Friday, February 25, 2011

सलाम एनडीटीवी सलाम!बेबाक रिपोर्ट के लिये!नक्सलियों के खिलाफ़ इतनी दमदार रिपोर्ट पहली बार देखी है!

रात आठ बज़ने का इंतज़ार किया और आठ बज़ते ही टीवी पर नज़रे गड़ा दी।आमतौर पर टीवी के समाचारों से तौबा ही कर ली है मगर एनडीटीवी के उस बुलेटीन का इंतज़ार था मुझे और सच बताऊं मेरा इंतज़ार करना बेकार नही गया।नक्सलवाद पर इतनी बढिया रिपोर्ट मैने आज तक़ नही देखी थी।विनोद दुआ ने बाकी कसर पूरी कर दी जब उन्होने मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा को अपने सवालो के निशाने पर लिया।                                                         ये पहला मौका था जब किसी नेशनल न्यूज़ चैनल पर नक्सलियों के सच को जस का तस सामने रखते देखा।नक्सलियों का हज़ार करोड़ के सलाना बजट से लेकर उन्के बीड़ी पत्ते और माईनिंग के कारोबारियों से वसूली के अलावा गांव के किराना दुकानदार से लेकर ठेकेदारों और दूसरे व्यापारियों से वसूली का ज़िक्र डंके की चोट पे किया और ये साहस लगता है कि और किसी न्यूज़ चैनल मे है ही नही।                                                                            फ़िर शुरू हुई मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता गौतम नौलखा से बात-चीत।विनोद दुआ के तीखे सवालो के सामने गौतम कंही भी टीक नही पाये।उनकी स्थिती तूफ़ान में फ़ंसे सूखे पत्ते सी थी।खिसीया कर कुछ कहना भी चाह्ते थे लेकिन विनोद दुआ के सटीक सवाल उन्हे लाजवाब कर देते थे।                                                                           नक्सलियों के खिलाफ़ इतनी तल्ख रिपोर्ट देख कर एकबारगी फ़िर मीडिया पर विश्वास जागा है,और इस देश में सिर्फ़ और सिर्फ़ मीड़िया ही है जो एक मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभा रहा है।खैर जो भी हो,जब हम मीड़िया को गाली देने के लिये स्वतंत्र है तो हमे उसकी अच्छे कामों के लिये सराहना भी करनी चाहिये।और इसीलिये एनडीटीवी और उसकी पूरी टीम को मैं सलाम करता हूं,सैल्यूट करता हूं उसको प्रणाम करता हूं।जय हिंद,जय छतीसगढ ,जय भारत्।

7 comments:

Smart Indian said...

कोई तो अपना काम कर रहा है।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मैने भी कल यह कार्यक्रम देखा . कल पहली बार मुझे विनोद दुआ अच्छे लगे .नक्सलवादियो की हकीकत और उनके मानवाधिकार साथियो की औकात दिखाती रिपोट थी वह

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वागत योग्य कदम।

Girish Kumar Billore said...

स्वागत है

Girish Kumar Billore said...

नक्सलवाद की जड में वैचारिक हींग डालना ज़रूरी है.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

पूरी तौर से सहमत हूं। बहुत दिनों बाद दुआ रंग में दिखे।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

नक्सली मरा तो मानवाधिकार का मामला और फेक एन्काऊंटर और पुलिस मरी तो..... मानवाधिकारी को सांप सूंघ जाता है:(