ऐसा पहली बार देख रहा था मै कि किसी प्रेस कांफ़्रेंस मे पत्रकारों की फ़ौज़ बिना जुते के गई हो।वो तो पता नही था वर्ना बुश से लेकर चिदंबरम तक़ यंही प्रेस कांफ़्रेंस लेते और जूते की अनगाईडेड फ़्लाईट से बच जाते।खैर मैने पूछा कि ऐसे कौन से स्वामी जी आयें है जो सारे के सारे जूते उतार कर अंदर गये हैं।एक ने कहा कि भैया अहमदाबाद से आये है और उनका कहना है कि वे सभी दर्द,बीमारियों के साथ-साथ बुराईयों से भी मुक्ति दिला देंगे।मैने कहा कि चंगाई सभा का हिन्दूकरन हो रहा है क्या?वो बोला नही दादाबाड़ी मे है।मैने सभी साथियों ए पूछा कि प्रभूदीन है कि नही अंदर।सबने एक साथ कहा कि है भैया,आज वो भी अटैण्ड कर रहा है कांफ़्रेंस्।
आधा घण्टा चलने वाली कांफ़्रेंस एक घण्टे से ज्यादा चली।सभी तरह के सवाल हुये और दूसरों के बहाने अपनी तक़लीफ़ के निराकरण के उपाय भी पूछे गये।देर तक़ चलने के कारण दूसरे कार्यक्रम भी लेट होते चले गये।सबके बाहर आने के बाद मैने क्लब के सह सचिव दामू आम्बेडारे से पूछा कि तू क्या कर रहा था बे?तूझे क्या तक़लीफ़ है?साले तेरे कारण लोग तक़लीफ़ मे हैं,तेरे घर मे कलह होते होते बची है।तू अंदर क्या छुड़ावाने गया था?लंद-फ़ंद?अरे भैया आप भी ना,बस मेरे ऊपर ही डाऊट करते हो।तो,मैने कहा,और किस पर करूं,तू बता?ये आपका प्रभूदीन अंदर बैठ कर भी झूठ बोल रहा था।अब प्रभूदीन भड़क गया और बोला तू अपनी बात कर ना मेरे बारे मे क्यों बोल रहा है।खुद तो साले झूठ बोल रहा था।मै बोला कौन क्या झूठ बोला दोनो बताओ।दामू बोला स्वामी जी ने जब पूछा कि कौन कौन शराब पीता है तो ये चुप था,इसने हाथ खड़ा नही किया।और तू साले,ये रोज़ कभी-कभी क्या होता है बे?हैं,पीता रोज़ है और बता रहा था कभी-कभी।दोनो फ़िर उलझने लगे तो मैने टापिक बदला कुछ फ़ायदा-वायदा होगा बाबाजी से।
अब दामू ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा और प्रभूदीन की ओर देख कर बोला, बताऊं?बता ना मै क्या किया?कोई पाप थोड़े ही किया है।मै बोला बता दामू बता डर मत्।वो बोला भैया जब स्वामी जी बोले जिसको जंहा तक़लीफ़ हो वंहा हाथ रख कर बैठिये।तो,ये पेट पर और सर पर हाथ रख कर बैठा था।प्रभूदीन बोला और तू बे,तू भी तो अपनी टांग पर हाथ रख नही बैठा था।दोनो मे फ़िर तक़रार शुरू हो गई थी।इस बीच बाकी बोले भैया सभी कंही न कंही हाथ रख कर बैठे थे और जब स्वामी जी ने पूछा कि अब कैसा महसूस कर रहे हैं,तो सभी बोले ठीक लग रहा है,सुधार हो रहा है।अब मै बोला अच्छा हुआ स्वामी जी एक घण्टे मे चले गये वर्ना तुम लोग तो सालों कुत्ते की दुम से भी टेढे हो,तुम लोग तो सुधरते नही बल्कि स्वामी जी के बिगड़ जाने का खतरा ज्यादा था।सब एक साथ बोले सही बोले रहे हो भैया और हा हा ही ही का दौर शुरू हुआ जिस पर मैने विराम लगाया और खिलाड़ियों के सम्मान के कार्यक्रम मे सब लग गये।
19 comments:
hahahahahaha ,
chaliye achcha hai kai log bach gaye .....warna yeh joota to kab kahan ud jaye....pata hi nahi chalta....
hahaha.....
