Thursday, October 8, 2009

सलीम भाई पांचो ऊंगलियां समान नही होती,जो जिस काम की हो उससे वही काम लिजिये दूसरा नही

पता नही ब्लाग क्या सोच कर बनाया गया था पर देख रहा हूं कि ये आजकल सिर्फ़ और सिर्फ़ ऊंगली करने के काम आ रहा है।खासकर धर्म के नाम पर।क्या ज़रूरत है कि किस धर्म मे क्या अच्छा है और किस मे क्या गलत बताने की?क्या उसे उस धर्म के लोग नही जानते? सलीम भाई अगर सभी लोग अपने-अपने धर्म को उसके सही तौर-तरीके पर आत्मसात कर ले तो दुनिया चमन हो जाये।अब आप ये बताईये कि ये पूछ कर आपको क्या ज्ञान मिला कि किस ईशदूत ने वेदों को लाया था?ये वेद पढने वाले जाने और उसे मानने वाले आप तो अपने धर्म को देखिये?उसे समझिये और अपने लोगों को समझाईये।



क्यों आप तुलना करते है धर्मों मे?क्या आप जजिंग अथारिटी है?क्या आप सही गलत का जो फ़ैसला देंगे उसे सभी कौम मान लेंगी?क्या किसी ने ऐसा करने के लिये आपको अधिकृत किया है?क्या आपको लगता है कि आप अपने धर्म के अलावा किसी भी धर्म को बिना अपनाये पूरी तरह जान सकते हैं,समझ सकते हैं?मै पूछता हूं ज़रूरत ही क्या है ये जानने कि वेदों को किस ने लाया?क्या आप हिंदू हैं?या होने जा रहे हैं?जो समान खरीदना नही उसके मोल-भाव का मतलब क्या है?



आपने महिलाओं की धर्मों मे स्थिति की भी तुलना की थी।क्या ज़रूरत है तुलना की?फ़िर रचना जी ने आपको मुंह्तोड जवाब दिया तो गोलमोल जवाब देकर भाग निकले।एक बात याद रखिये आप जब भी किसी की तुलना करेंगे तो विवाद होगा ही।एक को अच्छा और एक को गलत बताना ही गलत है।जो जिस के लिये जितना उपयोगी है वो उसका उतना और अपने हिसाब से उपयोग कर ही लेगा?आप क्यों बता रहे हैं ये अच्छा नही है ये अच्छा है?चलिये छोड़िये इन सब बातों को ये बताईये भगवान सारी आपके खुदा ने आपके हाथों की पांचो ऊंगलियों को समान क्यों नही बनाया?मैं कोई बहुत बड़ा विद्वान नही हूं आपकी तरह इसलिये ये सिंपल सा प्रेक्टिकल सवाल है मेरा। है कोई जवाब आपके पास?चलिये छोड़िये ये बताईये कि भगवान सारी खुदा ने आपको दो हाथ क्यों दिये?

आप अपने हाथों कि किस ऊंगली से क्या काम लेते है आप पर निर्भर है।अंगुठा तो नही लगाते है आप दस्तखत करते समय मगर जब आप सम्पत्ति की खरीदी-बिक्री करते हैं तो वंहा अंगूठा ही लगता है।तो क्या मान लिया जाय आप अगूंठा बहादुर है?आप को दो हाथ मिले हैं। हो सकता है आप हर काम दायें हाथ से करते हों तो क्या बायें हाथ से काम करने वाले गलत हैं,उदाहरण के लिये इमरान खान और वसीम अकरम को ले लिजिये।और भी बहुत से उदाहरण मै दे सकता हूं ,लेकिन मै जानता हूं मेरे पाठक समझदार हैं और उनका भी समय उतना ही किमती है जितना मेरा।

