Wednesday, March 17, 2010
लड़कियां मोबाईल का प्लान नही है टाटा सेठ जो चाहे रोज़ बदल लो!
लड़किया क्या होती है?प्रेमिका,दोस्त या रोज़ बदलने वाली कोई कोई खूबसूरत चीज़?सच मानें तो इस देश मे महिलाओं को जो स्थान दिया गया था पता नही क्यों वो अब षड़यंत्रपूर्वक छीना जा रहा है?क्या आप एक प्रमिका को एक सेकेण्ड मे दोस्त मे बदल सकते हैं?क्या आप अपनी प्रेमिका को दोस्त मेबदल कर उसे छोड़ दूसरी लड़की के साथ जा सकते हैं?नही ना?मगर आजकल ऐसा ही होता है,ये मैं नही कह रहा बल्की एक जानी मानी मोबाईल कंपनी का विज्ञापन कह रहा है?देखा है ना आपने टीवी पर वो विज्ञापन?नही?अरे कैसी बात कह रहें है? टीवी पर आजकल एक मोबाईल कम्पनी का विज्ञापन खूब दिखाया जा रहा है।इस विज्ञापन में एक जोड़ा रेस्त्रां मे बैठा रहता है और अचानक़ लड़का प्रेम पर सवाल खड़ा करता है जिस पर लड़की भी सहमती जताती देती है और लड़का लड़की से कहता है कि आज से वे दोस्त हैं और लड़का ऊठ कर दूर बैठी उसे देख कर मुस्कुरा रही एक बेहद उत्तेजक़ और जिस्म ऊघाड़ू कपड़ों मे बैठी लड़की की ओर चला जाता है।वो लड़की उसे देख कर मुस्कुराती है और दोनो उठ कर चल देते हैं तभी लड़का अपनी पुरानी प्रेमिका की ओर देखता है तो उससे एक दूसरे युवक को मनुहार करते देखता है।एक पल के लिये चौंकने के बाद वो मुस्कुराता है और नई लड़की के साथ निकल लेता है और उसके बाद मोबाईल कंपनी का डेली प्लान का विज्ञापन शुरू हो जाता है ।मानो लड़की ना हो आपका मोबाईल प्लान हो जो चाहो रज़ बदलो फ़िक्स रखने की क्या ज़रूरत है?पता नही इस विज्ञापन से इतनी बड़ी मोबाईल कंपनी इस देश के युवाओं को क्या संदेश देना चाहती है?वो ये बताना चाह्ती है कि उसे मोबाईल के लिये फ़िक्स प्लान की ज़रुरत नही है उसे रोज़ बदलना चाहिये या उसे ज़िंदगी मे किसी लड़की को प्रेमिका बना कर सदा के लिये चुनने कि बजाय रोज़ नई लड़की चुनना चाहिये?पता नही रूपये कमाने की होड़ इस देश के व्यापारियों को किस गर्त और किस नर्क मे ले जायेगी?एक बड़ी मोबाईल कंपनी के इस बेहद आपत्तिजनक विज्ञापन पर पता नही रेग्यूलेटरी बोर्ड की नज़र पड़ी हैया नही मगर इस मामले मे महिलाओं की खामोशी भी समझ से परे है?पता नही आपने देखा है या नही ये विज्ञापन?अगर देखा है तो बताईयेगा ज़रूर कि क्या वो विज्ञापन आपत्तिजनक है या नही?
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36 comments:
ghor aapattijanak aur nindniya
अनिल जी, कितना ही लिखें, इन चिकने घड़ों पर को क्या फर्क पड़ता है? वे कुछ भी कर सकते हैं धन कमाने के लिए।
ऎसे विज्ञापन पर लोग कयो नही एतराज करते, ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है.... अगर हम सब इन बातो का बिरोध करे तो किसी की हिम्मत नही हो सकती ऎसे विज्ञापन दिखाने की.
