Saturday, October 3, 2009

पी रहे हैं,खा रहे हैं और बापू के नाम पर आंसू भी बहा रहे हैं?

कल बापू की जयंती थी।एक कार्यक्रम मे बतौर मुख्य अतिथी मै भी शामिल हुआ।तबीयत खराब होने के कारण जाने से मना कर चुका था लेकिन बार-बार आग्रह पर चला गया।मुझसे दो शब्द कहने के लिये कहा गया और फ़िर जो मेरे दिल मे गुबार था निकलता ही चला गया।अंत मे मैने सिर्फ़ इतना कहा कि जिस दिन हम सब सच बोलना शुरु कर देंगे और ज़रूरत से ज्यादा जमा करना बंद कर देंगे तो सही मायने मे बापू खुश होंगे।

कार्यक्रम बाल आश्रम मे था।बिन मां-बाप के ढेरों बच्चे सफ़ेद खादी के कपडे पहन कर बापू की जयंती की फ़ोर्मेलिटी पूरी कर रहे थे।मंच पर चरखा भी उसी उद्देश्य से रखा गया था।एक बुज़ुर्ग पुरूष और एक महिला अलग-अलग चरखों पर गांधियन एरा की माडलिंग कर रहे थे।वे ज़मीन पर थे और तमाम गणमान्य?जिनमे मैं भी शामिल था अंग्रेज़ो की बिछाई कुर्सी पर विराजमान थे।मै थोड़ा देर से पंहुचा था और मैने इस्लिये क्षमा मांगकर अपने बड़ा दिखाने का मौका हाथ से जाने भी नही दिया।
खैर फ़ुलमालाओं से सभी अतिथी लाद दिये गये।मंच पर एक अतिथी मेरे मित्र के चाचा और एक जीजाजी थे।उन लोगों ने गांधी पर कोई बात करना छोड़ मेरी तबियत के बारे मे पूछा और इसी बीच मुझसे दो शब्द कहने के लिये कहा गया।मेरा दिमाग खराब हो गया।मै कार्यक्रम मे गया ही इसी शर्त पर था कि मै भाषण-वाषण नही दूंगा और मेरा गला भी खराब था।मैने आयोज़को से पहले ही कह दिया था मै गांधी जी के कार्यक्रम मे बुलाने लायक नही हूं।उन्होने भी कहा था कि तो कौन से लोग लायक है तुम्ही बता दो।नेता वीआईपी ट्रीटमेंट चाह्ते है और हम उन्हे बुलाना भी नही चाहते।इस बात पर मै तैयार हुआ था कि मैं कुछ बोलूंगा नही।

और फ़िर अचानक़ बोलने के लिये जब बुलाया गया तो मेरा सरक जाना भी वाज़िब ही था।मैने शुरू ही इस बात से किया कि हम सब लोग बापू की जयंती मनाने की औपचारिकता पूरी करने के लिये आये हैं।और फ़िर तो जो मुंह मे आया बकता चला गया।मैने कहा कि मैं सच बोलने पर विश्वास रखता हूं लेकिन ये दावे से नही कह सकता कि मैं झूठ नही बोलता।जिस दिन से मैं सिर्फ़ सच बोलना शुरू करूंगा उस दिन फ़िर आऊंगा।
वंहा से उठे तो मुझसे बच्चों को खाना परोसने के लिये कहा गया।यही एक अच्छा काम था जिसे मैने गांधी जयंती पर अतिथी होने के नाते किया।वो काम भी बस औपचारिकता ही था।इसी बीच फ़ोन घनघनाने लग गया था।उधर से रोज़ की सत्संग मण्डली के बाबाओं का ज़ल्दी आओ अभियान शुरू हो गया था।मैने जब बताया गांघी जयंती के कार्यक्रम मे हूं तो उधर से जवाब आया कि ज़ल्दी निपटाओ अपने को भी बापू का बड्डे सेलिब्रेट करना है।आज ड्राई-डे है इसलिये ईधर-उधर जा नही सकते,तुम सीधे गोपाल के घर पंहुचो।मैने कहा शुक्र है गोपाल के यंहा इकट्ठा हो रहे हो।सत्संगियों ने पूछा क्यों?मैने कहा कि कम से कम उसके घर मांसाहार तो वर्जित है।दूसरे किसी के घर होता तो फ़िर पियो भी ,खाओ भी और बापू के नाम पर आंसू भी बहाओ?मै पत्रकार साथियों खुशदीप और मनीषा जितना हिम्मती नही था इसलिये कन्फ़ेशन मे देर हो गई।मुझे ये सब कल ही लिखना था।खैर देर आयद्………………।

17 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और नहीं तो कम से कम हमारे इन नेतावो के लिए तो यही एक अच्छा बहाना होता है केक खाने का !

अनूप शुक्ल said...

हिम्मत देर से ही सही आई तो!

विनोद कुमार पांडेय said...

बात सच है जल्द हो या देर..
बढ़िया प्रसंग..बधाई!!!

Khushdeep Sehgal said...

अनिल जी, सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का हाल बताइए...पिछले कुछ दिनों से पाबला जी या शरद भाई की पोस्ट के जरिए आप की तबीयत ठीक नहीं होने के बारे में पता चला...आप ये सत्सगिंयों और बापू को थोड़े दिन वेटिंग में रखकर सिर्फ वही कहा मानिए जो आपको डॉक्टर कहता है...रही बात बापू की...जिस दिन हम उन्हें मूर्तियों या चित्रों से उतार कर अपने दिलो में बिठा लेंगे, उसी दिन से सच हमारी ज़ुबान से अपने-आप निकलने लगेगा...

Arshia Ali said...

आपकी चिंता जायज है। पर किया भी क्या जाए।
Think Scientific Act Scientific

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

कोई बात नहीं किसी के मरने पर हंसा कहां जाता है मुंह लटका कर बैठने की ही परंपरा है. गांधी जयंती पर भी परंपरा यूं ही निभाने का रिवाज़ है...

राज भाटिय़ा said...

अरे इतने सारे बच्चे, वो भी बिन मां बाप के ?आप का लेख पढ कर सच मै दिमाग भन्ना गया, क्यो करते है हम दिखवा ???

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वैष्ण्व जन तेने कहिए रे जो पीर पराई जाणे रे,
अनिल भैया,काफ़ी दिनो का नजला बिगड़ा हुआ था अब निकल गया ठीक है,चलो गुबार निकल गया अब तबीयत भी ठीक हो जायेगी,

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जिस दिन हम सब सच बोलना शुरु कर देंगे और ज़रूरत से ज्यादा जमा करना बंद कर देंगे तो सही मायने मे बापू खुश होंगे।


अच्छा हुआ! किसी नेता ने नहीं सुन लिया, वर्ना दफ़ा......के तहत.....:)

Anonymous said...

आपका सरकना वाज़िब था :-)

तबियत का ख्याल रखिए।

बी एस पाबला

P.N. Subramanian said...

ढेर सारी बधाईयाँ.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सच बोलना मुश्किल नहीं। पर आप को उस के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ सकता है।

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा जिस दिन हिम्मत से सच बोलना शुरू करेंगे वो दिन बापू को सच्ची श्रधांजलि होगी .......

बवाल said...

बहुत ही प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किया सर जी। हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।

Sudhir (सुधीर) said...

हम तो बस यही कहेंगे - सत्य वचन

Satish Saxena said...

बहुत अच्छा लिखा है , आनंद आ गया !

डॉ महेश सिन्हा said...

जगह भी ऐसी थी भड़कना सही था