Sunday, February 14, 2010

सर कुछ मरे हैं और थोड़े से घायल हुये हैं!कोई खास बात नही है सर!वैसे हमने खान का एक पोस्टर तक़ नही फ़ाड़ने दिया है!मैं अपनी कुर्सी पक्की समझू न सर!थैं

पुणे बम धमाके के बाद जैसे ही मीडिया ने सुर बदला तो नेताजी सकते मे आ गये।उन्हे लगा कि कंही फ़िर ये धमाका कुर्सी न हिला दे।फ़ोन करने की हिम्मत नही हुई सो उन्होने एक चिट्ठी लिख मारी देश के सबसे बड़े नेता जी और उन्हे नचाने वाली मैम को भी उसी मे सफ़ाई दे दी।ये चिटठी उनके विरोधियों ने देश के सारे चैनलों को लीक की मगर उन्होने इसेन इम्पोर्टेंस नही दिया सो मैं उसे ब्रेक कर रहा हूं एक्स्क्लूसिवली आप लोगों के लिये।

सर जी,आप को पता ही होगा कि थोड़ा गड़बड़ हो गई है।अब इसमे सर पूरा दोष स्टेट का तो नही हैं ना।मरने वालों का फ़िगर डबल मे भी नही है सर और घायलों मे भी कोई बहुत ज्यादा सीरियस नही है।सर ये मीडिया वाले तो पता है ना कैसे तिल का ताड़ बनाते हैं।सर वे इसमे आपको और मैम को भी खींच रहे थे लेकिन मैंने आप लोगों को इससे अलग ही रखने के लिये सब मैनेज कर लिया।

सर जी ये मीड़िया वालों का कुछ करना होगा!पहले तो खान के बहाने मुझे टारगेट कर रहे थे और इस मामले को उन्होने मुम्बई से दिल्ली तक़ फ़ैला दिया था और आप लोगों को लपेट लिया था।सर आप विश्वास किजिये मैम की नाराजगी से बचने के लिये मैंने क्या-क्या नही किया।आप जैसे ठण्डे नेता को गरम बताने के लिये पूरे प्रदेश मे धरपकड़ अभियान चला दिया था।इतना बड़ा अभियान तो सर मैने कुर्सी देने वाले 26/11 धमाके के बाद भी नही चलाया था।

अब देखिये न सर जी।मीड़िया वाले उन्ही से पहले बात कर रहे थे जिन्हे मुम्बई बम धमाकों के बाद वे लोग गैरज़िम्मेदार ठहरा रहे थे।जिनको बम धमाके ने हिला कर मुम्बई से दिल्ली पहुंचा दिया उनसे वे रियेक्शन ले रहे थे।मुझे थोड़ा डाऊट हो रहा है सर जी!उधर कोई गड़बड़ तो नही है ना!मैने तो सर अपने बेटे और फ़िल्मवालों को अभी तक़ दूर ही रखा है।ऊपर से आप लोगों की इच्छा के अनुसार फ़िल्मी खान की सेवा करके पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री को सेट कर लिया है!सर वो पिछ्ले वाले को अपने से पहले टीवी पर देख कर दिल थोड़ा तेजी से धड़क रहा है।

सर जी पिछली बार ऐसे ही एक बम धमाके ने मेरी तक़दीर का छींका फ़ोड़ा था और मैं कंहा से कंहा और वो मुम्बई से दिल्ली पहुंच गया था।अब कंही वो वापस आया तो मैं तो मुम्बई जाने लायक लायल भी नही हूं।सर जी मेरा खयाल रखियेगा मैने तो मैम तो मैम राहुल बाबा की भी सेवा मे कोई कसर नही छोड़ी थी सर!पूरी मुम्बई को छवनी बना दिया था।और तो और सर जी मेरे एक मंत्री ने तो उनकी चप्पले तक़ सीने से चिपका रखी थी!मुझे डाऊट था सर वो भोगी-विलासी कंही राहुल बाबा की चप्पले गायब करके मुझे लापरवाह न साबित कर दे।सर देखिये ना राहुल बाबा सिक्यूरिटी छोड़ कर लोकल मे सफ़र करते रहे उन्हे कुछ हुआ क्या?वे अपनी चप्पले तक़ छोड़ गये मैने उनकी तक़ सुरक्षा मे कोई कसर नही छोड़ी।अब अगर कोई बदमाश धमाका कर दे तो मैं क्या कर सकता हूं सर!सर देखिये ना मैने राहुल बाबा की चप्पलों तक़ की सुरक्षा की कठीन परीक्षा सफ़लता पूर्वक पास की है अब ऐसे मे थोड़ी बहुत तो गड़बड़ हो ही जाती है!

