पाक सीमा के आसपास नही देश के हृदयस्थल छतीसगढ तक़ पाक मे छपे नकली नोटो का पंहुच जाना इस बात का सबूत है कि उन लोगो की पकड़ कितनी गहरी है।नकली नोट यंहा सालो से चलाये जा रहे हैं।हाल मे पकड़ाये नकली नोट स्कैन किये हुये मिले मगर इस बार पकड़ाये नोट छापे हुये हैं।ये बात चिंताजनक है और तारीफ़ करनी होगी पुलिस की बंगाल के माल्दा इलाके से आये मात्र उन्नीस साल के एक युवक शेख बोरजंहा को उसने कुछ ही घण्टो मे पकड लिया।उसका एक साथी फ़रार होने मे सफ़ल हो गया है।एस पी अमित कुमार और उनकी टीम इस मामले की जांच मे भीड़ी हुई है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या ये खबर बड़ी नही है।एक न्यूज़ चैनल कल से दहाड़ मार-मार कर रो रहा है कि गुजरात मे हुआ एनकाऊंटर फ़र्ज़ी था।उसका रोना जारी है और अब उसने एक नया राग आलापना शुरू कर दिया है।उसका कहना है कि मामले का सच साम्ने आना आधा न्याय है ,पूरा न्याय तब कहलायेगा जब आरोपियों को सज़ा मिलेगी।उन्होने बाक़ायदा सवाल भी पूछने शुरू कर दिये हैं।ठीक है सही कर रहे है दोषियों को सज़ा मिलनी ही चाहिये लेकिन क्या ये नियम सिर्फ़ गुजरात के लिये लागू है?क्या महाराष्ट्र के कोल्हापुर मे गणेश जी की मुर्तियों को तोड़ने की घटना को नही दिखया गया?क्या सिर्फ़ इस्लिये कि इससे दंगे भड़क सकते थे?क्यो वंहा पुलिस की जीप पर चढ कर पाकिस्तान का झंड़ा लहराने की घट्ना को नही दिखाया गया?क्या इससे हिंदू भड़क़ जाते?क्या इस देश मे पाकिस्तान का झंडा ,वो भी दंगा करके,पुलिस की जीप पर चढ कर लहराने की एक वर्ग विशेष को छूट दे दी गई है?और भी बहुत से सवाल है,जो इस देश मे मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े करता है।
लाखो रूपये के नकली नोट पकड़ा रहे है,वो दिखाने का टाईम नही है।और किसी के भी बेडरूम तक़ मे घूसे जा रहे है भाई लोग्।एक भाजपा नेत्री को अश्लील एम एम एस मे घसीट दिया पता नही किसका था,बस अनुमान लगाया और कर दिया खड़ा बखेड़ा।एक अफ़सर की अपनी पत्नी के साथ अतरंग क्षणो की फ़िल्म मिली,तड़ से दिखा दिया,न तो उसकी बीबी ने शिकायत की थी और न ही उसके परिवार मे किसी ने।बस कुछ ठेकेदारो ने भुगतान रोकने वाले अफ़सर को ब्लैकमेल करना चाहा और सफ़ल नही होने पर मिडिया को फ़िल्म मुहैया करा दी और मामला समाज-सुधार का हो गया,ब्लैकमेलिंग का नही।
ऐसे एक नही सैकडो उदाहरण है मगर क्या करें,मीडिया को तो पिलीया हो चुका हैउसे तो पीला ही नज़र आयेगा।आज सुबह से मै नेशनल न्यूज़ चैनलो पर नकली नोटो की खबर ढूंढ रहा हुं,जंहा से शेख नकली नोत लेकर आया है उस जगह माल्दा की खबर आ गई मगर रायपुर की नही।गुस्सा तो था ही सुरेश चिपलुणकर की पोस्ट पढ कर गुस्सा और बढ गया तो मै भी लिख बैठा।मुझे लिंक देना आता नही इसलिये क्षमा चाहता हूं,मगर आपसे अनुरोध ज़रूर करूंगा कि सुरेश जी के ब्लाग पर ज़रूर जाकर उनकी पोस्ट को पढे।
27 comments:
..........हो सकता है कि इससे उनके हिसाब से तनाव फ़ैल जाता .
aur jab keral main kathit 'dharm parivartan' ko zaroorat se zayada uchala jata hai tab?
HAMAARE DESH KA MEDIA BIKA UVA AI ... VIDESHIYON KE HAATHON ..... HINU NAAM KO GAALI DENA ADHUNIKT KI NISHAANI BAN CUKI HAI ....
IN SAB BAATON KE MOOL MEIN CIPI GAHRI SAAJISH KO PAHCHAANA BAOOT JAROORI HAI ISSE PAHLE KI BAHOOT DER HO JAAYE .....
वाह....!
बहुत खूब,
आप साहस की प्रतिमूर्ति हैं।
बधाई!
दिल का दर्द समझ सकता हूँ अनिल जी, मगर क्या करे स्यूडो सेकुलर देश में रहते है जयचंदों संग !
यह हमारे देश की विडंबना है, की ठेकेदारों के सहारे देश चल रहा है और सरकार आँखें मूंद कर बैठी है!
