Friday, July 9, 2010
क्या सच मे हम आज़ाद देश मे रह रहे हैं?
आज़ादी के मायने ये तो कदापी नही होते कि आप अपनी मर्ज़ी से कंही जा भी नही सके।और अगर हम अपनी मर्ज़ी से कंही आ-जा नही सकते तो क्या हमे आज़ाद देश का नागरिक कहलाने का हक़ है?इससे ज्यादा अफ़सोस की बात और क्या हो सकती है कि देश की सरकार उन लोगों की धमकियों के सामने घुटने टेककर बैठी है जिन्हे लोकतंत्र के हथियार बैलेट पर नही बुलेट पर भरोसा है।वे ज़रा भी धमकाते है और सरकार गीदड़ों की तरह शहर की ओर भगती नज़र आती है और शायद इसिलिये उन लोगों का जंगल पर साम्राज्य कायम हो चुका है।अब जब वे नही चाहते तब कोई उनके ईलाके से गुज़र नही सकता और सरकार खुद भी उस ईलाके से आने-जाने के साधने रेल सेवा तक़ का समय बदल देती है।अब बताईये भला ऐसे मे क्या हम कह सकते हैं कि हम आज़ाद देश के नागरिक हैं?बात छोटी सी ज़रूर है मगर है बहुत बड़ी।मुझे लगता है कि सरकार माओवादियों से लड़ने की बजाय बचने मे विश्वास कर रही है जो कंही ना कंही माओवादियों के हौसले बढा रहा है।
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20 comments:
सही कहा आप ने,
आज पंजाब मैं शांति है, कभी बड़ी अशांति थी. क्यों? और यह कैसे शांत हुई? हल हर अशांति का है अगर सरकार चाहे तो.
काहे के आजाद. पावर का ट्रान्सफर हो गया था, गोरों से कालों के पास.
शायद ...
बिल्कुल सही, हम भी माओवादियों और नक्सलियों के खात्मे के पक्षधर हैं। भारत बंद में सरकार उन लोगों से लड़ने के लिये तैयार थी और इस भारत बंद में चुप्प लगाकर बैठी है, क्यों? क्योंकि इनमें शायद सरकार के भी कुछ लोग हैं ? या फ़िर सरकार की फ़ट गई है ????
जहानियती तौर पर हम गुलाम है
आपसे पूर्णतया सहमत ।
भावपूर्ण लेखन।
सरकार ऐसे लोगों से क्यों बचने की कोशिश करती है यह बात समझ के बाहर है।
Your concern is very genuine Anil bhai . Only God can save !
आपके विचारों से सहमत हूँ अनिल भाई...सही है....
कभी सेना के अधिकार कम करने की बात करने वाले अब कहते है देखते ही गोली मारो.
यानी इन्हे जमीनी वास्तविकता पता नहीं या मूर्ख है. तो इन लोगों से अपन को कोई उम्मीद नहीं.
:(
aapke vichaar se 100% sahamat...sarkar backfoot par aa gayee hai.
आज़ाद देश में शासन खेले जाने कैसा खेल
वक्त अभी बदला है जल्द ही बंद पड़ेगी रेल
बंद पड़ेगी रेल करे क्या जनता भी भयभीत
वादी वादी में गूँज रहा है माओवाद का गीत.
sahi kahaa
सही ही बात है। सरकारें भी तो कई हैं। हरेक के अपने-अपने विचार हैं अपने-अपने आचार हैं। हर सरकार दूसरी से ज्यादा समझदार है।
आज ही पढ़ा की सूप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को धमकाया की आधी जमीन पर तो आपका शासन नहीं चलता .
अंग्रेजों का बनाया कानून और उससे प्रभावित सविधान इस देश को कहीं का न रखेगा . अराजकता तो दिल्ली में भी है जहाँ एक अवैध मुहली वाले पानी न मिलने के कारण आम आदमी पर आक्रमण कर देते हैं . जब देश की राजधानी का यह हाल है तो बीहड़ की बात करना बेकार है .
केंद्र सरकार कानून व्यवस्था राज्य का विषय है कहकर कब तक राष्ट्रीय जिम्मेदारी से बचती रहेगी . राज्य को अधिकार क्या न एक सिपाही ज्यादा भर्ती कर सकता है न एक बंदूक अपने हिसाब से खरीद सकता है . केंद्रीय बल भी ऐसा दिया गया है जो ऐसा है की उसे चील कौवों के सहरे छोड़ दिया गया है .
नगा दल जो इसमें सक्षम था क्यों हटाया गया . सेना नहीं भेजी जाएगी इसका फैसला सरकार करेगी या सेनाध्यक्ष . कमजोर केंद्रीय सरकार बनाने का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा कब वह सीखेगी जब मौत उसके दरवाजे पर दस्तक देगी ?
public ko chahiye ki wo aisi babas sarkar ko "KURSI SE AAJAD KARA DE"..
मीडिया जगत भले ही कितनी भी कोसिस क्यों न कर रहा हो सरकार को आइना दिखने की, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार तो जमकर पैसो की बंदरबाट करने में लगी है हजारो करोंड़ रूपये एक झटके में राज्य सरकार को दिए जा रहे है और इसका जमकर दुरूपयोग करते हुए इसका एक तिहाई भी विकास कार्यों पर खर्च नहीं किया जा रहा है
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