और मुझे तो लगता है सर इसमे आपको बदनाम करने के लिये महंगाई बढाने वालों का भी हाथ हो सकता है।सर जी आप को तो छोटी-छोटी बात याद नही रहती लेकिन मैं आपको याद दिलाता हूं अभी भी गृह मंत्रालय पर उन्ही के लोगों का कब्ज़ा है और वही बुटका कमान संभाल रहा है जिसने पिछ्ली बार आप सब को गलत बयानी करके फ़ंसाने की कोशिश की थी।उसी ने कहा था कि बड़े-बड़े शहरों मे छोटे-छोटे हादसे होते रहते हैं।सर चाहो तो उसे एक बार फ़िर से हटा सकते हैं।अपनी इमेज भी बच जायेगी और वो हकला-टकला भी निपट जायेगा।सर इसी मे उस की जान है।

सर मैंने तो कंही से कोई कमी नही की सर आप लोगों को खुश रखने के लिये।इसी चक्कर मे मैं अपने मराठी मानुसों से भी भीड़ गया।राजनिती का कोई भरोसा नही सर अगर मैं किसी मामले मे निपटा तो ये लोग बहुत खतरनाक है सर,सच मे मुझे वाचमैन के कपड़े पहना कर खानसाब के घर के बाहर खड़ा करके शलाम साब कहने पर मज़बूर कर देंगे।सर जी मैने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था सर जी लेकिन खान लोगों को इतनी जल्दी तो ये सब नही करना था।सर पूछियेगा सर उस साले खान से जिसकी पिच्चर दिखाने के चक्कर मे मैने मुम्बई समेत पूरे महाराष्ट्र को छावनी बना दिया था।उसके पोस्टर तक़ नही फ़टने दिये थे।और उसके बदले मुझे क्या मिला बम धमाका।सर आप लोगो का क्या है बड़े लोग हैं।जब मूड़ हुआ मेरी बलि चढा दोगे।

सर ये खान बहुत एहसान फ़रामोश निकला सर्।मैंने आऊट आफ़ वे सिर्फ़ आप लोगों के चक्कर मे उसकी मदद की और उसने?सर वो तो पाकिस्तान टीम तक़ के लिये रोता है!मैने सुना है कि वो यंहा से ज्यादा बाहर के देशों मे ज्यादा पाप्यूलर है।सर वो उन लोगो से बात करके टाईमिंग तो बदल सकता था।सर चार-पांच महिने बाद होता तो लोग ये फ़िल्म-विल्म का लफ़्ड़ा भूल जाते।ये अपने देश के लोगों की भूलने की आदत ही तो अपुन लोगों को सरकार मे बनाये रखे हैं।अब ये मीड़िया वालों को देखों दिन रात भौंक-भौंक सारी चीख-चीख कर जिस भोगी और विलासी की कुर्सी खिसका कर मुझे बिठाया था,उसी से बात कर रहे हैं,वो भी मुझसे पहले।सर मज़बूरी मे मुझे प्रेस कान्फ़्रेंस लेना पड़ा।ये सब सर उस खान की वजह से है।क्या वो अपने पाकिस्तान के सोर्स से बात करके धमाके का टाईमिंग आगे नही बढा सकता था?ना सही !टाईमिंग आगे ना बढाता तो कम से कम सेंटर ही बदल देता।सर गुजरात मे होता तो अपने को उस दढियल के खिलाफ़ हल्ला मचाने का मौका भी मिल जाता।सर याद है ना दिल्ली मे कैसा हल्ला कर रहा था महंगाई के मामले में।जैसे गरीबों कि चिंता सिर्फ़ उसे है आपको नही।सर देखियेगा सर जी।खयाल रखियेगा!मैं आपकी सेवा करता आया हूं और करता रहूंगा।

आपका चरण सेवक

फ़िल्हाल तो किसी प्रकार के शोक मे नही हूं,
लेकिन आपने हटाया तो शोक ही शोक ही बचेगा।

27 comments:

विवेक रस्तोगी said...