यह सिर्फ आपका ही नहीं हम सब का दर्द है.......जबतक कोई रास्ता नहीं सूझता ...बस कुढ़ना है.....
मीडिया का मामला कुछ समझ में नहीं आता है।
पता नहीं क्या खाकर न्यूज बनाने बैठते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुना करते थे कि जो (सामान्यतया) दिखता है वह बिकता है
अब यह हाल है जो (अंतरंग) नहीं दिखता, उसे दिखा कर बेचो
बी एस पाबला
महान कहवाना, सही समाचार दिखाने से ज्यादा जरूरी है. वैसे भी बिके हुए लोगों से उम्मीदे भी नहीं है.
मीडिया ने तो जैसे कसम खा रखी है किहम नहीं सुधरेंगे....हम चन्द लोगों के हाथों की कठपुतली बनकर रहेंगे
hamara dard ab sunaii bhi to nahi deta . jab afjl muslim bhavna ka prteek hae to khuda khaer kare hindustaan ka
"अंधी पीसे कुत्ते खाएं" ये कहावत इस देश पर पूरी तरह से फिट बैठती है......जनता पीसे जा रही है और कुत्ते खाए जा रहे हैं। और जिसका खा रहे हैं,उसी पर गुर्रा भी रहे हैं......कुछ नेताओं के भेस में हैं तो कुछ मीडिया या फिर नौकरशाही के भेस में........
वाकई रायपुर पुलिस की अभी की टीम बहुत अच्छे काम कर रही है . ऐसे ही अधिकारी चाहिए इस देश में . इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बारे में बात करना अपना समय व्यर्थ करना है .
कईओं के पेट की आग इन्हीं पाकिस्तानी नोटों से बुझ रही है. ऐसे लोग इनके पकडे जाने की खबर से कैसे खुश होंगे भला.
सब कुछ तो सब ने कह दिया हम तो सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं कि भगवान आओ मीडिया का कन्ट रोल अपने हाथ मे लो आभार्
अनिल जी आपके लेखनी के धार का मुरीद हो गया हूँ मैं | काश देश के अन्य पत्रकार की कलम मैं भी ऐसा धार दिखता ! इश्वर आपको नित नयी ऊर्जा देते रहे और आप ऐसे ही लिखते रहें | हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ है |
नकली नोट!!!! अरे नहीं जनाब, ये तो अंतरराष्ट्रीय नोट है जो भारत के किसी भी कोने में चलते हैं- तो इसे मीडिया क्यों बताए!??????????:-)
गुस्सा जायज है
शायद मीडिया वाले भी यही नोट खाते होंगे या उन आकाओं को पहचानते होंगे तो उनसे गद्दारी करने की हिम्मत नहीं होगी।
भारत कब तक यूं भौंदू बना भेड़िया-भेड़िया चिल्लाता रहेगा...भाई बहुत हो गया...क्यों नहीं पाक को पाक के ही खेल से जवाब देते...
आप सब की टिपण्णियो से सहमत हुं, दुख तो बहुत होता है ऎसी खबरे सुन कर... लगता है इस देश मै हर तरफ़ चोर ही चोर बेठे है, ओर जनता बेचारी सहमी सी ,डरी से किसी तरह जिन्दगी के दिन काट रही है....
आप ने बहुत सूंदर लिखा, काश इस बेकार मिडिया को, नेताओ को एडस हो जाये, स्वाईन फ़लू हो जाये. तब ना रहेगा बांस ना बजे गी...
यही विडंबना है...
T. V. news is dead for any sensible viewer. I can say it after reading the article u have suggested in your post. He has thrashed T.V. news industry single handedly.
सारगर्भित लेख..
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
सच बात है मीडिया पगला गई है। लेकिन पगलाई क्यों, क्या जवाब है। खबर दिखाता है ना एनडीटीवी, पिछले 6 महीने में 400 से ज्यादा लोगों को करीब निकाल दिया गया है। हिसाब है, बना दो ना उसे नंबर 1 चैनल देखो बाकी सब चैनलों के होश उड़ जाएंगे सब सुधर जाएंगे। पर जब इंडिया टीवी को नंबर 1 बनाने में लगे रहेंगे तो फिर ये क्यों एक्सपैक्ट करते हो कि खबर चले फिर तो बकवास ही चलेगा क्योंकि आप सब लोग ऐसा चाहते हैं। कुछ मुट्ठी भर लोग चाहते हैं कि खबर दिखे वर्ना सब नंगाई देखना पसंद करते हैं।
बुरा लगे तो माफी।
और अनिल भाई ये मेरी और आपकी नहीं प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक की लड़ाई है। अन्यथा ना लें।
देशहित में उम्दा सामयिक आवाज बुलंद की है आपने आभार.
Fir bhee to hum unko chun kar la rahen hain. BJP ko bhee apne me bahut sudhar lane kee aawashykta hai mauka dekh kar menifesto nahee badal sakte. suresh jee aur aapke blog par kum se kum log jagrook to ho rahe hain. Media to kareedi gulam hai sarkar kee.
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