाहता है, ताकी दुसरे मदद करते रहे.
जी भाउ, हम दो-चार बार गरीबों की मदद किये थे (एक बार गरीब ने कहा था कि उसे गाँव जाना है, बीमार पत्नी को लेकर, फ़िर शाम को वही गरीब मेरे दोस्त से भी पैसे ले गया कि गाँव जाना है मां को लेकर), एक बार एक गरीब को पूछा कि चल दो रोटी खा ले, उसने कहा नहीं बाबूजी 5-10 रुपये दे दो…, दे दिये और गरीब साहब दस मिनट बाद ही अगली सड़क पर टुन्न दिखाई दिये… अब बोलो क्या करूं? भगवान को चुनौती दूं या नहीं? जैसा आप आदेश करो…
ाकई सत्वय का बोध होने का एहसास हुआ.
रामराम.
आपके व्यंग की धर का भी जवाब नहीं............ लाजवाब
अजित जी ने सबकुछ कह दिया.
अरे बाबा मजाक भी नही कर सकते, सभी लोग गरीब का भला ही सोचते है, उन के लिये तडपते है, फ़िर हम सब भी कोन से अमीर बन गये की गरीब की लुडिया डुबो दे.. अनिल जी ने मजाक मै लिखा ओर उसे मजाक समझ कर सभी टिपण्णीयां भी दे रहे है
इस लिये इस बात को ज्यादा तुल मत दे सब गरीबो की मदद अपने अपने ढंग से करते है, ओर कल हम भी सडक पर आ सकते है
हमें भी नहीं पता था ...आज पता चला
गरीब की मदद तो उसके लिये नहीं, अपने को परिमार्जित करने के लिये की जाये, तभी श्रेय है!
जब गरीब भगवान बनाता है तो मदद भी तो भगवान् ही कराता है.. भगवान् ने आपकी तकदीर में गरीबो की मदद करना ही लिखा है अब नहीं करके भगवान् से पंगा लेंगे क्या आप???
वैसे मदद और भीख में अंतर है.. भीख के हम खिलाफ है.. पर मदद तो सबकी ही करनी चाहिए अमीर क्या गरीब क्या?
सक्षम हैं तो किसी की सहायता जरूर करनी चाहिये। बिना भगवान को बीच में लाये। वैसे यह तो कोई तुक नहीं बनता कि मुझे सीख देने या पुण्य देने के लिये भगवान किसी को गरीब बना कर भीख मगवाये।
पहले यह तो बताये गरीब होते कैसे है
चलिए इसी बहाने सब को समझ में आ गया आगे से भगवान से पंगा नई लेने का .
गरीब का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता...
(बिगाड़ने के लिए उसके पास पहले कुछ हो तो सही) :-/)
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
गरीब की मदद करना तो हमारा सबसे बड़ा धर्म है। अलबत्ता, यह मदद किसी फल की इच्छा से नहीं करनी चाहिए।
kajal dee se sahmat....
बड़ी चतुराई से सबके भीतर झांक गए :)
भैय्या कोई पैसे से गरीब होता है, कोई दिमाग से , कोई भले दोस्तों की कमी से गरीब होता है ,और कोई टिपण्णी पाने से आप तो अमीर है टेंशन नहीं लेने का ...
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