तो सलीम भाई अपनी ऊंगलियों का सही इस्तेमाल करें।बेकार,बेवज़ह,इधर-उधर ना करें तो बेहतर रहेगा।आप बताईये कि सीधे अल्लाह को मानिये और किसी को नही, इस बात पर आप लोगो मे मतभेद है या नहीं?आप अगर कृष्णा मेनन का उदाहरण देकर तौरेत और इन्जील की उत्पत्ति को सही बता रहे हैं तो उनके धर्म को मान्यता क्यों नही देते?क्यों यहूदियों और फ़्लिस्तीनियों मे खून-खराबा हो रहा है?क्यों परम आदरणीय और मेरे लिये भी भगवान समान ईसा और मूसा को मानने वाले लड़ रहे हैं?बुरा मत मानियेगा इस सवाल को पूछने का मेरा कोई भी गलत उद्देश्य नही है मगर जब बात निकली ही है तो पूछ ही लेता हूं,क्यों आप लोगों मे शिया और सुन्नी का विवाद खत्म नही होता?क्यों सुधारवादियों को वहाबी करार देते हैं?आप को एक बात बताऊं मेरे शहर और मेरे बचपन के मुहल्ले पर एक आरोप भी है,अगर मै कलंक कहूंगा तो हो सकता है नाराज़ हो जाओ।मेरे मुहल्ले के कब्रिस्तान मे दफ़न करने के लिये लाये गये शहर के एक जाने माने नेक इंसान की मैय्यत पर पत्थर चल गये थे।उस समय के जो हिंदू नेता मैय्यत मे आये थे उन्हे भी पीटा गया था,पता है क्यों?क्योंकि मरने वाले को कठमुल्लाओं ने वहाबी करार दे दिया था।
अब बताओ मैय्यत पर पत्थरबाज़ी।सलीम भाई सिखाना ही है तो आपको अपने ही आस-पास बहुत से आपके अपने ही लोग मिल जायेंगे जिन्हे सच मे आपके ज्ञान की ज़रूरत है।जब अपने ही बच्चे नासमझ और शैतान हो तो पडोसियों के बच्चों को सुधारना कौन सी अकलमंदी है?शायद लम्बा हो गया है,मगर जाते-जाते एक सवाल ।आड़ी मस्जिद क्यों?बोहरे और खोजों से विवाद किस बात का?क्या वे इस्लाम को नही मानते?फ़िर उनके कब्रिस्तान अलग क्यों?जाने दो सलीम भाई,मै मानता हूं आप ज्ञानी है,विद्वान हैं,मगर मेरा ये मानना है आप उसी को ज्ञान बांटिये जिसे उसकी ज़रूरत है। हो सकता है मैं कुछ गलत कह गया हूं तो मुझे क्षमा कर देना क्योंकि मै आप जैसा विद्वान नही हूं।आप अपने धर्म का प्रचार करिये,खूब करिये ये बुरी नही अच्छी बात है लेकिन उसकी तुलना दूसरे धर्मों से करके उन्हे गलत बताना अच्छी नही बुरी बात है।और जाते-जाते एक बात ज़रूर कहूंगा सलीम भाई पांचो ऊंगलियां समान नही होती,जो जिस काम की है उससे वही काम लिजिये दूसरा नही।

41 comments:

Anonymous said...

baar baar chaar kitabo kae naam daekar kehtae haen yae padho gyan badhaega . jis desh mae rehtey haen paeda huae usii kae logo ko gaali dae rahey haen


seedhi baat kaa koi jwaab nahin dae saktey aur kament mae bina link diya baat nahin kar saktey

aaj keh rahey haen ab maere upar post likhaegae

sachey muslmaan kaa matlab hi nahin pataa aur muslim dharm ki baat kartey hean

Unknown said...

ये एक बहुत बड़ी साजिश है हिन्दी ब्लॉग दुनिया को प्रचारतंत्र बनाने की। कुछ लोगों का उद्देश्य ही है कि अन्य लोगों को येन-केन-प्रकारेण उकसाओ, अनाप-शनाप लिख कर खुन्दक में लाओ और अपनी रोटी सेंकते रहो। यह ठीक वैसा ही है जैसे कि स्वार्थी तत्व अपने स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक दंगे फैलाते हैं, ऐसे लोगों की किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, मजहब में आस्था नहीं होती, ये सिर्फ अपना स्वार्थ साधते हैं।

और दुःख की बात तो यह है कि ये अपनी साजिश में कामयाब होते जा रहे हैं। हम सभी को बरगला कर रख दिया है इन्होंने। हम सभी के भीतर कुंठा और आक्रोश भरते जा रहा है। ये हमारे हिन्दी ब्लॉग जगत में गृह युद्ध मचाने में शनैः शनैः सफल होते जा रहे हैं।