ऐसे ही लोगों को प्रमोशन मिलता है, जो अकल से नहीं काम करते हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पुणे में बम विस्फोट में दस की मौत-चलो फिर मोमबत्ती जलायें. धिक्कार उन पर भी जो आज वेलेन्टाइन के पर्व में मस्तिया रहे हैं, जिनके पास इन मारे गये निर्दोषों के लिये अफसोस करने के लिये चंद पल भी नहीं हैं.

संजय बेंगाणी said...

क्या आप भी छोटी छोटी बातों पर लम्बा लम्बा लिख मारते हो. भारत वासी न डरा है न डरेगा. कल काम पर लौटेगा. हम मूँह तोड़ जवाब देंगे. साम्प्रदायिक ताकतों को सर उठाने नहीं देंगे. गंगा जमना संस्कृति की रक्षा करेंगे. आरएसएस, सेना, मोदी हाय-हाय.

मरने के लिए अगला नम्बर किसका है?

सतीश पंचम said...

अनिल जी,

आपका यह व्यंग्य पसंद तो आया पर दूसरी ओर एक हकीकत यह भी है कि इन गुण्डों को यदि इन्हीं की जबान में सख्ती न की जाती तो ये और ज्यादा सिर चढते। आप को शायद मुंबई की जमीनी हकीकत पता न हो, यहां पर पुलिस भी ऐसे गुण्डों के लिये दिल में सॉफ्ट कोना लेकर चलती है। उन पर ज्यादा सख्ती नहीं दिखाती। ज्यादातर पुलिस वाले इन जैसी पॉलिटीकल पार्टी का अखबार सुबह सुबह लेकर पढते मिलेंगे जिनमें झूठ के अलावा कभी कभी पुलिस वालों के लिये सुविधाओं की मांग की जाती है। मैं पुलिस वालों की सुविधाओं का विरोधी नहीं हूं, लेकिन जिस तरह से ये पॉलिटिकल पार्टीयां उन्हें अपनी ओर अप्रत्यक्ष रूप से करती हैं मैं उसका विरोधी हूं।

खान की फिल्म के लिये बहुत हाय तौबा इसलिये दिख रही है क्योंकि वह मीडिया में दिखाया जा रहा है। पुलिस भी सख्ती तब कर रही है क्योंकि उसे केंन्द्र से दबाव पड रहा है एक ओर बिहार का चुनाव है और दूसरी ओर मुंबई की छवि।

के पी एस गिल खुद स्वीकार कर चुके हैं कि मुंबई की पुलिस की हमदर्दी ऐसे पारटीयों के प्रति है और उनके कार्यकर्ताओं पर जल्दी ये हाथ नहीं उठाते। इसी का नतीजा है कि फलाना ढेकाना सेना अपनी गुंडागर्दी करती रहती है।

ऐसे में पोस्टर फाडने से बचा लेना भी मैं एक हल्की सख्ती मानता हूँ। रही बात बम विस्फोट रोकने की, सो वह तो तब रोका जाय जब इन छटंकी राजनीतिक पार्टीयों से उन्हे फुरसत मिले।

और यह बम विस्फोट तो अब हुआ है खान के पोस्टर की देखभाल तो अब हो रही है इसलिये कहा जा सकता है कि पोस्टर संभालने में लगे थे सो विस्फोट हो गया लेकिन पहले तो कोई पोस्टर संभालने जैसी बात नहीं थी। तब भी विस्फोट होते थे।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आदरणीय अनिल भैया....

उस दिन मैं कोर्ट में था.... मेरी पेशी थी.... मुक़दमे की.... थोडा टाइम था तो आपसे बात करने का मन हुआ था.... बात चल ही रही थी कि .... मेरा नाम पुकार लिया गया....और मुझे फोन अचानक काटना पडा..... दो बार जज मुझे वैसे भी वार्निंग दे चुका था.... पता नहीं क्यूँ यह जज लोगों की क्या हेकड़ी होती है.... मोबाइल फोन से कौन सी इनकी इज्ज़त में वाट लग जाती है.... मैं उस वक़्त फोन अचानक काटने के लिए.... आपसे माफ़ी चाहता हूँ.... अब मैं लखनऊ वापिस आ गया हूँ.... आपको फोन करूँगा अभी ....

आपका

छोटा भाई..

महफूज़...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आदरणीय अनिल भैया....

