Sunday, June 5, 2011

बचा क्या था,गोलिया चला देते!रामलीला मैदान को जलियांवाला बना देते!तब गोरे थे अब काले अंग्रेज़ हैं।

कल रात जो कुछ भी हुआ वैसा न कभी देखा गया था और ना ही कभी सुना गया था।एक आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ़ शुरू हुआ भी नही था कि उसे लाठियों के बल पर कुचल दिया गया।शायद ये स्वतंत्र भारत के इतिहास मे पहला मौका होगा जब आधी रात को आंसू-गैस के गोलों की बरसात की गई हो,लाठियां बेरहमी से बरसी हो और महिलाओं तक़ के साथ धक्का-मुक्की की गई हो।ये काला दिन बर्बरता के इतिहास के पन्नों मे सुनहरे अक्षरो से ही लिखा जायेगा।बस गोलियां नही चली थी वर्ना देश एक और जलियांवालां बाग देख लेता।फ़िर फ़र्क़ कुछ भी तो नही था तब और अब में।तब गोरे अंग्रेज़ यंहा का खज़ाना लूटने के लिये सब कुछ कर रहे थे और अब काले अंग्रेज़,हां काले अंग्रेज़ ही कहना चाहिये क्योंकि वे भी सुरक्षा मे लगे हुये हैं विदेशों मे जमा काले धन की।                                                                                                                                                        लाठी चार्ज़,आंसू गैस और फ़ोर्स का जमावाड़ा तो किसी आंदोलन के हिंसक होने पर ही किया जाता है।ऐसा क्या करने वाले थे रामदेव बाबा,चलो बाबा नही कहेंगे,और उनके समर्थक जो इतना कड़ा कदम उठाना पड़ गया दिल्ली सरकार को या यूपीऐ सरकार की कठपुतली को।क्या इससे पहले आंदोलन नही हुये हैं,इस देश में?अभी हाल ही में जाटों ने आंदोलन किया था अपनी मांगो के लिये।वे पटरी पर बैठ गये थे?रेल सेवायें ठप हो गई थी?तब क्या ऐसा ही किया था सरकार ने?जैसा कूटा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों,क्या कभी वैसा कूटा गया है भ्रष्टाचार करने वालों को?                                                                                                                                               आखिर चाहती क्या है सरकार?भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कोई आवाज़ ना उठाये?उसके खिलाफ़ कोई आंदोलन ना हो?सारे चोट्टे चैन से हरामखोरी करते रहें?उसी कमाई से चुनाव लड़े और देश की जनता का खून चूसते रहे?राजा,कलमाड़ी,कन्नीमोज़ी,चौहान जैसों की फ़ौज़ तैयार होती रहे?करोड़ो लोग एक वक़्त खाना,रात को पेट पीठ से बांध कर भूखे सोते रहें,खुले आसमान के नीचे?काला धन वालों की कोठियां सजती रही?गरीबी लड़कियों को कोठे तक़ पंहुचाती रही?भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को कुचला जाता रहे?हरामखोरी के सारे रास्ते साफ़ हो जाये,कोई भी अडंगा या रोड़ा बाकी ना रहे?आखिर क्या चाह्ती है सरकार?                                   फ़िर बात की जाती है लोकतंत्र की,राजनीति की।तो जो राज कर रहा है,वही राजनीति करता रहे?दूसरा कोई विरोध भी ना करे?सिर्फ़ उन्ही को हक़ है अपनी बात कहने का,या दूसरों की आवाज़ का गला घोटने का?ये कैसा लोकतंत्र है जंहा विरोध करने की,आंदोलन करने की भी स्वतंत्रता नही है।अच्छा हुआ बापू निकल लिये,वरना अगर वे इनके राज मे अनशन पर होते तो ये साले उन्हे भी कूटते और उनसे पूछते कि राजनीति क्यों कर रहे हो।भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर भी अगर जनता को आवाज़ उठाने से रोका जायेगा तो जनता जायेगी कंहा?                 सारी तिकड़में देख कर तो यही साबित होता है कि सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कुछ भी सुनना पसंद नही है?उसके खिलाफ़ जो आवाज़ उठेगी वो कुचल दी जायेगी।चाहे अन्ना हो या बाबा हो।किसी को नही बख्शा जायेगा।सब को पीटा जायेगा और कूटा जायेगा।पहले चर्चा करते हैं फ़िर प्र्स्ताव मांगते है,फ़िर सहमति का नाटक करते हैं और अंत मे क्या करते हैं,लाठियां चलाते हैं,वो भी आधी रात को।शर्म भी नही आती और राजनीति से चुक गये लोग आकाओं को खुश करने के लिये बर्बरता को जायज ठहराने में होड़ लगाते हैं।इससे अच्छा तो भ्रष्टाचार को वैध घोषित कर दो और जैसी कर चोरों को आय सरेंडर करके काले को सफ़ेद करने की छूट होतीहै वैसी इसमे भी दे दो।सरकार को कुछ प्रतिशत टैक्स दो और चूसो खून जनता का।और भविष्य मे कोई विरोध ना इसके लिये चलवा देना था गोलियां रामलीला मैदान पर,नई पीढी को भी परखने का मौका मिल जाता कि कौन ज्यादा एक्स्पर्ट है जनता को कुचलने में गोरे या काले अंग्रेज़।ये मेरे विचार हैं किसी का सहमत होना ज़रूरी नही है और जो असहमत हैं उन्हे कोई बात अगर बुरी लगी हो तो एडवांस मे माफ़ी मांग लेता हूं,क्या पता कब लाठियों की बरसात इस गरीब के सर पर भी हो जाये।

17 comments:

Smart Indian said...

