एक छोटी मगर मज़ेदार पोस्ट।सारे डाक्टरों से एडवांस मे माफ़ी मांगते हुये इसे पोस्ट कर रहा हूं।कल बहुत समय बाद मिले एक मित्र ने हाल-चाल पूछने के बाद पूछा आजकल तेरी डाक्टरों से खूब छन रही है।मैने कहा ऐसी कोई बात नही सभी तो अपने स्कूल-कालेज लाईफ़ के ही दोस्त हैं कुछ रोज़ मिलते हैं कुछ कभी-कभी।उसने कहा खैर छोड़ बाकी सब एक बात बता ये सारे डाक्टर कोई भी मरीज़ हो उससे ये सवाल क्यों करते हैं,सुबह क्या खाया-शाम को क्या खाया? मैंने कहा यार ये तो तबीयत मे गड़बड़ी जानने का सालों पुराना तरीका मालूम पड़ता है।वो बोला क्यों पूछते हैं ये बता!मैने कहा अब पता नही यार मैं भी बचपन से यही सुनते आ रहा हूं।वो बोला तेरे तो बहुत सारे दोस्त डाक्टर हैं उनसे पूछ कर बताना।मैंने कहा वो तो मैं पूछ ही लूंगा मगर जब सवाल तू कर रहा है तो तू तो बता दे जवाब क्या है।आप मानेंगे नही उसने जो जवाब बताया वो मैं अगर डाक्टरों को बताऊं तो मेरी पिटाई तय है।विश्वास नही होता ना तो लिजिये सुनिये उसका जवाब!डाक्टर लोग सुबह-शाम का खाना पूछ कर मरीज़ की माली हालत का पता लगाते हैं।यानी मुर्गे मे दम कितना है ये देखलेते हैं।अब बताईये है ना पिटने वाला जवाब।
आदरणीय महेश भैया यानी डाक्टर महेश सिन्हा जी,डा अमर कुमार जी,डा अनुराग आर्या और तमाम डाक्टरों के साथ डा अजय सक्सेना,डा संदीप दवे,डा अनूप वर्मा,डा राकेश गुप्ता,डा शरद चाण्डक,डा पंकज धाबलिया,डा जव्वाद और अब्बास नक़वी ब्रदर्स,डा राजेश गुप्ता और सभी मेरे स्कूल और कालेज के साथी जो आज डाक्टर है और वे डाक्टर जो बाद मे मेरे मित्र बने।अगर सबका नाम लिखता रहूंगा तो पोस्ट से लम्बी उनके नामों की लिस्ट हो जायेगी।सभी से इस हल्के-फ़ुल्के मज़ाक के लिये इतना ही कहुंगा कि दिल पे मत ले यार।वैसे डा महेश सिन्हा और अजय सक्सेना से तो माफ़ी मांगने की ज़रूरत भी नही है क्योंकि वे लोग कभी मरीज़ से ये सवाल करते ही नही है।वे बेहोश करने वाले डाक्टर हैं।वैसे सवाल जितना कठीन है,जवाब उतना ही मज़ेदार।है ना,बताईयेगा ज़रूर्।
22 comments:
निर्मल हास्य में भी दम है।
धन्य है सवाल
धन्य है जवाब
"मरीज़ की माली हालत का पता लगाते हैं।"
अब तो डैरेक्ट पूछ लेते हैं - इंशोरेंस हैक्या ? :)
ना जी ना, आपको माफ़ी क्यों दी जाये ?
ऎसे ही गाहे-बगाहे डॉक्टरों की छाँटते रहा करिये ।
परामर्श देने वाले अधिकाँश डॉक्टरों का एक अनोखा स्टेटस है, " हर माल मिलेगा, आठ आने ! " ब्लडप्रेसर का मरीज हो, या पेचिश का, टॉयफ़ाइड का बुखार हो, या मलेरिया की जूड़ी.. ? फीस वही..