सभी ब्लॉगर मित्रों से अनुरोध है कि अब भी चेतें। समझदारी सिर्फ इसी में है कि हम सभी मिलकर इनका बहिष्कार करें, न ऐसे लोगों के ब्लॉग में जाकर इनका लिखा पढ़ें और न ही इन्हें अपने ब्लॉग में टिप्पणी करने दें। टिप्पणी मॉडरेशन हमारा अधिकार है और हमें चाहिए कि हम अपने इस अधिकार का भरपूर प्रयोग करें।

विनोद कुमार पांडेय said...

dharm aur jaati ke naam par bina vajah bahas uchit nahi hai...
aapne bahut sahi likha hai hamen sarthakta wali baat rakhani chahiye bahas me jisase kuch mile...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

क्यों आप तुलना करते है धर्मों मे?क्या आप जजिंग अथारिटी है?क्या आप सही गलत का जो फ़ैसला देंगे उसे सभी कौम मान लेंगी?क्या किसी ने ऐसा करने के लिये आपको अधिकृत किया है?क्या आपको लगता है कि आप अपने धर्म के अलावा किसी भी धर्म को बिना अपनाये पूरी तरह जान सकते हैं,समझ सकते हैं?मै पूछता हूं ज़रूरत ही क्या है ये जानने कि वेदों को किस ने लाया?क्या आप हिंदू हैं?या होने जा रहे हैं?जो समान खरीदना नही उसके मोल-भाव का मतलब क्या है?

bahut sahi kaha aapne ........ uska mol bhaav karne ka matlab hi kya hai?

saleem bhai.ko yeh samajhna chaiye.....

ek krishna menon se ham poore samaaj ko quote nahi kar sakte........ Kya pata ....Menon uska jawaab dene ke maamle mein kachche rahe hon? ya unko knowledge nahi rahi ho jo wo jawab de paate? ya phir kisi menon aur javed akhtar ke view se poori community ke view nahi maan lete......yeh unke apne views hain jo ki untak hi rahne chahiye........

rahi baat islam ya phir kisi aur dharm ki......... to koi bhi dharm hum kisi pe thop nahin sakte....... jisko jo samajh mein aaye wo maane......... yeh force karna aur karwana galat hai........

hum BHARAT desh mein paida huye hain yeh hamari khushkismati hai......... nahi to .....agar hum kisi islamic country mein paida huye hote..... to baag se amrood churaane pe bhi haath katwa ke loole ghoom rahe hote.....

haah! mayyat pe pe paththar bazzi........ hunh! bataiye........ kya hai yeh sab........ ? yeh dharm-aatankwaad hain........

dhaarmik tulna sirf sur sirf jhagda badhaati hai......... iska koi solution nahi hai....... solution sirf yeh hai...

kah to raha hoon........ ki society mein movement ke liye hamein dharm kii zaroorat nahin hai....... dharm band kamre mein ......apne poojaghar mein hi achcha lagta hai....... baahar aap dharm lekar chalenge......... to yeh duniya ruk jayegi.......

society mein movement ke liye sirf aur sirf..... aapka kaam, apka nature, apka behaviour, aapka samaaj ko dene ki shakti hi apka dharm hai..........

tulna jab ek ghar mein aapas mein dwesh ko janm deti hai......... to yeh to phir bhi ek sensitive topic hai......... jisse ki samajhdaar logon ko bachna chahiye........

ant mein yahi kahoonga....ki Saleem bhai......... thoda sa badaliye khud ko......... aaj ke pace se milke chahliye........... comparison chhodiye....... baahr nikal le ke dekhiye.......... kahin bhi dharmwaad nahi hai........

agar dharmwaad hota....... to musalmaan hindustan mein IAS nahi banta, IPS nahi banta, Khan's film industry mein bahi chhaye rehte....... rashtrpati nahi banta, Cheif justice nahi banta, Solicitor-general nahi banta, writer nahi banta..... Zakir nayak nahi banta..... peace TV , Quran TV nahi chalte, MP Nahi banta, MLA nahi banta...... aur to aur Defence council ke salaahakaar nahi banta......

khud mere pitaji Late. MAQBOOL ALI..... shauryachakra vijeta rahe..... AVSM, PVSM, unhe mila,..... 1971 ke war hero khud mere pitaji rahe..... 1965 ke war mein...... presidential award unhe mola..... aur to aur Kargil war mein Defence council ke member bhi rahe.........

dekhen........

http://lekhnee.blogspot.com/2009/02/in-memoralia-tribute-to-my-father.html


ab aur kya kahoon?