आप ने इस ओर ध्यान दिलाया, आप का बहुत बहुत धन्यवाद
जनता को रिझाने के लिए ये जो न करें..किस दिशा में जा रहे हैं यह..आपत्तिजनक है.
अभी नहीं देखा है देख कर बतायेगे अनिल जी -मगर ब्लॉगजगत में तो यह देख ही चुके हैं की किस तराह लोग पाला बदल ले रहे है-आप अपने जैसा ही दुनिया को मत समझाकरिए
अनिल जी,
ये सारे एड उस एड के आगे बड़े साफ सुथरे लगेंगे जिसमें अंडरवियर की एड में...ये तो बड़ा टोइंग है... का जाप जपा जाता था...
जय हिंद...
अनिल जी बस इतना ही कहूँगा की आज के परिवेश में हमारे देश में नोट और वोट के लिए देश में कोई भी कही भी किसी भी स्तर तक गिर सकता है. अच्छा और बुरा कौन देखता है. ये भोंडा विज्ञापन भी ग्राहक को आकर्षित कर कमाई करने का खेल है.
बाज़ारवाद हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा
आज के जमाने में पसे के आगे सब कुछ बेमानी है. इनको खुद को नही मालूम कि ये क्या कर रहे हैं..सिर्फ़ धनपतियों कि लिस्ट मे इनका नंबर कौन सा यही पता रखते हैं.
रामराम.
क्या कहें? ऐसे विज्ञापन ही तो हमारी युवा पीढ़ी को गर्त में ठकेलते चले जा रहे हैं।
आपकी सूक्ष्म नज़र कहाँ तक पहुँच जाती है.. मैंने विज्ञापन देखा तो नहीं है.. पर जिस तरह आपने बताया है वाकई काबिले गौर है..
one needs time to view all these advertisements you raised an objection good and how aboput raising and objection on the following selection of words
ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है
i think people who settle abroad feel antagonized much more by woman empowerment in India then any one else
i sometimes wonder do they ever think when they write about us woman blogger in such derogatory language
रचना जी उस विज्ञापन को मैने समय निकाल कर नही देखा,वो इतनी बार दिखाया जा रहा है कि आप अगर समाचार देखें या आई पी एल के क्रिकेट मैच,वो विज्ञापन टीवी की स्क्रीन पर आ ही जाता है।आप कितनी बार रिमोट का इस्तेमाल करेंगे चैनल बदलने के लिये?मुझे खराब लगा इस्लिये मैने उसे लिख दिया।वह अकेला नही है और भी बहुत से विज्ञापन आपत्तिजनक है कुछ पर मैं लिख चुका हूं और बाकी पर भी लिखूंगा।
आप ने जब भी लिखा हैं मेरा सहमति का कमेन्ट वहा जरुर होगा और टी वी देखने के लिये भी समय चाहिये होता हैं जो आज कल कम ही मिलता हैं बाकी मैने सुना हैं charity begins at home . ब्लॉग जगत मे महिला ब्लॉगर के प्रति शब्दों के चुनाव पर आप कभी जरुर लिखे वैसे मै तो लिखती ही रहती हूँ !!और आगे भी पुरजोर कोशिश रहेगी कि जहां तक हो सके अपने आस पास से जितनी अपमान जनक भाषा का प्रयोग होता हैं जो कि एक प्रकार का जेंडर बायस हैं उसको सामने ला सकूँ क्युकी taken for granted हैं कुछ बाते जिनको सामने लाना जरुरी हैं । आप विज्ञापन से लाये , मै ब्लॉग / कमेन्ट से लायूं शायद बदलाव कि शुरुवात हो
सादर
हमने देखा नहीं यह विज्ञापन। अभी भी समझ नहीं आ रहा है कि कौन सा विज्ञापन है, लेकिन अब आँख गड़ाकर देखेंगे और फिर प्रतिक्रिया करेंगे।
ानिल भैया-
आपने टीवी पर हो रहे एक
अन्याय की ओर ध्याना आकृष्ट कराया।
बाजारवाद और पैसे के चलते जो
हो जाए वो कम है।
अच्छी पोस्ट के लिए आभार
ग्लोबलाईसेशन!
