Tuesday, July 14, 2009

अरू,मेधा कंहा हो तुम लोग?देखो छत्त्तीसगढ मे महिलाओं को महीने भर की तनख्वाह सि्र्फ़ दो और चार सौ रूपये महिना मिल रही है?क्या उनके लिये आवाज़ उठाना ज़रूरी नही है?

कोई विश्वास करेगा कि महीने भर की तनख्वाह सिर्फ़ दो सौ और चार सौ रूपये हो सकती है?जी हां ये कडुवा सच है और इसे भोग रही है लगभग साढे सात सौ महिला शिक्षिका और सहायिकायें। एक नही पूरे चौदह साल से उनका वेतन कहे या मानदेय इतना ही है जबकी सरकार की निर्धारित मजूरी दर चौहत्तर रूपये है।इन महिलाओ का दुर्भाग्य ही है कि वे रोज़गार गारंटी योजना के तहत मज़ूरी भी नही कर सकती और उन्हे बीपीएल यानी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालो को दिया जाने वाला राशन कार्ड भी नही मिल रहा है।

इन महिलाओं का संघर्ष काफ़ी पुराना है और अब इनके पति ,बच्चे और परिवार वाले भी ताने देने लगे हैं।आठ घंटे की ड्यूटी के बदले मे मात्र दो सौ रूपये और सडक पर मजूरी करने वाले की रोजी सौ रुपये से ज्यादा। है ना अन्याय्।मगर अफ़सोस की बात ये है कि ये सब अरू मैडम और मेधा जी को नही दिख रहा है।दरअसल इन महिलाओं का यूएस या विदेशी एन जी ओ से कोई लिंक नही है और ना ही इनकी कोई पब्लिसिटी वेल्यू है।इसलिये ना तो अरू छत्तीसगढ आ रही है और ना ही मेधा और ना कोई और महिला हित रक्षक्।

इन महिलाओ की दास्तां सुनकर कोई भी रो देगा।इनका कहना है की छत्तीसगढ सरकार द्वारा चलाई जा रही एक रूपये और दो रूपये किलो चावल योजना का लाभ उन्हे नही मिल पा रहा है।वे राह्त कार्य मे रोजी कमाने नही जा सकती।सरकार उन्हे सिर्फ़ दो सौ और चार सौ रूपये महिना मानदेय देकर गरीबो की श्रेणी से अलग कर दे रही है जबकी गरीब से गरीब मज़दूर को तीन हज़ार के आसपास वेतन मिलता है।

उनके हक़ की लडाई अभी तक़ सत्तारूढ दल के ही नेता मोहन चोपडा लड रहे हैं।स्वभाव से ही लडाकू मोहन चोपडा ने थक़ हार कर इस लडाई मे कांग्रेस तक़ का साथ लेने की बात कही और बाद मे उन्होने भाजपा के ही तेज-तर्रार विधाय्क देवजी भाई पटेल से इस मामले मे मुलाकात की।ये लोग लड रहे है मगर महिलाओं के हक़ की बात करने वाली महिला ठेकेदारनियां अब छतीसगढ मे नज़र नही आ रही है।उनका जेल मे बंद नक्सली समर्थक़ को जमानत पर रिहा कराने का अभियान पूरा हो चुका है और फ़िर ये महिलायें पेज थ्री लेवेल की भी नहि है ना।

19 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत अफसोसजनक स्थितियाँ हैं..यह तो शोषण है. इसके खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिये.

दिनेशराय द्विवेदी said...