JAI HIND......

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Shri. Aaadarniya Awadhiya ji se poori tarah sahmat hoon.........

Chandan Kumar Jha said...

बहुत हो गयी ये धर्म की बाते । अगर कर्म सही हो तो धर्म स्वंय अपना सही रास्ता तलाश लेगी । आप सभी की बातों से सहमत हूँ ।

Anonymous said...

इस तथ्य से भारत के लोग भलीभांति परिचित हैं कि सर्वथा शांतिप्रिय, अहिंसक,दोस्ती का व्यवहार करने वाला ,जीवदया का प्रचारक होने पर भी भारतवासियो ने जिस प्रकार बौद्ध धर्म को सहर्ष स्वीकार नहीं किया ! क्यूँ ? यह एक ऐसा प्रश्न है जो आज भी अनुतरित है ! इसी प्रकार इसलाम धर्म को फैलाने लिए कितना भी साम, दाम, दंड,भेद अपनाया गया लेकिन उसको अधिकांश भारतवासी आजतक सहर्ष स्वीकार नहीं पा रहे हैं ! क्यूँ ? यह भी एक ऐसा प्रश्न है जो आज तक अनुतरित है ! क्यों कि इसलाम के प्रति श्रद्धा- भाव रखते हुए इस धर्म में जाने वालों कि संख्या नगण्य ही है ! इसी प्रकार हिन्दू धर्म को कुचलने के लिए बहुतों ने बहुत जोर लगाया लेकिन वे इस लेकिन वे इस धर्म को खत्म नहीं कर पाए ! आखिर कुछ तो बात है इस हस्ती में कि मिटाए नहीं मिट पाती !

ashokemehta said...

इस तथ्य से भारत के लोग भलीभांति परिचित हैं कि सर्वथा शांतिप्रिय, अहिंसक,दोस्ती का व्यवहार करने वाला ,जीवदया का प्रचारक होने पर भी भारतवासियो ने जिस प्रकार बौद्ध धर्म को सहर्ष स्वीकार नहीं किया ! क्यूँ ? यह एक ऐसा प्रश्न है जो आज भी अनुतरित है ! इसी प्रकार इसलाम धर्म को फैलाने लिए कितना भी साम, दाम, दंड,भेद अपनाया गया लेकिन उसको अधिकांश भारतवासी आजतक सहर्ष स्वीकार नहीं पा रहे हैं ! क्यूँ ? यह भी एक ऐसा प्रश्न है जो आज तक अनुतरित है ! क्यों कि इसलाम के प्रति श्रद्धा- भाव रखते हुए इस धर्म में जाने वालों कि संख्या नगण्य ही है ! इसी प्रकार हिन्दू धर्म को कुचलने के लिए बहुतों ने बहुत जोर लगाया लेकिन वे इस लेकिन वे इस धर्म को खत्म नहीं कर पाए ! आखिर कुछ तो बात है इस हस्ती में कि मिटाए नहीं मिट पाती !

Mishra Pankaj said...


पुष्कर जी नमस्कार , आपने सही कहा है अगर हमें मुफ्त की जगह मिली है अपने भावनाओं को व्यक्क्त करने की तो उसका सकारात्मक लाभ लेना चाहिए , कभी भी ऐसा न करे कि किसी और जाति धर्म या सम्प्रदाय को तकलीफ हो लेकिन मै देख रहा हु ये जनाब हमेशा से बस यही एक काम करते आ रहे है मेरी आप सब से हाथ जोड़करविनती है ऐसे किसी भी ब्लॉग को ना पढ़े जिसमे कोई ऐसी बाट लिखी हो और उनका कमेन्ट भी अपने ब्लॉग पर पब्लिश ना करे . बस यही एक रास्ता है इनसे निपटने का और हां चिट्ठजगत को भी ऐसे ब्लाग को बन कर देना चाहिए
पंकज मिश्रा

Mishra Pankaj said...