सचमुच बहुत शर्मनाक है यह सब. 4-5 जून 1989 में चीन में हुए दमन की याद आ गयी।

अजित गुप्ता का कोना said...

जलियांवाले बाग जैसी ही शर्मनाक घटना इस देश की सरकार ने की है। लोकतंत्र की हत्‍या का प्रयास किया गया है। खुले आम भ्रष्‍टाचारियों का शासन है और जो भी इसके विरोध में आवाज उठाएंगे वे ही कुचले जाएंगे। हम सब को तैयार रहना चाहिए। मैंने आपकी पहली पोस्‍ट पर भी टिप्‍पणी की थी लेकिन पता नही क्‍यों पोस्‍ट नहीं हुई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आखिरी कील है भ्रष्टाचार के ताबूत में...

Arunesh c dave said...

अत्याचार तो हुआ है और अच्छा ही हुआ वरना लोग सोते ही रह जाते ये बाबा भी कुछ गलतियां कर रहें है उनको भी सुधार लाना होगा

हितेन्द्र said...

आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ।

"ओसामा जी" कहने वाले, एक स्वामी को ठग कहते हैं। अफजल गुरू को बचाने वाले निहत्थे, सोते हुए महिलाओं और बच्चों पर लाठियाँ बरसाते हैं।

धिक्कार है उन पर जो खुद को काँग्रेसी कहते हैं।

shubham news producer said...

Kendra Sarkar itne bharsta ho gaye hai ki unke khilaf ungli bhi uthati hai to unke ungali kat dete hai. aur aisa ghatiya harkat babawo aur guruwo par katre sarkar ko sharm bhi nahi ata.

नवीन प्रकाश said...

ये लात के भूत हैं बात से नहीं माने वाले, गांधी के विचार तो ये कुचल दे रहे हैं सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद के तरीके शायद इनके लिए जरुरी हैं .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

टिप्पणी में केवल इतना ही कहूँगा कि-
करें विश्वास अब कैसे, सियासत के फकीरों पर
उड़ाते मौज़ जी भरकर, हमारे ही जखीरों पर

रँगे गीदड़ अमानत में ख़यानत कर रहे हैं अब
लगे हों खून के धब्बे, जहाँ के कुछ वज़ीरों पर

Arvind Mishra said...

बिलकुल सहमत -रता में लोगों के सोते समय ऐसी कार्यवाही ?
मानवीयता का ऐसा पतन नहीं दिखा ?

अरुण बंछोर said...

sahee kaha anil ji sab kuchha to ho hi gayaa.

Atul Shrivastava said...

बाबा रामदेव जो कर रहे हैं उसका परिणाम क्‍या होगा
भ्रष्‍टाचार पर कितना अंकुश लगेगा और इसमें बाबा का निहितार्थ क्‍या है

बाबा के साथ जुडे लोग कितने पाक साफ हैं इन सवालों का जवाब भले ही जो हो पर बाबा के आंदोलन को कुचलने के लिए जो किया गया उस पर इतना ही कहा जा सकता है
शर्मनाक

शर्मनाक
शर्मनाक

Gaurav Srivastava said...

bahut sahi kaha aapne

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

यही तो पता नहीं कि क्‍या चाहती हैं ये कमबख्‍त सरकारें।

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मेरे ख़ुदा मुझे जीने का वो सलीक़ा दे...
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।

प्रवीण पाण्डेय said...

यह टाला जा सकता था।

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

पहले चर्चा करते हैं फ़िर प्र्स्ताव मांगते है,फ़िर सहमति का नाटक करते हैं और अंत मे क्या करते हैं,लाठियां चलाते हैं,वो भी आधी रात को।शर्म भी नही आती और राजनीति से चुक गये लोग आकाओं को खुश करने के लिये बर्बरता को जायज ठहराने में होड़ लगाते हैं।

arvind said...

आखिर चाहती क्या है सरकार?भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कोई आवाज़ ना उठाये?उसके खिलाफ़ कोई आंदोलन ना हो?सारे चोट्टे चैन से हरामखोरी करते रहें?उसी कमाई से चुनाव लड़े और देश की जनता का खून चूसते रहे?राजा,कलमाड़ी,कन्नीमोज़ी,चौहान जैसों की फ़ौज़ तैयार होती रहे?करोड़ो लोग एक वक़्त खाना,रात को पेट पीठ से बांध कर भूखे सोते रहें,खुले आसमान के नीचे?काला धन वालों की कोठियां सजती रही?गरीबी लड़कियों को कोठे तक़ पंहुचाती रही?भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को कुचला जाता रहे?हरामखोरी के सारे रास्ते साफ़ हो जाये,कोई भी अडंगा या रोड़ा बाकी ना रहे?आखिर क्या चाह्ती है सरकार? ...bold and true.

ANIL said...

शर्मनाक
शर्मनाक