सो माली हालत की बात को ख़ारिज़ न करते हुये इसके अन्य पहलू भी हैं ।
1. यह आकलन भी ज़रूरी है कि, कहीं मरीज़ ने खाया-पिया कुछ नहीं और यहाँ महज़ गिलास तोड़ने आया हो :)
2. कभी कभी ऎसे मरीज़ भी आते हैं, एक भाई साहब तीन दिनों से डॉक्टर के चक्कर लगा रहे थे, पेट पकड़ कर दोहरे होते हुये, " डॉक्टर कोई और अच्छी दवा दीजिये, आज चौथा दिन है सँडास आज भी न हुआ ।" डॉक्टर ने दुबारा नये सिरे से पूछ-ताछ शुरु की, पता लगा कि उन्होंनें तीन दिनों से कुछ खाया ही नहीं था । क्यों ? बेचारे नवोदित कवि थे.. जब तक अपनी एक कविता नहीं सुना देते थे, अन्न का एक दाना मुँह में नहीं डालते थे । अब डॉक्टर खुद ही बेचारा हो गया.. उन्होंने ड्राअर से 20 रूपये निकाले, दिया और बोले आप निश्चिन्त होकर पेट भर खाना खाकर आइये, मैं आपकी तीन कवितायें सुन लेता हूँ !
3. एक ज़नाब पेट दर्द से बिलबिलाते हुये दाख़िल हुये, पूछ ताछ में पता लगा कि उन्होंने दो दिन पहले कुछ फल खाये थे, तभी से अपना दर्द लिये घूम रहे हैं । कौन कौन से फल ? ये, वो, क्या, क्या और एक नारियल ! डॉक्टर कन्फ़्यूज़िया गये, " यार ऎसा होना तो नहीं चाहिये.. कहीं नारियल सड़ा हुआ तो नहीं था ?
मरीज़ ने उनकी सहायता की, नहीं डॉक्टर.. वह तो ठीक ठाक ही था, वरना मैं उसके छिलके क्यों खाता ? आप से पहले वाले डॉक्टर साहब ने यही बताया था कि फलों के छिल्के के साथ ही खाना चाहिये ।
जरा सोचिये अनिल जी, नारियल और नारियल का छिल्का !
अब मैं अपने अन्य मरीज़ों से पूछता हूँ कि, " भई आपने नारियल का छिल्का उतार तो लिया था ? तो वह मुझे खिसकेला पागल समझते हैं ।
कोई वाँदा नहीं, आप ऎसे ही गाहे-बगाहे डॉक्टरों की छाँटते रहा करिये, मैं आपका ज्ञानवर्धन करता रहूँगा । नारियल का छिल्का भले न उतारें पर टिप्पणी न मिलने पर भी खाना खा लिया करियेगा !
जय राम जी की ! पूड़ी खाइये मिलावटी घी की !किन्तु आप तो दवा भी मॉडरेट करके ही खाते हैं, मेरी भी मज़बूरी समझा करें ।
ना जी ना, आपको माफ़ी क्यों दी जाये ?
ऎसे ही गाहे-बगाहे डॉक्टरों की छाँटते रहा करिये ।
परामर्श देने वाले अधिकाँश डॉक्टरों का एक अनोखा स्टेटस है, " हर माल मिलेगा, आठ आने ! " ब्लडप्रेसर का मरीज हो, या पेचिश का, टॉयफ़ाइड का बुखार हो, या मलेरिया की जूड़ी.. ? फीस वही..
सो माली हालत की बात को ख़ारिज़ न करते हुये इसके अन्य पहलू भी हैं ।
1. यह आकलन भी ज़रूरी है कि, कहीं मरीज़ ने खाया-पिया कुछ नहीं और यहाँ महज़ गिलास तोड़ने आया हो :)
2. कभी कभी ऎसे मरीज़ भी आते हैं, एक भाई साहब तीन दिनों से डॉक्टर के चक्कर लगा रहे थे, पेट पकड़ कर दोहरे होते हुये, " डॉक्टर कोई और अच्छी दवा दीजिये, आज चौथा दिन है सँडास आज भी न हुआ ।" डॉक्टर ने दुबारा नये सिरे से पूछ-ताछ शुरु की, पता लगा कि उन्होंनें तीन दिनों से कुछ खाया ही नहीं था । क्यों ? बेचारे नवोदित कवि थे.. जब तक अपनी एक कविता नहीं सुना देते थे, अन्न का एक दाना मुँह में नहीं डालते थे । अब डॉक्टर खुद ही बेचारा हो गया.. उन्होंने ड्राअर से 20 रूपये निकाले, दिया और बोले आप निश्चिन्त होकर पेट भर खाना खाकर आइये, मैं आपकी तीन कवितायें सुन लेता हूँ !
3. एक ज़नाब पेट दर्द से बिलबिलाते हुये दाख़िल हुये, पूछ ताछ में पता लगा कि उन्होंने दो दिन पहले कुछ फल खाये थे, तभी से अपना दर्द लिये घूम रहे हैं । कौन कौन से फल ? ये, वो, क्या, क्या और एक नारियल ! डॉक्टर कन्फ़्यूज़िया गये, " यार ऎसा होना तो नहीं चाहिये.. कहीं नारियल सड़ा हुआ तो नहीं था ?