और हां मै आपा १०० वा फालोवर बन गया मेरे ब्लॉग पर से १३का अशुभ अंक हटा दीजिये :)

संजय बेंगाणी said...

मैं तो कहता हूँ खुदा ही नहीं चाहता सब मुसलमान बने. वरना वह तो सर्वशक्तिमान है. सबको मुसलमान ही पैदा नहीं करता? अतः खुदा के काम में टाँग अड़ाना बन्द कर देना चाहिए.

वंदे ईश्वरम.

Anil Pusadkar said...

महफ़ूज़ भाई काश सब आप जैसा सोचने लग जायें तो भारत फ़िर से सोने की चिडिया बन जाये।आपको अच्छे संस्कार मिले आपके पास गर्व करने वाली विरासत है और आपने अपनी पढाई का सही इस्तेमाल किया है इसलिये आप सही बात कर रहे हैं।इसका मतलब ये कतई नही है कि बाकि लोगो को अच्छे संस्कार नही मिले।दरअसल धर्म के नाम पर जो विवाद हो रहा है वो नया नही है।इसमे किसी का दोष नही है,दोष तो इस देश को धर्म के नाम पर दो फ़ाड़ कर्ने वालों का है।आज़ादी के समय बंटवारे के दर्द से हमने कुछ नही सीखा बल्कि इसे फ़ोड़े की तरह पाला जो अब नासूर बन गया है।हम जी ही रहे है ऐसे दौर मे जंहा हमारी प्राथमिकता देश,राज्य,शहर,मुहल्ला,समाज और परिवार से ठीक उल्टी है।सबसे पहले खुद को रखते है फ़िर परिवार और फ़िर धर्म समाज और देश का नंबर आते-आते उम्र गुज़र जाती है।बहुत सी कोशिशे होती है साम्प्रदायिक सौहाद्र बनाने की आप जैसे अच्छे लोगो द्वारा मगर वो पत्तियां-टहनिया छांटने जैसा होता है दरअसल बुराई तो जड़ मे है और हम वंहा तक़ जा ही नही पा रहे हैं।अच्छा लगा आपके विचार जानकर सच मानिये मैं ये सब लिखना नही चाहता था मगर ब्लाग जगत का इस तरह दुरूपयोग होते देख मुझे गुस्सा आ गया जो कि तमाम झगड़ो की जड़ है।आपके पिता देश के सच्चे सपूत थे उन्हे किसी धार्मिक सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत नही है।उन्हे मिले तमगे और उनकी शौर्य गाथा सूर्य के समान है जिसकी तारीफ़ करने का हक़ भी शायद हम जैसों को नही है।सलाम करता हूं उनको और देश उनका हमेशा ॠणी रहेगा।

Alpana Verma said...

सिर्फ एक बात -
अगर आप अल्लाह को मानते हैं/भगवान को मानते हैं ... उस पर पूरा यकीं है और यह कहते हैं कि उसी ने सब को इस धरती पर भेजा है,वह ही एक और सिर्फ एक महाशक्ति है..तो ठीक है उसी खुदा की इच्छा का samman भी करीए क्योंकि उसी ने गैर इस्लामिक लोगों को गैर इस्लामिक घरों में भेजा है.उस के कार्य में क्यूँ दखल देते हैं?

संजय बेंगाणी said...

@ भाई महफूज अली आप महफूज रहे. आपके पिताजी ने देश की सेवा की है, उन्हे बहुत बहुत सलाम.

