Friday, November 6, 2009

उसने कहा महफ़ूज़ और मैने सुना मैथ्यू!नतीजा माफ़ी मांगना पड़ा मुझे!

कल दोपहर हम लोग प्रेस क्लब मे बैठे हुये थे कि मोबाईल घनघनाया और जेब से निकाल कर सीधे काल रिसीव की और अपना परमानेंट स्टार्टिंग डायलाग दाग दिया।मेरे बोल कहते ही उसने क्या कहा मुझे समझ मे नही आया और मैं जो कहने लगा वो उसे सुनाई नही पड़ रहा था शायद्।उसने कहा कि भैया आपकी आवाज़ साफ़ नही सुनाई दे रही है।भैया सुनते ही मुझे लगा लोकल प्राब्लम है इसलिये मै तत्काल अपनी स्टाईल मे आ गया और बोला,तू बोल मुझे सुनाई दे रहा है।उसके बाद काफ़ी देर बात हुई और आज जब पता चला कि मै जिससे बात कर रहा था वो,वो नही था बल्कि वो था तो मारे शर्मिंदगी के मेरा बुरा हाल था और आखिर मुझे उसे फ़ोन कर माफ़ी मांगना पड़ा।

फ़ोन पर बात करते समय मेरी गाड़ी अक्सर पटरी से उतर जाती है।और सुबह-सुबह तो गाड़ी पटरी पर ही नही होती।इस आभासी दुनिया मे आने के बाद थोड़ा बहुत पोलाईट और सोफ़्ट स्पोकन होने की बहुत ही कमज़ोर या फ़ार्मल कोशिश भी की थी मैने लेकिन ज़ल्द ही मैने यंहा भी ओरिजनल स्टाईल को ही अपनाया।यंहा भी बहुत से लोग जानने लगे हैं और धीरे-धीरे सब जान जायेंगे,जैसे कल महफ़ूज़ भाई ने जाना।
आवाज़ कम या धीमी होने की शिकायत करने के बाद भी महफ़ूज़ भाई को जब समझ मे नही आया कि किससे बात कर रहें है वे,तो उन्होने फ़िर से बताया कि मह्फ़ूज़ बोल रहा हूं लखनऊ से।अब तक़ मै भी चौंकन्ना हो गया था।लखनऊ तो मेरी समझ मे आ गया था मगर ये मैथ्यू समझ मे नही आया था।मैने अब संभल कर बात करना शुरू कर दिया था।बात निकली तो फ़िर निकलती चली गई और बहुत दूर तक़ भी गई।इस बीच मै अपने तमाम मैथ्यूओं को मेमोरी मे रिकलेक्ट करने की कोशिश के साथ बात को आगे बढा रहा था।जब कुछ समझ मे नही आया तो फ़िर वही अपना पुराना स्टाईल गरज़ होगी तो दुबारा बात करेगा नही तो अपने को कौन सा फ़र्क़ पड़ रहा है।
फ़िर मह्फ़ूज़ यानी मैथ्यू ने ब्लागर सम्मेलन की बात कही और इस मामले मे हमने खुलकर बात की।काफ़ी देर बहुत सारे विषयों पर बात करने के बाद हमारी बातचीत को मैने ही खतम किया और सोचने लगा कि ये कौन सा केरली है जो लखनऊ पंहुच गया।क्लब मे तब तक़ सब खामोश बैठे हमारी बातचीत सुन रहे थे।एक ने पूछा कौन था जिससे इतनी लम्बी बात कर ली।हम लोग बात करते हैं तो, चल फ़ोन रख बे।हो गई ना बात।और यंहा इतना लम्बा।अबे मैं नही जानता कौन था?हो ही नही सकता बिना जान-पहचान वाला इतनी देर बात करे और गाली ना खाये?मैने कहा लखनऊ से था।लखनऊ क्या लंदन से भी हो तो हम लोग नही मानेंगे कि बिना जान-पहचान के आप इतनी देर… अबे वो ब्लागर है।जभी,सब एक साथ बोले।ये ब्लागर आजकल आपको बहुत प्यारे लग रहे हैं।कितने दिन चलेगा ये?मैने कहा तुम लोग अब गाली खाने का काम कर रहे हो।और वंहा से उठ कर बिज़ी हो गया।