हमें लगा कि अंदर चितंबरम जी पत्रकारों से बात करने आये हैं. :)
आपके यहां भी न अजब गजब बातें होती ही रहती हैं .. या फिर आपके प्रस्तुतीकरण का अंदाज है .. वैसे भारत के लोगों को आदमी को भगवान और भवन को मंदिर बनाते देर नहीं लगती .. उनकी इतनी अधिक आस्था का ही ही तो बाबा लोग फायदा उठाते आ रहे हैं !!
जिस हॉल में जूते निरंतर आते जाते हों वहाँ स्वामी जी ने अपनी प्रेसकांन्फ्रेंस कैसे कर ली? वे अपवित्र न हो गए। क्या पहले हॉल का धुलवाया था? यदि नहीं तो जूते बाहर खोलना एक ढोंग नहीं तो और क्या था?
मैं ने अपने जीवन के पन्द्रह बरस एक मंदिर में गुजारे हैं। जहाँ साल में कम से कम बीस ऐसे स्वामी और कथावाचक आदि आ कर ठहरते थे। उन की असलियत क्या होती थी। सब से पहले हम बच्चों के सामने सब से पहले आती थी।
लेकिन जूतों का बाहर निकलवाना एक अच्छा कदम है !
" बुराईयों से मुक्ति दिलाने वाले बाबा " यह तो बिलकुल नया फंडा है । इस देश मे जो न हो जाये वो कम है । अनिल भाऊ इस दिशा मे सीरियसली सोचा जाये चलो देश की यात्रा पर निकलते है कम से कम हर ब्लॉगर् सम्मेलन मे एक प्रवचन तो पक्का । हँसो ना यार.. हँसने के लिये तो कह रहा हूँ ।
दादा दिनेश जी से ५०० प्रतिशत सहमत हूं मैंने भी करनाल के एक मंदिर में अपने बचपने के कईं साल गुजारे हैं....
आजकल जूताफेंकुओं से सभी भयभीत हैं- तो जूते बाहर, श्रोता अंदर:)
तुम लोग तो सालों कुत्ते की दुम से भी टेढे हो,तुम लोग तो सुधरते नही बल्कि स्वामी जी के बिगड़ जाने का खतरा ज्यादा था।
अनिल भैया अभी स्वामी जी से मिल कर आओ, कहीं दवा देने वाला मरीज तो नही बन गया है?
जय हो तोहार-जय जोहार
अब यही सब बाकी है :)
rochak
बल्कि स्वामी जी के बिगड़ जाने का खतरा ज्यादा था!'
ha ha haa!
khoob !
ha ha ha ha ha ha ha ha
HA HA HA HA HA HA HA HA
H A H A H A H A H A H A H A
____KYA BAAT HAI ANILJI !
aapka toh style ee judaa hai..........mazaa aa gaya !
अनिल जी जय हो आप की आप ने स्वामी जी का आशिर्वाद लिया या नही... बेसे मेरी शकल देख कर सारे स्वामी बिदक जाते है, पता नही ?
Hamesha ki tarah rochak prasang..
Jai Hind
तुम्हारे लिखने के स्टाइल का मै हमेशा से कायल रहा, मगर ब्लाग लिखते वक्त तो शायद पूरे फार्म मे रह्ते हो... रायपुर छोड़े साल भर हो गया तुमने प्रेस क्लब को फिर सामने ला खड़ा कर दिया... बढ़िया लिखा है.
अपने अंदाज में आपने जोरदार लिखा। हमें आपकी इस पोस्ट का इंतजार था। अब हम कल इस कड़ी को अपनी सोच के साथ आगे बढ़ाने का काम करेंगे। न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के झांसे में आ जाते हैं अब तो अपने पत्रकारों की कौम भी बाबाओं के झांसे में आने लगी है। इस पर विस्तार से चर्चा कल राजतंत्र में करेंगे।
ये तो बहुत अच्छी बात है।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
राजकुमार ये मामला अभी खतम कंहा हुआ है।अच्छा हुआ तुमने बता दिया कि इस पर लिखने जा रहे हो,वरना इसका सेकेण्ड पार्ट आज मुझे लिखना था।चलो आज रेस्ट कर लेता हूं।
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