तो फ़िर बताईये चिदंबरम जी कि और कितना खून बहान पडेगा बस्तर में.और कितने बच्चों को असमय अनाथ होना पडेगा?और कितनी बहनों का सुहाग उजडवागे?और कितने बुढों की लाठियां तोडोगे?कुछ तो शर्म आनी चाहिये केन्द्र सरकार को और उसके चमचों को.आखिर कब तक चलेगा बस्तर ,छत्तीसगढ और अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों मे खूनी खेल.सब रुकना चाहिये और तत्काल रुकना चाहिये,कैसे रुकेगा ये आप जानिये?
Monday, May 17, 2010
चिदंबरम जी नक्सली यात्री बस उडाने लगे हैं,तीस लोग मरे हैं,क्या अब भी आप कहेंगे कि सेना नही भेजेंगे!
बस्तर के लिये आज काला दिन है!बस्तर क्या सारे छत्तीसगढ के लिये काला दिन है.नक्सलियों ने पहली बार यात्री बस यात्री बस को बारुदी सुरंग से उडा दिया.बस मे यात्रियों के साथ कुछ जवान भी सवार थे.अभी कल ही नक्सलियों ने आधा दर्जन नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था.तब भी मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने कहा था कि ये कायराना हरकत है और आज भी संभवतः यही कहेंगे!इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं.आपने तो पहले ही अपनी और अपनी नेता और उनकी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय इमेज बनाये रखने के लिये दिल्ली मे चिल्ला चिल्ला कर कहा था कि हम नक्सलियों से निपटने के लिये सेना का इस्तेमाल नही करेंगे.आप की उस बयानबाज़ी से क्या असर पडा देख लिजिये.कल आधा दर्जन निरीह और निर्दोष नागरिक और आज तो पता नही कितने?पहली सूचना के अनुसार तीस और भी बढ सकते हैं.क्या आपको अब भी लगता है कि नक्सलियों से बात होनी चाहिये?क्या उनके खिलाफ़ सेना का इस्तेमाल आपको अब भी गलत लगता है?
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22 comments:
वोटों की राजनीति लाशों पर ही चलती है..
बेहद दुखद खबर.
[अभी के समाचार यह संख्या ५० बता रहे हैं.]
आदरणीय अनिल जी...
अब पानी सर से उपर जा चुका है।
इस घटना से उन कमबख्तों को भी शर्म आ जानी चाहिये जो बस्तर में नौटंकी करने चले आते हैं। नक्सल समर्थक कमबख्तों देख लो आम आदमी किस तरह मरते हैं, मनाओ जश्न....जे एन यू में हो सकता है कुछ लाल-दलाल कॉकटेल खोलने वाले हो आज की शाम।
सेना को बस्तर में लाया जाना चाहिये। साँप कुचले ही जाने चाहिये। बहुत हो चुका अब बस...
हां कहिये अनिल जी,
मैं चिदम्बरम बोल रहा हूं।
मेरे पास अभी अभी इस आशय का पत्र आया है। मैने इस पर अपने साइन करके आगे भेज दिया है। अब ऊपर से जो भी आज्ञा मिलेगी, मैं करूंगा।
वैसे नक्सलियों की ये एकदम कायरान हरकत है। इसे हम किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं करेंगे। एक-एक नक्सली को पकडा या मारा जायेगा।
एक तरफ़ बेचारगी की इन्तेहा है, तो उस तरफ़ बेशर्मी की…।
शायद अब तो सेना तभी भेजी जायेगी जब दिल्ली की गोल इमारत में बैठे 525 गधों में से 2-4 नक्सलियों द्वारा मारे जायेंगे…
हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं -कोई तो कुछ करे
एक दो लोग इन के परिवार के होते इस बस मै तो यह जरुर बताते
आपने सहीं कहा भईया बस्तर क्या सारे छत्तीसगढ के लिये काला दिन है.
आपने जो कहा वही बात सीबीआई के पूर्व निदेशक महोदय नें आज टीवी में स्पष्ट कहा.
मन बहुत भारी है, पर हम कुछ भी नहीं कर सकते, इसका हल राजनैतिक मनोबल से ही संभव है. हम छत्तीसगढ़ के ऐसे हालातों के बाद भी दो चार दिन रो-गा के हंसने का बहाना ढूंढते रहते हैं या चुप हो जाते हैं. सचमुच में हृदय से हाय ! के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं उठ रहा.