ये विज्ञापन देखा तो नहीं ..पर जिस तरह आप बता रहे हैं आपत्ति जनक तो है... पैसे के लिए ..कुछ भी करेगा.
यह विज्ञापन देखा तो नहीं है,पर समझ सकती हूँ की कैसे दिखाया जा रहा होगा...
क्या कहूँ,खून खौल जाता है ऐसे विज्ञापनों को देखा कर ... पर सिवाय इसके बहुत अधिक कुछ कर पाना हमारे हाथ में भी तो नहीं....
जिनके हाथ में कुछ करने का सामर्थ्य है,वे तो कब के अपने आँखों पर नोटों की पट्टी और कानों में तेल डाले बैठे हैं...उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि देश की संस्कृति को ये विज्ञापन,टी वी कार्यक्रम कैसे प्रतिपल बलत्कृत करते रहते हैं...
किसे कहें...स्त्रियों की नग्नता के साथ चिपका कर अपने उत्पाद को येन केन प्रकारेण बाज़ार में खपाने वाले उद्योगपतियों को....पैसा ले इन्हें प्रचारित करने वाले संचार माध्यमों को....या फिर अपने को वस्तु बना परोसती इन अर्थलोलुप बालाओं को....
बाज़ार में औरतों को आज से नहीं, बहुत पहले से शो पीस की तरह पेश किया जाता है. यह विज्ञापन मुझे भी बहुत अटपटा लगा था. लेकिन यह सिर्फ़ औरतों के विरुद्ध नहीं है क्योंकि इसमें लड़का-लड़की दोनों अपने-अपने पार्टनर्स बदल लेते हैं. यह आज की नयी पीढ़ी को सम्बोधित है, जो पहले से ही प्रेम जैसी चीज़ों को तुच्छ समझती है और जिसे इस तरह के विज्ञापन यह आश्वस्ति दिलाते हैं कि तुम कुछ गलत नहीं कर रहे हो, ऐसा तो होता ही है, यह तो आज का लाइफ़ स्टाइल है. तेजी से गर्ल फ़्रैंड या ब्वॉय फ़्रैंड बदलना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है.
ये तो हुयी एक बात. लेकिन जिस दूसरी बात पर रचना जी ने आपत्ति की है, वह है ब्लॉगजगत की कुछ औरतों के लिये एक टिप्पणी में यह कथन " ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है..." यह कथन किसी भी महिला को सम्बोधित हो, पर ऐसी भाषा का प्रयोग कतई उचित नहीं है.
नारी ब्लॉग, टीवी सीरियल्स और विज्ञापनों में नारी-चित्रण जैसे मुद्दों को समय-समय पर उठाता रहा है. इसके अतिरिक्त इस ब्लॉग का प्रयास रहता है कि ब्लॉगजगत में महिलाओं के प्रति अनुचित भाषा के प्रयोग, आपत्तिजनक लेखों, अभद्र टिप्पणियों और बाज़ार की तरह नारी के शो-पीस की तरह प्रयोग का विरोध करे. नारी ब्लॉग इस समय औरतों का सबसे बड़ा कम्युनिटी ब्लॉग है. इसलिये जब यह कहा जाता है "ब्लॉग जगत की कुछ नारियाँ" तो यह आक्षेप हम पर भी किया जाता है. नारी कोई भी हो, किसी भी जाति, वर्ण, धर्म की हो, उसके विरुद्ध यदि ऐसी भाषा का प्रयोग होगा तो हम इसका विरोध करेंगे.