उस दिन मैं कोर्ट में था.... मेरी पेशी थी.... मुक़दमे की.... थोडा टाइम था तो आपसे बात करने का मन हुआ था.... बात चल ही रही थी कि .... मेरा नाम पुकार लिया गया....और मुझे फोन अचानक काटना पडा..... दो बार जज मुझे वैसे भी वार्निंग दे चुका था.... पता नहीं क्यूँ यह जज लोगों की क्या हेकड़ी होती है.... मोबाइल फोन से कौन सी इनकी इज्ज़त में वाट लग जाती है.... मैं उस वक़्त फोन अचानक काटने के लिए.... आपसे माफ़ी चाहता हूँ.... अब मैं लखनऊ वापिस आ गया हूँ.... आपको फोन करूँगा अभी ....

आपका

छोटा भाई..

महफूज़...

डॉ टी एस दराल said...

जर्मन बेकरी में बैठकर हमने भी कॉफ़ी पी है।
एक बार फिर ये लोग अपने नापाक इरादों में कामयाब रहे ।
हम तो खान खान करते ही रह गए और वो अपना काम कर गए।
बहुत करारा व्यंग है , अनिल जी।

Unknown said...

आप चिंता न करें, सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है (खान की)…

Anil Pusadkar said...

सतीश भाई मैं आपके सफ़ेद घर का फ़ैन हूं और व्यंग लेखन में आपके सामने कंही नही टिकता हूं।मुझे अच्छा लगा आपको मेरा लिखा पसंद आया।ये बात सही है कि मुम्बई की बात मुम्बई वाले यानी आप हम सबसे बेहतर जानते हैं।लेकिन मैंने इसे सिर्फ़ एक संदर्भ मे नही लिखा है।आप देखिये जिस विलास राव को मीडिया ने 26/11 के बाद निकम्मा,लापरवाह गैरज़िम्मेदार और पता नही क्या-क्या कहा था,पुणे ब्लास्ट के बाद सबसे पहला रियेक्शन उन्ही का था।क्या वो दिल्ल्ली मे मंत्री बना दिये जाने मात्र से अच्छे हो गये।क्या जिनकी हरकत को शर्मनाक कहने वाले मीडिया को उसी से बात करना और वो भी उसी मुद्दे पर शर्मनाक नही लगा।आपने सही कहा सतीश भाई हम लोग मुम्बई को ठीक से नही जानते।मगर मैं ये बात भी तो कह सकता हूं कि बहुत से लोग मेरे प्रदेश छत्तीसगढ की हालत नही जानते।पुणे मे मृत लोगों से मैं क्षमा चाहता हूं और मेरा उनका अपमान करना या उन्हे कम दिखाना मेरी मंशा नही है मगर क्या एक दर्जन से भी कम लोगों के मारे जाने पर जिस तरह से शोर हो रहा है क्या मेरे प्रदेश मे एक पुलिस अधीक्षक समेत तीन दर्जन से ज्यादा लोगों के एक ही नकस्ली हमले मे मारे जाने पर उतनी चीख पुकार हुई थी।एक मुख्यमंत्री का हेलिकाप्टर गुम जाता है तो चौबीस घण्टो मे ढूंढ लिया जाता है और उसी जंगल मे जब साधारण लोगों का हेलिकाप्टर गुमता है तो 45 दिनों तक़ नही मिलता।मैने उन लोगों के आंसू भी देखें हैं।क्या आदमी-आदमी मे फ़र्क़ होता है?क्या मौत-मौत मे फ़र्क़ होता है?क्या आंसू-आंसू मे फ़र्क़ होता है?क्या मुम्बई या पुणे हमले मे मारे गये लोगों मे विदेशी लोगों के होने से वो ज्यादा दुःखद है?क्या बस्तर के राहत शिविर सलवा-जुडूम मे रहने वाले दर्जनों आदिवासियों का एक रात मे कत्ल कर दिया जाना कम दुःखद है?क्या डेढ साल की बच्ची का गला रेत देना सिर्फ़ इस्लिये महत्वपूर्ण नही है कि वो जंगलो मे रहती है,शहरों मे नही?मेरे पास बहुत से सवाल है मेरे दिल मे गुस्से से ज्यादा बेबसी।हो सकता है भावनाओं मे बह कर मैने कोई गुस्ताखी कर दी हो तो मुझे माफ़ करियेगा।मेरा उद्देश्य था इस देश के सड़ियल सिस्टम को गाली देना।मैं इस समय अमरावती मे हूं।मैं इस समय स्टार न्यूज़ देख रह्जा हूं और उस पर चर्चा दिखाई जा रही वेलेंटाईन डे पर्।और चर्चा मे प्रोफ़ेसर मटूक नाथ और उनकी शिष्या जुली को भी बुलाया गया।क्या बताना चाहते हैं हम सब कि प्रोफ़ेसर का शिष्या के साथ प्यार करना जायज है।और तमाम बातें शिवसेना और बजरंग दल को गालियां देने के लिये,मैं शिवसैनिक नही हूं,न घोर हिंदूवादी।लेकिन एक बात बतायें क्या प्रेम का संदेश इस देश के किस संत ने नही दिया।क्या प्रेम दिवस मनाने के लिये वेलेंटाईन ही है इस सारी दुनिया में?क्या वेलेंटाईन पर जितना टाईम दे रहे हैं खान पर जितना टाईम दिया जाता है क्या उतना भुख,बेरोजगारी और महंगाई पर दिया जाता है।मैं नक्सलवाद अलगाववाद और आतंकवाद की तो बात ही ना करूं अगर मूलभूत सुविधायें ही मिल जाये आम आदमी को।खैर जाने दिजिये मेरी बातों को अन्यथा मत लिजियेगा।हो सके तो कभी हमारे शहर आईये,,हम घुमायेंगे आपको जंगलों और खनिजों से भरी धरती पर जंहा आधी आबादी आज भी गरीबी से भी नीचे नर्क़ मे रह रही है।