नक्सल प्रभावित इलाकों मे खूनी खेल.सब रुकना चाहिये और तत्काल रुकना चाहिये,
सराहनीय प्रयास
मुझे उम्मीद थी कि आपकी पोस्ट आएगी.. सो आई, एक और उम्मीद करता हूँ, आप जल्द ही इस नक्सल प्रभावित इलाके का एक चक्कर लगाएंगे एवं पिकचर समेत वहाँ की जन स्थिति उजागर करेंगे।
अनिल जी,
शुक्र मनाइये कि चिदम्बरम जी अपने पूर्वमंत्री की तर्ज़ पर तो नही चल रहे हैं । वे शिवराज पाटिल की तरह वृद्ध-श्रृंगार में तो मशगूल नही रहते । कभी कभार आर्थिक विषयों से फुरसत पा गृहमंत्रालय की फाइलें सरसरी तौर पर सरका भी सकते हैं ।
अब अगर एक यात्री बस यात्रियों समेत नष्ट हो भी गई तो क्या ! बडे बडे देशों में ऐसी छोटी छोटी हरकतें हो ही जाया करती हैं । ... और देखें
बाबा रामदेव अगर वृहन्नलापन दूर करने का कोई नुस्खा खोजें तो कुछेक खुराक हमारे गृहमंत्रालय को भिजवाने का जतन ज़रूर कीजियेगा ।
सादर,
बहुत दुखद घटना......और गृह मंत्री केवल घोर निंदा कर अपना पल्ला झाड लेंगे....कब सरकार के कान पर जूं रेंगेगी...शायद सरकार के कान होते ही नहीं हैं .
चिदम्बरम जी की असहायता पर दुख भी हो रहा है और भय भी।
अपनी सुरक्षा की गारण्टी खुद लेनी पड़ेगी क्या?
ये तो बात करने में विश्वास करते हैं
अगले घात करने में
सब तरफ भरम फैलाया गया है की आदिवासी नक्सलवादी है जबकि हकीकत कुछ और है
तेंदू पत्ता ठेकेदारों की जीपे आराम से उन इलाक़ों में घूम रही हैं जहाँ पुलिस जाने में डरती है ?
वक्त आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में नहीं कार्यवाही करने में है . फ़ैसला केंद्र सरकार को करना है . राज्य का विषय बता कर कब तक आँख बंद रखी जाएगी .
ab jungle to door sadko par chalna bhi khatre se khali nahi hai bastar me.....
is desh ki rajniti aur uska manobal?
अनिल जी दुःख की बात ये है कि किसी राजनितिक पार्टी या राजनेता ने इस समस्या को समझने की कोशिश नहीं की है.. कोई समस्या की तह में जाने की कोशिश नहीं कर रहा.. जिला मुख्यालय से आगे सरकार पहुँच नहीं सकी है.. ६० सालों में स्थिति बिगड़ी ही है... लोग अपने ही घर, गाँव, कसबे में विस्थापित सा महसूस कर रहे हैं और सरकारें बातों से सिवा कुछ नहीं करती... विक्षोभ तो होगा ही.. लेकिन चरमपंथियों को भी सययम बरतने की जरुरत है... जो लोग हताहत हो रहे हैं वो अपने ही हैं... निर्दोष हैं और ये स्थिति सिस्टम के फेल होने का द्योतक है... अच्छा लिखा है आपने... समय आ गया है कि सरकारी मचिनरी को जनता कि द्वार तक ले जाएँ... जो लोग सामानांतर सर्कार चला रहे हैं उनतक विकास करके ही पहुंचा जा सकता है... कोई सेना स्थायी हल नहीं दे सकती... आपके आलेख के करीब इक कविता का लिंक भेज रहा हूँ... http://aruncroy.blogspot.com/2010/05/blog-post.हटमल
लगता है गृहमंत्री खुद को राजीव गांधी जी जैसे हाल से बचाना चाहते हैं..
सच कहा भईया अब तो हद भी कबकी पार हो गयी..
नमस्कार अनिल भाइ साहब! सीधे जवाब माँगा है आपने। हम समस्त जन को एक होकर कमर कसना होगा।
हाथ खड़े कर दिये चिदंबरम ने आकाओं के दबाव में आकर.
नक्सल मुख्यालय आंध्रा प्रदेश में शांति है क्योंकि वहाँ काँग्रेस सरकार है ?
जहाँ दूसरी सरकारें हैं वहाँ आतंक .
काँग्रेस को एक दिन तो जवाब देना पड़ेगा .
वो इंसानों की होली जलाते रहेंगे
ये घडियाली आंसू बहाते रहेंगे
ये निंदा करेंगे, मुआवजा भरेंगे
और फिर सब भूल जाते रहेंगे.....
इनपर विश्वास ??????????
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