एड पर आपत्ति की जा सकती है लेकिन क्या किया जा सकता है जमाना भी तो तेजी से बदल रहा है।
पहली बात तो बधाई इसपर लिखने के लिए कल रात ही इसपर लिखने की सोच रहा था :) .
अब दूसरी बात पर की क्या सही और गलत तो ज्यादातर लोग इसका विरोध करेंगे लेकिन थोड़ा आसपास नजर घुमाएँ तो तस्वीर कुछ धुंधली ही दिखाई देती है .
आज महानगरों और छोटे शहरों में कोई ज्यादा अन्तर नहीं रह गया है . live in relationship( बिना विवाह दो विपरीत लिंग के लोगों का एक घर में रहना ) इस देश में भी अपनी धमक दे चुका है .
व्यापारवाद जिसे हमने आँखें बंद करके पश्चिम से अपनाया है तो और क्या उम्मीद की जा सकती है.
एक पुराना गीत याद आ गया : रिश्ते नाते प्यार वफा सब वादे हैं वादों का क्या ........
मैने नहीं देखा .. पर जैसा आप कह रहे हैं .. यह अवश्य आपत्तिजनक है !!
... टेलिविजन में तो फ़ूहडता का बोलबाला है सुबह से शाम तक (पूरे २४ घंटे) फ़ूहडता ही फ़ूहडता .... ये विज्ञापन देखना पडेगा!!!
अनिल भाई ,इसमें मुझे उन संस्थाओं की साफ़ साफ़ मिलीभगत दिखती है जिन्हें ऐसे प्रसारणों को प्रसारित करने या रोकने का अधिकार दिया गया है ...और इसके लिए जब तक आम नागरिक नहीं जागेगा तब तक कुछ नहीं होने वाला ....सबको मिल कर आवाज उठानी होगी वो भी असरदार तरीके से ...
अजय कुमार झा
अनिल भैया आप लगातार महिला उतपीरण पर सवाल उठा रहे है ! नयी पीढ़ी को कहा ले ला रहे , ये कंपनी वाले एक विज्ञापन देख रहा था वो रात में २० मिनट का मात्र केवल १ रूपया याने नयी पीढ़ी पूरी रात करो रखवाली
अनिल जी
इन नाकारा सेठों को जो
अपने देश की बेटियों को पश्चिमी
बनावट की आँखों से देखते हैं. शायद
इनको अपनी बेटियाँ को इसी तरह
से देखने की आदत हो गई है
आपकी सूक्ष्म नज़र कहाँ तक पहुँच जाती है.. मैंने विज्ञापन देखा तो नहीं है.. पर जिस तरह आपने बताया है वाकई काबिले गौर है..
March 17, 2010 9:33 AM
Blogger रचना said...
one needs time to view all these advertisements you raised an objection good and how aboput raising and objection on the following selection of words
ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है
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रचना जी के बयान को समझने मुझे
उनका पाडकास्ट इंटरव्यू लेना होगा.
मैं सोच में हूँ थानेदार बहनों की सूची मांग ही
लूं रचना जी से
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विज्ञापन तो वाहियात है.. लेकिन कोई नई बात है... इस देश में भगवान् राम के जमाने से ही औरतों से नाइंसाफी हो रही है
बिना पोस्ट पढे और बिना कमेन्ट को पढ़े और समझे आप अगर कमेन्ट करते हैं तो पोस्ट लेखक और कमेन्ट करने वाले दोनों के साथ और खुद अपने साथ अन्याय ही करते हैं । जबरदस्ती कमेन्ट देना क्या जरुरी हैं । जो बात राज भाटिया ने कही हैं और मैने और मुक्ति ने प्रतिकार किया हैं आप उस कथन को मेरा बयान कह रहे हैं । हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं ।इस गलत ब्यान बाज़ी को आप क्या कहेगे जो आप कर रहे हैं और जो प्रश्न आप मुझसे पूछ रहे हैं अपने परम मित्र श्री राज भाटिया से पूछ कर पोद्सत बनाए । हद्द हैं और अनिल जी ऐसे कमेन्ट आप एप्रोवे भी कर रहे हैं ???