आज सुबह लिखने का मूड नही था,दो दिनो से थोड़ा मूड आफ़ चल रहा है,इसलिये लिखना ड्राप करके पढने बैठा।शास्त्री जी के ब्लाग पर डायरेक्टरी बनाने मे मिल रहे सहयोग वाली पोस्ट जब पढी तो कमेण्ट के दौरान महफ़ूज़ भाई का पता और फ़ोन नम्बर देखा।उनके ब्लाग का मैं न केवल रेग्यूलर विज़िटर हूं बल्कि उनका सीलिंग से बड़ा क्या बोलते है उसको,खेतों मे जो चलता है उड़ावनी फ़ैन हूं।सो उनसे बात करने की गरज़ से उस नम्बर को मोबाईल मे सेव करने लगा और जैसे ही सेव किया मेरे हाथ के तोते,कौयें,चील,गिद्ध सब उड़ गये।स्क्रीन पर लिखा हुआ आ गया दिज़ नम्बर इज़ आलरेडी एग़्ज़िस्ट।और वो नम्बर मैथ्यू के नाम पर सेव दिखा।जिसे मैने कल बात करने के बाद सेव कर लिया था।अब मेरा माथा ठनका।मुझे खयाल अपनी बदतमीज़ी का।आवाज़ नही आ रही तो मै क्या करूं?मुझे सुनाई दे रहा है तू बोल?अरे! मैने सोचा तो वो मैथ्यू नही महफ़ूज़ भाई थे,तभी शरीफ़ इंसान सब कुछ झेल कर एक फ़ोन पर आवाज़ सुनाई नही देने पर दूसरे फ़ोन पर काल कर बात करता रहा।कोई दूसरा होता तो?या फ़िर किसी ने तुझसे ऐसी बात की होती तो?मैने सोचा?तत्काल मेरे दिमाग मे मेरी ही बदतमीज़ी के रिकार्ड घूम गये।मुझे खुद पे बहुत शर्म आई और पूजा कर बाहर निकलते ही आफ़िस पहुंचने का इंतज़ार किये बिना ही कार मे बैठे-बैठे ही फ़ोन निकाला और ऊधर से आवाज़ आते ही कहा कि सारी महफ़ूज़ भाई मै कल आपको पहचान नही पाया था इसलिये थोड़ा रफ़ बात कर बैठा।सज्जन वो सच मे हैं सिर्फ़ लिखने मे ही नही ऐसा मुझे उसकी बातों से लगा।कोई बात नही कह कर हंस कर वो बात टालते रहे और मै और शर्मिंदा होकर माफ़ी मांगता रहा,एक बार नही कई-कई बार।

19 comments:

संगीता पुरी said...

शास्‍त्री जी की डायरेक्‍टरी बडे काम की रही .. जिसके कारण आपको इतनी जल्‍दी मालूम भी हो गया .. नहीं तो कितने दिनो मैथ्‍यू को याद ही करते रह जाते .. महफूज भाई की विनम्रता तो सचमुच काबिले तारीफ है .. और आपको तो कहीं न कहीं से हमें हंसाने या रूलाने का हमेशा एक मसाला मिल ही जाता है .. कल रूलाया था .. आज हंसा दिया .. धन्‍यवाद !!

अजय कुमार झा said...

