रायपुर मे पहली बार राज्य स्तर की ब्लागर मीट की कोशिश की गई।कुछने इसे सफ़ल माना और कुछ ने……।खैर ये अच्छे संकेत है कि वैचारिक स्वतंत्रता के दूत ब्लागरों ने वैचारिक मतभेद भी खुल कर ज़ाहिर किये।सब कुछ ठीक रहा लेकिन जिस मीट को होने के पहले ही प्रायोजित बता कर असफ़ल करने की कोशिश की गई,उसके होने के बाद भी एकाध ब्लागर का सुर वैसा ही रहा।ये बात कुछ हज़म नही ठीक वैसे ही जैसे उन्हे मीट मे नाश्ते मे दिया गया समोसा हज़म नही हुआ।
खैर ये सब मुझे कहना नही चाहिये लेकिन बहुत दिनों से देख रहा हूं कि इस पर तरह-तरह के विचार सामने आये तो मुझे लगा कि मेरे मन मे धमाचौकड़ी मचा रहे विचारों को भी मन की कैद से मुक्ति मिलनी चाहिये और ब्लाग जगत के अनंत कैनवास पर मनचाहे ढंग से पसरने का मौका भी मिलना चाहिये।सो मै भी हाज़िर हूं अपने अनुभव लेकर।मैने मीट के शुरू होते ही ये साफ़ कर दिया था कि किस तरह से इसके प्रायोजित होने का दुष्प्रचार किया जा रहा है।और ये भी बता दिया था कि आयोजन प्रेस क्लब का है और नाश्ते की मिठाई डा महेश सिन्हा लाये हैं।मैं आपको बता दूं कि रायपुर प्रेस क्लब अपना हाल तमाम साहित्यिक और समाज सेवा से जुडी अन्य गतिविधियों के लिये निशुल्क उपलब्ध कराता है।पुस्तको का विमोचन भी यंहा होता है और कविता-पाठ से लेकर साहित्य पर गोष्ठी भी होती है।और इससे पहले भी यंहा ब्लागर इकट्ठा हो चुके हैं।
रहा सवाल इस मीट का तो, उसका स्वरूप वैसा नही था जैसी मीट हुई।वो महज कुछ ब्लागरों के आपस मे मिलने का कार्यक्रम था और ये तय हुआ था राजकुमार ग्वालानी,ललित शर्मा और बी एस पाब्ला जी के बीच्।राजकुमार ने पाब्ला जी को फ़ोन लगाया था और बातचीत के दौरान उसने बहुत दिनों से मुलाकात नही होने की बात कही।पाब्ला जी ने कहा जब चाहे मिल लेते हैं तो राजकुमार ने रविवार का दिन तय कर लिया और पाब्ला जी को रायपुर बुला लिया क्योंकि इससे पहले हम सब लोग भिलाई जा कर बेहद आत्मीय स्वागत का मज़ा ले चुके थे।राजकुमार ने मुझे बताया कि ऐसा कार्यक्रम तय हुआ है तो मैने भी हां कर दी और स्थान नीयत किया गया प्रेस क्लब।उसके बाद कौन आ रहा है और कार्यक्रम कैसा होगा ये हम लोगों को किसी को नही पता था।
इत्तफ़ाक़ से रविवार को प्रेस क्लब मे एक आवश्यक बैठक हो गई और उसके बाद मुझे पार्षदों के सम्मान समारोह मे जाना था।सो मैने राजकुमार से बैठक मे न आ पाने के लिये क्षमा मांग ली और सारी व्यवस्था प्रेस क्लब मे कर देने की बात कही।पता नही क्यों राजकुमार ललित शर्मा और पाब्ला जी को लगा कि मैं नही रहुंगा तो मज़ा नही आयेगा और उन्होने बैठक स्थगित करके अगले रविवार के लिये टाल दी।ये उन लोगों का मेरे लिये प्यार था और ये उनका बडप्पन भी जिसका मैं हमेशा आभारी रहुंगा।लगता है भूमिका कुछ ज्यादा बड़ी हो गई दरअसल उस सम्मेलन से जुड़ी भावनायें भी बहुत थी शायद इसलिये ऐसा हो रहा है।
खैर मैं आता हूं अब असली मुद्दे पर।तो ब्लागर मीट के बाद एक ब्लागर भाई के अनुभवों ने तो मुझे ज़मीन ट्च कर दिया।मुझे आज तक़ पता ही नही था कि अगर आप बैठक मे मूंगफ़ली या चनाबूट(हरे चने की गड्डी)नही खाते हैं तो आप ईमानदार नही कहला सकते।साला इतने साल से ईमानदार कहलाने के लिये दर-दर भटक-भटक के सर्टिफ़िकेट ढूंढ रहा था,मुझे नही मालूम था कि वो पार्क की घास पर बैठ कर चना खाने मात्र से मिल जाता है।जय हो ब्लाग जगत की।इतना महान ज्ञान और इतना आसान तरीका।हम मूर्ख हैं जो आज तक़ क्लब के बगल के पार्क मे बैठ कर एक ठो फ़ोटो नही खिंचवा पाये।अब सारे फ़ोटोग्राफ़रो को कह दिया है हमारा चना खाते हुये फ़ोटो ही खिंचा जाये और छापा जाये।