ब्लॉगजगत में शुएब, युनूसखान जैसे स्नेहपात्र मुस्लिम ब्लॉगर भी है. सभी का उन्हे स्नेह मिला है. भारत सबका है, सब भारत के है. मगर कोई अनीति करेगा उसे भारत के लिए उसकी औकात बतानी ही पड़ती है. सहनशीलता ने भारत का बहुत नुकसान किया है.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

"ईश्वर-अल्ला तेरो नाम,सबको सन्मति दे भगवान"
इस बहस से कुछ हासिल नही होने वाला,ये सदियों से चल रही है और सभी धर्मों के बारे मे जानना ही चाह्ते हैं तो"सत्यार्थ प्रकाश"पढिये,नही तो मुव लगाईये और काम पर चलिए,

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ये उंगली जब उठती है तो इल्ज़ाम लगा देती है और टेढी़ होती है तो घी निकाल देती है:)

शुएबा किदवई. said...

यदि हिन्दू मुसलमान की तोहमत न लगाई जाये तो यही कहूंगा कि महफूज अली साहब सच्चे मुसलमान हैं. तथाकथित सच्चे मुसलमानों को इस्लाम के बारे में महफूज जी से सीखना चाहिये. बाकी स्वच्छ वगैरा तो तालिबानी हैं एक अच्छे चेहरे मोहरे के साथ. यद्यपि तालिब जैसे शब्द को तालिबानी होने का दुर्भाग्य मिला है.

Unknown said...

क्यों उस बिचारे नासमझ अल्लाह के मारे सलीम बिचारे के पीछे पड़े है आप लोग उसे तो खुद का धर्म ही नही मालूम वो तो विचारा जाकिर नायक का चेला है आइ आर एफ डॉट नेट पड़कर सारा का सारा ट्रांसलेट कर कॉपी पेस्ट कर देता है उसकी कोई ग़लती नही है भाई वो तो हिंदू बनाना चाहता है तभी तो वेद पड़ रहा है आप लोग उसकी हेल्प करो उसको उसका सही मज़हब बताओ की वो हिंदू है सिर्फ़ उसकी मति मारी गयी है देखो अगर हिंदू नही होता तो क्यों वेद मे सिर खपा रहा होता भाइयो उसे माफ़ करो वो तो निरीह आदमी है जिसकी खुद की कोई समझ नही है नासमझ से बहस भी ग़लत है

RAJNISH PARIHAR said...

जी बिलकुल गलत है ये तो...!ब्लॉग पर लिखने पढने को और भी बहुत कुछ है!फिर काहे इन बेकार की बातों में जगह और टाइम बर्बाद करते हो...

Unknown said...

बेंगाणी जी की इस बात से सहमत, शुऐब, यूनुस, महफ़ूज़ जैसे कई मुस्लिम ब्लागर मित्र भी हैं और स्नेह पात्र भी… खामख्वाह सिर्फ़ दो "झिलाऊ" लोगों की वजह से ब्लॉगिंग में व्यर्थ की बहस चल पड़ी है… क्यों इन्हें TRP (नकारात्मक ही सही) देने पर तुले हैं… अवधिया जी जैसा कह रहे हैं, इनका बहिष्कार क्यों नहीं करते…

Jayram Viplav said...

भाई जी , आपके ब्लॉग पर जो भी पोस्ट आती है सारगर्भित होती है पर एक शिकायत है पाठक होने के नाते आपसे कि भाई क्यों ऐसे लोगों का नाम पोस्ट में लिख-लिख कर उनके मकसद की पूर्ति में सहायक बन रहे हैं . कृपा कर अब सभी लोग इस दो पागल धर्मभिरुओं के ऊपर लिखना बंद करें सब ठीक हो जायेगा . मुद्दों की कमी नहीं है हम खुद कहते हैं धर्म पर इस तरह अनर्गल बहस बंद हो परन्तु दूसरे ही दिन इसी बहस में कूद पड़ते हैं ! क्या हमारे दिन इतने फ़िर गये हैं कि किसी कट्टरपंथी के नाम से पोस्ट लगनी पड़े . मैंने अपने दिल की बात कह दी आशा है आप आग्रह को ठुकरायेंगे नहीं .

Varun Kumar Jaiswal said...

मेरी एक पोस्ट पर अर्ज ज्ञानदत्त जी की टिप्पणी में ही सार है |

ज्ञानदत्त पाण्डेय ने कहा .

जितना इस तरह के लोगों का उल्लेख करो, उतना भाव खाते हैं। इनकी खराब पब्लिसिटी इनकी पब्लिसिटी है!

अनूप शुक्ल said...

