Saturday, June 4, 2011
कमाल है!भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी इस देश मे आम सहमति नही बन पा रही है,अरे भाई बुराई तो बुराई है,इसे मिटाने को लेकर विवाद क्यो?
एक सवाल जो कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है।इस देश में भ्रष्टाचार कू लेकर बवल मचा हुआ है।कभी अन्ना तो बाबा मैदान मे आ रहे हैं।रामलीला मैदान में रावण को मारने के लिये लाखो लोग इकट्ठे हो रहे है मगर रावण है कि हर साल बढता ही जा रहा है।सवाल ये उठता है कि क्या भ्रष्टाचार बुराई नही है?पाप नही है?इसको मिटाना जरुरी नही है?अगर ये जरूरी है तो फ़िर सहमति और असहमति की बात क्यों?सरकार ने इस मामलें मे खुद तो कभी पहल की नही और जब कोई इसे खत्म करने की पहल कर रहा है तो उससे असहमति किस बात की?पाप तो पाप है,उसका नाश होना चाहिये।अब पाप के दायरे में ये नही आयेगा,वो नही आयेगा?अभी नही साल भर बाद खतम करेंगे?क्यों क्या साल भर तक़ और तिज़ोरी भरना है?फ़िर किसी कुर्सी विशेष पर बैठे किसी भी व्यक्ति को पाप के लिये छूट क्यो?मैं तो समझ ही नही पा रहा हूं,जब सब इस देश के नागरिक है और उनके समान अधिकार हैं तो फ़िर किसी खास को खास छूट क्यों?और पाप का नाश चाहे अन्ना करे या रामदेव बाबा करे,इस बात पर किसी को कोई आपत्ति नही होना चाहिये?आपत्ति करने वाले को पहले ये बताना चाहिये कि वो इस मुद्दे पर आज तक़ खामोश क्यों था?और जब उसकी आज तक़ मौन स्वीकृति थी तो अब उसका नाश करने आगे आ रहे लोगों का विरोध क्यों किया जा रहा है?मुझे तो समझ मे ही नही आया कि विदेशों मे जमा काला धन वापस लाने मे इतनी देर क्यों कि जा रही है?क्या उन लोगों को अपना धन वापस लाने का समय दिया जा रहा है या वंहा जमा धन मे उनकी भी भागीदारी है?आप को क्या लगता है,बताईयेगा ज़रुर्।
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15 comments:
चोरो को साबधान करना चाहते होंगे, खुद का नाम बचाना चाहते होंगे, कुछ ना कुछ तो राज हे ही जिसे छुपाना चहते हे...
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क्या आपका या आपसे सहमत होना ज़रूरी है, जिन्हें बाबा की नियत पर शक हो..वह क्या करें ?
अब वक़्त आ गया है कि हम इसके समूल नाश के लिए कटिबद्ध हो जाएं।
राजनीति का अन्ना युग नहीं, बाबा काल...खुशदीप
जय हिंद...
धन भी उन्ही का है,
जिन्हे वापस लाना है।
इसलिए रायता बिखरना ही है।
दो कारण दिखते हैं:
1. भ्रष्टाचार मिटा तो चूल्हा बुझने का खतरा
2. भ्रष्टाचार मिटाने का नारा लगाने वालों पर अविश्वास
तिनके वाली कहावत तो सभी ने सुनी है, यहां तो पूरी ढेरी नजर आ रही है..
सटीक बात कही है आपने कुतर्क करने से किसी की लाईन छॊटी करने से अपनी बड़ी नही हो जाती बाबा मे बुराई नजर आ रही है तो उससे बड़ा और बेहतर आंदोलन खड़ा करो नही कर सकते मुह को बंद रखें ।
सबको अपनी अंगीठी जलाये रखनी है। अगर यह सब खत्म हो गया तो अंगीठी कैसे जलेगी?
आज बाबा रामदेव या उन जैसे लोग जो देश को सुन्दर और सभ्य बनाना चाहते हैं, का विरोध ऐसा ही है जैसे कोई कृष्ण का विरोध करे। मुझे तो लगता है कि विरोध के स्वर या इस आंदोलन को बिखराव लाने का प्रयास वे ही लोग कर रहे हैं जिनके हाथ भ्रष्टाचार से रंगे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज कोई भी उठाए चाहे वो गृहस्
थ हो या संन्यासी, उसका स्वागत होना चाहिए ना कि उस पर दोषारोपण। भारत में क्रान्ति का सूत्रपात हमेशा संन्यासियों ने ही किया है चाहे वे चाणक्य हो या विवेकानन्द या फिर शंकराचार्य।
चिंता मत करिए, भारत में भ्रष्टाचार इन तमाम आंदोलनों के बाद भी बदस्तूर जारी रहेगा यह तो तयशुदा (डिफ़ॉल्ट) बात है.
Kala Dhan To Wapas Ana Hi Chahiye..
Ek Taraf To Sarkar Wartalab Karna Chahti Hai To Dusre Taraf Mufat Unke Party Ke Diggi Raja Media Mein Ane Ke Liye Kuchh Bhi Bolta Rahta Hai
कुछ आधारभूत तथ्य तो राजनीति के ऊपर रहें।
अण्णा की तो कोई बात नहीं पर बाबा की जैट-सैट लाइफस्टाइल से निश्वय ही बहुत से लोग असहज हो जाते हैं.
भवनाओं को भुनाने का एक कारगर उपक्रम!
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