विज्ञापन में चाहे वो सेविंग करें का हो उसमें लड़की जरूर दिखाई देगी, जैसे की हर चीज उससे ही जुड़ी है. ये हैं व्यापार के तौर तरीके. इस तरह के विज्ञापन निंदनीय हैं, वैसे मैंने देखा नहीं है क्योंकि मैं TV पर जाने का समय कमही निकाल पाती हूँ.
@ राज भाटिया जी,
वैसे इस समाज के थानेदार तो अभी तक मर्द ही होते आ रहे हैं? अब गर आप हम सब को भी उसी श्रेणी में रख रहे हैं तो नाम भी उजागर कर दें तो ये तथाकथित थानेदार अपनी ड्यूटी तो संभाल लें. रहा सवाल ब्लॉग पर जाने का तो सभी एक दूसरे के ब्लॉग पर जाते हैं. मैं इसका अपवाद हूँ. अगर बहुत अच्छी चीज ब्लोग्वानी या चिट्ठाजगत पर नजर आ जाती है तभी उधर का रुख करती हूँ अन्यथा समय का आभाव है. अब जब ये ब्लॉग नजर आ गया तो चली गयी.
अनिल जी, जैसे हम विज्ञापन में इस तरह के प्रदर्शन के प्रति विरोध प्रकट करते हैं , वैसे ही कमेन्ट पर भी जो आप अपने लिए स्वीकार न करें उसको कमेन्ट में भी स्वीकार न करें.जिसमें कि किसी को भी आक्षेपित किया गया हो. वह हम भी हो सकते हैं और आप भी.
" हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं "
यह तो सारे हिन्दी ब्लागरों और हिन्दी की तौहीन है . हिन्दी से इतना गुरेज है तो लोग यहाँ क्या कर रहे हैं.
मेरी समझ थोड़ी कम है मगर फिर भी मुझे जो समझ में आया वह जरूर कहना चाहूँगा.. इस एड में महिला को लेकर कहीं भी बात नहीं कही जा रही है और ना ही महिलाओं को बाजार में बैठा दिखाया जा रहा है.. इस एड में जो लड़के कर रहे हैं वही लड़कियां भी कर रही हैं.. एक तरह का सांस्कृतिक हमला कह सकते हैं इसे..
वैसे मैंने आम जिंदगी में भी ऐसा कुछ देखा है(कालेज जीवन में), जहाँ लड़के-लड़कियों को हर हफ्ते ब्वाय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बदलने का शौक था, और लड़के-लड़कियां भी मन में बिना किसी ग्रंथी को पाले इसे आराम से स्वीकार करते रहे थे..
मैं यह सब बात इन बातों के समर्थन में नहीं कर रहा हूँ, इस सांस्कृतिक हमले के विरोध में मैं भी हूँ.. मगर यह भी जरूर कहूँगा कि चाहे एक पीढ़ी पहले के लोग कितना भी विरोध जताए, मगर बीता समय वापस नहीं लाया जा सकता है.. समय का पहिया कभी पीछे कि तरफ नहीं घूमता है.. एम टीवी कल्चर का एक और प्रभाव है यह..
सांस्क्रतिक प्रदूषण, बाज़ारवाद , यह सब पूंजीवाद के इस बदलते हुए स्वरूप की वज़ह से ही है । यह अच्छा है कि ब्लॉग जगत के विद्वान ब्लॉगर्स इन बातों को उठा रहे हैं । जो दिखाई देता है वही सब कुछ नहीं है , कारणों के मूल तक जाकर इसकी पडताल करना नितांत आवश्यक है ।
पता नहीं फोन का प्रचार कर रहे हैं कि कुसंस्कृति का ।
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