आपका टाइटिलै काफ़ी है। बकिया तो व्याख्या है सूत्रवाक्य की। जय हो।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सभी धर्म मानवता की धरोहर हैं। अपने वक्त में समाज को बदलने और नियंत्रित करने में उन्हों ने अपनी भूमिका अदा की। अब उन की वह भूमिका नहीं रही है। वे हमारी श्रद्धा हैं। कोई भी, दुनिया में एक भी व्यक्ति शास्त्रीय अर्थ में धार्मिक नहीं रहा है। लोगों ने उस में से अपनी सुविधानुसार तत्व चुन लिए हैं। बस प्रवृत्ति और आस्थावश सब अपने धर्म को श्रेष्ठ और दूसरे को नीचा समझने और समझाने में लगे हैं। इस स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति का लाभ शोषक और सत्ताधारी वर्ग राजनीतिज्ञों और धर्म प्रचारकों के माध्यम से उठाते हैं।

ये जो बहस कर रहे हैं, वे बापू की शब्दावली में नादान हैं और बिना किसी स्वार्थ के स्वभाव वश ही मानवता के शत्रुओँ के औजार बन रहे हैं।

डॉ महेश सिन्हा said...

विघ्नसंतोषी एक शब्द नहीं व्याख्या है . असहयोग में बहुत बड़ी ताकत है जिसने गाँधी को महात्मा बना दिया . लोगों की उत्तेजक बातों में पड़कर उनका जवाब देना ऐसे लोगों को संतुष्टि प्रदान करता है . मैंने संदर्भित ब्लॉग नहीं पढ़े हैं लेकिन उनकी दिशा समझी जा सकती है . कल के समाचार में था पाकिस्तान की ISI ने समर्पण करने वाले तालिबानियों को कहा है या तो कश्मीर में जा के लडो या फिर जेल में सडो . एक तरफ कुआँ दूसरी तरफ खाई . पडोसी देश की हालत बहुत बुरी है और हम सिर्फ उसके सुधरने की उम्मीद ही कर सकते हैं . लेकिन उनकी मान्यता अभी भी दुश्मनी की है . अगर इस देश में रह कर कोई खुश नहीं है तो वह इस दुनिया में कहीं भी खुश नहीं रह सकता.
भारत शायद दुनिया में अकेला देश होगा जिसमे रहने वाले ही उसके खिलाफ षडयंत्र करते हैं खुलेआम

नीरज मुसाफ़िर said...

अनिल जी,
आज बहुत दिन बाद आया हूँ.
आखिर ये धर्मों का मामला क्या है. कौन है ये सलीम? क्या कह दिया इसने?

Abhishek Ojha said...

आपकी पोस्ट मैं रीडर तक ही पढता हूँ ब्लॉग तक नहीं आता. लेकिन आपने भी इस मुद्दे पर पोस्ट लिख दी तो बस अपनी बात कहने आ गया. ये पोस्ट जिनके लिए लिखी गयी है उनकी सफलता है ये पोस्ट! क्यों खामखाह परेशान हो रहे हैं. मैंने इस मामले पर कहीं और भी कहा था. मुर्ख को उपदेश देना उसके क्रोध को बढ़ाना है. और ऐसी पोस्ट लिखकर उन्हें पब्लिसिटी. जो उन्हें चाहिए ! अरे इग्नोर कीजिये ऐसे लोगों को... ग़नीमत में है ये हिन्दुस्तान में है नहीं तो... ! छोडिये क्या सोचना ऐसे लोगों की बात पर.

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी बात से पूर्ण सहमत हूँ, इस तरह विवादो से कुछ होने वाला नही है। समझदार को इशारा ही काफी है।

बाल भवन जबलपुर said...

भाई साहब
गाडीवान,गाडी,कुत्ता-बैल वाली कहानी
का स्मरण कीजिए
अब इनसे कुछ भी कहना कीचड में ...
फैंकने के बराबर है सर जी मैं तो तमाम एग्रीग्रेटर से अनुरोध कर ही चुका हूँ
कसम खुदा की तमाम पाकीजा रिवायतों को
तार तार करते ये लोग अल्लाह के रास्ते के
नहीं अल्लाह को अपने बनाए रास्तों पर चलने
की चाह रखतें है.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

गर्व होता है कि हमारे समाज में महफूज अली जैसे सच्चे लोग भी मौजूद हैं......जिनकी सोच इन संकीर्ण बुद्धियों से बहुत अलग हटकर है ।

Kulwant Happy said...