उन्ही महान और अनुभवी ब्लागर के ज्ञान भंडार से मुझे ये भी पता चला कि उस दिन मीट मे नाश्ते मे दिया गया समोसा उन्हे नही पचा।बाकि लोगों को तो पच गया और अगर ऐसा हुआ है तो वे किस श्रेणी मे आते है इस बारे मे उन विद्वान महोदय से जानने मिलेगा शायद।एक बात और उन्होने साधारण सी बैठक को भव्य आयोजन भी बता दिया।रोज़ सैकड़ो कप चाय प्रेस क्लब मे बनती है और निशुःलक पिलाई जाती हैं।नाश्ते मे एक समोसा,दो बिस्किट,थोड़े से आलू चिप्स और एक पीस मिठाई थी।ऐसा प्रेस क्लब हर आयोजन मे करता है और इसे भव्य तो कतई नही कहा जा सकता।मिठाई के बारे मे पहले ही बता दिया गया था कि ये डा महेश सिन्हा लायें है और 50 लोगों के लिये समोसा बिस्किट और चिप्स पर जितना खर्च हुआ होगा उतना तो शायद साधारण से साधारण आदमी भी अपने घर आये मेहमान पर खर्च कर सकता है।मात्र कुछ सौ रूपये लगे होंगे जिसे प्रेस क्लब ने खर्च किये।इसमे उन सज्जन को जब धन्ना सेठ के रूपये की बू आई तो मुझे उन्की इस मनुष्यों मे नही पाई जाने वाली इन्द्रिय पर खूब जलन हुई।और एक बात और उन्हे शायद इसलिये वो समोसा पचा नही,लेकिन उन्होने वो समोसा छोड़ा नही पूरा खाया।
अकेले वो ही थे जिन्हे ऐसा लगा कि कोई उन्हे एक समोसा खिलाकर पुतलियों की तरह नचा सकता है।वे किसी धन्ना सेठ के हाथो न नाचना चाहते है और न दूसरे ब्लागरों को नाचते देखना चाहते हैं।मुझे याद है इससे पहले भी उन्हे कई बार बुलाया गया मगर उन्होने आना ज़रूरी नही समझा और इस बार आये भी पता नही क्या-क्या उन्हे नज़र आ गया जो किसी और को नज़र नही आया।उदाहरण के लिये उन्हे ब्लागर मीट मे स्कूल के समय की गुटबाज़ी याद आ गई।ये उनका कहना और इससे ही समझ मे आ जाता है कि उन्हे स्कूल के समय से ही गुटबाज़ी की आदत है और वे इसे न तो भूले है और न भूलना चाहते हैं।पता नही उन्हे किस व्यक्ति के व्यापारिक उद्देश्य और निजी खुन्नस नज़र आ गई और कैसे और किसने उसे छतीसगढ से जोडा?खैर जो स्कूल के समय से गुटबाज़ी करता आ रहा हो उसके अनुभव सिर्फ़ और सिर्फ़ गुटबाज़ी के काम ही आयेंगे।अभी तक़ छतीसगढ के ब्लागरों मे गुटबाज़ी नही है लेकिन इनके अनुभव शायद ये महान और पवित्र काम भी कर देंगे।कहने को अभी और भी बहुत कुछ है लेकिन सब एक बार मे नही।मिलते है एक कमर्शियल ब्रेक के बाद। हम सब समोसा खाने वालों को तो उन्होने व्यापारिक उद्देश्य के लिये किसी धन्ना सेठ के इशारे पर नाचने वाली पुतली कह ही दिया है। और हां उन्हे आज भी छतीसगढ की पहली ब्लागर मीट का इंतज़ार है तो देर किस बात की दोस्त दम है तो करवा के देख लो हम भी आयेंगे और चना ही खा लेंगे मगर खाने के बाद ये नही कहेंगे कि साला चना पचा नही। हा हा हा हा।
35 comments:
हा हा हा भाऊ… बहुत खूब। अगली ब्लागर मीट में दारु-मुर्गे का इन्तज़ाम होना चाहिये अब तो…
अनिल जी, प्रत्येक अच्छे काम में बाधा तो आती ही है और मैं जानता हूँ कि ऐसी बाधाओं को दूर करने की क्षमता आपमें कूट कूट कर भरी हुई है। आप ने एक सफल ब्लॉगर मीट करवा के बहुत ही सराहनीय कार्य किया है।
अपुन को तो हर चीज पच जाती है क्योंकि अपना पेट तो "लक्कड़ हजम पत्थर हजम" है!