यही शोषण जब बढ़ जाता है तो लालगढ़ पैदा करता है। लेकिन संघर्ष सदैव जनता को लड़ने पड़ते हैं। उन्हें नेतृत्व भी अपने अंदर से ही विकसित करना होगा। बाहर के लोग केवल मदद कर सकते हैं। अक्सर बाहरी नेतृत्व ने सदैव श्रमजीवी जनता को धोखा दिया है। अंदर से उभरे नेतृत्व पर भी लगातार जनता का नियंत्रण न हो और संगठन के अंदर जनतंत्र न हो तो वह भी विपथगामी हो जाता है। किसी भी संघर्ष और संगठन की शक्ति उस में लिए जाने वाले निर्णयों की जनतांत्रिकता पर निर्भर करती है। अरुंधती और मेधा पहले भी आप के यहाँ स्वतः नहीं पहुँची थी। उन्हें पीयूसीएल ले कर आया था, बिनायक सेन जिस के उपाध्यक्ष हैं।

दिनेशराय द्विवेदी said...

पिछली टिप्पणी में मैं संभवतः बिनायक सेन को पीयूसीएल का अध्यक्ष लिख गया हूँ वे वास्तव में इस संगठन के उपाध्यक्ष हैं।

राजीव रंजन प्रसाद said...

हमारे देश की विडम्बना है कि आम आदमी की बात करना एक फैशन है लेकिन उसके लिये आवाज बुलंद करने का दंभ करने वाले लोग मौखौटों वाले हैं।

आप ने सच कहा कि नक्सली और नक्सल समर्थन के इये बुलंद होंने वाले स्वर स्वयं कितने मानवीय होंगे? धिक्कार ही है।

लोकेश Lokesh said...

सोते हुओं को जगाना आसान है अनिल जी, जो सोने का बहाना कर रहा हो वो कैसे जगेगा और फिर कुछ दिखाने के लिए कई तरह की खुमारी उतारते ही वक्त बीत जायेगा

Anil Pusadkar said...
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अजित वडनेरकर said...

आंखे खोलनेवाली पोस्ट...पर खोले कौन? ऐसे न जाने हाहाकारी तथ्य जेब में लिये पत्रकार दिनभर घूमते हैं...अब ये खबरें टीजी का हिस्सा भी नहीं रहीं...लालगढ़ कहां है:)

ताऊ रामपुरिया said...

आजादी के इतने समय बाद भी स्थितियां बहुत अफ़्सोसजनक हैं. बहुत दुखद.

रामराम.

संजय बेंगाणी said...

आपको लगता है कि इन महिलाओं के लिए हाय हाय कर मेरी फोटो टीवी तथा पेज थ्री में चमक सकती है तो मैं संघर्ष के लिए तैयार हूँ. वरना वे अपनी खींचे, औढे...दुनिया में और भी गम है....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अब मुअज़्ज़नों की कौन सुनता है
चिख-चिल्लाहट अज़ानों तक पहुंचती है--दुष्यंत

अनिल कान्त said...

ऐसे तमाम इंसान है जिनकी इसी तरह की पीडाएं हैं .... जो हैं तो गरीब परुन्हें वो सुविधाएं नहीं मिल सकती जो अन्य को मिलती हैं...आपने अच्छा लेख लिखा है

डॉ महेश सिन्हा said...

इनके खर्चे पानी का इन्तेजाम हो तो ये आयें . मीडिया इन्हें प्रचार क्यों देता है ? आम आदमी से इनका कोई लेना देना नहीं .

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

वैसे मेरा मानना है, कि जो अपनी मदद खुद नहीं करता, उसकी मदद खुदा भी नहीं करता।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Murari Pareek said...

bahut dukhad: aakhir do so chaar so me koi kyaa karegaa!! bahut jyada shosan hai ye to!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ठीक ही लिखा है. इनसे कौन सी टीआरपी, यूएसपी बढ़नी है.

विवेक सिंह said...

विषम परिस्थिति है .

न जाने लोग गरीब का पेट काटकर क्या पा लेना चाहते हैं .

शेफाली पाण्डे said...

बेहद अफसोसजनक स्थिति है ....

Gyan Dutt Pandey said...

काहे आवाहन कर रहे हैं छद्म नायिकाओं का।

डॉ महेश सिन्हा said...

सही कहा पांडेयजी . किसी स्टार होटल में आराम फरमा रही होंगी