दीन ईमान, विश्वास प्यार सब कुछ बिकता देखा मैंने संसार में।
खुदा भी होता जमीं पर.. उसको भी बेच देते किसी बाजार में ।।

आप ने बात को विस्तार देते हुए बहुत शानदार तरीके से किया है। आपको तो इसमें महारत हासिल है।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

कश्मीर मैं कम से कम १०८ मंदिर थोड़े गए, कश्मीरी पंडितों को मारा काटा गया, मंदिरों मैं बन विस्फोट, हिन्दू लड़कियों को अगवा करने के लिए लव जेहाद, ...... | जाकिर नायक विश्व स्तर पे ये fake विडियो (http://raksingh.blogspot.com/2009/10/blog-post_07.html) अन्य देशों मैं भी दिखा रहे हैं, रोज हल्ला कर रहे हैं हिन्दुओं इस्लाम कबूलो | घर मैं घुसकर डाका दाल रहे हैं, फिर भी हम चुप है.... क्या करें मजबूरन गलत चीजों को देख कर भी चुप ही रहना पड़ता है, क्योंकि विरोध के लिए लोगों का साथ मिलने से रहा |

वैसे मैं भी कई टिप्पणी मैं आपकी तरह ही यही कहता आया हूँ की इनको ignore करो? लेकिन अब मुझे ये लगता है की इगनोरे की भी एक सीमा होती है |

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी आप की एक एक बात से सहमत हुं,
ओर आज से इस व्यक्ति के बारे बात करनी बन्द कर दो अपने आप चुप हो जायेगा

मसिजीवी said...

कौन सलीम ??

राजीव तनेजा said...

जनाब महफूज अली साहब जी...मुझे आपकी परिपक्व सोच पर गर्व है? काश हमारे देश के सभी नागरिक आप जैसी ही सोच के हो जाएँ तो हमें आगे बढने से इस पूरे जहान में कोई नहीं रोक सकता

Nai Kalam said...

bahut khoob kaha Mahfooj bhai, Anil ji aapki post hamesha hi kuchh naitik sandesh deti hain. aisi soch ko mera naman. yadi samay ho to पढिये ये पोस्ट जो आपके अंतर्मन को उद्द्वेलित कर देगी.
http://swarnimpal.blogspot.com/2009/10/blog-post_08.html

Udan Tashtari said...

पढ़ रहा हूँ.

Gyan Darpan said...

आप सभी लोगो से सहमत

Saleem Khan said...

अनिल पुसदकर जी, मैं बखूबी जानता हूँ और वही कर भी रहा हूँ.

आप लोग सिवाय विरोध के कुछ भी करना नहीं जानते. विरोध अच्छी बात है लेकिन अंध विरोध तो चुतियापा है ना ! अध्ययन करते और फ़िर बोलते तो अच्छा होता.

Unknown said...

अगर आप विनम्र नहीं हैं.............

अगर आप सच के पक्षधर नहीं हैं

अगर आप समूची सृष्टि को एक ही सृष्टा की कृति नहीं मानते

अगर आप सब जीवों में समान भाव नहीं रखते

अगर आप ईश्वर के नियमानुसार स्वयं को नहीं बल्कि ईश्वर को अपनी सुविधानुसार बनाना चाहते हैं

अगर दूसरे लोगों को पराजित कर के आप को आनन्द आता है

अगर आप अपने अहंकार की तुष्टि के लिए दूसरे लोगों को पीड़ा पहुंचाते हैं

तो क्षमा करें........................

आप किसी भी धर्म में पैदा हुए हों...............धार्मिक तो नहीं हैं...........

भले ही आपके माता पिता इन्सान हों, आप तो इन्सान नहीं हैं !

नहीं हैं !

नहीं हैं !

नहीं हैं !

alka mishra said...

main albela khatri ji aur mahfooj ji se sahmat huun