आपका गुस्सा होना जायज है पर लेखमाला के समाप्त होने तक रुकना तो था सरजी| चलिए आपको शान्ति मिली मुझे भी मिल गयी| हम आपके कसावट भरे लेखन के कायल रहे है और रहेंगे भले ही निशाना हम पर ही क्यों न हो|
पोस्ट पढ़कर बरबस मुस्करा रहे हैं! बिन्दास लेखन! किसी के आरोप की इत्ती ज्यादा सफ़ाई काहे दिये जा रहे हो भाई! ब्रेक के बाद की रपट का इंतजार है।
कई दिनों से सोच रहा था अनिल जी,
डलते है इसमें उच्च-कोटि मसाले और घी,
होने के बावजूद अनुभवी खानसामे मोती,
फिर भी
ये "ब्लॉगर की मीट" स्वादिष्ट क्यों नहीं होती ?
समोसे में थोड़ा चिनियाबदाम और अनारदाना पड़ा हो तो जायका बढ़िया हो जाता है। तब शायद भव्य माना जाये! :)
बेहद रोचक शैली में लिखा गया यह विवरण मजेदार लगा और जानकारी भी बढी कि कैसे कैसे अवरोध आते हैं.
रामराम.
भैया, समोसा हमको भी चाहिये.. आप अभी पार्सल किजिये वहां से.. बहुत दिन हुये बढ़िया समोसा खाये हुये.. :( टेंशन मत लिजिये, हम पचा भी लेंगे और ढकार भी नहीं लेंगे.. :)
खाने पीने की बात सुनकर तो मुंह में पानी आ गया.
anilji !
bahut bahut badhai aapko blogar meet ki aur is talkh aalekh ki
bhaiji !
aap to jante hain ki chhttisgarh mera nanihaal hai is naate main aapka mamera athva mousera bhai hua....
bhaiji ! aap apne bhai ko bhula kyon dete ho ? agli baithak me pl. mujhe bhi sammilit kijiyega ...aap kahenge to main ration card bhi raipur ka banva loonga lekin samose zaroor kaahunga kyonki shaam ko do paig lagaane ke baad main samose bade chaav se khaata hoon..ha ha ha ha ...aur mujhe hazam bhi ho jaate hain..ha ha ha
waah waah bloging ki duniya zindabad !
अनिल भाई मुझे भी तो शिकायत का मौका दीजिये
:)
अनिल जी , इस पोस्ट को पढ़कर तो ऐसा लगता है की ब्लोगर मीट , कीमा बनकर रह गई।
ब्लोगिंग में सौहार्द्य ही रहना चाहिए। यहाँ किसी का क्या बँट रहा है, जो वाद -प्रतिवाद की नौबत आ गई।
अनिल भाई , जब भी ऐसा कुछ पढता देखता सुनता हूं तो जानते हैं मन में एक ही बात आती है .........हम अपना बडप्पन हो या घटियापन ......कुछ भी तो छोड नहीं पाते जिंदगी हो या ब्लोग्गिंग ......चने हों या समोसे .....अच्छा हुआ तो आपने बिना नाम लिए ही ...सब कह डाला ..मुझे उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि वो और सब समझ चुके होंगे इस बात को
अजय कुमार झा
भाई जी
हमारे आने पर मूंगफली/चने ही न रखवा देना कहीं. लक्षण ठीक नहीं दिख रहे. :)
कुछ ठौ समोसा लेकर
उन तथाकथित माननीय ब्लॉगर
(समोसाएलर्जिक) महोदय को
दिल्ली भेजिए
हम बहुत शिद्दत से उनका
इंतजार करेंगे
7 फरवरी को।
रोचक दास्तां।
अनिल भाई-इस ब्लागर मीट से जिस तरह की बातें बाहर आई, वैसा कुछ नही था। सब जानते हैं जो उपस्थित थे। लेकिन 36गढी मे कहावत है "हंड़िया के मुंह ला तो परई मा तोप सकथस फ़ेर मनखे के मुंह ला कामे तोपबे" इसलिए इस मिलन को भंजाया गया। इस संगठन मे फ़ुट डालने की एक नाकाम को्शिश की गई। लेकिन यह मंसुबे कायम नही होगें जब तक आप जैसे काबिल लोग हैं।