आप आते रहियेगा मेरे ब्लाग पर यकीन मानिये मुझे जरा भी बुरा नही लगा बस लगा कि अपनी भावनायें भी आप को बता दूं।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सौ बात की एक बात...पाकिस्तान को दुश्मन-देश मान कर व्यवहार करना सीखे भारता..बहुत हो गया दोस्ती-राग.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सही लिखा आप ने , अब भी कोई इस पकिस्तान से गल वाहियां डाले तो वो सिर्फ़ देश का गद्दार ही होगा, क्योकि बि्च्छू कभी भी अपनी आदत नही बदल सकता, लेकिन इस धमाके को भी जनता दो चार दिन मै भुल जायेगी.... मजा तब है सब मिल कर पुछे देश की सरकार से कब तक मरते रहेगे हम, ओर पकड कर गले से इन्हे खींचो ओर इन की ऒकात जो हमारे अन्नदाता बने है बताओ. अनिल जी फ़िर से कहुंगा आप की कलम मै जादू है.
धन्यवाद

सतीश पंचम said...

@ क्या वेलेंटाईन पर जितना टाईम दे रहे हैं खान पर जितना टाईम दिया जाता है क्या उतना भुख,बेरोजगारी और महंगाई पर दिया जाता है।

अनिल जी, यही तो बदकिस्मती है कि मीडिया को यही सब दिखाने की पडी है। यदि भूख, लाचारी, बेरोजगारी आदि यह सब मीडिया दिखाता तो आज राजनीतिक मुद्दे कुछ दूसरे होते। लेकिन मीडिया तो जैसे यह सब दिखाकर अफीम की गोली जनता को लगातार खिला रहा है। नेता भी यही चाहते हैं कि जनता अफीम की गोली खाती रहे। और जनता है कि उसे भी इस अफीम की लत लग चुकी है। थोडी देर ऐसी खुराक न मिले तो बेचैन हो चैनल बदल देती है।

मीडिया पर मेरी एक पोस्ट में आपने बहुत खुलकर कमेंट दिया था राज्यपाल से मिलने पर जो बातें हुई उन्हें बहुत साफ साफ रखा और उस लम्हे को, राज्यपाल जैसी शख्सियत की बेबसी को समझ लेना ही अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है। मैं आप की व्यथा अच्छी तरह समझता हूं क्योंकि जिस संजीदगी से आप उन निरीह आदिवासियों के मुद्दे को उठाते रहे हैं, और दूसरी ओर इस ब्लॉगजगत में नक्सल और आदिवासी क्षेत्रों की बात करते मुझे और कोई पोस्टें नहीं दिखती ( कुछ होंगी भी, पर मैं ही शायद उनको नहीं पढ पाया होउं).

खैर, आपकी बात का बुरा क्यों मानना। मैंने अपनी बात यहां की परिस्थितियों के अंतर्गत कही, आपने अपनी बात अपने अनुभवों के तहत कही। यही तो विचार विनिमय है।

बाकी तो ब्लॉगिंग का रस ऐसे ही लिया जाता है :)

Anonymous said...