मरीज़ ने उनकी सहायता की, नहीं डॉक्टर.. वह तो ठीक ठाक ही था, वरना मैं उसके छिलके क्यों खाता ? आप से पहले वाले डॉक्टर साहब ने यही बताया था कि फलों के छिल्के के साथ ही खाना चाहिये ।
जरा सोचिये अनिल जी, नारियल और नारियल का छिल्का !
अब मैं अपने अन्य मरीज़ों से पूछता हूँ कि, " भई आपने नारियल का छिल्का उतार तो लिया था ? तो वह मुझे खिसकेला पागल समझते हैं । कोई वाँदा नहीं, आप ऎसे ही गाहे-बगाहे डॉक्टरों की छाँटते रहा करिये, मैं आपका ज्ञानवर्धन करता रहूँगा । नारियल का छिल्का भले न उतारें पर टिप्पणी न मिलने पर भी खाना खा लिया करियेगा !
जय राम जी की ! पूड़ी खाइये मिलावटी घी की !
बहुत खूब, इसी लिये कहूं कि यह सवाल सिर्फ़ भारत मै ही डा० लोग पुछते है, हमारे यहां नही? क्योकि यहां तो उन्हे मन चाही फ़ीस नही मिलती.....:) बाकी बाते तो यह अब डा० ही बता सकते है.
हा हा
बेहोश करने वाले डॉक्टर सवाल क्यों पूछेंगे?
मरीज को सीधे बेहोश कर के ....
वैसे जवाब लाजवाब है ..
पाबला जी तो मुर्गी का पेट चाक करने पर उतारू हो गये जबकि ख्याल तो रोज अंडे वाला है :)
हा हा! मजेदार तरीका है माली हालत पता करने का.
अब जाना कैसे पहचान जाते है डा. अपने मुर्गे को
बढिया और मजेदार , निर्मल हास्य के लिए धन्यवाद
गजब। पहले तो डॉक्टर खाने पीने वाला यह सवाल पूछते थे पत्रकारों से। और उसे १०-२० दे देते थे खाने के लिए। समाज में बदलाव आ गया लगता है।
सवाल अच्छा है ,बात यहीं तक सिमित होती तो भी गनीमत होती आज कल डॉक्टर चाहते हैं की रोगी एक मुवकिल की तरह उनके पास पेशी भुगतने की तरह आये ऐसी प्रवृति पर कैसे रोक लग सकेगी .
सही में जो डाक्टर सबसे ज्यादा रिस्की काम करता है उसके बारे में सबसे कम जानकारी है लोगों को , याने बेहोश करने वाला डाक्टर। बाकी डाक्टरों के बारे में हो सकता है की अनिल के मित्र का खयाल सही हो :) लेकिन बेहोशी वाले डाक्टर को मरीज को बेहोश करते समय यह ध्यान रखना पड़ता है मरीज कम से कम 5 घंटे खाली पेट हो । केवल बहुत ज्यादा कोई अर्जेंट आपरेशन हो तो खास ध्यान रख कर बेहोश करना पड़ता है। (इस नियम से हटकर)
हम कुछ नहीं बोलेंगे।
एक मरीज ने कहा .. कुछ नही खाया ..आप ही कुछ खिला दो ..
और ..इस पर क्या जवाब होगा " ये क्या हाल बना रखा है कुछ लेते क्यो नही ?"
तो आज पता चला इस सवाल को पूछने का राज...
बात में दम तो है :)
हैसियत जानकर डॉक्टर इलाज करे तो इससे बड़ी मानवता और नैतिकता क्या हो सकती है, धन्य हैं वे सभी जो ऐसा करते हैं. चलिये आपको एक पुरानी (अंदर की)बात याद दिला दूं-
कह गिरधर कविराय...सांई बैर न कीजिए... विप्र परोसी, वैद्य... इस तेरह की सूची में यार भी है, आपको याद है न.
hahahahaha...........sabka apna apna tarika hota hai.
बड़े पिछड़े हुए डाक्टर लोग हैं ये...आजकल माली हाल जानने के लिए स्कूल तो गाड़ी का मेक-माडल, मोबाइल व लैंडलाइन नंबर इसलिए लिखवाते हैं ताकि पता चल सके कि बंदा VIP नंबर की ओकात रखता है या यूं ही मारूति व बी.एस.एन.एल. टाइप ढपोरशंख है.
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