पोस्ट के लिए आभार
रोचक पोस्ट।
अलबेला भाई आपको हम लोग कभी नही भूले उलटे हम कह सकते हैं कि आप हम लोगों को भूल गये।इस बैठक की सूचना देने वाली पोस्ट मे ही रात्रिभोज के स्थान के साथ आपका उल्लेख था और साफ़ लिखा था कि अलबेला भाई की कमी खलेगी।वे यंहा आ चुके हैं और हम चाहते है कि आप फ़िर आये और हम लोगों को सेवा का मौका दें।
पीडी तुम तो हम सबके दिल मे बसते हो तुम्हारे लिये समोसे हमेशा तैयार है बस एक बार आ जाओ।तुम्हारा दिल से स्वागत करेंगे।
पीडी तुम तो हम सबके दिल मे बसते हो तुम्हारे लिये समोसे हमेशा तैयार है बस एक बार आ जाओ।तुम्हारा दिल से स्वागत करेंगे।
समीर भैया आप आईये तो सही छतीसगढ शबरी का प्रदेश है आपको चख-चख के सिर्फ़ मीठे बेर खिलायेंगे ये चने और मूंगफ़ली क्या चीज़ है।
अली भाई जंहा तक़ मै आप को समझ पाया हूं आप एक असली छतीसगढिया हैं और आपको शिकायत का मौका मिलेगा भी तो भी आप कुछ नही कहेंगे।फ़िर भी आपका जब जी चाहे आईये आपका स्वागत है।हमसे जो बन पडेगा वैसा स्वागत करेंगे बिना अंशदान लिये।मेहमान नही हो आप हमारे परिवार के सदस्य हो।
press club k samose to apan saalon se pachaate aa rahe hain aur pachaate rahenge ;)
किसने किससे क्या कहा, क्यों रही शिकायत,
समोसे की क्या गलती
सब समझ गए।
ब्लागर मीट में इसीलिए नहीं जाते।
अपने घर पर ही
ब्लागरों से मिल लेते हैं
अपना समझ कर।
अनिल जी, बात अभी बाकी है शायद
ललित शर्मा की टिप्पणी से सारी तस्वीर साफ हो जानी चाहिए
बी एस पाबला
.... ये शीतयुद्ध छत्तीसगढ ब्लागर्स के लिये हितकर नही है ...!!!!!!
हे भगवान.
भाई, शबरी की बात कह कर आपने दिल जीत लिया. कहने को कुछ बचा ही नहीं. सादर.
लेखक लोग मेढ़कों की तरह होते हैं, जिन्हें एक तराजू में नहीं तौला जा सकता। यदि ये लोग ही एक होते तो आज साहित्य समाज की यह दुर्दशा नहीं होती। इनका मकसद ही रहता है कि किसी भी प्रकार से पंगा किया जाए, सामने वाले को परेशान किया जाए। आप परेशान हुए मतलब वे विजयी हुए। आप केवल क्रिया करिए, प्रतिक्रिया उनके लिए छोड़ दीजिए।
भैया यह उनको तो समझ आ गया होगा जो रायपुर प्रेस क्लब से जुड़े हुए हैं, और जो नहीं जानते उनके लिए ऐसी हरकत करना बड़ी बात नहीं, मुझे बहुत दुख है की मैं ब्लोगर्स मीत में नहीं आ सका.
अगली मीट मे आना विशाल्।ज़ल्द करायेंगे।ऐसे थमने वाला नही है ये मिलने मिलाने का सिलसिला।
मुझे समोसा पार्सल कर देना
नही किया
तो मुझसे बुरा कमेट कोई नही करेगा
पुनश्च:
मुझे समोसे खूब पच जाते है.
इस अमीर धरती पर ये गरीब आदमी कसम खाता है
आज के बाद
दुनिया के किसी कौने मे
कोई ब्लोगर मीट हुई
तो देख लेना
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मुझसे ज्यादा
समोसे
और कोई नही खायेगा.
पुनश्च:
अगर मे नही पहुच पाउ तो मुझे ईमेल से समोसे भेजना ना भूले
एक फोकटिया सुझाव- अगली बार उन्हे पचा-पचाया समोसा खिलायें ।
aise meet se to apna shakahar bhala..
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