Friday, January 28, 2011

नाबालिगों का यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग का अपराध!क्या ये हमारे देश की संस्कृति है?

एक छोटे और  कथित रूप से पिछ्ड़े प्रदेश से बेहद बड़ी ख़बर जो पता नही क्यों कथित राष्ट्रीय चैनलो की सुर्खियां नही बन पाई।यंहा राज्य की राजधानी से 110 कि मी दूर स्थित न्यायधानी बिलासपुर से ये ख़बर आई॥बिलासपुर के जाने-माने सेंट ज़ेवियर्स स्कूल की कक्षा नवमीं की छात्रा के साथ उसी के साथ पढने वाले दीप परिवार की चिराग ने न केवल मुंह काला जिया बल्कि दीप परिवार के बड़े चिराग या दीप ने उन काले क्षणों को कैमरे में कैद भी कर लिया।दोनो सगे भाईयों ने उस नाबालिग कन्या को न केवल ब्लैकमेल किया बल्कि उसके अश्लील एमएमएस बनाकर इंटरनेट पर अपलोड़ भी कर दिये।

नवमी और बारहवीं के छात्र बंधुओं का ये कारनामा कंही से भी माफ़ करने लायक नज़र नही आता।हालांकि इस मामले में शमिल सभी,आरोपी-पीड़ित,नाबालिग हैं,इसलिये कुछ कथित विद्वान अधिवक्ता इसे बाल न्यायलय का मामला बताकर पल्ला झटक रहे हैं,मगर कुछ लोग आज भी इस बात पर अड़े हुयें है कि उनकी बात ढंग से सुन भर बस ली जाये।

अब बताइये भला क्या ये छत्तीसगढ की संसकृति है।और फ़िर नाबालिग कह कर ऐसे खूंखार दरिंदो को माफ़ कर देना या उन्हे सज़ा के लिये पर्याप्त ही है।अब इस बात पर बहस बेकार ही जब आप सब कुछ स्विकार चुके हैं।
पता नही आधुनिकता के नाम पर हम और कितना गिरेंगे।

9 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...


पश्चिम की बयार के साथ हमारी संस्कृति भी बह रही है।

घर घर में माटी का चूल्हा

दिनेशराय द्विवेदी said...

कहते हैं कि बच्चे तो कच्ची मिट्टी के होते हैं। उन्हें जैसा ढालो वैसा ढल जाते है। असली कसूरवार तो वे हैं जिन्हों ने इस मिट्टी को खोटे बर्तनों में ढाल दिया है। यह प्रवृत्ति एक सामाजिक समस्या बन कर सामने आ रही है। आप समर्थ हैं किसी सामाजिक संस्था से इस समस्या पर सर्वे और शोध करवाएँ। तदुपरांत यदि कोई उपाय सामने आए तो उन उपायों पर जोर दिया जाए। उस के लिए भी सामाजिक संस्थाओं को ही सामने आना होगा।

उम्मतें said...

यौन अपराध बहुत बड़ी समस्या हैं !

प्रवीण पाण्डेय said...

यह भटकाव की उम्र है पर प्रयास तो करना ही होगा सबको कि इस तरह की घटनायें न हों।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हमारी आबादी कंट्रोल के बाहर हो रही है... ऐसे में ऐसा कानून बने कि किसी भी घिनौनी जुर्म की सज़ा मौत हो। इसके दो लाभ हैं... दादाओं की दादागिरी से लेकर नौजवानों की मस्ती या तो काबू में आ जाएगी या वे अन्य लोक में यह कार्य करते रहेंगे। दूसरा अच्छा लाभ यह होगा कि देश की आबादी घटेगी और समाज चैन की सांस ले सकेगा :)

डॉ टी एस दराल said...

संस्कृति की लाश को आजकल बच्चे हाथ में उठाये घूमते हैं, मोबाईल फोन के रूप में जिसमे एम् एम् एस भी हो ।
ज़ाहिर है kuchh हद तक अभिभावक भी जिम्मेदार हैं ।

Anonymous said...

Anil bhiya, Ab samay aa gaya hai ki NABALIG KI PARIBHASA KI FIR SE VYAKHYA KI JAVE.Taki ghenaune kam kane wale age ke bahane na bache.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कानून, पुलिस, व्यवस्था, समाज सब के सब इन हालातों के जिम्मेदार हैं..

zakir said...

हमें अपने अन्दर बदलाव लाने की आवश्यकता है . आधुकनिकता के बहाने होने वाले अपराधों को रोकने के लिए लोगों को अपनी मानसिकता को बदलना होगा ....................