हा हा हा बेचारे महफ़ूज़ भाई सोच रहे होंगे ..यार अनिल भाई से पिछले जन्म का कोई रिश्ता होगा तभी इतने तडाके से बोल गये...बाप रे ..अनिल भाई अब समझ कि जैसे ही कहें कि फ़ोन सुनाई नहीं दे रहा ..फ़टाफ़ट रख देन चाहिये..नहीं तो पता नहीं ..आप हमें विजय समझ कर झाड पिला दें । हा हा हा ..मैथ्यू भाई की तो खैर खबर अलग से ली जाएगी...दोस्तों के बीच ..ब्लोग्गर्स दुश्मन बन रहे हैं ..यानि ब्लोग्गिंग सफ़ल ..ब्लोग्गिंग जिंदाबाद ..
श्रीमती जी से तो अपनी भी ठनी रहती है ..जल्दी ही दोस्तों तक भी नौबत आने ही वाली है ..मजेदार वाकया रहा ...

अजय कुमार झा said...

हा हा हा बेचारे महफ़ूज़ भाई सोच रहे होंगे ..यार अनिल भाई से पिछले जन्म का कोई रिश्ता होगा तभी इतने तडाके से बोल गये...बाप रे ..अनिल भाई अब समझ कि जैसे ही कहें कि फ़ोन सुनाई नहीं दे रहा ..फ़टाफ़ट रख देन चाहिये..नहीं तो पता नहीं ..आप हमें विजय समझ कर झाड पिला दें । हा हा हा ..मैथ्यू भाई की तो खैर खबर अलग से ली जाएगी...दोस्तों के बीच ..ब्लोग्गर्स दुश्मन बन रहे हैं ..यानि ब्लोग्गिंग सफ़ल ..ब्लोग्गिंग जिंदाबाद ..
श्रीमती जी से तो अपनी भी ठनी रहती है ..जल्दी ही दोस्तों तक भी नौबत आने ही वाली है ..मजेदार वाकया रहा ...

Mithilesh dubey said...

कोई बात नहीं है भाई, महफूज भाई हैं ही ऐसे बोले तो इक दम सालिड।

Saleem Khan said...

अनिल जी, महफूज़ भाई वाकई बहुत विनम्र स्वभाव के हैं. आप से तो फोनवा पर ही बात हुई है. हमारी तो फेस टू फेस मुलाक़ात हुई. जब ज़ाकिर रजनीश जी की एक किताब का विमोचन हुआ था. फोन पर रोजाना बात होती है...

वैसे ब्लोगर वस्तुतः विनम्र ही होते है, की बोर्ड पर आते ही पता नहीं क्या हो जाता है...!!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

शःस्त्री जी की टेलीफोन डायरेक्टरी का पहला विक्टिम :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

बात इतनी बड़ी भी नहीं थी। भूलचूक लेनी देनी में मामला निपट गया। वैसे गाली प्यार से दी जाए तो गाली नहीं लगती।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

क्षमा मांगने से रिश्ते महफूज़ हो जाते हैं:)

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

भ्राता महफूज से अनुरोध है कि इस हादशानाक वार्तालाप(वह चाहें तो इसे कोई और 'नाक' की संज्ञा दे सकते हैं) पर तफसील और अपना पक्ष प्रस्तुत करें ताकि दूसरे पक्ष को जानने के बाद हम टिप्पणी कर सकें। ..उनके आने के पहले हम इस प्रस्तावना के आगे नहीं बढ़ पाएँगे। ;)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

हा, हा, हा, हा, हा, हा, ......... भैया ...........पूरा incident बड़ा मजेदार रहा...... .. आपका मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ.... बस ऐसा ही प्यार और आशीर्वाद बनाये रखिये............

सादर...

महफूज़..

Unknown said...

वाह भाईजी वाह !
क्या बात है ?

आप समय से थोड़ा आगे ही चल रहे हैं ।

विज्ञापनीय आय का क्या उत्तम फार्मूला निकाला है ?

हींग लगे न फिटकरी...रंग चोखे का चोखा

न अखबार छापने की ज़रूरत, न टी वी चैनल चलाने की दरकार, न होर्डिंग खड़े करने का टंटा और न ही कोई

FM रेडियो का फँदा ................