आपने हटाया तो शोक ही शोक ही बचेगा

बड़ी दारूण गाथा है

बी एस पाबला

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बहुत अच्छे , खान खुश है यहा भी और वहा भी

दीपक 'मशाल' said...

अगर उस नेता ने दिल्लीवालों और मैडम को आज प्रेमपत्र भेजा होगा तो जरूर उसका मजमून बहुत कुछ ऐसा ही रहा होगा... बहुत अच्छा लीक किया भैया...
जय हिंद...

Smart Indian said...

गुस्सा जायज़ है. अफ़सोस यही है कि व्यंग्य और सच्चाई के बीच की दीवार बड़ी कमज़ोर हो गयी है! पुणे बम काण्ड के मृतकों को श्रद्धांजलि! अब तो प्रशासन की आँखें खुलनी ही चाहिए.

उम्मतें said...

आप भावुक हैं सो दुखी हैं पर उन्हें संभवतः ईश्वर नें सूकर चर्म मंडित बने रहने का वरदान दिया हुआ है !

Ajay Tripathi said...

महगाई और खान पर आपका निरंतर लेखन आपकी संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है ,सुरेश जी भावानयो पर आपका द्रितिकों छत्तीसगढ़ की आम जनता की अभिवक्यती है ! शुभ कामनाये अजय त्रिपाठी

शरद कोकास said...

अनिल भाई , यह सिर्फ व्यंग्य नही है यह वास्तविकता है लेकिन व्यंग्य यह है कि इस वास्तविकता को बताने के लिये हमें व्यंग्य का सहारा लेना पड रहा है । दुष्यंत का शेर है .".हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग / रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही "

स्वप्न मञ्जूषा said...

होठों पे कुचरई रहता है
जहाँ दिल में धुरफंदरई रहता है
हम उस देश के बासी हैं ...
जिस देश में सब कुछ होता है...

Khushdeep Sehgal said...

चलिए सरकार की दुकान...

क्या खरीदना है...पेट के लिए रोटी, हाथ के लिए रोज़गार, सिर के लिए छत...

सरकार की दुकान से जवाब मिलेगा....ये तो नहीं है...सपने हैं वो ले लो...सिनेमा है वो ले लो...माई नेम इज़ ख़ान है, वो ले लो, मल्टीप्लेक्स ले लो, ब्लू टूथ वाले एक से बढ़ कर एक मोबाइल ले लो...चमचमाती कारें ले लो...

आप कहेंगे कि न जी न इनकी भला हमारी औकात कहां...हमें रोटी न सही सिक्योरिटी दे दो...

सरकार कहेगी...मज़ाक करते हो, शर्म नहीं आती...तुम्हे सिक्योरिटी की क्या ज़रूरत...आम आदमी तो फैंटम होता है...निहत्था मैदान में खड़ा रहता है...ललकारता हुआ सरहद पार के कसाबों को, बोट से बैठ कर आओ बेरोकटोक...चलाओ जितनी चाहे गोलियां...आम आदमी फीनिक्स है...फिर खड़ा हो जाएगा अपनी राख़ से धूल झाड़ता हुआ...

जय हिंद...

अजय कुमार झा said...

अनिल भाई इस घटना का मतलब साफ़ है कि हम भले ही चूक जाएं वे नहीं चूकते और हर बार किसी दरियादिली ( जैसी कि इस बार खान साहब ने दिखाई ) का जवाब वे इतने प्यार से ही देते हैं , ठीक धोया है आपने
अजय कुमार झा

अजित गुप्ता का कोना said...

आज ता नाइस लिखने का मन कर रहा है। सुबह-सुबह आनन्‍द आ गया।

Pradeep Acharya said...

Dear All

can any one please tell me how to write my comments in hindi..
Regards

कडुवासच said...

.... जबरदस्त हैडिंग लगाई है अनिल भाई (..................)!!!!!!!!

ravi k.gurbaxani said...

anil bhai, namste.
bloger meet ko lekar aapki nekniyati par bekar ki bahas go rhi hai...holi par gappe udti hai gulal ki tarah...is par dhyan na de...kuchh holiyana sansmaran sunaye..ha ak bat r aapki profile me virus alert dikh raha hai...durust karwa de.....shesh-shubh.........

Gyan Dutt Pandey said...

ऐसे कर्मठ कार्यकर्ता पर अनेक कुर्सियां न्योछावर!