ब्लॉग पे आओ, एक बढ़िया कहानी बनाओ, जैसे आज शास्त्री जी की निर्देशिका का प्रचार किया है और लगे हाथ महफूज़ जी को भी हाई लाइट किया है वैसे ही रोज़ किसी न किसी उत्पादन की उपयोगिता बताओ और माल कमाओ...........हा हा हा हा ............वह ! क्या idea है sirjeeeeeeee

दादा,

ज़रूरत पड़े तो बोलना, मैं भी आपकी टीम में शामिल होने को मरा जा रहा हूँ............

बहुत स्कोप है इसमे,......हा हा हा हा

_______जाने दो, अपन यहाँ पोस्ट पढने कू आयेले हैं ..खालीपीली फुकट टाइम काइकू खोटी करने का .......

nice post....badhaai !

दीपक 'मशाल' said...

Ha Ha Ha...

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,
शुक्र है मैथ्यूज़...अरे अरे...मैं भी फिसल गया...महफूज़ मास्टर फ्यूज़ नहीं हुए...वैसे वो कमबख्त है ही इतना प्यार इंसान कि एक सेंकड में ही किसी भी अनजान को अपना बना ले....वैसे अनिल भाई आपको फोन पर कुछ न समझ आने की स्थिति से बचने के लिए एक मंत्र देता हूं... जैसे ही कभी ऐसी नौबत आए, आप अपना रिकॉर्ड शुरू कर दीजिए...इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं....कृपया थो़डी देर बाद कॉल कीजिए....

जय हिंद...

शेफाली पाण्डे said...

chaliye galatfahmee door ho gaee..achchha hee hua..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

फ़ोन वाकई बहुत ख़तरनाक हथियार है...पता नहीं दूसरी तरफ़ कौन इसे आप पर ताने बैठा है.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जम्मो ला हर्रस-भर्रस झन बेधे कर भैया-अब तैंहा हमर मन के सियान होगे गा अउ छत्तिसगढ मा सियान मन के गोठ के कउनो बुरा नई माने- "बकहा बबा" हां कहात हे, कहिके जम्मो हां असीरबाद समझथे। बने केहे हस भैया-तोर बकनी हा बने सुहाथे।

Arvind Mishra said...

मजा आ गया -आप दोनों जनों में कुछ विशेषतायें है -आप जितने हक़ से बोलते हैं महफूज भाई भी उतनी ही आत्मीयता से -हो गया शार्ट सर्किट ! और यह बहुतो के साथ होता है -मैंने भी अभी कुछ दिनों पहले मोबाईल में मिलते जुलते नाम के चक्कर में एक व्यक्ति को जो वो था न समझ कर इलाहबाद ब्लॉगर सम्मलेन की कथा बांच डाली -जबकि वे नेट की बाहरी दुनिया के आदमी -मगर एक बड़े वैज्ञानिक -मेरा इतना सम्मान की अंत तक रूचि लेकर हाँ हाँ हूँ हूँ करते रहे पूरे पांच मिनट -अचानक मुझे झटका सा लगा फोनअगली पार्टी ने मिलाया था -जब मैंने कहा की अरे हाँ आप बताईये कैसे फोन किया तो कह पड़े अरे आप बड़ी रोचक नयी नयी बाते बता रहे हैं पूरी कर लीजिये -"और हाँ क्या नाम बताया अजित वड्डरेकर और शब्द का सफ़र ,,भाई वाह बड़ा जोरदार काम कर रहे हैं -अरेरेरे यह तो डॉ अ के सिंह वैज्ञानिक नेशनल ब्यूरो आफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेस निकले और मैं उनको समझ बैठा था आर के सिंह ,हिंदुस्तान के कोरेस्पोंडेंट ......सर dhun लिया !

राज भाटिय़ा said...

नमस्कार आज तो बस हाजरी भरने आया हूं

शरद कोकास said...

वाह अनिल भाई यह भी खूब रही .. हमारे तो रॉंग नम्बर के चक्कर मे भी कई दोस्त बन गये । लेकिन यह महफूज़ से पूछना पडेगा ,टेलीफोन का बिल कितन दे रहा है आजकल पेटे छत्तीसगढ ।